अटेंडेंस कम होने पर स्टूडेंट्स को परीक्षा से नहीं रोका जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Amir Ahmad

3 Nov 2025 12:18 PM IST

  • अटेंडेंस कम होने पर स्टूडेंट्स को परीक्षा से नहीं रोका जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह आदेश दिया कि भारत में किसी भी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज, विश्वविद्यालय या संस्थान में नामांकित किसी भी छात्र को न्यूनतम उपस्थिति (मिनिमम अटेंडेंस) की कमी के आधार पर परीक्षा देने या आगे की शैक्षणिक पढ़ाई से नहीं रोका जाएगा।

    जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया,

    "किसी भी लॉ कॉलेज, विश्वविद्यालय या संस्थान को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक उपस्थिति मानदंड अनिवार्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"

    यह फैसला अदालत द्वारा सुशांत रोहिल्ला (एमिटी लॉ स्कूल के स्टूडेंट) की 2016 में हुई आत्महत्या से संबंधित स्वतः संज्ञान मामले को बंद करते हुए सुनाया गया। रोहिल्ला को कथित तौर पर कम उपस्थिति के कारण पूरे शैक्षणिक वर्ष को दोहराने के लिए मजबूर किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि कानूनी शिक्षा में उपस्थिति के नियम इतने कठोर नहीं होने चाहिए कि वे स्टूडेंट्स को मानसिक आघात दें और उन्हें आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर करें।

    न्यायालय ने टिप्पणी की कि भले ही रोहिल्ला की दुर्भाग्यपूर्ण मौत का एकमात्र कारण उपस्थिति न हो लेकिन अनिवार्य उपस्थिति मानदंडों की कीमत पर एक युवा जीवन का नुकसान नहीं हो सकता।

    अदालत ने कहा कि आज के युग में शिक्षा का तरीका बदल गया है और कक्षा में उपस्थिति ही पर्याप्त नहीं है। कानूनी शिक्षा के लिए ज्ञान, व्यावहारिक अनुप्रयोग, मूट कोर्ट, सेमिनार, संसदीय बहस और अदालती सुनवाई में भाग लेना आवश्यक है।

    NEP 2020 के अनुरूप:

    न्यायालय ने माना कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) बहु-विषयक अध्ययन, ऑनलाइन क्लासेज और छात्रों की वर्चुअल भागीदारी की परिकल्पना करती है, जिसका मूल तत्व लचीलापन (फ्लेक्सिबिलिटी) है न कि कठोरता।

    सृजनात्मक स्वतंत्रता:

    कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य उपस्थिति मानदंड रचनात्मक स्वतंत्रता को रोकते हैं और स्टूडेंट्स के सामने आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों जैसे वित्तीय संकट दूर से आवागमन या परिवार की जिम्मेदारियों पर विचार नहीं करते हैं।

    सलाह-मशविरा की प्रक्रिया पूरी होने तक कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से निम्नलिखित अंतरिम निर्देश जारी किए:

    परीक्षा से नहीं रोका जाएगा:

    उपस्थिति की कमी के आधार पर किसी भी स्टूडेंट को परीक्षा देने या अगले शैक्षणिक सत्र में जाने से नहीं रोका जाएगा।

    BCI से अधिक मानदंड नहीं: कोई भी संस्थान BCI द्वारा निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक उपस्थिति मानदंड अनिवार्य नहीं कर सकता।

    दंड का विकल्प: यदि कोई स्टूडेंट सेमेस्टर के अंत में भी निर्धारित उपस्थिति मानदंडों को पूरा नहीं करता है तो कॉलेज उसे परीक्षा देने से नहीं रोक सकता। हालांकि, अंतिम परिणाम में, उसके ग्रेड को अधिकतम 5% (अंकों के मामले में) या 0.33% (CGPA के मामले में) तक कम किया जा सकता है।

    अदालत ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को निर्देश दिया कि वह NEP 2020 के आलोक में तीन वर्षीय और पांच वर्षीय LLB कोर्सेज के लिए अनिवार्य उपस्थिति मानदंडों का पुनर्मूल्यांकन करे।

    क्रेडिट शामिल करें: BCI को मूट कोर्ट, सेमिनार, संसदीय बहस और अदालती सुनवाई में भाग लेने के लिए क्रेडिट देने के प्रावधानों को शामिल करना होगा।

    परामर्श अनिवार्य: BCI स्टूडेंट्स के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए स्टूडेंट्स अभिभावकों और शिक्षकों सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्श प्रक्रिया शीघ्रता से शुरू करेगा।

    इसके अतिरिक्त कोर्ट ने सभी संस्थानों को शिकायत निवारण समितियां (GRCs) गठित करने का निर्देश दिया, जिनमें छात्र प्रतिनिधि और पर्याप्त संख्या में काउंसलर/मनोवैज्ञानिक शामिल हों।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि BCI आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए इंटर्नशिप की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु कदम उठाए और सीनियर एडवोकेट तथा लॉ फर्मों की एक सूची अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे।

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