मामला सौंपे जाने पर आगे की जांच का आदेश केवल सेशन कोर्ट ही दे सकता है, इलाका मजिस्ट्रेट नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
2 Nov 2025 6:39 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी मामले के सौंपे जाने पर, केवल सत्र न्यायालय ही आगे की जाँच का आदेश दे सकता है, इलाका मजिस्ट्रेट नहीं।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस रजनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा,
"मजिस्ट्रेट द्वारा मामला सौंपे जाने के बाद सेशन कोर्ट ही मामले की सुनवाई करता है। BNSS की धारा 193(9) के प्रावधान में कोई संदेह नहीं है कि मामले को सौंपे जाने के बाद आगे की जांच का आदेश देने का अधिकार सेशन कोर्ट के पास है।"
कोर्ट ने कहा कि सेशन कोर्ट, जिसे एक बार मूल अधिकार क्षेत्र प्राप्त हो गया हो और जिसने मामले को अपने नियंत्रण में ले लिया हो, वह ही मामले में आगे की जांच का निर्देश दे सकता है।
खंडपीठ ने तर्क दिया कि मामले की पूरी सामग्री सेशन कोर्ट के समक्ष है। इसलिए वह मामले के तथ्यों के अनुसार बेहतर ढंग से निर्णय ले सकता है कि मामले में आगे की जांच की आवश्यकता है या नहीं।
खंडपीठ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा संदर्भित आपराधिक संदर्भ में उठाए गए प्रश्नों का उत्तर दे रही थी। उसके सामने दो प्रश्न थे:
- किसी मामले के सुपुर्द होने पर पूरक आरोपपत्र किसके समक्ष दायर किया जाना चाहिए, क्या इलाका मजिस्ट्रेट या सेशन कोर्ट, जो कि ट्रायल कोर्ट के रूप में मान्य है?
- किसी मामले के सुपुर्द होने पर आगे की जांच का आदेश देने का अधिकार किसके पास है, क्या इलाका मजिस्ट्रेट या सेशन कोर्ट, जो कि ट्रायल कोर्ट के रूप में मान्य है?
मामले को बंद करते हुए खंडपीठ ने कहा कि पूरक आरोपपत्र को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 173(2) के अंतर्गत पुलिस रिपोर्ट माना जाएगा और उसे संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर किया जाना चाहिए, जिसे उस पूरक आरोपपत्र का संज्ञान लेना होगा और मामले को सेशन कोर्ट को सौंपना होगा।
इसके अलावा, खंडपीठ ने यह भी कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 193(9) के अनुसार, मुकदमे के दौरान आगे की जांच मामले की सुनवाई कर रही अदालत की अनुमति से की जा सकती है।
खंडपीठ ने आदेश दिया,
"तदनुसार, संदर्भ का उत्तर दिया जाता है और उसका निपटारा किया जाता है। इस निर्णय की कॉपी सभी प्रिंसिपल जिला एंड सेशन जजों को सूचनार्थ एवं आवश्यक अनुपालन हेतु भेजी जाए।"
Title: COURT ON ITS OWN MOTION v. STATE

