Senior Citizens Act | भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के पास भरण-पोषण या संपत्ति ट्रांसफर की मांग न करने वाली शिकायतों पर कोई अधिकार नहीं: पटना हाईकोर्ट
Amir Ahmad
20 Feb 2025 8:13 AM

पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 भरण-पोषण ट्रिब्यूनल को ऐसी शिकायतों पर विचार करने का अधिकार नहीं देता है, जिनमें भरण-पोषण की मांग नहीं की गई है या संपत्ति हस्तांतरण को चुनौती नहीं दी गई।
इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जितेंद्र कुमार ने कहा,
"माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के वैधानिक प्रावधानों के अनुसार यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि यह अधिनियम संविधान के तहत दिए गए और मान्यता प्राप्त माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण के लिए प्रभावी प्रावधान प्रदान करने और उससे जुड़े मामलों और उसके लिए स्थापित मामलों के लिए अधिनियमित किया गया।"
जस्टिस कुमार ने कहा,
"अधिनियम के विस्तृत प्रावधान से पता चलता है कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन संबंधित व्यक्तियों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं, जो अधिनियम के तहत उत्तरदायी हैं या वे संबंधित व्यक्ति के पक्ष में किए गए किसी भी संपत्ति के हस्तांतरण को शर्तों की पूर्ति के अधीन शून्य घोषित करवा सकते हैं, लेकिन आवेदकों द्वारा ऐसी कोई राहत नहीं मांगी गई।”
यह निर्णय एक आपराधिक विविध आवेदन पर दिया गया, जिसके तहत याचिकाकर्ता ने समस्तीपुर के भरण-पोषण न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित कार्यवाही रद्द करने की मांग की। विवाद तब उत्पन्न हुआ, जब याचिकाकर्ता के ससुराल वालों ने न्यायाधिकरण के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया उपद्रव किया और याचिकाकर्ता की अपनी जमीन पर उन्हें धमकाया। हालांकि उन्होंने न तो भरण-पोषण की मांग की और न ही किसी संपत्ति ट्रांसफर को चुनौती दी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल के पास ऐसे आरोपों पर अधिकार क्षेत्र नहीं है, जो अधिकतम दीवानी या आपराधिक विवाद का गठन करते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि न्यायाधिकरण की स्थापना 2007 अधिनियम के तहत विशिष्ट उद्देश्यों के लिए की गई, माता-पिता और सीनियर सिटीजन को भरण-पोषण प्रदान करने और कुछ परिस्थितियों में संपत्ति के किसी भी हस्तांतरण को शून्य घोषित करने के लिए लेकिन आवेदकों द्वारा ऐसी कोई राहत नहीं मांगी गई।
याचिकाकर्ता ने आगे बताया कि शिकायतकर्ताओं ने मुफस्सिल पुलिस स्टेशन में लिखित रिपोर्ट दर्ज करके पहले ही आपराधिक कार्यवाही शुरू की, जिसके कारण FIR दर्ज की गई।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा,
"मामले के कथित तथ्य और परिस्थितियां अधिकतम दीवानी प्रकृति के साथ-साथ आपराधिक प्रकृति का विवाद बनाती हैं और आवेदकों के पास दीवानी और आपराधिक कानून के तहत अपना उपाय है। उन्होंने पहले ही FIR दर्ज करने के लिए आपराधिक कानून का सहारा लिया।"
परिणामस्वरूप, न्यायालय ने भरण-पोषण न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही रद्द की, जबकि पटना हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति को मामले में सहायता के लिए एमिक्स क्यूरी को 10,000 का मानदेय देने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: राम औतार राय बनाम बिहार राज्य और अन्य