जानिए हमारा कानून
अपील का अधिकार – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 390 और 391
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में दोषसिद्धि (Conviction) और सजा (Sentence) के खिलाफ अपील (Appeal) करने का अधिकार एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को अन्यायपूर्ण सजा न मिले और यदि कोई गलती हुई हो तो उसे सुधारा जा सके।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 390 उन व्यक्तियों को अपील करने का अधिकार प्रदान करती है जिन्हें धारा 383, धारा 384, धारा 388 और धारा 389 के तहत दोषी ठहराया गया हो। इसके अलावा, धारा 391 यह स्पष्ट करती है कि किन परिस्थितियों में...
क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की जवाबदेही RTI Act के तहत है?
सुप्रीम कोर्ट ने अंजलि भारद्वाज बनाम CPIO, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (RTI Cell) (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर फैसला दिया, जो सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम (Supreme Court Collegium) की पारदर्शिता (Transparency) से जुड़ा था।इस मामले में यह सवाल उठाया गया कि क्या कोलेजियम की बैठकों में हुई चर्चाओं को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005 - RTI Act) के तहत सार्वजनिक किया जाना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल कोलेजियम के अंतिम निर्णय (Final Decision) और प्रस्ताव...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स में प्रतिफल का महत्व
चूँकि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक निश्चित धनराशि भुगतान करने की संविदा करता है, अत: एक विधिसम्मत संविदा के समर्थन के लिए प्रतिफल का होना आवश्यक होता है। लिखतों के सम्बन्ध में प्रतिफल की उपधारणा होती है।अधिनियम की धारा 118 (क) में यह उबन्धित है कि प्रत्येक निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स जब यह प्रतिग्रहीत, पृष्ठांकित परक्राम्य या अन्तरित किया जाता है तो ऐसा प्रतिग्रहण, पृष्ठांकन, परक्रामण या अन्तरण प्रतिफल से किया गया है परन्तु वह उपधारणा खण्डनीय होती है। तातोपमुला नागराजू बनाम पैटेम पदमावती के मामले...
NI Act में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स किसे कहा जाता है?
व्यापारिक एवं मौद्रिक व्यवहारों में मुद्रा के रूप में प्रयुक्त किये जाने वाले कुछ अभिलेखों को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कहा जाता है।"निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स" दो शब्दों से बना है, 'परक्राम्य' एवं 'लिखत' जिसका शाब्दिक अर्थ एक अभिलेख जो परिदान द्वारा अन्तरणीय होता है। दूसरे शब्दों में अभिलेख जिनमें परक्राम्यता की विशेषता होती है। निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कहलाते हैं। अतः लिखत जो परक्राम्य है वे निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स है।निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 की धारा 13 परिभाषित करती है "निगोशिएबल...
क्या अनुसूचित जनजाति की महिला सदस्यों को समान उत्तराधिकार अधिकार मिलने चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट ने कमला नेटी बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी एवं अन्य (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर फैसला दिया, जिसमें अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe - ST) की महिलाओं को उत्तराधिकार (Inheritance) के अधिकार देने का सवाल उठाया गया। अदालत ने यह माना कि वर्तमान कानून के अनुसार, अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act - HSA) के तहत संपत्ति में अधिकार नहीं मिल सकता।हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि इस कानून में बदलाव की जरूरत है और यह काम विधायिका...
गवाह की गैरमौजूदगी पर त्वरित सजा – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 389
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में गवाह (Witness) की उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। एक गवाह अपनी गवाही (Testimony) और सबूतों (Evidence) के माध्यम से अदालत को सही निर्णय लेने में मदद करता है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि अदालत द्वारा बुलाए जाने के बावजूद गवाह बिना किसी उचित कारण के हाजिर नहीं होता।इस समस्या को हल करने के लिए, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 389 में एक संक्षिप्त प्रक्रिया (Summary Procedure) का प्रावधान किया गया है। इसके तहत, यदि कोई गवाह बिना किसी वैध कारण के...
नए किरायों में वृद्धि से जुड़ा कानून: राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 7
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 7 (Section 7) उन मकानों या परिसरों (Premises) पर लागू होती है, जो इस अधिनियम के लागू होने के बाद किराए पर दिए गए हैं। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि मकान मालिक (Landlord) को किराए में उचित वृद्धि (Fair Rent Increase) मिले, लेकिन किराएदार (Tenant) पर अचानक बहुत अधिक आर्थिक बोझ न पड़े।धारा 7 के तहत, मकान मालिक हर साल किराए में 5% की वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन यह वृद्धि हर साल अलग से लागू नहीं होगी। इसे 10 वर्षों के बाद मूल किराए (Base Rent) में जोड़...
भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 62: बिना स्टाम्प लगे दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने की सज़ा
भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) एक महत्वपूर्ण कानून है जो कानूनी और वित्तीय दस्तावेज़ों (Legal and Financial Documents) पर स्टाम्प शुल्क (Stamp Duty) लगाने के नियमों को निर्धारित करता है।यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी प्रकार का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बिना उचित स्टाम्प शुल्क के मान्य न हो। इसकी वजह से सरकार को राजस्व (Revenue) भी प्राप्त होता है और दस्तावेज़ कानूनी रूप से मजबूत होते हैं। धारा 62 (Section 62) उन लोगों के लिए दंड का प्रावधान करता है जो बिना स्टाम्प...
