हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
24 Nov 2024 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (18 नवंबर, 2024 से 22 नवंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
'विधवा बेटी आश्रित परिवार की परिभाषा के अंतर्गत आती है', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति का निर्देश दिया
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अनुकंपा के आधार पर अपने मृत पिता के पद पर नियुक्ति की मांग कर रही विधवा बेटी को राहत प्रदान की। न्यायालय ने कहा कि विवाह या विधवा होने के बाद भी महिला बेटी ही रहेगी। इसके अलावा, यदि वह अपने पिता की मृत्यु से पहले विधवा है तो वह सभी कानूनी और व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए 'बेटी' की परिभाषा में शामिल होगी, यद्यपि वह अपने पिता की मृत्यु की तिथि पर विधवा थी।
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अनुकंपा नियुक्ति के लिए 5 वर्ष की समय-सीमा उस तिथि से शुरू होती है, जब कार्रवाई का कारण उत्पन्न होता है': पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट की जस्टिस पी.बी. बजंथरी और जस्टिस एस.बी. पीडी. सिंह की खंडपीठ ने उस निर्णय को चुनौती देने वाली अपील स्वीकार की, जिसमें कांस्टेबल के पद पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन इस आधार पर खारिज किया था कि 5 वर्ष की निर्धारित समय-सीमा के भीतर अधिकारियों के समक्ष आवेदन दायर नहीं किया गया।
न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता अपने पिता की मृत्यु के ठीक बाद नियुक्ति के लिए आवेदन दायर नहीं कर सकता था, क्योंकि उनकी मृत्यु से छह महीने पहले ही उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। यह माना गया कि बर्खास्तगी आदेश रद्द करने के आदेश की तिथि से पांच वर्ष की समय-सीमा पर विचार किया जाना चाहिए।
केस टाइटल: सनी कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य
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दहेज मामले में संलिप्तता के आधार पर सरकारी पद पर नियुक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
सरकारी पद पर नियुक्ति के एक मामले पर विचार करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि केवल आपराधिक मामले में फंसाया जाना ही उम्मीदवार को खारिज करने का वास्तविक आधार नहीं बनता है।
उस मामले में जहां नियुक्ति चाहने वाला व्यक्ति मुख्य आरोपी का भाई था और दहेज के मामले में फंसा हुआ था, जस्टिस जे.जे. मुनीर ने कहा कि “समाज में प्रचलित सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए, जबकि महिलाएं अपने वैवाहिक घरों में क्रूरता का शिकार होती हैं, यह भी उतना ही सच है, और अब तक न्यायिक रूप से स्वीकार किया गया है, कि मामूली या बिना किसी उल्लंघन के, पति के पूरे परिवार को या तो पुलिस को रिपोर्ट किया जाता है या असंतुष्ट पत्नी या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का आरोप लगाते हुए आपराधिक न्यायालय में लाया जाता है। क्या इस तरह के मामले में, एक सार्वजनिक परीक्षा के माध्यम से अपनी योग्यता के आधार पर चुने गए उम्मीदवार, जिसकी अन्यथा एक साफ छवि है और जो मुख्यधारा के समाज का हिस्सा है, को सार्वजनिक रोजगार के विशेषाधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए?”
