HAMA | विधवा बहू को भरण-पोषण देने का ससुर का दायित्व सह-दायिक संपत्ति से होने वाली आय पर निर्भर: पटना हाईकोर्ट
Amir Ahmad
20 Feb 2025 8:18 AM

पटना हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) के तहत ससुर को अपनी विधवा बहू को भरण-पोषण देने का स्वतः दायित्व नहीं है, जब तक कि उसके पास सह-दायिक संपत्ति से पर्याप्त आय न हो।
मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जितेंद्र कुमार ने इस बात पर जोर दिया,
“धारा 19 स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि ससुर का अपनी बहू को भरण-पोषण देने का दायित्व सह-दायिक संपत्ति से होने वाली आय पर निर्भर है, यदि कोई हो। लेकिन याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि ऐसी कोई सह-दायिक संपत्ति नहीं है। संयुक्त परिवार के लिए केवल एक आवासीय घर है, जहां शिकायतकर्ता स्वतंत्र रूप से रह सकती है। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि ससुर केवल पेंशनभोगी हैं और उनके पास अपनी बहू का भरण-पोषण करने के लिए कोई अतिरिक्त साधन नहीं है। इसके अलावा सास का अपनी बहू का भरण-पोषण करने का कोई दायित्व नहीं है। इसलिए विवादित आदेश कानून की नज़र में टिकने योग्य नहीं है।”
अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 19(2) में प्रावधान है कि धारा 19(1) के तहत ससुर का दायित्व लागू नहीं होता है, यदि उसके पास अपने कब्जे में किसी सह-दायिक संपत्ति से ऐसा करने का साधन नहीं है, जिसमें से बहू ने कोई हिस्सा प्राप्त नहीं किया है और ऐसा कोई भी दायित्व बहू के पुनर्विवाह पर समाप्त हो जाएगा।
धारा 19(1) में कहा गया कि विधवा बहू अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार है, यदि वह अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती है; यदि उसके पास अपनी कोई संपत्ति नहीं है; यदि वह अपने पति या अपने पिता या माता या अपने बेटे या बेटी, यदि कोई हो या उसकी संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है।
उपरोक्त निर्णय एक आपराधिक पुनर्विचार याचिका में आया, जो आपराधिक अपील में सेशन कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती से उत्पन्न हुआ, जिसमें शिकायतकर्ता के ससुर और सास दोनों को उसे 5,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया।
शिकायतकर्ता पूजा कुमारी ने शुरू में अपने पति, सास-ससुर और अन्य रिश्तेदारों से सुरक्षा आदेश, निवास आदेश और भरण-पोषण की मांग की। मजिस्ट्रेट ने 2017 में सभी प्रतिवादियों को उसे निवास और भरण-पोषण प्रदान करने का निर्देश दिया और उसे सुरक्षा आदेश दिया। इस आदेश को बाद में आपराधिक अपील में सेशन कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। अपील के लंबित रहने के दौरान शिकायतकर्ता के पति का निधन हो गया, जिसके बाद सेशन कोर्ट ने आदेश को संशोधित किया और निर्देश दिया कि केवल शिकायतकर्ता के ससुर और सास ही उसे 5,000 रुपये प्रति माह की दर से भरण-पोषण देंगे।
याचिकाकर्ताओं, जिनमें शिकायतकर्ता के ससुर और अन्य रिश्तेदार शामिल थे, ने इस आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि सेशन कोर्ट ने ससुर और सास दोनों पर भरण-पोषण दायित्व थोपने में गलती की है, तर्क देते हुए कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 19 के तहत केवल ससुर ही उत्तरदायी हो सकता है और वह भी तभी जब उसके पास पर्याप्त सहदायिक संपत्ति हो।
याचिकाकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि इस मामले में ससुर के पास संयुक्त आवासीय घर के अलावा कोई सहदायिक संपत्ति नहीं थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने तर्क दिया कि ससुर सीमित साधनों वाले पेंशनभोगी थे और भरण-पोषण का भुगतान करने में सक्षम नहीं थे। याचिकाकर्ताओं ने यह भी प्रस्तुत किया कि जिस समय मजिस्ट्रेट द्वारा प्रारंभिक आदेश पारित किया गया, उस समय शिकायतकर्ता का पति जीवित था। इसलिए उस स्तर पर ससुराल वालों पर भरण-पोषण का कोई दायित्व नहीं लगाया जाना चाहिए था।
दूसरी ओर शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि उसके पास खुद का भरण-पोषण करने के लिए कोई स्वतंत्र साधन नहीं था। वह अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार थी। उन्होंने तर्क दिया कि पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ था। संयुक्त परिवार की अतिरिक्त संपत्तियां भी हैं जिससे भरण-पोषण के लिए उनका दावा उचित है।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से सहमति जताते हुए फैसला सुनाया कि सेशन कोर्ट ने ससुर और सास दोनों को भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश देकर कानून का गलत इस्तेमाल किया।
अदालत ने कहा,
“मुझे लगता है कि ACJM ने कानून और तथ्यों पर चर्चा किए बिना पति, सास-ससुर और अन्य रिश्तेदारों सहित सभी प्रतिवादियों के खिलाफ भरण-पोषण का आदेश पारित किया। कानून की नजर में ऐसा आदेश टिक नहीं सकता। कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति के अधीन, केवल पति को ही भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया जा सकता था।”
ससुर के दायित्व के बारे में अदालत ने आगे स्पष्ट किया,
“ससुर का दायित्व भी पूर्ण नहीं है। हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 19 के तहत निर्धारित कुछ शर्तों को ससुर पर ऐसा दायित्व तय करने से पहले पूरा किया जाना आवश्यक है। लेकिन सेशन कोर्ट ने विवादित आदेश पारित करने से पहले ऐसे प्रासंगिक कानून और तथ्यों पर चर्चा नहीं की।”
परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने भरण-पोषण आदेश रद्द कर दिया और विधवा के भरण-पोषण के अधिकार के संबंध में साक्ष्य के आधार पर मामला पुनर्विचार के लिए ACJM मुंगेर को वापस भेज दिया। हालांकि, शिकायतकर्ता के पक्ष में संरक्षण और निवास आदेश को बरकरार रखा गया, जिससे संयुक्त परिवार के घर में रहने का उसका अधिकार सुनिश्चित हो गया।
केस टाइटल: कंपनी राम @ तिरन राम और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य