सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: वैक्सीन अनिवार्यता और संवैधानिक अधिकारों पर जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ

Himanshu Mishra

12 Sep 2024 12:33 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: वैक्सीन अनिवार्यता और संवैधानिक अधिकारों पर जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ

    जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई 2022 को वैक्सीन अनिवार्यता (Vaccine Mandates) और इससे जुड़े संवैधानिक मुद्दों पर फैसला सुनाया। डॉ. जैकब पुलियेल, जो नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (NTAGI) के पूर्व सदस्य हैं, ने वैक्सीन अनिवार्यता को चुनौती दी थी।

    उन्होंने COVID-19 वैक्सीन के ट्रायल डेटा में अधिक पारदर्शिता (Transparency) की मांग की और बिना जानकारी के सहमति (Informed Consent) के वैक्सीन अनिवार्यता की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया। यह मामला मुख्य रूप से अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(g) (व्यवसाय, व्यापार और पेशे की स्वतंत्रता) के साथ-साथ गोपनीयता के अधिकार (Right to Privacy) की व्याख्या से संबंधित था।

    जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ मामला इस बात को रेखांकित करता है कि महामारी के दौरान व्यक्तिगत अधिकारों और जन स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिगत स्वायत्तता और गोपनीयता के अधिकार को मान्यता दी, लेकिन साथ ही सरकार के अधिकार को भी स्वीकार किया कि वह सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उचित प्रतिबंध लगा सकती है।

    मामले के तथ्य (Facts of the Case)

    याचिकाकर्ता (Petitioner), डॉ. जैकब पुलियेल, एक प्रसिद्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ (Public Health Expert), ने भारतीय सरकार के COVID-19 वैक्सीनेशन अभियान के निर्णयों को चुनौती दी।

    उन्होंने कहा कि आपातकालीन उपयोग की मंजूरी (Emergency Use Authorization) प्राप्त वैक्सीन पर और अधिक जांच की आवश्यकता है और ट्रायल डेटा सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि लोग सही निर्णय ले सकें। उन्होंने यह भी दावा किया कि वैक्सीन अनिवार्यता, विशेषकर बिना जानकारी के सहमति के, व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) का उल्लंघन करती है।

    याचिकाकर्ता ने अदालत से निम्नलिखित राहत की मांग की:

    1. भारत में दी जा रही वैक्सीन के ट्रायल के अलग-अलग चरणों का डेटा सार्वजनिक किया जाए।

    2. मंजूरी प्रक्रिया (Approval Process) में पारदर्शिता लाई जाए, खासकर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) द्वारा लिए गए निर्णयों के संबंध में।

    3. टीकाकरण के बाद होने वाले प्रतिकूल घटनाओं (Adverse Events Following Immunization, AEFI) का डेटा सार्वजनिक किया जाए।

    4. यह घोषित किया जाए कि वैक्सीन अनिवार्यता नागरिकों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लंघन है और असंवैधानिक (Unconstitutional) है।

    प्रमुख संवैधानिक प्रावधान (Key Constitutional Provisions)

    1. अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Life and Personal Liberty)

    डॉ. पुलियेल ने तर्क दिया कि वैक्सीन को अनिवार्य बनाने से जीवन के अधिकार का उल्लंघन होता है, जिसमें व्यक्तिगत स्वायत्तता (Bodily Autonomy) और शारीरिक अखंडता (Bodily Integrity) भी शामिल है। उनका कहना था कि किसी भी चिकित्सा उपचार (Medical Treatment) को अनिवार्य रूप से लागू करना, बिना व्यक्ति की सहमति के, अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकार का हनन होगा।

    2. अनुच्छेद 19(1)(g) – व्यवसाय की स्वतंत्रता (Right to Freedom of Occupation)

    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंध, जैसे कि सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों में बिना टीकाकरण के प्रवेश की मनाही, व्यक्तियों की पेशेवर स्वतंत्रता (Professional Freedom) का उल्लंघन करती है। उनका तर्क था कि यह अनावश्यक और असंगत था, क्योंकि वैक्सीनेटेड लोग भी वायरस को फैला सकते हैं।

    3. गोपनीयता का अधिकार – अनुच्छेद 21 का हिस्सा (Right to Privacy – A Component of Article 21)

    याचिकाकर्ता ने जोर दिया कि गोपनीयता का अधिकार, जिसे के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में मान्यता दी गई थी, चिकित्सा उपचार को अस्वीकार करने के अधिकार को भी शामिल करता है। बिना जानकारी के सहमति के कोई भी अनिवार्य टीकाकरण इस अधिकार का उल्लंघन होगा।

    याचिकाकर्ता के तर्क (Arguments by the Petitioner)

