फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में सीपीसी के प्रावधान लागू होते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया
Amir Ahmad
23 Nov 2024 11:42 AM IST
तलाक के मामले की जांच करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 10 के प्रकाश में फैमिली कोर्ट के समक्ष सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू होते हैं। इसलिए निषेधाज्ञा की मांग करने वाली रिट याचिका पर अपील के उपाय की उपस्थिति में हाईकोर्ट द्वारा विचार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस मनीष कुमार निगम ने कहा,
"यहां यह देखना उचित होगा कि सिविल प्रक्रिया संहिता में निहित प्रावधान प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांत पर आधारित हैं। इसलिए फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 10 के अर्थ में फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही पर सिविल प्रक्रिया संहिता के सभी प्रावधान लागू होते हैं।"
पूरा मामला
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी एक विवाहित जोड़ा है। उनके बीच मतभेदों के कारण याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए अर्जी दाखिल की, जिसे क्रमशः 16.01.2019 और 28.01.2019 के निर्णय और डिक्री द्वारा अनुमति दी गई।
जवाब में 29.05.2019 को प्रतिवादी ने सी.पी.सी. के आदेश IX नियम 13 के साथ सी.पी.सी. की धारा 151 के तहत एक आवेदन परीसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत एक आवेदन और उपरोक्त निर्णय और डिक्री के खिलाफ स्थगन आवेदन दायर किया।
प्रधान न्यायाधीश गोंडा ने प्रतिवादी को स्थगन दिया और याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किए। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने निषेधाज्ञा के लिए रिट दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि फैमिली कोर्ट एक्ट , 1984 की धारा 19 और 20 के तहत प्रधान न्यायाधीश के पास CPC की धारा 151 के साथ आदेश IX नियम 13 के तहत याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं है।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने पाया कि निषेधाज्ञा केवल तभी जारी की जा सकती है, जब निचली अदालत या न्यायाधिकरण ने अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया हो।
यह स्पष्ट किया गया कि ऐसे मामलों में जहां न्यायालय या न्यायाधिकरण ने गलती की हो, उस गलती को केवल अपील, संशोधन या भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत कार्यवाही द्वारा सुधारा जा सकता है निषेधाज्ञा द्वारा नहीं।
इसके अलावा न्यायालय ने माना कि फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 10 की जांच करने पर CPC के प्रावधान फैमिली कोर्ट के समक्ष पूरी तरह से लागू होंगे।
न्यायालय ने कहा,
"फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 10 की गहन जांच से यह स्पष्ट होता है कि इस अधिनियम और नियमों के अन्य प्रावधानों के अधीन रहते हुए सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 और किसी अन्य लागू कानून के प्रावधान फैमिली कोर्ट के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय IX के तहत कार्यवाही के अलावा अन्य मुकदमों और कार्यवाहियों पर लागू होंगे और संहिता के उक्त प्रावधानों के प्रयोजनों के लिए फैमिली कोर्ट को एक सिविल न्यायालय माना जाएगा। उसके पास ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी।"
न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता का यह तर्क कि फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 की धारा 19 और 20 के आलोक में प्रतिवादी के पास केवल एकपक्षीय फैसले के खिलाफ अपील दायर करने का उपाय था गलत था।
रवींद्र सिंह बनाम वित्तीय आयुक्त सहकारिता पंजाब और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। यह माना जाए कि सभी न्यायालयों के पास प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के आधार पर एकपक्षीय आदेश रद्द करने की आकस्मिक शक्ति है।
न्यायालय ने माना कि मामले के गुण-दोष के आधार पर याचिकाकर्ता की दलीलों पर निषेधाज्ञा के तहत विचार नहीं किया जा सकता। तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: नागेंद्र शर्मा एवं अन्य बनाम कोर्ट ऑफ प्रिं. जज फैमिली कोर्ट गोंडा एवं अन्य