हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
4 May 2025 10:00 AM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (27 अप्रैल, 2025 से 02 मई, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
अधिकारियों की गलती के कारण नियुक्ति में देरी होने पर “काम नहीं तो वेतन नहीं” नियम लागू नहीं होता: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस प्रसेनजीत बिस्वास की खंडपीठ ने माना कि नियुक्ति में देरी अधिकारियों की गलती के कारण होने पर “काम नहीं तो वेतन नहीं” का सिद्धांत लागू नहीं होता। इस प्रकार प्रभावित व्यक्ति को मौद्रिक लाभ का हकदार माना जाता है।
केस टाइटल: पद्मावती सक्किनाला बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।
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40% से अधिक विकलांगता वाले व्यक्ति को आदिवासी/दुर्गम क्षेत्र में ट्रांसफर नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक दृष्टिबाधित सरकारी कर्मचारी, जिसकी विकलांगता 40% से अधिक है, उसको दुर्गम क्षेत्र में ट्रांसफर करने के आदेश पर रोक लगाई है। (दुर्गम/आदिवासी क्षेत्र उन इलाकों को कहा जाता है जो भौगोलिक रूप से दूरस्थ, कठिन भू-प्राकृतिक स्थितियों वाले और सीमित संसाधनों तक पहुंच वाले होते हैं।)
जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार की स्थानांतरण नीति उन कर्मचारियों के लिए है, जो 40% या उससे अधिक की विकलांगता रखते हैं ताकि उन्हें समान रोजगार अवसर मिल सकें और उनके सामने आने वाली कठिनाइयों को न्यूनतम किया जा सके।
केस टाइटल: सुशील बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य
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यदि किसी कर्मचारी को अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो सेवानिवृत्ति लाभों के विलंबित भुगतान पर ब्याज प्रदान किया जाना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस रवींद्र घुगे और जस्टिस अश्विन भोबे की खंडपीठ ने एक विधवा द्वारा दायर रिट याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने अपने दिवंगत पति को सेवानिवृत्ति लाभों के विलंबित भुगतान पर ब्याज की मांग की थी।
न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जब कोई कर्मचारी अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषमुक्त या दोषमुक्त हो जाता है, तो सेवानिवृत्ति की तिथि से ब्याज के साथ सेवानिवृत्ति लाभों का भुगतान किया जाना चाहिए। इसके अलावा, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि ब्याज का भुगतान करने की कोई देयता नहीं है। न्यायालय ने कहा कि भले ही कार्यवाही समाप्त हो जाए, लेकिन ब्याज का भुगतान किया जाना चाहिए।
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कस्टम्स एक्ट में उल्लंघन की आशंका होने पर जांच के लिए असीमित शक्तियां प्राप्त: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने अपने हालिया निर्णय में कहा कि कस्टम्स एक्ट, 1962 उस स्थिति में असीमित जांच शक्ति प्रदान करता है, जब इसके प्रावधानों के उल्लंघन की आशंका हो।
जस्टिस मोहित कुमार शाह ने इस मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की, “केवल कुछ तकनीकी आधारों पर जांच को प्रारंभिक चरण में ही रोका नहीं जा सकता। कस्टम्स एक्ट उस स्थिति में पूर्ण जांच शक्ति प्रदान करता है, जब यह विश्वास करने का कारण हो कि इसके प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है।”
केस टाइटल: विशाल रोडवेज बनाम भारत संघ (UOI)
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न्यायालय के समय के बाद/छुट्टियों के दिन दायर की गई अत्यावश्यक याचिकाओं को सूचीबद्ध करने से पहले चीफ जस्टिस की मंजूरी की आवश्यकता होती है: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार (1 मई) को एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें न्यायालय की छुट्टियों के दौरान या नियमित न्यायालय समय के बाद दायर किए गए अत्यावश्यक मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई। सर्कुलर में दिनेशभाई भगवानभाई बंभानिया एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य में पहले पारित न्यायिक निर्देशों का उल्लेख है।
रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी परिपत्र में आगे कहा गया, "मुझे माननीय चीफ जस्टिस द्वारा यह अधिसूचित करने का निर्देश दिया गया कि न्यायालय की छुट्टियों के दिन या न्यायालय समय के बाद अत्यावश्यक मामलों में राहत चाहने वाले वकीलों को पहले रजिस्ट्री के निम्नलिखित सीनियर अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए, जिन्हें विशेष रूप से उक्त उद्देश्य के लिए नियुक्त किया गया, जो नियमों के अनुसार कागजात की जांच करने और माननीय चीफ जस्टिस से आवश्यक अनुमति/अनुमोदन प्राप्त करने के बाद संबंधित वकीलों को निर्देशों के बारे में सूचित करेंगे और यदि अनुमति हो तो संबंधित माननीय न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध करेंगे।”
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DV Act की धारा 31 केवल संरक्षण आदेशों के उल्लंघन पर लागू होती है, न कि भरण-पोषण या निवास आदेशों जैसे अन्य आदेशों पर: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act (DV Act)) की धारा 31 केवल संरक्षण आदेशों (महिलाओं को हिंसा के कृत्यों से बचाने के लिए) के उल्लंघन के लिए दंड से संबंधित है, न कि भरण-पोषण (वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए), मुआवज़ा (चोटों के लिए मुआवज़ा देने के लिए) या निवास (आश्रय प्रदान करने के लिए) जैसे अन्य आदेशों से।
केस टाइटल: अक्षय ठाकुर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य।
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17 साल अलग रहने के बाद जोड़े को साथ रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले 17 वर्षों से अलग रह रहे एक जोड़े के विवाह को भंग कर दिया है, यह देखते हुए कि उन्हें एक साथ रहने के लिए मजबूर करना एक कानूनी संबंध द्वारा समर्थित कल्पना होगी और क्रूरता के समान होगी।
जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस सुखविंदर कौर ने कहा, '2008 से अलग रह रहे पक्षकारों को अगर साथ रहने के लिए मजबूर किया गया तो यह कानूनी संबंध के जरिए एक काल्पनिक कहानी बन जाएगी और यह पक्षकारों की भावनाओं के प्रति बहुत कम सम्मान दर्शाएगी। यह अपने आप में पार्टियों के लिए मानसिक क्रूरता होगी।
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बिना पूर्व स्वीकृति के ड्यूटी छोड़ना 'माना हुआ इस्तीफा' नहीं, इसे सिविल सर्विस नियमों के तहत अनुशासनहीनता माना जाना चाहिए: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियमों के नियम 86 के तहत आदेश को चुनौती देने वाली याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की। उक्त याचिका के अनुसार एक सरकारी कॉलेज के शिक्षक को "इस्तीफा दे दिया गया" माना गया, जिसमें कहा गया कि यद्यपि उसे जारी किया गया कारण बताओ नोटिस सही था, लेकिन ड्यूटी पर वापस न आने के उसके कृत्य को इस्तीफा नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि यद्यपि नियम 86 लागू नहीं है, लेकिन चूंकि याचिकाकर्ता बिना किसी छुट्टी या अनुमति के अनुपस्थित रहा, ऐसे मामलों में सरकारी कर्मचारी की अनुशासनहीनता को नियम 17 राजस्थान सिविल सर्विस (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 (सीसीए नियम) के तहत कानून के अनुसार उचित रूप से ड्यूटी से जानबूझकर अनुपस्थित रहने के लिए उचित रूप से निपटा जाना चाहिए।
केस टाइटल: अनिल पालीवाल बनाम राजस्थान राज्य और अन्य और अन्य संबंधित याचिकाएं
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क्रियान्वयन न्यायालय में लंबित Order 21 Rule 97 की अर्जी खारिज करने का पुनरीक्षण न्यायालय को अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि एक पुनरीक्षण न्यायालय एक निष्पादन अदालत के अधिकार क्षेत्र को ग्रहण नहीं कर सकता है और CPC के Order XXI Rule 97 के तहत एक आवेदन पर फैसला नहीं कर सकता है, जब वह निष्पादन अदालत के समक्ष लंबित हो।
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि पुनरीक्षण न्यायालय ने सीपीसी के ORDER XXI RULE 97के तहत एक आवेदन को खारिज करने में अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया, यह निष्कर्ष निकालने के बाद कि न्यायिक निर्णय के मुद्दे पर पहले फैसला किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि रिवीशनल कोर्ट को O21 R97 के तहत आवेदन को खारिज करने के बजाय मामले को प्रारंभिक मुद्दे के रूप में तय करने के लिए निष्पादन/ट्रायल कोर्ट को भेज देना चाहिए था।
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विशेष प्राधिकरण के बिना वकील द्वारा दायर पंचायत चुनाव याचिका अमान्य मानी जाएगी: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य पंचायत (चुनाव याचिका भ्रष्ट आचरण एवं सदस्यता के लिए अयोग्यता) नियमों के तहत यदि कोई वकील बिना विशेष प्राधिकरण के चुनाव याचिका प्रस्तुत करता है तो वह वैध प्रतिनिधित्व नहीं माना जाएगा।
जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस प्रणय वर्मा की खंडपीठ ने कहा, "नियम 3 के उपनियम (1) की भाषा स्पष्ट है कि चुनाव याचिका उस व्यक्ति द्वारा या उस व्यक्ति द्वारा लिखित रूप से अधिकृत व्यक्ति द्वारा कार्यालय समय में संबंधित अधिकारी को प्रस्तुत की जानी चाहिए। नियम 3 में वकील शब्द का प्रयोग नहीं किया गया। अतः किसी अधिवक्ता को तब तक अधिकृत व्यक्ति नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसे विशेष रूप से उस कार्य के लिए लिखित प्राधिकरण न दिया गया हो।"
केस टाइटल: कमलाबाई बनाम राजेन्द्र सिंह एवं अन्य, रिट अपील संख्या 2165/2023
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PC Act | जब किसी गंभीर अपराध के लिए मंजूरी नहीं दी गई हो तो सरकारी कर्मचारी पर केवल साजिश के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: P&H हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी लोक सेवक के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी गई है तो उस पर आपराधिक षडयंत्र के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा, "मेरा मानना है कि एक लोक सेवक, जिसके संबंध में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी गई है, तथा जिस पर उक्त अधिनियम के तहत कोई ठोस अपराध का आरोप नहीं है, उसके विरुद्ध केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी के तहत कार्यवाही नहीं की जा सकती, जबकि षडयंत्र का कथित उद्देश्य भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध करना है।"
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महज वैवाहिक या पारिवारिक झगड़े आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ झगड़े या लड़ाई-झगड़े वैवाहिक या पारिवारिक जीवन में आत्महत्या के लिए उकसावे (Abetment of Suicide) के अपराध के तहत नहीं आते।
जस्टिस रविंदर दुजेजा ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसावे का अपराध तभी बनता है, जब किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाया जाए, या उससे साजिश रची जाए या उसे जानबूझकर मदद दी जाए। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ मानसिक उत्पीड़न या तनाव होना काफी नहीं है बल्कि इसके लिए सक्रिय रूप से उकसाना जरूरी है।
केस टाइटल: अंश जिंदल बनाम राज्य व अन्य संबंधित मामले
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भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत बार एसोसिएशन "राज्य" नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर बार एसोसिएशन को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ में "राज्य" माना जाता है, तो इससे निश्चित रूप से "अराजक" स्थिति पैदा होगी।
जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने कोल्हापुर जिला बार एसोसिएशन (KDBA) द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देने वाली चार अधिवक्ताओं द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसके तहत एसोसिएशन ने अपने सदस्यों से 1 अप्रैल, 2025 तक अपनी सदस्यता शुल्क का भुगतान करने को कहा था, अन्यथा वे आगामी बार चुनावों में मतदान करने के पात्र नहीं होंगे।
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शादी से बाहर पति के रिश्ते को क्रूरता माना जाएगा, जो वैवाहिक संबंध तोड़ने के लिए पर्याप्त: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पति का विवाहेतर संबंध है और वह उसका उचित स्पष्टीकरण नहीं देता तो इसे पत्नी के प्रति क्रूरता माना जाएगा और यह वैवाहिक जीवन में दरार डालने के लिए पर्याप्त है।
जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस सुखविंदर कौर की पीठ ने कहा, “अपीलकर्ता-पति का यह कहना है कि उसके उस महिला के साथ कोई अवैध संबंध नहीं थे लेकिन हमारा मानना है कि विवाह के बाहर किसी महिला से संबंध बनाए रखना, वह भी बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के, निश्चित रूप से क्रूरता की श्रेणी में आता है और यह तथ्य वैवाहिक संबंधों में टूट का कारण बनने के लिए पर्याप्त है।”
