हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
23 Feb 2025 4:30 AM

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (17 फरवरी, 2025 से 21 फरवरी, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
धार्मिक स्थल होने के कारण 'मस्जिद' 'वक्फ' की परिभाषा के अंतर्गत आती है, केवल वक्फ न्यायाधिकरण ही इससे संबंधित विवादों का निपटारा कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि मस्जिद, नमाज पढ़ने जैसे धार्मिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जगह, वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 3 (आर) के अनुसार 'वक्फ' की परिभाषा में आती है। इस प्रकार, इससे संबंधित विवादों का निपटारा केवल वक्फ न्यायाधिकरण द्वारा ही किया जा सकता है।
जस्टिस बीरेंद्र कुमार की पीठ ने वक्फ अधिनियम की धारा 85 [सिविल न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का प्रतिबंध] का हवाला देते हुए यह कहा, जिसमें प्रावधान है कि कोई भी सिविल न्यायालय, राजस्व न्यायालय या कोई अन्य प्राधिकरण वक्फ या वक्फ संपत्ति से संबंधित किसी भी मामले या कानूनी मामले की सुनवाई नहीं कर सकता है और ऐसे मुद्दों का निर्धारण 1995 अधिनियम के तहत स्थापित वक्फ न्यायाधिकरण द्वारा किया जाना चाहिए।
केस टाइटलः शकूर शाह और अन्य बनाम इलियास और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
केंद्रीय कर्मचारी LTC का दावा करते समय बीच में गंतव्य नहीं बदल सकते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश यात्रा रियायत) नियम, 1988 के अनुसार कोई भी कर्मचारी यात्रा के दौरान अपने गंतव्य को नहीं बदल सकता है और यदि किसी अपरिहार्य कारण से इसे बदला भी गया है, तो यह गंतव्य मार्ग में ही होना चाहिए। इस मामले में, एलटीसी मूल रूप से त्रिवेंद्रम की यात्रा के लिए मांगी गई थी, जिसे बाद में मुंबई के रास्ते गोवा में बदल दिया गया था। हालांकि, याचिकाकर्ता ने बीच में ही उत्तराखंड के कुछ हिल स्टेशनों पर अपना गंतव्य बदलने का फैसला किया।
केस टाइटल: तिलक राज सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सार्वजनिक शांति भंग की आशंका पर मजिस्ट्रेट की संतुष्टि CrPC की धारा 145 के तहत कार्यवाही शुरू करने की पूर्व शर्त: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट से अपेक्षा की जाती है कि वह धारा 145 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही तभी शुरू करे जब सार्वजनिक शांति भंग होने की आशंका हो, साथ ही कहा कि ऐसी कार्यवाही शुरू करने के लिए शर्त यह है कि वह ऐसी आशंका के बारे में संतुष्ट हो। धारा 145 में उस प्रक्रिया का उल्लेख है जिसका पालन तब किया जाना चाहिए जब भूमि या जल से संबंधित कोई विवाद हो जिससे शांति भंग होने की संभावना हो।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[Muslim Law] बेटी को बिना वैध कारण राजस्व दस्तावेजों से बाहर नहीं रखा जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना है कि जहां बहिष्करण के कारणों को दर्ज किए बिना एक कानूनी उत्तराधिकारी को छोड़कर एक म्यूटेशन को सत्यापित किया जाता है, तो इस तरह के म्यूटेशन को अलग रखा जा सकता है। यह भी कहा गया है कि रिकॉर्ड के एक अमान्य उत्परिवर्तन को सीमा अवधि के संबंध में किसी भी रोक के बिना चुनौती दी जा सकती है।
अदालत ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता द्वारा अपनी बहन को बाहर करते हुए बनाए गए रिकॉर्ड का म्यूटेशन अमान्य था क्योंकि किसी भी रिकॉर्ड की अनुपस्थिति में यह सुझाव दिया गया था कि उसने अपना अधिकार छोड़ दिया था या मामले में प्रथागत कानून लागू था।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अभियुक्त को 6 साल से अधिक समय तक अंडरट्रायल के रूप में कस्टडी में रखना त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि अभियुक्त को छह साल से अधिक समय तक अंडरट्रायल के रूप में कस्टडी में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है।