NI Act में Cheque, Promissory Note और Exchange Bill में अंतर
NI Act Cheque, Promissory Note और Exchange Bill तीनों मामलो में लागू होता है और इन तीनों में समानता होते हुए भी अंतर है।चेक एवं Exchange Bill में अन्तरप्रकृतित: चेक एवं Exchange Billसमान होते हैं, क्योंकि एक चैक Exchange Billहोता है, यद्यपि कि इन दोनों में मौलिक अन्तर होता है जिसे निम्नलिखित शीर्षकों में स्पष्ट किया जा सकता है-ऊपरवाल के सम्बन्ध में एक चेक सदैव किसी बैंक पर लिखा जाता है, जबकि एक Exchange Billबैंक को सम्मिलित करते हुए किसी भी व्यक्ति पर लिखा जा सकता है।माँग पर देय- एक चेक सदैव...
NI Act में Cheque किसे कहा जाता ?
NI Act में अलग अलग तरह के इंस्ट्रूमेंट हैं जो किसी रूपये के भुगतान के बदले जारी किये जाते हैं। Exchange Billअधिनियम, 1882 (आंग्ल) की धारा 73 में चेक को कुछ इन शब्दों में परिभाषित किया है:-"एक चेक Exchange Billहै जो किसी बैंकर पर लिखा जाता है और माँग पर देय होता है।"चेक की इस परिभाषा के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि चेक, Exchange Billका संकीर्ण वर्ग है, चेक की विस्तृत परिभाषा दोनों परिभाषाओं अर्थात् Exchange Billएवं चेक के समामेलन से प्राप्त किया जा सकता है।सभी चेक Exchange Billहोते हैं, लेकिन सभी...
NI Act में Promissory Note स्टाम्प होना चाहिए और उसके प्रतिफल होना चाहिए
Promissory Noteको अन्तिम अपेक्षा है कि Promissory Noteको भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 49 में विहित देय स्टाम्प ड्यूटी सम्य रूपेण स्टाम्पित होना चाहिए। Promissory Noteका स्टाम्प उसके मूल्य पर निर्भर करता है।मे० पैकिंग पेपर सेल्स बनाम वीना लता खोसला के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का यह मत था कि एक Promissory Noteअपेक्षित स्टाम्प फाइन सहित भुगतान कर विधिमान्य बनाया जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि Promissory Noteको प्रारम्भ से ही स्टाम्पित होना आवश्यक नहीं है और बिना इसके विधिमान्य हो सकता है....
NI Act में Promissory Note किसे कहा गया है?
इस अधिनियम की धारा 4 वचन पत्र के संबंध में उल्लेख करती है। वचन पत्र ऐसा पत्र है जिसने ऋण चुकाने का वचन समाहित है। इसका संबंध ऋण से है। यदि ऋण है तो वहां वचन पत्र भी होने की संभावना रहती है। सामान्य व्यवहारों में वचन पत्र नहीं मिलता है परंतु इसका चलन आज भी है तथा अनेक व्यापारिक व्यवहारों को इससे ही संचालित किया जा रहा है। यह प्राचीन व्यवस्था है और अत्यंत सरल भी।कृष्ण कुमार बनाम गुरपाल सिंह के मामले में एक अनुज्ञप्तिधारी ऋणदाता ने पूर्व के हस्ताक्षरित अभिलेख पर प्रोनोट तैयार किया एवं प्रतिवादी के...
न्यायालय की अवमानना, दंड प्रक्रिया और माफी – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 386, 387 और 388
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में न्यायालय (Court) की अवमानना (Contempt) से संबंधित विभिन्न प्रावधान शामिल हैं।धारा 384 और 385 में न्यायालय के सामने हुए अपमानजनक व्यवहार (Contemptuous Behavior) या न्यायालय के आदेश की अवहेलना (Disobedience of Court Order) पर त्वरित कार्रवाई (Immediate Action) और मामले को मजिस्ट्रेट (Magistrate) के पास भेजने की प्रक्रिया (Procedure for Forwarding) का उल्लेख किया गया है। धारा 386, 387 और 388 इन प्रावधानों को और...
अनावश्यक और विशेष स्टाम्प के लिए धनवापसी का अधिकार: धारा 54, 54A और 54B भारतीय स्टाम्प अधिनियम
भारतीय स्टैम्प अधिनियम (Indian Stamp Act) के अंतर्गत विभिन्न कानूनी और वित्तीय दस्तावेजों (Documents) पर स्टैम्प (Stamp) लगाना आवश्यक होता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि जरूरी स्टैम्प शुल्क (Stamp Duty) का भुगतान किया गया है।लेकिन कई बार ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति के पास कुछ स्टैम्प बच जाते हैं जो अब उसकी जरूरत के नहीं हैं। ये स्टैम्प न तो खराब (Spoiled) हुए होते हैं और न ही बेकार (Useless), लेकिन अब इनका कोई उपयोग नहीं है। ऐसी स्थिति में, भारतीय स्टैम्प अधिनियम की धारा 54, 54A और 54B कुछ...