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अतिक्रमणकारी भूमि के असली मालिक के खिलाफ निषेधाज्ञा दायर नहीं कर सकते: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने इस आधार पर पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि राज्य की भूमि पर अतिक्रमण करने वाला व्यक्ति भूमि के वास्तविक स्वामी के विरुद्ध निषेधाज्ञा दायर नहीं कर सकता।
केस टाइटल: सुभाष चंद महेंद्र (अब मृत) अपने एलआर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य के माध्यम से
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MACT | अनुकंपा के आधार पर नियुक्त बेटे का वेतन मुआवजा निर्धारित करने के लिए मृतक के वेतन के रूप में नहीं लिया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सड़क दुर्घटना में पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर नियुक्त किए गए बेटे का वेतन मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजा निर्धारित करने के लिए मृतक के वेतन के रूप में नहीं लिया जा सकता।
दावेदारों के पति/पिता बस से उतर रहे थे, तभी उनका पैर फंस गया। बस ने यह देखे बिना ही बस स्टार्ट कर दी कि उनका पैर फंस गया है और परिणामस्वरूप, वे गंभीर रूप से घायल हो गए और अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
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पुलिस की वर्दी निर्दोष नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं; आधिकारिक कर्तव्य से परे कृत्यों के लिए CRPC की धारा 197 के तहत कोई सुरक्षा नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक डॉक्टर और उसके साथियों के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट और पुलिस चौकी पर अवैध रूप से बंधक बनाने के आरोपी उत्तर प्रदेश के 4 पुलिस अधिकारियों को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि लोक सेवक के आधिकारिक कर्तव्यों के दायरे से बाहर आने वाले कृत्यों के लिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है।
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POCSO Act | धारा 34 स्पेशल कोर्ट को अपराधी और पीड़िता दोनों की आयु निर्धारित करने का अधिकार देती है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस एक्ट (POCSO Act) के तहत स्पेशल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष न्यायालय न केवल आरोपी की बल्कि पीड़िता की आयु निर्धारित करने का भी अधिकार रखता है।
जस्टिस संजय धर ने मामले को नए सिरे से अभियोजन पक्ष की आयु की जांच के लिए ट्रायल कोर्ट को लौटाते हुए टिप्पणी की, "POCSO Act की धारा 34 विशेष न्यायालय को केवल अपराधी की आयु ही नहीं बल्कि पीड़िता की आयु निर्धारित करने का भी अधिकार प्रदान करती है।"
टाइटल: त्सेवांग थिनलेस बनाम लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश
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एक वर्ष से अधिक अलग रहने के बाद आपसी सहमति से तलाक पर सहमत होना, अलगाव को निष्प्रभावी नहीं करता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इस आधार पर कि पति-पत्नी एक वर्ष से अधिक समय तक अलग रहने के बाद आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमत हुए हैं, अदालत पूर्व के अलगाव काल को नजरअंदाज नहीं कर सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक के लिए सहमति बनने से पहले का अलगाव काल भी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13-बी(1) के तहत गिना जाएगा।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13-बी के अंतर्गत आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान करती है। अधिनियम की उप-धारा (1) के अनुसार दोनों पक्ष मिलकर तलाक की याचिका दायर कर सकते हैं। यदि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हों और उनके बीच वैवाहिक जीवन संभव न हो। अधिनियम की उप-धारा (2) प्रक्रिया संबंधी प्रावधानों का उल्लेख करती है।
टाइटल: स्मृति मिनाक्षी गुप्ता बनाम कैलाश चंद्र
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[POCSO Act] नशे में नाबालिग की छाती छूने की कोशिश बलात्कार का प्रयास नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक व्यक्ति द्वारा शराब के नशे में एक नाबालिग लड़की की छाती छूने की कोशिश यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आती, क्योंकि इसमें कोई 'प्रवेश की कोशिश' नहीं की गई थी। हालांकि यह कृत्य 'गंभीर यौन उत्पीड़न' के प्रयास की श्रेणी में आ सकता है।
टाइटल: Zomangaih @ Zohmangaiha बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

