अवैध हिरासत और मुआवजे पर भोलाराम कुम्हार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य केस में संवैधानिक विश्लेषण

Himanshu Mishra

13 Sep 2024 11:59 AM GMT

  • अवैध हिरासत और मुआवजे पर भोलाराम कुम्हार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य केस में संवैधानिक विश्लेषण

    भोलाराम कुम्हार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2022 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह मामला एक बलात्कार के दोषी की अवैध हिरासत (Illegal Detention) से संबंधित था, जिसे उसकी कानूनी सजा से अधिक समय तक जेल में रखा गया था।

    कोर्ट को यह तय करना था कि गलत तरीके से हुई इस कैद में संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है या नहीं, खासकर अनुच्छेद 19(1)(d) (आंदोलन की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत। कोर्ट ने माना कि दोषी को सजा पूरी करने के बाद भी जेल में रखना उसके मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लंघन है और मुआवजा (Compensation) दिया जाना चाहिए।

    भोलाराम कुम्हार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामला यह दर्शाता है कि दोषियों के मामले में भी मौलिक अधिकारों की रक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह साफ किया कि किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में नहीं रखा जा सकता, और यदि ऐसा होता है तो राज्य को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इस फैसले ने यह भी पुष्टि की कि मुआवजा ऐसे मामलों में न्याय का एक आवश्यक उपाय है, जिससे संविधान के उल्लंघन की भरपाई हो सके।

    मामले के तथ्य (Facts of the Case)

    भोलाराम कुम्हार को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 के तहत बलात्कार का दोषी ठहराया गया था और विशेष अदालत ने उन्हें 12 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। अपील पर, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 2018 में उनकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया, लेकिन दोषसिद्धि (Conviction) को बरकरार रखा। हालाँकि, 7 साल की सजा पूरी करने के बाद भी भोलाराम कुम्हार प्रशासनिक त्रुटियों (Administrative Errors) के कारण जेल में ही रहे, और उन्हें 10 साल से अधिक समय तक कैद रखा गया।

    भोलाराम कुम्हार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी रिहाई (Release) और अवैध हिरासत के लिए मुआवजे की मांग की।

    प्रमुख संवैधानिक प्रावधान (Key Constitutional Provisions)

    1. अनुच्छेद 19(1)(d) – आंदोलन की स्वतंत्रता (Freedom of Movement)

    संविधान का अनुच्छेद 19(1)(d) हर नागरिक को भारत की सीमा के भीतर स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार प्रदान करता है। भोलाराम कुम्हार की अवैध हिरासत इस मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना कानूनन अनुमति के किसी की स्वतंत्रता या आंदोलन को रोकना संविधान के खिलाफ है।

    2. अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Life and Personal Liberty)

    अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा करता है। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी भी व्यक्ति को उसकी कानूनी सजा के बाद भी अवैध रूप से हिरासत में रखना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन है। भोलाराम कुम्हार की बिना कानूनी अधिकार के निरंतर कैद उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन था।

    याचिकाकर्ता के तर्क (Arguments by the Petitioner - Bhola Kumhar)

    भोलाराम कुम्हार के वकील, अमिक्स क्यूरी (Amicus Curiae) की मदद से, ने तर्क दिया कि भोलाराम को हाई कोर्ट द्वारा दी गई सजा पूरी करने के बावजूद जेल अधिकारियों की लापरवाही के कारण बहुत अधिक समय तक जेल में रखा गया। याचिकाकर्ता ने अपनी तत्काल रिहाई और अवैध हिरासत के लिए मुआवजे की मांग की।

    वकील ने यह भी तर्क दिया कि जेल के रिकॉर्ड समय पर अपडेट न किए जाने से भोलाराम कुम्हार को मानसिक पीड़ा (Mental Anguish) हुई, और इस अवैध कार्य के लिए राज्य को मुआवजा देना चाहिए।

    राज्य का बचाव (State's Defense)

    छत्तीसगढ़ राज्य ने स्वीकार किया कि जेल के रिकॉर्ड को समय पर अपडेट नहीं किया गया था, जिससे रिहाई में देरी हुई। हालांकि, राज्य ने यह भी कहा कि यह गलती जानबूझकर नहीं थी और प्रशासनिक त्रुटि (Administrative Oversight) के कारण यह हुआ। राज्य ने यह भी तर्क दिया कि देरी का एक कारण भोलाराम कुम्हार द्वारा जुर्माना न भरना था, जिससे उनकी सजा बढ़ गई थी।

    सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)

    1. अवैध हिरासत और इसका संवैधानिक प्रभाव (Illegal Detention and Its Constitutional Impact)

    कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसकी कानूनी सजा से अधिक समय तक कैद में रखना, चाहे वह परिस्थितियां कैसी भी हों, असंवैधानिक है। यह भोलाराम कुम्हार के अनुच्छेद 19(1)(d) के तहत आंदोलन की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि कानूनन अनुमति के बिना किसी को हिरासत में रखना अस्वीकार्य है और भारतीय कानून के तहत यह अवैध है।

    2. मुआवजा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए (Compensation for Violation of Fundamental Rights)

    कोर्ट ने रुदुल साह बनाम बिहार राज्य जैसे पूर्व मामलों का हवाला दिया, जहां अवैध कैद के लिए मुआवजा दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि अवैध हिरासत के मामलों में राज्य को मुआवजा देना चाहिए ताकि पीड़ित के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन ठीक किया जा सके। इस मामले में, कोर्ट ने फैसला किया कि भोलाराम कुम्हार को लंबे समय तक अवैध रूप से कैद में रखा गया था, इसलिए उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए।

    3. राज्य की जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व (State's Liability and Responsibility)

    सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य को उसके अधिकारियों की गलतियों के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए भोलाराम कुम्हार को 7.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही, कोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि जो अधिकारी इस गलती के लिए जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने कहा कि ऐसी त्रुटियों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दोषियों को उनकी सजा पूरी करने के बाद तुरंत रिहा किया जाए।

    फैसला (Judgment)

    सुप्रीम कोर्ट ने भोलाराम कुम्हार की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, क्योंकि उन्होंने हाई कोर्ट द्वारा दी गई सजा से अधिक समय जेल में बिताया था। कोर्ट ने भोलाराम कुम्हार को अवैध हिरासत और मानसिक पीड़ा के लिए 7.5 लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया। छत्तीसगढ़ राज्य को इस गलत हिरासत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया गया।

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