भोले-भाले निवेशकों से करोड़ों रुपये ठगने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की एकल पीठ ने कहा - "यह सच है कि किसी भी कानून में यह परिभाषित नहीं किया गया कि कितने समय तक कस्टडी में रखना त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा, जैसा कि इस मामले में पाया गया लेकिन किसी भी मानक के अनुसार याचिकाकर्ता को लगभग 6.5 साल से अधिक समय तक कस्टडी में रखना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता को गारंटीकृत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।"
केस टाइटल: दिलीप रंजन नाथ बनाम भारत गणराज्य (सीबीआई)
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में प्रस्तुत करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट के पंकज बंसल फैसले की तारीख से गिरफ्तारी पर लागू होगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पंकज बंसल मामले में निर्धारित कानून भावी रूप से लागू होगा, जो 03 अक्टूबर, 2023 के बाद है, जिस दिन पंकज बंसल मामले में फैसला सुनाया गया था। पंकज बंसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय को अभियुक्त को गिरफ्तारी के कारणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा, "कानून का प्रस्ताव यह है कि गिरफ्तारी के आधार अभियुक्त को लिखित रूप में दिए जाने चाहिए, लेकिन पंकज बंसल (सुप्रा) में निर्धारित कानून के अनुसार गिरफ्तारी के आधार 03.10.2023 के बाद भावी रूप से दिए जाने हैं, अर्थात जिस दिन पंकज बंसल (सुप्रा) में फैसला सुनाया गया था।"
केस टाइटलः रविंदर बनाम हरियाणा राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
UAPA के तहत गिरफ्तारी का लिखित आधार सुप्रीम कोर्ट के पंकज बंसल फैसले की तारीख से लागू: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि UAPA के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार की सेवा का जनादेश पंकज बंसल मामले में 03.10.2023 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की घोषणा की तारीख से गिरफ्तारी पर लागू होगा, न कि प्रबीर पुरकायस्थ मामले में बाद के फैसले की घोषणा की तारीख से।
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा, "पंकज बंसल का अनुपात UAPA के तहत गिरफ्तारी और पंकज बंसल की घोषणा की तारीख (यानी, 03.10.2023) से लागू होगा, न कि प्रबीर पुरकायस्थ की तारीख (15.05.2024) से।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
HAMA | विधवा बहू को भरण-पोषण देने का ससुर का दायित्व सह-दायिक संपत्ति से होने वाली आय पर निर्भर: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) के तहत ससुर को अपनी विधवा बहू को भरण-पोषण देने का स्वतः दायित्व नहीं है, जब तक कि उसके पास सह-दायिक संपत्ति से पर्याप्त आय न हो।
मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जितेंद्र कुमार ने इस बात पर जोर दिया, “धारा 19 स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि ससुर का अपनी बहू को भरण-पोषण देने का दायित्व सह-दायिक संपत्ति से होने वाली आय पर निर्भर है, यदि कोई हो। लेकिन याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि ऐसी कोई सह-दायिक संपत्ति नहीं है। संयुक्त परिवार के लिए केवल एक आवासीय घर है, जहां शिकायतकर्ता स्वतंत्र रूप से रह सकती है। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि ससुर केवल पेंशनभोगी हैं और उनके पास अपनी बहू का भरण-पोषण करने के लिए कोई अतिरिक्त साधन नहीं है। इसके अलावा सास का अपनी बहू का भरण-पोषण करने का कोई दायित्व नहीं है। इसलिए विवादित आदेश कानून की नज़र में टिकने योग्य नहीं है।”
केस टाइटल: कंपनी राम @ तिरन राम और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Senior Citizens Act | भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के पास भरण-पोषण या संपत्ति ट्रांसफर की मांग न करने वाली शिकायतों पर कोई अधिकार नहीं: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 भरण-पोषण ट्रिब्यूनल को ऐसी शिकायतों पर विचार करने का अधिकार नहीं देता है, जिनमें भरण-पोषण की मांग नहीं की गई है या संपत्ति हस्तांतरण को चुनौती नहीं दी गई।
इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जितेंद्र कुमार ने कहा, "माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के वैधानिक प्रावधानों के अनुसार यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि यह अधिनियम संविधान के तहत दिए गए और मान्यता प्राप्त माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण के लिए प्रभावी प्रावधान प्रदान करने और उससे जुड़े मामलों और उसके लिए स्थापित मामलों के लिए अधिनियमित किया गया।"
केस टाइटल: राम औतार राय बनाम बिहार राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
S.187(3) BNSS | 10 साल तक की कैद की सजा वाले अपराध के लिए 60 दिनों के बाद डिफ़ॉल्ट जमानत दी जा सकती है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने NDPS Act की धारा 22(बी) के तहत दर्ज एक ड्रग मामले में आरोपी को धारा 187(3) BNSS के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत दी, जिसके तहत उसे 60 दिनों की हिरासत में रहने के बाद दस साल (अधिकतम दस साल की सजा) तक की कठोर कारावास की सजा हो सकती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 187(3)(ii) में प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को 60 दिनों से अधिक की कुल अवधि के लिए हिरासत में रखने का अधिकार दे सकता है, जहां जांच किसी अन्य अपराध (मृत्युदंड, आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास (धारा 187(3)(i) के तहत निर्धारित) से संबंधित हो।
केस टाइटल: मोहम्मद साजिद बनाम केरल राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
'सरकार की आलोचना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा, न्यायपालिका की भी आलोचना की जा सकती है': जुबैर की FIR रद्द करने की याचिका पर हाईकोर्ट की मौखिक टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को एक बार फिर ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर रोक 19 फरवरी तक बढ़ा दी। यह रोक यति नरसिंहानंद के 'अपमानजनक' भाषण पर उनके कथित X पोस्ट (पूर्व में ट्विटर) को लेकर उनके खिलाफ दर्ज FIR के संबंध में लगाई गई।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने मौखिक टिप्पणी की कि सरकार की किसी भी पहलू पर आलोचना की जा सकती है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि एक संस्था के रूप में न्यायपालिका भी आलोचना के लिए खुली है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अपील लंबित रहने के दौरान अभियुक्त की मृत्यु होने और लगाया गया जुर्माना मृत्यु से पहले स्थगित किए जाने पर अपील रद्द हो जाएगी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि अगर अपील के लंबित रहने के दरमियान अपीलकर्ता की मृत्यु हो जाती है और निचली अदालत की ओर से उस पर लगाया गया जुर्माना रोक दिया गया है या मृत्यु से पहले जुर्माना की पूरी राशि अदालत में जमा करा दी गई है तो अपील निरस्त हो जाएगी।
अदालत ने कहा, "यदि मृत्यु से पहले न्यायिक आदेश द्वारा जुर्माना के भुगतान पर रोक लगा दी गई है या जुर्माना की पूरी राशि अदालत में जमा करा दी गई है, तो दोषी द्वारा दायर आपराधिक अपील निरस्त हो जाएगी। हालांकि, यदि जुर्माना न तो रोका गया है और न ही जमा कराया गया है, तो अपील निरस्त नहीं होगी। जब अपीलकर्ता के लिए कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, तो अभियोजन पक्ष की कमी के कारण अपील खारिज कर दी जाएगी।"
केस टाइटलः भोला @ राम दास बनाम हरियाणा राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
UCC को चुनौती | उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन को चुनौती देने पर कहा- आप बिना शादी किए निर्लज्जता से साथ रहते हैं, आपकी किस निजता का उल्लंघन होता है?