केस टाइटल: बाबा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट - ए संख्या 12055/2024]
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मध्यस्थता अधिनियम की धारा 12(5) 2015 संशोधन अधिनियम से पहले शुरू हुई मध्यस्थता कार्यवाही पर लागू होगी: पी एंड एच हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस सुवीर सहगल की पीठ ने माना कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 12(5) के प्रावधान उन मध्यस्थता कार्यवाहियों पर लागू होंगे जो 2015 के संशोधन के लागू होने से पहले शुरू की गई थीं और उसके बाद भी जारी रहीं। यह याचिका मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (संक्षेप में 'मध्यस्थता अधिनियम') की धारा 11 के तहत एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन के लिए दायर की गई।
केस टाइटल: एसपी सिंगला कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य
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फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में सीपीसी के प्रावधान लागू होते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया
तलाक के मामले की जांच करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 10 के प्रकाश में फैमिली कोर्ट के समक्ष सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू होते हैं। इसलिए निषेधाज्ञा की मांग करने वाली रिट याचिका पर अपील के उपाय की उपस्थिति में हाईकोर्ट द्वारा विचार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस मनीष कुमार निगम ने कहा, "यहां यह देखना उचित होगा कि सिविल प्रक्रिया संहिता में निहित प्रावधान प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांत पर आधारित हैं। इसलिए फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 10 के अर्थ में फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही पर सिविल प्रक्रिया संहिता के सभी प्रावधान लागू होते हैं।"
केस टाइटल: नागेंद्र शर्मा एवं अन्य बनाम कोर्ट ऑफ प्रिं. जज फैमिली कोर्ट गोंडा एवं अन्य
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मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा: हाईकोर्ट ने भविष्य की भर्ती परीक्षाओं में मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित श्रेणी में स्थानांतरित करने का आदेश दिया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने कहा है कि अब से हाईकोर्ट के परीक्षा प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित सभी भावी भर्ती परीक्षाओं में चयन प्रक्रिया के सभी चरणों में अनारक्षित श्रेणी में मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को माइग्रेशन का लाभ दिया जाएगा।
अदालत ने इस पूरी सुनवाई में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हाईकोर्ट सहित प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए कि वे हाईकोर्ट के परीक्षा प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा सहित चयन प्रक्रिया के हर चरण में अनारक्षित पदों के विरुद्ध मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों का चयन करें, ताकि यदि उन्हें अनारक्षित श्रेणी से समान या अधिक अंक प्राप्त हुए हों तो वे अनारक्षित श्रेणी में जन्म लें।
केस टाइटलः अनुसूचित जाति, एवं जन जाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजक्स) बनाम मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और अन्य
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घरेलू हिंसा की कार्यवाही पर रेस जुडिकाटा लागू नहीं होता, जहां परिस्थितियां दूसरी याचिका दायर करने को उचित ठहराती हैं: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पीड़ित व्यक्ति पहले वाली याचिका को वापस लेने के बाद दूसरी याचिका दायर करने के लिए वैध कारण प्रदान करता है, तो रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत या सिविल प्रक्रिया संहिता के समरूप प्रावधान घरेलू हिंसा (डीवी) अधिनियम के तहत कार्यवाही को प्रतिबंधित नहीं कर सकते।
निचली अदालत के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजय धर ने डीवी अधिनियम के तहत कार्यवाही की विशिष्ट और उपचारात्मक प्रकृति को दोहराया और कहा, "रेस ज्यूडिकाटा से संबंधित सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधान, या यहां तक कि रेस ज्यूडिकाटा की प्रकृति के सिद्धांत, डीवी अधिनियम के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं किए जा सकते हैं, खासकर ऐसे मामले में जहां पीड़ित व्यक्ति ने उन परिस्थितियों को स्पष्ट किया है जिनके तहत उसने पहले वाली याचिका को वापस लेने के बाद दूसरी याचिका दायर की है"
केस टाइटल: सरदुल सिंह बनाम दविंदर कौर
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने वक्फ बोर्ड को मुस्लिम जोड़ों को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत करने वाले आदेश पर लगी रोक बढ़ाई
कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को अंतरिम आदेश में राज्य वक्फ बोर्ड और उसके अधिकारियों को विवाहित मुस्लिम आवेदकों को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत करने वाले सरकारी आदेश पर 7 जनवरी तक रोक लगाई।
