हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

7 Sept 2025 10:00 AM IST

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    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (01 सितंबर, 2025 से 05 सितंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    कम दृष्टि वाले उम्मीदवार असिस्टेंट एग्रीकल्चर इंजीनियर पद के लिए पात्र नहीं : उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि कम दृष्टि दिव्यांगता वाले अभ्यर्थी असिस्टेंट एग्रीकल्चर इंजीनियर के पद पर नियुक्ति का दावा नहीं कर सकते। यदि उस पद को सरकार ने संबंधित अधिसूचना में इस श्रेणी के लिए उपयुक्त नहीं माना है। अदालत ने कहा कि विकलांग व्यक्तियों (PwD) अधिनियम 1995 की धारा 32 और 33 के तहत केवल वही अभ्यर्थी चयन का दावा कर सकते हैं, जिनकी दिव्यांगता उस पद के लिए अधिसूचना द्वारा चिन्हित की गई हो।

    केस टाइटल: Odisha Public Service Commission बनाम बिस्वजीत पांडा

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    जूनियर को पहले पदोन्नत किया गया हो तो रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति लाभों से इनकार नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस रंजन शर्मा की हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि यदि किसी कर्मचारी के जूनियर को उसके कार्यकाल के दौरान पदोन्नत और नियमित किया गया हो तो उसे केवल रिटायरमेंट के आधार पर पदोन्नति और परिणामी लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।

    Case Name : H.P. Housing & Urban Development Authority vs Roop Lal Verma & another

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    आयकर अधिनियम की धारा 22 के तहत एओ नगरपालिका कर योग्य मूल्य से अधिक संपत्ति का वार्षिक मूल्य निर्धारित कर सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 22 के तहत कर निर्धारण अधिकारी (एओ) संपत्ति का वार्षिक मूल्य नगरपालिका के कर योग्य मूल्य से अधिक निर्धारित कर सकता है। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 22 "गृह संपत्ति से आय" की करयोग्यता से संबंधित है।

    इसमें कहा गया कि संपत्ति का वार्षिक मूल्य, जिसमें उससे संबद्ध कोई भवन या भूमि शामिल है, जिसका करदाता स्वामी है, सिवाय उस संपत्ति के उन हिस्सों के जिन पर वह अपने द्वारा चलाए जा रहे किसी व्यवसाय या पेशे के लिए कब्जा कर सकता है और जिसके लाभ पर आयकर लगता है, "गृह संपत्ति से आय" शीर्षक के अंतर्गत आयकर लगेगा।

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    'अतिरिक्त तहसीलदार कार्यालय का सृजन महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता के तहत नए राजस्व क्षेत्र के समान नहीं': बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि प्रशासनिक सुविधा के लिए अतिरिक्त तहसीलदार का कार्यालय बनाना महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता, 1966 की धारा 4 के तहत नए राजस्व क्षेत्र के सृजन या गठन के समान नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी नियुक्तियां संहिता की धारा 7 और 13 के तहत स्वीकार्य हैं। राजस्व क्षेत्रों में परिवर्तन के लिए अनिवार्य पूर्व प्रकाशन और अधिसूचना की प्रक्रिया के अनुपालन की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस मनीष पिताले और जस्टिस वाई. जी. खोबरागड़े की खंडपीठ 18 जुलाई, 2023 के एक सरकारी प्रस्ताव को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। प्रस्ताव के तहत राज्य ने अतिरिक्त तहसीलदार का कार्यालय बनाया, जिसमें 63 गाँवों को नए कार्यालय से जोड़ा गया, जबकि शेष गाँव तहसीलदार के अधीन बने रहे। धारा 13(3) के तहत 17 अगस्त 2023 की एक बाद की अधिसूचना ने अतिरिक्त तहसीलदार को निर्दिष्ट क्षेत्राधिकार के लिए तहसीलदार की शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार दिया।

    Case Title: Nilangekar Taluka Eksangh Kruti Samiti v. State of Maharashtra & Ors. [PIL (St.) No. 24738 of 2023]

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    रिट कोर्ट को अनुच्छेद 12 के तहत स्वीकृत बकाया राशि जारी करने का निर्देश देने का अधिकार: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध रॉय की पीठ ने कहा कि एक बार कार्य आदेश जारी हो जाने और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत आने वाले प्राधिकरण की संतुष्टि के अनुसार कार्य पूरा हो जाने पर प्राधिकरण के लिए भुगतान जारी करना अनिवार्य हो जाता है। ऐसा न होने पर न्यायालय, संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए याचिकाकर्ता के अधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए प्राधिकरण को राशि जारी करने का निर्देश दे सकता है।

    Case Title: Amjad Hossain Vs. The State of West Bengal & Ors.

