कलेक्टर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अभियोजन स्वीकृति के मसौदे को साइक्लोस्टाइल नहीं कर सकते, उन्हें स्वतंत्र विचार रखना चाहिए: राजस्थान हाईकोर्ट
Amir Ahmad
19 Nov 2024 1:00 PM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि अभियोजन स्वीकृति प्रदान करना महज औपचारिकता नहीं है और स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी को मामले के तथ्यों की पूरी जानकारी होने के बाद ही अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस रेखा बोराणा की खंडपीठ ने आगे कहा कि स्वीकृति का पालन पूरी सख्ती के साथ किया जाना चाहिए, जिसमें जनहित और जिस आरोपी के खिलाफ स्वीकृति मांगी गई। उसे उपलब्ध सुरक्षा को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
न्यायालय एकल जज के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कलेक्टर द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की पुष्टि की गई।
अपीलकर्ता का मामला यह था कि स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी ने स्वीकृति प्रदान करने में अपने स्वतंत्र विचार का उपयोग नहीं किया। केवल साइक्लोस्टाइल्ड तरीके से आदेश पारित किया। यह प्रस्तुत किया गया कि अभियोजन स्वीकृति पारित करने वाले कलेक्टर द्वारा पारित आदेश भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) द्वारा प्रस्तुत मसौदे की शब्दशः प्रति थी।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि स्वीकृति प्रदान करना किसी लोक सेवक के विरुद्ध अभियोजन शुरू करने के लिए पूर्व शर्त है, जिससे निर्दोष लोक सेवक को धोखाधड़ी, संदेहास्पद, तुच्छ और अव्यावहारिक अभियोजन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान की जा सके।
न्यायालय ने कहा,
“संबंधित स्वीकृति प्राधिकारी को संपूर्ण प्रासंगिक अभिलेखों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना होगा। अभियोजन एजेंसी द्वारा प्रस्तुत संपूर्ण अभिलेखों की पूर्ण और सचेत जांच करनी होगी तथा स्वतंत्र रूप से अपने विवेक का प्रयोग करके स्वयं को संतुष्ट करना होगा कि क्या मामले के तथ्य और परिस्थितियां तथा अभिलेख पर मौजूद भौतिक साक्ष्य अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला होने का औचित्य सिद्ध करते हैं।”
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कलेक्टर का आदेश ACB द्वारा प्रस्तुत अभियोजन मसौदे की शब्दशः प्रति थी। उनके आदेश में ऐसा कोई आधार नहीं दर्शाया गया, जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि स्वीकृति प्राधिकारी ने अपने स्वतंत्र विवेक का प्रयोग किया था।
कोर्ट ने मनीष माथुर बनाम राजस्थान राज्य के मामले का हवाला दिया जिसमें समान तथ्यात्मक परिदृश्य पर यह माना गया कि एसीबी सभी प्रासंगिक तथ्यों को संप्रेषित कर सकता था जिसके आधार पर अभियोजन स्वीकृति दी जा सकती थी। किसी भी मामले में ब्यूरो प्रस्तावित और मसौदा दस्तावेज के तहत अभियोजन स्वीकृति देने का निर्देश नहीं दे सकता था।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि एसीबी द्वारा कलेक्टर को प्रस्तुत अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्तावित मसौदा दस्तावेज अवैध था।
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई और कलेक्टर द्वारा एसीबी द्वारा भेजे गए मसौदा दस्तावेज के रूप में अभियोजन स्वीकृति देने का आदेश रद्द कर दिया गया।
केस टाइटल: हेयरश चंद्र बुनकर बनाम राजस्व बोर्ड और अन्य।