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में लागू किए गए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के विशिष्ट प्रावधानों, विशेष रूप से लिव-इन संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण को दी गई चुनौती पर सुनवाई की। प्रावधान के खिलाफ रिट याचिका एक 23 वर्षीय व्यक्ति ने दायर की है। सुनवाई के दरमियान मौखिक रूप से टिप्पणी की कि राज्य सरकार लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध नहीं लगा रही, बल्कि केवल उन्हें पंजीकृत करने का प्रावधान कर रही है, जो कि ऐसे संबंधों की घोषणा के बराबर नहीं है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
चाइल्ड केयर लीव विशेषाधिकार अवकाश के समान, न कि अप्रतिबंधित अधिकार: राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- राज्य को अधिकतम 120 दिनों की छुट्टी देने का अधिकार नहीं
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि चाइल्ड केयर लीव विशेषाधिकार प्राप्त अवकाश के समान है। इसलिए बाद की तरह हीइसे अप्रतिबंधित अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। यदि प्रशासनिक विवेकाधिकार की आवश्यकता हो तो इसे 120 दिनों तक के लिए स्वीकृत किया जा सकता है, लेकिन इसे इतनी अवधि के लिए देने का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो बीकानेर के महारानी सुदर्शन महिला महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थी और उसने अपने 2 वर्षीय बच्चे की देखभाल करने के साथ-साथ अपने 14 वर्षीय बेटे की 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में मदद करने के लिए 53 दिनों के चाइल्ड केयर लीव के लिए आवेदन किया था।
टाइटल: सुमन बिश्नोई बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सरकारी कर्मचारी प्रमाण-पत्र जमा करने के 5 साल बाद सेवा रिकॉर्ड में जन्मतिथि नहीं बदल सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि सरकारी कर्मचारी द्वारा घोषित जन्मतिथि और उसके बाद उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा सेवा पुस्तिका या किसी अन्य रिकॉर्ड में दर्ज की गई जन्मतिथि में सरकार के आदेश के बिना किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता सिवाय लिपिकीय त्रुटि के।
अदालत ने यह भी माना कि प्रशासनिक विभाग द्वारा कर्मचारी की जन्मतिथि में तब तक कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता, जब तक कि कर्मचारी ने पांच साल की अवधि के भीतर सरकार से संपर्क न किया हो और यह साबित न कर दिया हो कि ऐसी गलती वास्तविक और नेकनीयत थी।
केस टाइटल: गुलाम नबी सोफी बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य, 2025
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अन्य व्यक्ति के आरोपों का प्रभावी ढंग से बचाव नहीं कर सकने पर दोषी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके खिलाफ कार्यवाही समाप्त की गई: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दोषी कर्मचारी ही एकमात्र व्यक्ति है जो राज्य द्वारा उसके खिलाफ शुरू की गई विभागीय कार्यवाही में अपना बचाव उचित तरीके से कर सकता है और कार्यवाही के दौरान ऐसे दोषी कर्मचारी की मृत्यु के बाद जांच जारी नहीं रह सकती है और कार्यवाही समाप्त कर दी जाती है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ एक कर्मचारी के खिलाफ दायर आरोप पत्र और परिणामी कार्यवाही के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायालय को इस तथ्य से अवगत कराया गया कि दोषी कर्मचारी की कार्यवाही के दौरान ही मृत्यु हो गई।
केस टाइटल: गिरधारी कर्मचंदानी बनाम पंजाब नेशनल बैंक और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Constable Recruitment| हरियाणा सरकार चयन के दूसरे चरण में पिछड़ा वर्ग का नया प्रमाण पत्र नहीं मांग सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हरियाणा कर्मचारी सेवा आयोग (HSSC) चयन प्रक्रिया के दूसरे चरण में पिछड़ा वर्ग (BC) का नवीनतम प्रमाण पत्र नहीं मांग सकता है, जबकि प्रमाण पत्र सामान्य पात्रता परीक्षा (CET) के समय दाखिल किया जाता है।
जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा, "नियमों या विज्ञापन में विशेष तिथि के अभाव में विज्ञापित पद के लिए आवेदन दाखिल करने की निर्धारित अंतिम तिथि कट-ऑफ तिथि है। इस मामले में सीमित उद्देश्य यानी दस्तावेज अपलोड करने के लिए कट-ऑफ तिथि आवेदन दाखिल करने की अधिसूचित अंतिम तिथि थी। उक्त तिथि का BC सर्टिफिकेट की तिथि से कोई संबंध नहीं था।"
केस टाइटल: नवीन और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य