चीफ जस्टिस एन वी अंजारिया और जस्टिस के वी अरविंद की खंडपीठ ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा, "प्रथम दृष्टया मजबूत मामले को देखते हुए बोर्ड और अधिकारियों को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत करने वाला 30-8-2023 का विवादित आदेश अगली तारीख तक स्थगित रहेगा। वक्फ बोर्ड या उसके अधिकारी अगली तारीख तक उक्त आदेश की आड़ में विवाह प्रमाण पत्र जारी नहीं करेंगे। यह समझना मुश्किल है कि वक्फ बोर्ड या अधिकारियों द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र को किसी आधिकारिक उद्देश्य के लिए वैध प्रमाण पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
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किसी मुकदमे का मूल्यांकन दावा की गई राहत की प्रकृति पर आधारित होता है, संपत्ति के बाजार मूल्य पर नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया
एक संपत्ति की बिक्री से संबंधित विवाद की सुनवाई करते हुए, जोधपुर राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि यह केवल दावा की गई राहत की प्रकृति और मूल्यांकन था जिसके आधार पर सूट का मूल्यांकन और अदालत शुल्क निर्धारित किया गया था और किसी भी संपत्ति का बाजार मूल्य नहीं था।
जस्टिस रेखा बोराना अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के एक आदेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें भले ही मुकदमा खारिज करने के लिए एक आवेदन खारिज कर दिया गया था, लेकिन याचिकाकर्ताओं को मुकदमे का पुनर्मूल्यांकन करने और अदालत की फीस का भुगतान करने का निर्देश दिया।
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REET | यदि राज्य सरकार की एक एजेंसी उम्मीदवार को योग्य घोषित करती है तो दूसरी सरकारी एजेंसी उसे अयोग्य घोषित नहीं कर सकती: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक बार राज्य सरकार की एक एजेंसी यानी शिक्षा बोर्ड ने किसी अभ्यर्थी को REET लेवल-I परीक्षा उत्तीर्ण प्रमाणित कर दिया, तो दूसरी एजेंसी यानी शिक्षा विभाग के लिए यह अधिकार नहीं है कि वह यह कहकर उसकी उम्मीदवारी खारिज कर दे कि उसने परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है।
जस्टिस फरजंद अली की पीठ राज्य शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित सहायक अध्यापक लेवल-I की भर्ती के एक अभ्यर्थी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी उम्मीदवारी इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि उसके 82/150 अंक REET के न्यूनतम निर्धारित मानदंड 55% को पूरा नहीं करते थे।
केस टाइटल: विक्रम सिंह बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य
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NI Act की धारा 138 के तहत चेक अनादर का संज्ञान केवल लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है: झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया
चेक बाउंसिंग मामले की सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने फिर से पुष्टि की कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 142 के तहत अपराधों का संज्ञान लेने के लिए पुलिस को रिपोर्ट करने की आवश्यकता नहीं होती है और न ही अदालत को शिकायत की जांच करने के लिए पुलिस को निर्देश देने का अधिकार है।
अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि NI Act की धारा 142(1)(ए) के तहत चेक अनादर के लिए धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान केवल लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है।
केस टाइटल: प्रशांत कुमार सिंह बनाम झारखंड राज्य
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ED की शिकायत पर संज्ञान के कारणों को दर्ज करना PMLA स्पेशल कोर्ट के लिए आवश्यक नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि पीएमएलए के तहत विशेष अदालत के लिए ED की शिकायत का संज्ञान लेने के कारणों को दर्ज करना आवश्यक नहीं है, जो CrPC या BNSS के तहत एक निजी शिकायत के विपरीत है। जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि ईडी पीएमएलए की धारा 44 के तहत प्रारंभिक शिकायत दर्ज कर सकती है, भले ही जांच पूरी तरह से पूरी न हो।
न्यायालय के अनुसार, यह विशेष रूप से 2019 में प्रावधान में पेश किए गए स्पष्टीकरण-II के आलोक में किया जा सकता है, जो ईडी को पूरक शिकायत दर्ज करने की अनुमति देता है।
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[S. 498A IPC] दूसरी पत्नी सिर्फ़ इसलिए क्रूरता की दोषी नहीं, पति ने पहली पत्नी के जीवनकाल में उससे शादी की: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने व्यक्ति की दूसरी पत्नी के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला खारिज किया जिसमें धारा 498A (क्रूरता), धारा 494, 406 और धारा 506 शामिल हैं। साथ ही दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत उसकी पहली पत्नी द्वारा दर्ज मामला भी खारिज कर दिया।
जस्टिस शम्पा (दत्त) पॉल ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “IPC की धारा 494 के तहत आरोपित अपराध उस व्यक्ति पर लागू होता है, जिसने अपने जीवनसाथी के जीवनकाल में वैध विवाह में दूसरी बार विवाह किया। उक्त शिकायत में आरोपित कोई भी अपराध याचिकाकर्ता के संबंध में लागू नहीं होता, जो निश्चित रूप से शिकायतकर्ता के पति का रिश्तेदार नहीं है।"
