अधिकारियों की गलती के कारण नियुक्ति में देरी होने पर “काम नहीं तो वेतन नहीं” नियम लागू नहीं होता: कलकत्ता हाईकोर्ट
Shahadat
3 May 2025 7:31 PM IST

कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस प्रसेनजीत बिस्वास की खंडपीठ ने माना कि नियुक्ति में देरी अधिकारियों की गलती के कारण होने पर “काम नहीं तो वेतन नहीं” का सिद्धांत लागू नहीं होता। इस प्रकार प्रभावित व्यक्ति को मौद्रिक लाभ का हकदार माना जाता है।
पृष्ठभूमि तथ्य
अपीलकर्ता ने राज्य के विभिन्न सरकारी प्रायोजित विद्यालयों में सहायक शिक्षक के पद के लिए 12वीं क्षेत्रीय स्तरीय चयन परीक्षा (RLST) दी थी। उसने कुछ प्रश्नों के उत्तरों की सत्यता पर सवाल उठाने के लिए रिट याचिका दायर की। न्यायालय ने अधिकारियों को इस पर गौर करने का निर्देश देते हुए आदेश पारित किया। इसलिए अधिकारियों ने अंततः पाया कि उत्तर कुंजी में बताए गए ऐसे विशिष्ट प्रश्नों के उत्तर गलत थे। अपीलकर्ता को अंक दिए गए और सफल उम्मीदवारों के पैनल में शामिल किया गया। हालांकि, इस तरह के परिणाम प्राप्त करने में लगभग एक दशक का अंतराल था। अंततः, अपीलकर्ता की नियुक्ति एक दशक के बाद वर्ष 2020 में सहायक शिक्षक के पद पर की गई।
अपीलकर्ता ने पूर्वव्यापी तिथि से मौद्रिक लाभ के साथ-साथ अन्य वित्तीय लाभों का दावा किया, अर्थात, जिस तिथि को उक्त 12वीं RLST में अंतिम उम्मीदवार की नियुक्ति हुई। हालांकि, अधिकारियों ने अपीलकर्ता की प्रार्थना नहीं सुनी और इसे खारिज कर दिया। इसे अपीलकर्ता द्वारा आगे चुनौती दी गई। न्यायालय ने प्राधिकरण का आदेश रद्द कर दिया और शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को अभ्यावेदन पर विचार करने का निर्देश दिया। प्रधान सचिव ने माना कि नवंबर, 2013 से उसके कार्यभार ग्रहण करने की तिथि यानी 07.11.2020 तक मौद्रिक लाभ प्रदान करने के लिए अपीलकर्ता की प्रार्थना को वित्त विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार को उनके विचार के लिए भेज दिया गया था।
लेकिन वित्त विभाग ने 19 जून, 2024 को यह कहते हुए प्रार्थना खारिज की कि वेतन और भत्ते तभी स्वीकार्य होते हैं, जब कोई व्यक्ति विधिवत कार्यरत होकर कर्तव्यों का निर्वहन करता है। वित्त विभाग ने परिणामी लाभ यानी नवंबर, 2013 से 07/11/2020 को सहायक शिक्षक के रूप में स्कूल में शामिल होने तक वास्तविक वेतन और भत्ते की अनुमति देने का कोई कारण नहीं पाया, इस आधार पर कि उसने पूरी अवधि के दौरान कोई सेवा नहीं दी थी।
अपीलकर्ता ने रिट याचिका दायर करके वित्त विभाग के आदेश को चुनौती दी, जिसका निपटारा एकल पीठ ने 25 जुलाई, 2024 को किया। अदालत ने वित्त विभाग द्वारा लिए गए निर्णय में कोई दोष नहीं पाया। इस प्रकार एकल पीठ ने वित्त विभाग के निर्णय के अनुरूप अपीलकर्ता का वेतन तय किया। यह माना गया कि अपीलकर्ता सहायक शिक्षक के पद पर औपचारिक रूप से नियुक्त हुए बिना वास्तविक बकाया लाभ का दावा नहीं कर सकता।
इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने तत्काल परमादेश अपील दायर की। अपीलकर्ता ने कहा कि न तो वित्त विभाग और न ही एकल पीठ ने रमेश कुमार बनाम भारत संघ और अन्य में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ध्यान दिया, जिसमें यह माना गया कि काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत उस स्थिति में लागू नहीं होता है, जब अधिकारियों ने पद पर व्यक्तियों को नियुक्त न करने में गलती की हो।
दूसरी ओर, राज्य द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि ऐसे अन्य निर्णय भी हैं, जो इस प्रस्ताव के विपरीत हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति ने काम नहीं किया और न ही पद से जुड़े कर्तव्यों का निर्वहन किया, वह वेतन या अन्यथा के रूप में कोई राशि प्राप्त करने का हकदार नहीं है।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने पाया कि स्कूल शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव ने 26 मार्च, 2022 के अपने निर्णय में स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए संपूर्ण कागजात वित्त विभाग को भेजे थे, लेकिन प्रधान सचिव ऐसा करने में विफल रहे। न्यायालय ने रमेश कुमार बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जहां प्रतिवादी दोषी थे, वहां "काम नहीं तो वेतन नहीं" का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता। इसके अलावा, इसी प्रस्ताव के लिए भारत संघ एवं अन्य बनाम के.वी. जानकीरमन एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ के निर्णय पर भरोसा किया गया, जिसका अर्थ है कि जब अधिकारियों द्वारा कोई गलती की गई हो, जो व्यक्ति को उक्त पद पर नियुक्त होने से वंचित करती है, तो काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता।
न्यायालय ने कहा कि जिस समय स्कूल शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव ने स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए संपूर्ण कागजात वित्त विभाग को भेजे, वित्त विभाग के लिए यह अनिवार्य था कि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अनुपात पर विचार करे कि अपीलकर्ता किसी भी मौद्रिक राहत का हकदार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि जब अधिकारियों द्वारा कोई गलती पाई जाती है, जिसके कारण व्यक्ति उक्त पद पर नियुक्ति से वंचित हो जाता है तो काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर दिया।
परिणामस्वरूप, 19 जून, 2024 को पत्र के माध्यम से वित्त विभाग द्वारा संप्रेषित आदेश को निरस्त कर दिया गया। इसके अलावा, न्यायालय ने वित्त विभाग को 23 जून, 2022 को स्कूल शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव द्वारा की गई टिप्पणियों के संदर्भ में अपीलकर्ता के अभ्यावेदन/आवेदन पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
उक्त टिप्पणियों के साथ अपील का निपटारा कर दिया गया।
केस टाइटल: पद्मावती सक्किनाला बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।