    डॉ. पुलियेल का मुख्य तर्क चिकित्सा उपचार में "जानकारी के साथ सहमति" (Informed Consent) के सिद्धांत पर आधारित था, जो चिकित्सा नैतिकता (Medical Ethics) का एक मूलभूत हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आपातकालीन उपयोग की मंजूरी वाले टीकों ने सामान्य परीक्षण प्रक्रिया को पूरी तरह से नहीं अपनाया और ट्रायल डेटा की पारदर्शिता की कमी लोगों को सही निर्णय लेने से वंचित करती है।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि टीके संक्रमण या प्रसार को पूरी तरह से नहीं रोकते, विशेष रूप से नए वेरिएंट्स के संदर्भ में। इसलिए, उन्होंने दावा किया कि वैक्सीन अनिवार्यता तर्कहीन और असंगत (Arbitrary) थी।

    प्रतिवादी (भारत संघ) का तर्क (Arguments by the Respondent - Union of India)

    भारत संघ ने वैक्सीन अनिवार्यता का बचाव करते हुए कहा कि यह जन स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जरूरी है। सरकार ने जोर देकर कहा कि भारत ने COVID-19 से लड़ने के लिए सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया, जिसमें COVAXIN और COVISHIELD जैसी वैक्सीन शामिल थीं, जो कठोर नियामक (Regulatory) मंजूरी के बाद उपयोग में लाई गईं।

    सरकार ने यह भी कहा कि कोर्ट को सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों (Public Health Policies) में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, विशेष रूप से उन मामलों में जहां विशेषज्ञों की राय (Expert Opinion) पर आधारित निर्णय होते हैं। उनका कहना था कि वैक्सीनेशन कार्यक्रम जनस्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक था और इसे बाधित करना वैक्सीन हिचकिचाहट (Vaccine Hesitancy) को बढ़ावा देगा।

    सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)

    1. जन स्वास्थ्य नीतियों की न्यायिक समीक्षा (Judicial Review of Public Health Policies)

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि जबकि अदालत के पास नीतियों की समीक्षा का अधिकार है, खासकर जब यह मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) से जुड़ा हो, वह सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में तभी हस्तक्षेप करेगी जब वे स्पष्ट रूप से मनमानी (Manifestly Arbitrary) हों। अदालत ने महामारी की गंभीरता को स्वीकार किया और सरकार द्वारा की गई त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि ऐसे कदम संविधान के सिद्धांतों का पालन करते हुए होने चाहिए।

    2. गोपनीयता और व्यक्तिगत स्वायत्तता (Right to Privacy and Bodily Autonomy)

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क से सहमति जताई कि व्यक्तिगत स्वायत्तता (Personal Autonomy) अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है, और किसी को भी जबरन टीका नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि यह गोपनीयता के अधिकार (Right to Privacy) का उल्लंघन होगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार ने टीकाकरण को अनिवार्य नहीं किया है, बल्कि इसे स्वैच्छिक (Voluntary) रखा है।

    3. वैक्सीन अनिवार्यता और सार्वजनिक हित (Vaccine Mandates and Public Interest)

    कोर्ट ने माना कि कुछ प्रतिबंधों से व्यक्तियों की स्वतंत्रता सीमित हो सकती है, लेकिन ये प्रतिबंध व्यापक जनहित (Larger Public Interest) में लगाए गए थे। कोर्ट ने कहा कि वैक्सीन न लेने के अधिकार को जन स्वास्थ्य की सुरक्षा के दायित्व (Duty to Protect Public Health) के साथ संतुलित करना होगा।

    4. वैक्सीन ट्रायल डेटा में पारदर्शिता (Transparency in Vaccine Trials)

    कोर्ट ने यह भी माना कि पारदर्शिता महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि राज्य को ट्रायल में शामिल लोगों की गोपनीयता (Privacy) और उनके रिकॉर्ड की सुरक्षा भी करनी होगी। कोर्ट ने पाया कि सरकार ने पहले से ही पर्याप्त डेटा सार्वजनिक कर दिया है और मंजूरी के लिए वैश्विक मानकों का पालन किया है।

    फैसला (Judgment)

    सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि व्यक्तियों के पास टीकाकरण को अस्वीकार करने का अधिकार है, लेकिन राज्य के पास जन स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions) लगाने का अधिकार भी है। कोर्ट ने वैक्सीन अनिवार्यता को संवैधानिक माना, जब तक कि यह जबरन न हो और व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान किया जाए। कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश भी दिया कि टीकाकरण अभियान स्वैच्छिक रहे और अनवैक्सीनेटेड व्यक्तियों पर लगाए गए प्रतिबंधों की समय-समय पर समीक्षा की जाए।

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