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    सरकारी नौकरी से पहले आवेदन किया तो वकील को पूरा प्रैक्टिस लाइसेंस मिलेगा: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने एक वकील के अस्थायी लाइसेंस को रद्द करने को रद्द कर दिया है, जिसे इस आधार पर पूर्ण लाइसेंस से वंचित कर दिया गया था कि वह बाद में अभियोजन अधिकारी के रूप में सरकारी सेवा में शामिल हो गया था।

    जस्टिस जावेद इकबाल वानी और जस्टिस मोक्ष खजूरिया काजमी की खंडपीठ ने कहा कि जब एक वकील ने पहले ही पूर्ण लाइसेंस के लिए आवेदन कर दिया है, तो आवेदन को आगे बढ़ाने में बार काउंसिल की देरी को उसके खिलाफ केवल इसलिए नहीं पढ़ा जा सकता क्योंकि उसे बाद में सरकारी सेवा में नियुक्त किया गया था।

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    विदेशी कानून हिंदू विवाह अधिनियम के तहत संपन्न हिंदू विवाह को भंग नहीं कर सकता, भले ही दंपत्ति विदेश में निवास करते हों या विदेशी नागरिकता प्राप्त कर ली हो: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि भारत में विवाह करने वाले दो हिंदुओं के बीच वैवाहिक विवाद केवल हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही माना जा सकता है और विदेशी पारिवारिक कानून उस पर लागू नहीं होगा, भले ही दंपत्ति किसी विदेशी देश के निवासी हों या उनकी नागरिकता हो। इस प्रकार, न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत संपन्न विवाह को भंग करने के लिए किसी विदेशी कानून की प्रयोज्यता "अनुचित" है।

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    विभाजन के मुकदमे में माता-पिता का निर्धारण करने के लिए किसी पक्ष पर DNA परीक्षण के लिए दबाव डालना निजता के अधिकार का उल्लंघन: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि विभाजन के मुकदमे में किसी पक्षकार को उसके माता-पिता का पता लगाने के लिए डीएनए परीक्षण कराने के लिए बाध्य करना अनुचित है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

    प्रतिद्वंद्वी पक्ष द्वारा किए गए ऐसे अनुरोध की कानूनी असंयमिता पर प्रकाश डालते हुए, जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे की एकल पीठ ने कहा - “विभाजन के मुकदमे में, प्रतिद्वंद्वी पक्ष के माता-पिता का पता लगाने के लिए डीएनए परीक्षण की प्रार्थना अनुचित है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि किसी व्यक्ति को डीएनए परीक्षण कराने के लिए बाध्य करने से उसकी निजता का अधिकार प्रभावित होता है।”

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    शिक्षित और कमाने वाली पत्नी से घर के खर्चों में सहयोग करने की उम्मीद क्रूरता नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पत्नी द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए, और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC/ST Act) तथा किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) की विभिन्न धाराओं के तहत क्रूरता का आरोप लगाते हुए दायर किए गए मामलों को खारिज कर दिया।

    जस्टिस अजय कुमार गुप्ता ने कहा: "प्रतिवादी नंबर 2 एक शिक्षित और कमाने वाली महिला है। घर के खर्चों में योगदान देने, COVID-19 लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन खरीदारी करने, या सास द्वारा बच्चे को खिलाने के लिए कहे जाने की नियमित अपेक्षाएं, किसी भी तरह से IPC की धारा 498ए के अर्थ में "क्रूरता" नहीं मानी जा सकतीं। इसी तरह संयुक्त रूप से अधिग्रहित अपार्टमेंट के लिए EMI का भुगतान, या पिता द्वारा बच्चे को बाहर ले जाना, घरेलू जीवन की असामान्य घटनाएं नहीं हैं। जहां किसी भी अभियुक्त को कोई विशिष्ट भूमिका नहीं दी गई। आरोपों में अपराध की तारीख, समय या तरीके के बारे में विवरण का अभाव है, वहां आपराधिक कार्यवाही जारी रखना अभियुक्त के विरुद्ध पूर्वाग्रह और उत्पीड़न के रूप में कार्य करेगा।"

    Case Title: Dr. Hiralal Konar & Anr. Versus The State of West Bengal and Anr.

