UCC को चुनौती | उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन को चुनौती देने पर कहा- आप बिना शादी किए निर्लज्जता से साथ रहते हैं, आपकी किस निजता का उल्लंघन होता है?

Avanish Pathak

18 Feb 2025 6:43 AM

  • UCC को चुनौती | उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन को चुनौती देने पर कहा- आप बिना शादी किए निर्लज्जता से साथ रहते हैं, आपकी किस निजता का उल्लंघन होता है?

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में लागू किए गए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के विशिष्ट प्रावधानों, विशेष रूप से लिव-इन संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण को दी गई चुनौती पर सुनवाई की। प्रावधान के खिलाफ रिट याचिका एक 23 वर्षीय व्यक्ति ने दायर की है।

    सुनवाई के दरमियान मौखिक रूप से टिप्पणी की कि राज्य सरकार लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध नहीं लगा रही, बल्कि केवल उन्हें पंजीकृत करने का प्रावधान कर रही है, जो कि ऐसे संबंधों की घोषणा के बराबर नहीं है।

    चीफ जस्टिस जी नरेंदर ने कहा,

    "राज्य ने यह नहीं कहा है कि आप साथ नहीं रहते हैं। जब आप बिना शादी किए निर्लज्‍जता के साथ रह रहे हैं, तो रहस्य किस बात है? किस निजता का उल्लंघन किया जा रहा है?" :

    जस्टिस आलोक माहरा की खंडपीठ के समक्ष पेश अधिवक्ता अभिजय नेगी ने हुए याचिकाकर्ता (जय त्रिपाठी) की ओर से तर्क दिया कि यूसीसी के तहत ऐसे संबंधों के पंजीकरण के लिए अनिवार्य प्रावधान करके, राज्य "गपशप को संस्थागत बना रहा है।"

    जस्टिस केएस पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2017 के फैसले का हवाला देते हुए, अधिवक्ता नेगी ने निजता के अधिकार पर जोर देते हुए तर्क दिया कि उनके मुवक्किल की निजता का हनन किया जा रहा है, क्योंकि वह अपने साथी के साथ अपने लिव-इन रिलेशनशिप की घोषणा या पंजीकरण नहीं करना चाहते हैं।

    हालांकि, पीठ ने उनके इस तर्क का खंडन किया कि यूसीसी किसी भी घोषणा का प्रावधान नहीं करता है और यह केवल लोगों से ऐसे रिश्ते के लिए पंजीकरण करने के लिए कह रहा है।

    चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की,

    "क्या रहस्य है? आप दोनों एक साथ रह रहे हैं; आपके पड़ोसी को पता है, समाज को पता है, और दुनिया को पता है। फिर आप जिस रहस्य की बात कर रहे हैं वह कहां है?...क्या आप गुप्त रूप से, किसी एकांत गुफा में रह रहे हैं? आप नागरिक समाज के बीच रह रहे हैं। आप बिना शादी किए बेशर्मी से साथ रह रहे हैं। और फिर रहस्य क्या है? वह कौन सी निजता है जिसका उल्लंघन किया जा रहा है?"

    बहस के दरमियान, अधिवक्ता नेगी ने जिला अल्मोड़ा की एक घटना का उल्लेख किया जहां एक युवा लड़के की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि वह एक अंतर-धार्मिक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था, मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से उनसे लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ काम करने को कहा।

    पीठ ने आगे कहा कि इस मामले को यूसीसी को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ा जाएगा और यदि किसी के खिलाफ कोई बलपूर्वक कार्रवाई की जाती है, तो संबंधित व्यक्ति न्यायालय में आ सकता है। यह पिछले सप्ताह न्यायालय द्वारा इसी तरह की याचिका पर सुनवाई करते समय मौखिक रूप से की गई टिप्पणी के समान है।

    हाईकोर्ट ने कहा था, "यदि कोई व्यक्ति प्रभावित है, तो वे इस पीठ से संपर्क कर सकते हैं...यदि कोई कार्रवाई हो, तो कृपया (हमारे पास) आएं...।" अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें और पूरी ख़बर पढें।

    ध्यान देने योग्य बात यह है कि यूसीसी के खिलाफ दायर अन्य याचिकाएं उत्तराखंड हाईकोर्ट के समक्ष लंबित हैं। जहां भीमताल निवासी और पूर्व छात्र नेता सुरेश सिंह नेगी की जनहित याचिका समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के कई प्रावधानों को चुनौती देती है, विशेष रूप से लिव-इन संबंधों से संबंधित प्रावधानों को, वहीं आरुषि गुप्ता की एक अन्य जनहित याचिका विवाह, तलाक और लिव-इन संबंधों से संबंधित संहिता के प्रावधानों को चुनौती देती है, जिसमें तर्क दिया गया है कि ये नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

    उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड विधानसभा ने उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक, 2024 पारित किए जाने के लगभग एक साल बाद, 27 जनवरी को उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू की थी। यह यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

    यूसीसी के कुछ प्रमुख पहलुओं में लिव-इन संबंधों का अनिवार्य पंजीकरण, अनुबंध विवाह की शर्तें, हलाल, इद्दत और बहुविवाह पर प्रतिबंध और पुरुषों और महिलाओं के लिए समान उत्तराधिकार अधिकार शामिल हैं।

    यह न केवल उत्तराखंड पर लागू होता है, बल्कि इसके क्षेत्रों से बाहर रहने वाले राज्य के निवासियों पर भी लागू होता है। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है। अधिनियम में किए गए सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक लिव-इन संबंधों का अनिवार्य पंजीकरण है।

    भारतीय कानून में अभूतपूर्व रूप से, जो व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप में हैं (उत्तराखंड निवासी होने के नाते) उन्हें अब "रिलेशनशिप में आने" के एक महीने के भीतर रजिस्ट्रार के समक्ष पंजीकरण कराना होगा। ऐसा न करने पर जेल की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

    भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पिछले साल मार्च में उत्तराखंड के यूसीसी विधेयक को मंजूरी दी थी।

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