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 6: मौजूदा किरायेदारी में किराया वृद्धि के नियम
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 6 (Section 6) उन संपत्तियों (Properties) के किराये में वृद्धि करने के नियमों को निर्धारित करती है जो पहले से ही किराए पर दी गई थीं।यह धारा इस बात को स्पष्ट करती है कि अगर किसी संपत्ति को इस अधिनियम के लागू होने से पहले किराए पर दिया गया था, तो उस संपत्ति का किराया (Rent) किस तरह और कितने प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। यह प्रावधान मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) दोनों के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, ताकि किसी के साथ भी अन्याय न हो। ...
क्या केवल Circumstantial Evidence से रिश्वतखोरी सिद्ध की जा सकती है?
भारत में सरकारी पदों पर भ्रष्टाचार को रोकना एक महत्वपूर्ण कानूनी और न्यायिक विषय रहा है। Prevention of Corruption Act, 1988 (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988) इस उद्देश्य से लागू किया गया था कि सरकारी अधिकारियों द्वारा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सके।लेकिन इस अधिनियम के तहत दोषसिद्धि (Conviction) के लिए अवैध लाभ की मांग और स्वीकार करने का प्रमाण (Proof) देना हमेशा एक चुनौती रहा है। Neeraj Dutta बनाम राज्य (GNCTD) (2022) मामले ने यह स्पष्ट किया कि क्या केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य...
NI Act में बैंकर की डेफिनेशन
NI Act में बैंकर की डेफिनेशन दी गयी है जहां बैंकर से मतलब होता है-“बैंककार" के अन्तर्गत बैंककार के तौर पर कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति और कोई भी डाक घर बचत बैंक आता है।इस अधिनियम में और न तो बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में "बैंकर" की कोई सन्तोषजनक परिभाषा नहीं है। अधिनियम की धारा 3 में इसे परिभाषित किया गया है "बैंकर" सम्मिलित करता है:-कोई व्यक्ति जो बैंकर के समान कार्य करता है, औरकिसी पोस्ट आफिस सेविंग बैंकएक बैंकर के निम्नलिखित चार कार्यों को आवश्यक माना हैजमा धन लेनाचालू खाता लेनाचेकों का...
NI Act के बारे में जानिए
Negotiable Instrument Act जिसे हिंदी में Negotiable Instrument Act कहा जाता है। परक्राम्य का अर्थ है हस्तांतरण तथा लिखत का अर्थ है कोई भी लिखित दस्तावेज। कोई भी ऐसा लिखित दस्तावेज जिसका हस्तांतरण किया जा सकता है उसे परक्राम्य लिखत कहा जा सकता है परंतु इस अधिनियम के अंतर्गत परक्राम्य लिखत केवल तीन चीजों को माना गया है। पहला वचन पत्र, दूसरा विनिमय पत्र तथा तीसरा चेक। इन तीनों दस्तावेजों को परक्राम्य लिखत माना गया है तथा इस समस्त अधिनियम में इन तीनों दस्तावेज से संबंधित प्रावधानों को ही प्रस्तुत...
जब न्यायालय मामले को धारा 384 के तहत निपटाने योग्य नहीं समझता – धारा 385, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) एक गंभीर अपराध (Serious Offence) है जो न्याय प्रक्रिया (Judicial Process) को बाधित करता है और न्यायपालिका (Judiciary) के अधिकार को चुनौती देता है।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 384 एक त्वरित प्रक्रिया (Summary Procedure) प्रदान करती है जिसके तहत यदि न्यायालय की उपस्थिति में कोई अवमानना होती है, तो न्यायालय तुरंत कार्रवाई कर सकता है। लेकिन कुछ ऐसे मामले होते हैं जहाँ न्यायालय यह महसूस करता है कि केवल...
गलत उपयोग और खराब हुए स्टैम्प पर रियायत: भारतीय स्टाम्प अधिनियम की धारा 52 और 53
भारतीय स्टाम्प अधिनियम (Indian Stamp Act) में विभिन्न कानूनी और वित्तीय दस्तावेजों के लिए स्टाम्प (Stamp) के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं।कई बार लोग अनजाने में गलत स्टाम्प का उपयोग कर लेते हैं, जैसे कि किसी दस्तावेज़ पर गलत प्रकार का स्टाम्प लगाना, आवश्यकता से अधिक मूल्य का स्टाम्प लगाना, या ऐसे दस्तावेज़ पर स्टाम्प लगाना, जिस पर कोई स्टाम्प शुल्क (Stamp Duty) लागू नहीं होता। ऐसे मामलों में, धारा 52 के तहत राहत दी जाती है, जिससे व्यक्ति को आर्थिक नुकसान न हो और...


