केस टाइटल: सागरी हेम्ब्रम - बनाम - पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य
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कलेक्टर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अभियोजन स्वीकृति के मसौदे को साइक्लोस्टाइल नहीं कर सकते, उन्हें स्वतंत्र विचार रखना चाहिए: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि अभियोजन स्वीकृति प्रदान करना महज औपचारिकता नहीं है और स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी को मामले के तथ्यों की पूरी जानकारी होने के बाद ही अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस रेखा बोराणा की खंडपीठ ने आगे कहा कि स्वीकृति का पालन पूरी सख्ती के साथ किया जाना चाहिए, जिसमें जनहित और जिस आरोपी के खिलाफ स्वीकृति मांगी गई। उसे उपलब्ध सुरक्षा को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
केस टाइटल: हेयरश चंद्र बुनकर बनाम राजस्व बोर्ड और अन्य।
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तथ्यों की गलतियों को सुधारने के लिए निचली अदालत या ट्रिब्यूनल के निर्णय के विरुद्ध रिट कोर्ट अपील कोर्ट के रूप में कार्य नहीं करेंगे: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि रिट कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र ग्रहण करके किसी भी राहत को प्रदान करने के लिए क़ानून (Income Tax Act) द्वारा प्रदान किए गए वैकल्पिक उपाय का सहारा नहीं लेंगे।
जस्टिस एम.एस. सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की रिट कोर्ट तथ्यों की गलतियों को सुधारने के लिए निचली अदालत या ट्रिब्यूनल के निर्णय के विरुद्ध अपील न्यायालय के रूप में कार्य नहीं करेंगे।
केस का शीर्षक: अपोलो टायर्स बनाम भारत संघ (रिट याचिका संख्या 15498/2024)
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आतंकवादियों द्वारा सोशल मीडिया का दुरुपयोग करना, हिंसा भड़काने के लिए पत्रकारिता की साख का इस्तेमाल करना सजा सुनाने में शामिल कारक: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि आतंकवादियों द्वारा सोशल मीडिया मंचों का दुरुपयोग और हिंसा भड़काने के लिए पत्रिकाओं के प्रकाशन के लिए पत्रकारिता के प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने जैसे कारकों को आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित मामलों में सजा देते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि अदालतों को न केवल ऐसे मामलों में किए गए अपराध को ध्यान में रखना होगा, बल्कि भविष्य में इसी तरह के अपराध में शामिल होने के लिए व्यक्ति के प्रभाव और प्रवृत्ति को भी ध्यान में रखना होगा।
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मध्यस्थता खंड के तहत मध्यस्थ की नियुक्ति प्रत्यक्ष रूप से वैध न होने पर धारा 11(6) के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को रोका नहीं जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस सुदेश बंसल की पीठ ने पुष्टि की कि जब तक मध्यस्थ की नियुक्ति प्रत्यक्ष रूप से वैध न हो और ऐसी नियुक्ति मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11(6) के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले न्यायालय को संतुष्ट न करे, तब तक धारा 11(6) के तहत अधिकार क्षेत्र को रोकने के लिए ऐसी नियुक्ति को तथ्य के रूप में स्वीकार करना कानून में मान्य नहीं हो सकता।
केस टाइटल: सुरेन्द्र सारदा पुत्र स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल शारदा बनाम श्री माहेश्वरी समाज एवं अन्य।
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खाताधारक की मृत्यु के बाद नामांकित व्यक्ति बैंक जमाराशि पाने का हकदार, लेकिन धन उत्तराधिकार कानूनों के अधीन होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि खाताधारक की मृत्यु के बाद नामांकित व्यक्ति को बैंक से धन प्राप्त करने का अधिकार है लेकिन प्राप्त धन उत्तराधिकार कानूनों के अधीन होगा। मृतक के उत्तराधिकारियों को कानून के अनुसार उक्त राशि पर अधिकार होगा।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने मनोज कुमार शर्मा द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की, जिन्होंने दावा किया कि नामांकित व्यक्ति के रूप में वह बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 45ZA [जमाकर्ताओं के धन के भुगतान के लिए नामांकन] के अनुसार अपनी दिवंगत मां की सावधि जमा रसीदों (FDR) से धन प्राप्त करने का हकदार था।
केस टाइटल - मनोज कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य
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भाभी द्वारा बॉडी शेमिंग प्रथम दृष्टया महिला के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला जानबूझकर किया गया आचरण, जो IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता का कारण बनता है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि भाभी द्वारा महिला के बॉडी शेमिंग करना प्रथम दृष्टया महिला के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाला जानबूझकर किया गया आचरण है, जो IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता का अपराध बनता है।