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    अनुदान से वेतन प्राप्त करने वाले असम अल्पसंख्यक बोर्ड के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं माने जा सकते: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    चीफ जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस मनीष चौधरी की गुवाहाटी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के कर्मचारी, जिनका वेतन राज्य वेतन मद से नहीं बल्कि अनुदान सहायता से मिलता है, सरकारी कर्मचारी नहीं माने जा सकते और असम सेवा (पेंशन) नियम, 1969 के नियम 31 के तहत पेंशन के हकदार नहीं हैं।

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    [Sec. 138 NI Act] चेक बाउंस पर 15 दिन में भुगतान न होने पर शिकायत दर्ज की जा सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने चेक जारीकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसके खिलाफ परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act) की धारा 138 के तहत कार्यवाही समय से पहले शुरू की गई है, क्योंकि यह शिकायत '45 दिन की वैधानिक नोटिस अवधि' से पहले दायर की गई थी। याचिकाकर्ता-ड्रॉअर ने धारा 138 के तहत निर्धारित 15 दिन की वैधानिक नोटिस अवधि और धारा 142 के तहत निर्धारित एक महीने की सीमा अवधि को जोड़ने की मांग की थी।

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    सेवा रिकॉर्ड में जन्मतिथि में सुधार को सेवा के अंतिम चरण में अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने कहा कि सेवा अभिलेखों में जन्मतिथि में सुधार को अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता, भले ही इसके लिए मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र जैसे वास्तविक दस्तावेज़ ही क्यों न हों, खासकर जब ऐसा अनुरोध अत्यधिक विलंब (दो दशकों से अधिक) के बाद और सेवानिवृत्ति की तिथि के निकट किया गया हो।

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    बिना दोषसिद्धि के लंबित आपराधिक कार्यवाही पेंशन और ग्रेच्युटी जैसे वैधानिक अधिकारों को रोकने का आधार नहीं हो सकती: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने कहा कि बिना दोषसिद्धि के आपराधिक कार्यवाही का लंबित रहना पेंशन, ग्रेच्युटी या अवकाश नकदीकरण रोकने का आधार नहीं हो सकता क्योंकि ये कर्मचारी के वैधानिक अधिकार हैं।

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    Land Acquisition Act | पुनर्वास योजना के तहत लाभ तभी मिल सकता है जब अधिग्रहण के दौरान पंचायत रजिस्टर में नाम हो: HP हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन योजना का लाभ तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक भूमि अधिग्रहण के समय पंचायत के परिवार रजिस्टर में कोई प्रविष्टि न हो। जस्टिस अजय मोहन गोयल ने कहा कि, "एक तथ्य जो स्पष्ट है... वह यह है कि वर्ष 2000 में जब याचिकाकर्ता की भूमि अधिग्रहित की गई थी, उस समय उसका नाम संबंधित गांव के पंचायत परिवार रजिस्टर में दर्ज नहीं था, जो कि योजना के खंड 2.2.3 के अनुसार योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए एक पूर्व शर्त है।"

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    ईडी आयकर विभाग की ओर से दायर शिकायत में संलग्न अदालती फाइलों और दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकता है: P&H हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) आयकर विभाग द्वारा दर्ज शिकायत के साथ न्यायालय में प्रस्तुत दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकता है। आयकर विभाग द्वारा याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध आयकर अधिनियम की धारा 277 के अंतर्गत, भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के साथ, शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें विदेशी कर प्राधिकारी द्वारा मूल रूप से पेरिस, फ्रांस में प्राप्त मास्टरशीट के रूप में जानकारी को अभिलेख में रखा गया था।

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    क्लोजर रिपोर्ट दाखिल होने पर मजिस्ट्रेट जमानत दे सकते हैं, भले ही हाईकोर्ट ने पहले की याचिका खारिज कर दी हो: P&H हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के बाद मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को जमानत देने का अधिकार है, भले ही हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय ने उसकी पिछली जमानत याचिका खारिज कर दी हो। ये टिप्पणियां साइकिल और जूते चुराने के आरोप में गिरफ्तार किए गए एक अभियुक्त को अंतरिम जमानत देते समय की गईं।

