मूल दस्तावेज़ के खो जाने या नष्ट होने का सख्त प्रमाण मिलने पर ही स्वीकार होगे द्वितीयक साक्ष्य: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

7 Nov 2025 4:51 PM IST

  • मूल दस्तावेज़ के खो जाने या नष्ट होने का सख्त प्रमाण मिलने पर ही स्वीकार होगे द्वितीयक साक्ष्य: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा कि अदालतें तभी द्वितीयक साक्ष्य स्वीकार कर सकती हैं जब मूल दस्तावेज़ के खो जाने, नष्ट होने या विपक्षी पक्ष द्वारा जानबूझकर रोककर रखने का ठोस और विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत किया जाए। केवल आरोप लगाना या बिना साक्ष्य के दावा करना इस आधार पर पर्याप्त नहीं होगा।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल की एकल पीठ ने कहा,

    “जांच रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ कि वादी द्वारा पंजीकरण के लिए कोई मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया गया था। उसने केवल वसीयत की फोटोकॉपी जमा की थी और इस संबंध में की गई शिकायत भी खारिज कर दी गई थी।”

    मामले की पृष्ठभूमि:

    यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब अमरनाथ नामक व्यक्ति ने दावा किया कि वह और उसका भाई मान्शा राम, अपनी मां श्रीमती हर देई की संपत्ति के समान हिस्से के संयुक्त मालिक हैं। उन्होंने 2009 की एक कथित वसीयत के आधार पर यह दावा किया।

    अमरनाथ ने आरोप लगाया कि मां की मृत्यु के बाद मान्शा राम ने म्यूटेशन (नामांतरण) की प्रक्रिया से उसे बाहर कर दिया और स्वयं को संपत्ति का एकमात्र मालिक घोषित कर दिया। दूसरी ओर मान्शा राम ने 2009 की वसीयत के अस्तित्व से ही इनकार करते हुए कहा कि उनकी मां ने 1985 में ही उसके पक्ष में वसीयत कर दी थी।

    मुकदमे के दौरान अमरनाथ ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65 के तहत आवेदन दायर कर 2009 की वसीयत की द्वितीयक साक्ष्य पेश करने की अनुमति मांगी।

    उसका कहना था कि वसीयत की मूल प्रति उप-रजिस्ट्रार के कार्यालय से गायब हो गई और यह प्रतिवादी की मिलीभगत का परिणाम है।

    ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए उसका आवेदन स्वीकार कर लिया कि वादी को कानून के अनुसार द्वितीयक साक्ष्य पेश करने का अवसर दिया जाना चाहिए और दस्तावेज़ की वैधता का निर्धारण उसी प्रक्रिया के बाद किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट की टिप्पणी:

    हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने बिना किसी ठोस प्रमाण के द्वितीयक साक्ष्य की अनुमति देकर गलती की है। अमरनाथ ने जवाब में कहा कि वसीयत के अस्तित्व पर कोई विवाद नहीं है। चूंकि यह सरकारी अभिरक्षा से गायब हुई है, इसलिए फोटोकॉपी ही एकमात्र उपलब्ध प्रमाण है।

    हालांकि जस्टिस अजय मोहन गोयल ने कहा कि कानून के अनुसार केवल तभी द्वितीयक साक्ष्य की अनुमति दी जा सकती है, जब मूल दस्तावेज़ के नष्ट होने, गुम होने या जानबूझकर रोके जाने का स्पष्ट और विश्वसनीय प्रमाण पेश किया जाए।

    उन्होंने कहा कि बिना ठोस सबूत के सिर्फ यह दावा करना कि दस्तावेज़ खो गया, अदालत को द्वितीयक साक्ष्य की अनुमति देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 का उपयोग तभी किया जा सकता है, जब मूल दस्तावेज़ के न मिलने के पीछे का कारण ठोस प्रमाणों से सिद्ध हो, अन्यथा ऐसी अनुमति देना कानून GTG की भावना के विपरीत होगा।

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