मामले के तथ्यों के अनुसार भाभी ने अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि वह धारा 498A के तहत रिश्तेदार शब्द के दायरे में नहीं आती, जिससे क्रूरता का अपराध बनता है।
केस टाइटल: निमिजा बनाम केरल राज्य
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पति द्वारा पत्नी को नौकरी छोड़ने और अपनी इच्छा और शैली के अनुसार जीने के लिए मजबूर करना क्रूरता: तलाक के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
महिला द्वारा एक व्यक्ति के साथ विवाह विच्छेद करने की याचिका स्वीकार करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने कहा कि इस मामले में पति द्वारा अपनी पत्नी को नौकरी मिलने तक सरकारी नौकरी छोड़ने और "अपनी इच्छा और शैली के अनुसार जीने" के लिए मजबूर करना क्रूरता के समान है।
ऐसा करते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि पति या पत्नी साथ रहना चाहते हैं या नहीं, यह उनकी "इच्छा" है। हालांकि उनमें से कोई भी दूसरे को जीवनसाथी की पसंद के अनुसार नौकरी करने या न करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
केस टाइटल: एक्स बनाम वाई
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ईपीएफ अंशदान के लिए प्रतिधारण भत्ता मूल वेतन का हिस्सा है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ, जिसमें जस्टिस अनिल एल पानसरे शामिल थे, ने कहा कि मौसमी श्रमिकों को दिए जाने वाले प्रतिधारण भत्ते को ईपीएफ अधिनियम, 1952 के तहत पीएफ अंशदान के लिए मूल वेतन में शामिल किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य सहकारी कपास उत्पादक विपणन संघ लिमिटेड की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 1991-92 से 2008 तक भुगतान किए गए प्रतिधारण भत्ते पर भविष्य निधि अंशदान मांगों को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने माना कि प्रतिधारण भत्ता एक सतत नियोक्ता-कर्मचारी संबंध को दर्शाता है और ईपीएफ अधिनियम में "मूल वेतन" की परिभाषा के अंतर्गत आता है, जिससे यह भविष्य निधि अंशदान के अधीन हो जाता है।
केस टाइटल: महाराष्ट्र राज्य सहकारी कपास उत्पादक विपणन संघ लिमिटेड बनाम अपीलीय न्यायाधिकरण, कर्मचारी भविष्य निधि
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वक्फ बोर्ड समिति के माध्यम से संपत्ति को 'निजी' घोषित करने के प्रशासक के आदेश को वापस नहीं ले सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा पारित आदेश रद्द किया, जिसमें वर्ष 1976 में बोर्ड के तत्कालीन प्रशासक द्वारा पारित आदेश पर पुनर्विचार करने और उसे वापस लेने के लिए एक विधि समिति का गठन किया गया था। इसमें कहा गया कि बेंगलुरु के कुम्बरपेटे क्षेत्र में स्थित संपत्ति का एक हिस्सा निजी संपत्ति है, न कि वक्फ संपत्ति।
जस्टिस एम जी एस कमल की एकल पीठ ने जाबिर अली खान उर्फ शुजा नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका स्वीकार की, जिसने विधि समिति के गठन पर सवाल उठाया था। इसने बोर्ड को वक्फ अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करके कर्नाटक वक्फ न्यायाधिकरण का रुख करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: जाबिर अली खान उर्फ शुजा और कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड एवं अन्य
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ईएसआईसी के वेतन गणना से अस्थायी महामारी भत्ते को बाहर रखा जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस गिरीश कथपालिया की एकल पीठ ने फैसला सुनाया कि महामारी के दौरान दिए गए अस्थायी विशेष प्रोत्साहनों को ईएसआई के लिए वेतन गणना में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि वेतन गणना में ऐसे अस्थायी महामारी-संबंधी भुगतानों को शामिल करना योजना के कल्याण उद्देश्यों के विपरीत होगा। फैसले ने स्थापित किया कि कोविड-19 व्यय जैसी असाधारण परिस्थितियों को कवर करने के लिए विशेष भत्ते का उपयोग श्रमिकों को कल्याण लाभों से अयोग्य ठहराने के लिए नहीं किया जा सकता है।
केस टाइटल: गोदंबरी रतूड़ी बनाम कर्मचारी राज्य बीमा निगम
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ब्रिज कोर्स वाले विदेशी लॉ डिग्री धारक को AIBE के अलावा अन्य योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण करने की आवश्यकता नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य बार काउंसिल को निर्देश दिया कि वह विदेशी यूनिवर्सिटी से लॉ डिग्री धारक को, जिसने ब्रिज कोर्स के 2 वर्ष पूरे कर लिए हैं, AIBE के अलावा किसी अन्य योग्यता परीक्षा के लिए आग्रह किए बिना ब्रिज कोर्स के परिणामों के आधार पर अपने रोल पर नामांकित करे।
जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने करण धनंजय द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए कहा, "मेरा विचार है कि 21.3.2023 की अधिसूचना (बार काउंसिल ऑफ इंडिया (CBI) द्वारा जारी) के अनुसार ऐसे डिग्री धारक को अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) के अलावा कोई अन्य योग्यता परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं है। प्रतिवादी नंबर 3 (KSBC) को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ता को ब्रिज कोर्स के परिणामों के आधार पर किसी अन्य योग्यता परीक्षा के लिए आग्रह किए बिना अपने रोल पर नामांकित करे।"
केस टाइटल: करण धनंजय और बार काउंसिल ऑफ इंडिया एवं अन्य