    हाईकोर्ट ने कहा, "ऐसे मामलों में जहां कोई अभियुक्त न्यायिक हिरासत में है और सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट ने उसकी जमानत खारिज कर दी है या उनके समक्ष लंबित है, और इस बीच, जांच या तो ऐसे अभियुक्त को दोषमुक्त कर देती है, क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने का प्रस्ताव करती है, या अपराध को जमानत योग्य श्रेणी में घटा देती है, तो संबंधित मजिस्ट्रेट के पास अधिकार क्षेत्र है और वह सक्षम है और उसे धारा 480 BNSS केतहत जमानत देनी चाहिए, या धारा 478 BNSS के तहत ऐसे अभियुक्त को रिहा करना चाहिए, भले ही हाईकोर्ट (हाईकोर्ट्स) ने जमानत पहले खारिज कर दी हो या हाईकोर्ट या/और सत्र न्यायालय में लंबित हो।"

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    तलाक की कार्यवाही स्थगित होने पर भी पति की गुज़ारा भत्ता देने की ज़िम्मेदारी खत्म नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक की कार्यवाही पर रोक लग जाने से पति की पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 24 के तहत मिलने वाले गुज़ारा भत्ते की ज़िम्मेदारी समाप्त नहीं होती। जस्टिस मनीष कुमार निगम की एकलपीठ ने कहा कि पति की देनदारी तब तक बनी रहती है, जब तक कि गुज़ारा भत्ते का आदेश निरस्त या वापस नहीं ले लिया जाता। यह ज़िम्मेदारी अपील पुनर्विचार या पुनर्स्थापन कार्यवाही के दौरान भी जारी रहती है।

    केस टाइटल: अंकित सुमन बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य (2025 LiveLaw (AB) 328)

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    संभागीय आयुक्त के पास पहले से तय अपील की समीक्षा करने का अधिकार नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि संभागीय आयुक्त को किसी अपील पर अंतिम निर्णय हो जाने के बाद उसे पुनः खोलने और उस पर पुनर्विचार करने का कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की, "संभागीय आयुक्त को अपनी अर्ध-न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए पहले से तय की गई किसी अपील को स्वतः संज्ञान लेकर पुनः शुरू करने का कोई अधिकार नहीं है।"

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    धारा 112 साक्ष्य अधिनियम | बिना आवश्यकता के पितृत्व निर्धारित करने के लिए डीएनए परीक्षण के लिए बाध्य करना विवाह की पवित्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि डीएनए परीक्षण की अनुमति केवल साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत ही दी जानी चाहिए, जब बच्चे के जन्म के दौरान माता-पिता के बीच संपर्क की अनुपस्थिति साबित हो जाए, क्योंकि धारा 112 के तहत यह अनुमान सार्वजनिक नैतिकता और सामाजिक शांति पर आधारित है। न्यायालय ने आगे कहा कि बिना आवश्यकता के ऐसे परीक्षण कराना विवाह की पवित्रता के साथ-साथ दंपत्ति को दिए गए निजता और सम्मान के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है।

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    स्थानीय पुलिस स्टेशन भी साइबर अपराधों की जांच कर सकते हैं, सीआईडी-सीबी के पास विशेष अधिकार क्षेत्र नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि अपराध जांच विभाग, अपराध शाखा (साइबर अपराध) ('सीआईडी-सीबी') साइबर/आईटी से संबंधित अपराधों की जांच करने के लिए अधिकृत एकमात्र जांच निकाय नहीं है, बल्कि स्थानीय पुलिस स्टेशन भी ऐसे अपराधों की जांच कर सकते हैं, बशर्ते कि जांच अधिकारी (आईओ) 'इंस्पेक्टर' के पद से नीचे का न हो।

    सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ('आईटी अधिनियम') की धारा 78, जिसके अनुसार निरीक्षक के पद से नीचे का कोई पुलिस अधिकारी अधिनियम के तहत किसी भी अपराध की जांच नहीं करेगा, के साथ-साथ कई सरकारी अधिसूचनाओं के बीच परस्पर क्रिया की व्याख्या करते हुए, न्यायमूर्ति चित्तरंजन दाश की एकल पीठ ने कहा -

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    मामले के निपटारे के बाद दायर आवेदन में निपटान शर्तों को संशोधित करने का DRT के पास कोई अधिकार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) को सहमति वसूली प्रमाण पत्र के आधार पर मामले के निपटारे के बाद दायर आवेदन के संबंध में एकमुश्त निपटान (ओटीएस)/निपटान के नियमों और शर्तों को फिर से लिखने/संशोधित करने का कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ डीआरटी के उस आदेश के विरुद्ध एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें प्रतिवादी द्वारा राशि चुकाने के लिए और समय मांगने हेतु दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया गया था, जबकि SRFAESI अधिनियम के तहत मामले का निपटारा डीआरटी द्वारा पक्षों के बीच हुए ओटीएस के आधार पर सहमति वसूली प्रमाण पत्र जारी करके पहले ही कर दिया गया था।

