DV Act की धारा 31 केवल संरक्षण आदेशों के उल्लंघन पर लागू होती है, न कि भरण-पोषण या निवास आदेशों जैसे अन्य आदेशों पर: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

2 May 2025 10:46 AM IST

  • DV Act की धारा 31 केवल संरक्षण आदेशों के उल्लंघन पर लागू होती है, न कि भरण-पोषण या निवास आदेशों जैसे अन्य आदेशों पर: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act (DV Act)) की धारा 31 केवल संरक्षण आदेशों (महिलाओं को हिंसा के कृत्यों से बचाने के लिए) के उल्लंघन के लिए दंड से संबंधित है, न कि भरण-पोषण (वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए), मुआवज़ा (चोटों के लिए मुआवज़ा देने के लिए) या निवास (आश्रय प्रदान करने के लिए) जैसे अन्य आदेशों से।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    अक्षय ठाकुर (याचिकाकर्ता) ने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के अधिनियम, 2005 (DV Act) की धारा 31 के तहत उनके खिलाफ दर्ज की गई FIR रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की, जो मौद्रिक और निवास आदेश का पालन न करने के आरोपों पर आधारित है।

    याचिकाकर्ता की पत्नी ने निचली अदालत में याचिकाकर्ता के खिलाफ आवेदन दायर किया। इस आवेदन में आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी को भरण-पोषण, मुआवजा और अलग आवास प्रदान करने के आदेश का पालन नहीं किया।

    उपर्युक्त आवेदन दायर किए जाने के बाद निचली अदालत ने पुलिस को याचिकाकर्ता के खिलाफ DV Act की धारा 31 के तहत FIR दर्ज करने का निर्देश जारी किया।

    मामले में दिए गए तर्क:

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि DV Act की धारा 31 केवल "संरक्षण आदेशों" के उल्लंघन पर लगाई जाती है और भरण-पोषण, मुआवजा और निवास आदेश संरक्षण आदेश की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते हैं।

    उन्होंने आगे तर्क दिया कि निचली अदालत ने पुलिस को याचिकाकर्ता के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश देकर गलती की, क्योंकि उल्लंघन एक मौद्रिक आदेश का था न कि संरक्षण आदेश का।

    इसके विपरीत, प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित मामलों में घरेलू हिंसा अधिनियम की उदारतापूर्वक व्याख्या की जानी चाहिए और मौद्रिक या निवास आदेशों का पालन न करना भी DV Act की धारा 31 के तहत दंडनीय होना चाहिए।

    मामले का निष्कर्ष:

    हाईकोर्ट ने कहा कि DV Act की धारा 31 के अनुसार, जुर्माना केवल “सुरक्षा आदेश” या “अंतरिम सुरक्षा आदेश” के उल्लंघन पर लगाया जाता है, किसी अन्य आदेश के उल्लंघन पर नहीं।

    इसने आगे कहा कि DV Act की धारा 18 के तहत महिलाओं को हिंसा की किसी भी घटना से बचाने के लिए सुरक्षा आदेश पारित किया जाता है। हालांकि, DV Act की धारा 19 और 20 में क्रमशः भरण-पोषण और आवासीय आदेश पारित किए जाते हैं।

    हाईकोर्ट ने टिप्पणी की,

    “कानून की व्याख्या का नियम यह है कि आपराधिक कानूनों की सख्ती से व्याख्या की जानी चाहिए, क्योंकि वे किसी नागरिक को उसके जीवन और स्वतंत्रता से वंचित करते हैं। कोई भी ऐसा कार्य, जो आपराधिक कानून के दायरे में नहीं आता है, उसे व्याख्या के माध्यम से इसमें नहीं जोड़ा जा सकता है।”

    विदर्भ इंडस्ट्रीज पावर लिमिटेड बनाम एक्सिस बैंक लिमिटेड, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि व्याख्या का पहला और सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत शाब्दिक व्याख्या है और जब क़ानून के प्रावधान स्पष्ट हैं तो उनकी शाब्दिक व्याख्या की जानी चाहिए और अन्य नियम बाद में लागू होंगे।

    हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि DV Act की धारा 31 की व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह केवल तभी लागू होगा, जब संरक्षण और अंतरिम संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो, न कि किसी अन्य आदेश का।

    उपर्युक्त के आधार पर हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल कोर्ट ने पुलिस को याचिकाकर्ता के खिलाफ मौद्रिक और निवास आदेश के उल्लंघन के लिए FIR दर्ज करने का निर्देश देकर गलती की।

    तदनुसार, पुलिस को याचिकाकर्ता के खिलाफ FIR रद्द करने का निर्देश दिया गया और याचिका को अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: अक्षय ठाकुर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य।

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