सिर्फ इतना कहना कि 'बेटी दुखी थी' या 'अक्सर रोती थी' 498A के तहत ससुराल वालों या पति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

Praveen Mishra

7 Nov 2025 5:54 PM IST

  • सिर्फ इतना कहना कि बेटी दुखी थी या अक्सर रोती थी 498A के तहत ससुराल वालों या पति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी महिला के ससुराल वालों या पति को केवल इस आधार पर धारा 498A (क्रूरता) के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि महिला के माता-पिता ने कहा हो कि उनकी बेटी शादी में 'असंतुष्ट' थी या 'रोती रहती थी'।

    जस्टिस मिलिंद सथाये ने पुणे की सत्र न्यायालय के 17 नवंबर 1998 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें रामप्रकाश मनोहर को धारा 498A (क्रूरता) और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत उसकी पत्नी रेखा की आत्महत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। रेखा ने नवंबर 1997 में पुणे के बोपोड़ी इलाके में नदी में डूबकर आत्महत्या की थी।

    अदालत ने अभियोजन के आरोपों पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि आरोपी ने अपनी पत्नी से पैसे की मांग की थी और उसने अपने माता-पिता से पैसे लाकर दिए थे। साथ ही, ससुराल वालों की मांग पर उसने एक 'सिलाई मशीन' भी लाई थी। रिकॉर्ड में यह भी उल्लेख था कि दिवाली 1997 के दौरान आरोपी और उसके माता-पिता ने रेखा के पिता से कहा था कि अगर वह अपनी बेटी को अपने घर ले जाना चाहते हैं तो ले जाएं, लेकिन ससुराल पक्ष की ओर से कोई उसे वापस लाने नहीं आएगा।

    जस्टिस सथाये ने यह भी नोट किया कि जब रेखा 13 नवंबर 1997 को लापता हुई, तो उसके माता-पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उसमें किसी भी प्रकार की प्रताड़ना या क्रूरता का उल्लेख नहीं किया गया था।

    अपने आदेश (4 नवंबर) में अदालत ने कहा —

    “सिर्फ यह कहना कि मृत बेटी दुखी रहती थी या रोती रहती थी, यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि उसे ऐसी प्रताड़ना दी गई थी जो उसे आत्महत्या के लिए मजबूर कर सके। रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत इतने मजबूत नहीं हैं कि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत 'क्रूरता' सिद्ध हुई है।”

    अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि मृतका का matrimonial house ऐसे क्षेत्र में था जहाँ निजी शौचालय नहीं थे और लोग सार्वजनिक शौचालय या नदी किनारे का उपयोग करते थे। अदालत ने कहा कि यह तर्क भी मान्य है कि रेखा का नदी में फिसलकर गिरना संभव हो सकता है।

    इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने 1998 में पुणे सत्र अदालत द्वारा दिए गए फैसले को रद्द करते हुए आरोपी की तीन साल की कठोर कैद की सजा को समाप्त कर दिया।

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