अनुदान से वेतन प्राप्त करने वाले असम अल्पसंख्यक बोर्ड के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं माने जा सकते: गुवाहाटी हाईकोर्ट

Shahadat

4 Sept 2025 10:28 AM IST

  • अनुदान से वेतन प्राप्त करने वाले असम अल्पसंख्यक बोर्ड के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं माने जा सकते: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    चीफ जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस मनीष चौधरी की गुवाहाटी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के कर्मचारी, जिनका वेतन राज्य वेतन मद से नहीं बल्कि अनुदान सहायता से मिलता है, सरकारी कर्मचारी नहीं माने जा सकते और असम सेवा (पेंशन) नियम, 1969 के नियम 31 के तहत पेंशन के हकदार नहीं हैं।

    पृष्ठभूमि तथ्य

    अपीलकर्ता असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के अंतर्गत चपरासी, ड्राइवर, एलडीए और स्टेनो जैसे ग्रेड-III और ग्रेड-IV पदों पर कार्यरत कर्मचारी थे। उनके पद राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत थे और स्थायी रूप से बनाए रखे गए। वे लंबे समय से सेवारत थे और असम सेवा (पेंशन) नियम, 1969 के नियम 31 के तहत पेंशन पाने की पात्रता का दावा इस आधार पर कर रहे हैं कि उनके पद राज्य द्वारा स्वीकृत और बरकरार रखे गए, जिससे वे पेंशन संबंधी लाभों के पात्र हैं। लेकिन प्रतिवादियों ने उन्हें पेंशन संबंधी लाभों से वंचित कर दिया। व्यथित होकर, अपीलकर्ताओं ने एक याचिका दायर की। सिंगल जज ने राज्य के रुख को स्वीकार करते हुए रिट याचिका खारिज कर दी।

    इस निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्ताओं ने सिंगल जज के आदेश को चुनौती देते हुए अंतर-न्यायालय अपील दायर की।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि सिंगल जज ने इस तथ्य को नहीं समझा कि वे राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत पदों पर लंबे समय से बोर्ड के अधीन कार्यरत थे। इसके अलावा, ऐसे पद स्थायी रूप से बरकरार रखे गए। इस प्रकार, वे असम सेवा (पेंशन) नियम, 1969 (1969 के नियम) के नियम 31 के तहत पेंशन पाने के पात्र हैं।

    इसके अलावा, अपीलकर्ता ने बोर्ड के कर्मचारी के संबंध में असम सरकार, अल्पसंख्यक कल्याण एवं विकास विभाग के सचिव द्वारा जारी दिनांक 15 फरवरी, 2024 की अधिसूचना का हवाला दिया, जिसके द्वारा उक्त कर्मचारी को "नई परिभाषित अंशदान पेंशन योजना" के अंतर्गत पेंशन नियमों के एक नए सेट द्वारा शासित होने की अनुमति दी गई।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों का तर्क था कि यद्यपि पद स्थायी रूप से बनाए रखे गए। हालांकि, स्वीकृति केवल सीमित अवधि के लिए थी। यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ताओं को सरकार द्वारा बोर्ड को प्रदान किए गए अनुदान सहायता से भुगतान किया गया, न कि नियमित सरकारी वेतन बजट से, जो सामान्य मद के अंतर्गत आता है। प्रतिवादियों ने यह भी तर्क दिया कि इस तथ्य के बावजूद कि बोर्ड की राज्य में उपस्थिति है और उसके पास राज्य के कुछ ढांचे भी हैं, संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ में राज्य माने जाने वाले निकाय और वित्तीय भार से प्रभावित निकाय/बोर्ड के बीच एक अंतर होगा।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने पाया कि 1969 के नियमों के नियम 31 में पेंशन के लिए पात्रता हेतु अर्हक सेवा की शर्तें निर्धारित हैं। नियम 31 के अनुसार, किसी अधिकारी की सेवा तब तक पेंशन के लिए अर्ह नहीं मानी जाएगी, जब तक कि वह सरकार के अधीन अनिवार्य न हो; रोजगार मौलिक और स्थायी होना चाहिए। कर्मचारी को सरकार द्वारा भुगतान किया जाना चाहिए। हालांकि, परंतुक के अनुसार, इन शर्तों के पूरा न होने पर भी राज्यपाल अराजपत्रित हैसियत में की गई किसी भी विशिष्ट प्रकार की सेवा को पेंशन के लिए अर्ह घोषित कर सकते हैं। व्यक्तिगत मामलों में ऐसी शर्तों के अधीन, जिनकी वह अनुमति दे, किसी अधिकारी द्वारा की गई सेवा को पेंशन के लिए गणना में शामिल कर सकते हैं।

    असम राज्य बनाम बराक उपत्यका डी.यू. कर्मचारी संस्था के मामले पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि भले ही किसी बोर्ड या सहकारी समिति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 की परिभाषा के अंतर्गत राज्य माना जाए। हालांकि, उसे राज्य सरकार नहीं माना जाएगा। ऐसे निकाय के कर्मचारियों को सिविल पदों पर आसीन व्यक्ति या राज्य के कर्मचारी नहीं कहा जाएगा।

    न्यायालय ने यह माना कि भले ही बोर्ड अन्य उद्देश्यों के लिए "राज्य" की परिभाषा में आता हो, लेकिन बोर्ड के कर्मचारी, जिन्हें अनुदान सहायता से वेतन दिया जा रहा है, सरकारी कर्मचारी नहीं कहलाएंगे। न्यायालय ने यह भी माना कि अपीलकर्ता बोर्ड के कर्मचारी थे। वे सशर्त स्वीकृत पदों पर कार्यरत थे, जिन्हें स्थायी रूप से बरकरार रखा गया। इसके अलावा, उन्हें अनुदान सहायता से वेतन दिया जा रहा था, न कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन वितरण के सामान्य मद से।

    अंत में असम सरकार, अल्पसंख्यक कल्याण एवं विकास विभाग के सचिव द्वारा जारी दिनांक 15 फरवरी, 2024 की अधिसूचना से न्यायालय ने यह पाया कि यह संबंधित कर्मचारी के संबंध में विशिष्ट घोषणा थी और यह अपीलकर्ताओं पर लागू नहीं होगी, जिससे उन्हें यह दावा करने का अधिकार मिल सके कि उनके साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट अपील खारिज कर दी गई।

    Case Name : Sri Ismail Ali and Ors vs The State Of Assam and Ors.

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