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    दिव्यांगता पेंशन PCDA(P) मेडिकल बोर्ड के निष्कर्षों को रद्द नहीं कर सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि रक्षा लेखा प्रधान नियंत्रक PCDA (पेंशन) को विधिवत गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा निर्धारित दिव्यांगता प्रतिशत को बदलने या कम करने का कोई अधिकार नहीं है। केवल उच्च/समीक्षा मेडिकल बोर्ड ही इसका पुनर्मूल्यांकन कर सकता है। दिव्यांगता पेंशन को पूर्णांकित करने का लाभ सामान्य रिटायरमेंट के उन मामलों में भी लागू होता है, जहां दिव्यांगता सैन्य सेवा के कारण हुई हो या उसके कारण बढ़ी हो।

    Case Name : Union of India & Ors vs Ex Naik (TS) Shukar Singh

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    भाई के एक ही घर और रसोई साझा न करने तक जिठानी परिवार का हिस्सा नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति को रद्द करने को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एक भाभी (जेठानी) को सरकारी आदेश के तहत 'एक ही परिवार' का हिस्सा माना जाता है, अगर दोनों भाई एक ही घर और रसोई के साथ रहते हैं।

    जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने कुमारी सोनम की याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया, जिनकी नियुक्ति 13 जून, 2025 को बरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी ने रद्द कर दी थी। रद्द करने का आधार इस आधार पर था कि उसकी जेठानी पहले से ही उसी केंद्र में आंगनवाड़ी सहायक के रूप में सेवा कर रही थी।

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    उत्तराखंड हाईकोर्ट का आदेश : मकतब अब मदरसा नाम का इस्तेमाल नहीं करेंगे, हलफनामा दाखिल करना होगा

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उन मकतबों को राहत दी, जिन्हें बिना विधिक आदेश के सील कर दिया गया। साथ ही सख्त निर्देश दिया कि वे अपने संस्थान के नाम में मदरसा शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे संस्थानों को अपनी इमारतों को डि-सील करवाने के लिए संबंधित उप-जिलाधिकारी (SDM) के समक्ष हलफनामा देना होगा कि वे न तो मदरसा चलाएंगे और न ही अपने संस्थानों के नाम में मदरसा शब्द का प्रयोग करेंगे।

    केस टाइटल: Madarsa Inamul Ulum Society बनाम State of Uttarakhand & Others

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    पहली बार अपराध करने वालों को प्रोबेशन पर छोड़ा जा सकता है: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत को पहली बार दोषी ठहराए गए अपराधियों को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के तहत रिहा करने का अधिकार है और यह उन्हें कलंक और कैद के नकारात्मक प्रभाव से बचाता है। अदालत ने 2016 की प्राथमिकी में एक दोषी को IPC की धारा 148 (दंगा, घातक हथियार से लैस) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा) के तहत रिहा करने का निर्देश दिया, जिसे 2019 में परिवीक्षा पर अधिकतम एक वर्ष के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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    लाभकारी निजी प्रैक्टिस में बिताई गई निलंबन अवधि को अवकाश माना जाएगा; कर्मचारी वेतन पाने का हकदार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि जिस निलंबन अवधि के दौरान कर्मचारी निजी प्रैक्टिस में लाभप्रद रूप से लगा हुआ था, उसे अवकाश माना जाना चाहिए और कर्मचारी ऐसी अवधि के लिए वेतन पाने का पात्र नहीं है।

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    परिसीमा अधिनियम की धारा 5 बिहार लोक निर्माण संविदा विवाद मध्यस्थता अधिनियम के तहत पुनरीक्षण याचिकाओं पर लागू होती है: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि परिसीमा अधिनियम की धारा 5, बिहार लोक निर्माण संविदा विवाद मध्यस्थता अधिनियम, 2008 (BPWCDA एक्ट) की धारा 13 के अंतर्गत संशोधनों पर लागू होती है, जिसका अर्थ है कि BPWCDA अधिनियम के अंतर्गत पारित पंचाटों को चुनौती देने में हुई देरी को परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत क्षमा किया जा सकता है। जस्टिस रमेश चंद मालवीय की पीठ ने फैसले में माना कि चूंकि उक्त बिंदु पर पटना हाईकोर्ट के मत परस्पर विरोधी थे, इसलिए मामले को एक बड़ी पीठ को भेज दिया गया।

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