चाइल्ड केयर लीव विशेषाधिकार अवकाश के समान, न कि अप्रतिबंधित अधिकार: राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- राज्य को अधिकतम 120 दिनों की छुट्टी देने का अधिकार नहीं
Amir Ahmad
18 Feb 2025 6:17 AM

राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि चाइल्ड केयर लीव विशेषाधिकार प्राप्त अवकाश के समान है। इसलिए बाद की तरह हीइसे अप्रतिबंधित अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। यदि प्रशासनिक विवेकाधिकार की आवश्यकता हो तो इसे 120 दिनों तक के लिए स्वीकृत किया जा सकता है, लेकिन इसे इतनी अवधि के लिए देने का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो बीकानेर के महारानी सुदर्शन महिला महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थी और उसने अपने 2 वर्षीय बच्चे की देखभाल करने के साथ-साथ अपने 14 वर्षीय बेटे की 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में मदद करने के लिए 53 दिनों के चाइल्ड केयर लीव के लिए आवेदन किया था।
53 दिनों की छुट्टी के लिए उसके आवेदन के विपरीत उसे राज्य द्वारा केवल 15 दिनों की चाइल्ड केयर लीव दी गई, जिसके खिलाफ अदालत में याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि राजस्थान सेवा नियम, 1951 (नियम) के नियम 103सी(2)(xi) के अनुसार चाइल्ड केयर लीव अधिकतम 120 दिनों के लिए स्वीकृत की जा सकती है।
न्यायालय ने नियम 91 के साथ-साथ नियम 59 का भी हवाला दिया। नियम 91 में विशेषाधिकार अवकाश की स्वीकार्यता के लिए प्रक्रिया निर्धारित की गई और नियम 59 में प्रावधान था कि छुट्टी को अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक सेवा की आवश्यकताओं के आधार पर किसी भी समय इसे अस्वीकार करने या रद्द करने का विवेकाधिकार प्राधिकारी के पास है।
नियमों का अध्ययन करने के बाद न्यायालय ने कहा,
“मेरा मानना है कि चूंकि बाल देखभाल अवकाश विशेषाधिकार प्राप्त अवकाश के समान है, इसलिए समान मापदंड लागू होंगे। चाहे वह विशेषाधिकार प्राप्त अवकाश हो या बाल देखभाल अवकाश, जैसा भी मामला हो, इसे अप्रतिबंधित अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। इसलिए परिस्थितियों को देखना सक्षम प्राधिकारी का प्रशासनिक विवेक है। यदि ऐसा आवश्यक हो तो बाल देखभाल अवकाश 120 दिनों तक स्वीकृत किया जा सकता है। इसे स्वीकृत करने के अधिकार को इस तरह से नहीं माना जाना चाहिए और न ही पढ़ा जाना चाहिए कि अवकाश 120 दिनों के लिए स्वीकृत किया जाना चाहिए।”
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि वह प्रशासनिक प्राधिकारी पर अपने विवेक का प्रयोग करने से परहेज करेगा, जब तक कि इसमें दुर्भावना शामिल न हो, जो वर्तमान मामले में मौजूद नहीं थी।
यह पाया गया कि 15 दिन की छुट्टी संभवतः याचिकाकर्ता के बड़े बेटे की अंतिम परीक्षा की अवधि थी। इस तरह आदेश में कोई अवैधता नहीं थी।
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
टाइटल: सुमन बिश्नोई बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।