साक्षी द्वारा याद ताजा करने और दस्तावेज़ों से गवाही देने के प्रावधान: BSA 2023 के अंतर्गत धारा 162 और धारा 163
Himanshu Mishra
12 Sept 2024 5:35 PM IST
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (Bhartiya Sakshya Adhiniyam, 2023) ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदल दिया है और यह 1 जुलाई 2024 से लागू हो गया है। इसमें दो महत्वपूर्ण प्रावधान हैं - धारा 162 और धारा 163। ये प्रावधान साक्षी (Witness) को गवाही के दौरान अपनी याददाश्त ताजा करने और दस्तावेज़ों (Documents) का उपयोग करने की अनुमति देते हैं। ये अदालत में गवाही की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खासकर जब साक्षी किसी विशेष घटना को याद करने में असमर्थ हो, लेकिन लिखित रिकॉर्ड से मदद ले सके।
धारा 162: साक्षी द्वारा याददाश्त ताजा करना (Refreshing Memory)
धारा 162 के अनुसार, साक्षी अपनी याददाश्त ताजा करने के लिए उस समय की लिखी किसी भी बात या दस्तावेज़ को देख सकता है, जो उसने उस घटना के समय लिखा था। यह दस्तावेज़ तब लिखा होना चाहिए जब घटना उसके दिमाग में ताजा थी। कुछ मामलों में, साक्षी किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा बनाए गए दस्तावेज़ का भी उपयोग कर सकता है, बशर्ते उसने घटना के बाद उसे पढ़कर उसकी सटीकता की पुष्टि की हो।
धारा 162 के मुख्य प्रावधान:
1. साक्षी द्वारा अपने लिखे दस्तावेज़ का उपयोग: साक्षी किसी भी लिखित नोट या दस्तावेज़ का उपयोग कर सकता है, जो उसने घटना के समय बनाया था। उदाहरण के लिए, यदि एक दुकानदार से कुछ महीने पहले हुई बिक्री के बारे में सवाल किया जा रहा है, और दुकानदार ने उस समय बिक्री का विवरण नोट किया था, तो वह गवाही के दौरान उस लिखित रिकॉर्ड का उपयोग कर सकता है।
2. दूसरे व्यक्ति द्वारा बनाए गए दस्तावेज़ का उपयोग: यदि साक्षी ने दस्तावेज़ स्वयं नहीं बनाया है, तब भी वह उसका उपयोग कर सकता है यदि उसने घटना के तुरंत बाद उसे पढ़ा हो और उसकी सटीकता की पुष्टि की हो। उदाहरण के लिए, अगर एक बिजनेस मैनेजर ने कंपनी के लेजर में किसी लेन-देन का विवरण नहीं लिखा, लेकिन उस विवरण को पढ़ा और सही पाया था, तो वह कोर्ट में उस लेजर का उपयोग अपनी याददाश्त ताजा करने के लिए कर सकता है।
3. दस्तावेज़ की कॉपी का उपयोग: साक्षी, न्यायालय की अनुमति से, दस्तावेज़ की कॉपी का भी उपयोग कर सकता है यदि मूल दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हो। लेकिन अदालत को यह संतुष्टि होनी चाहिए कि मूल दस्तावेज़ को प्रस्तुत न करने का पर्याप्त कारण है। यह तब सहायक होता है जब मूल दस्तावेज़ खो गया हो या क्षतिग्रस्त हो गया हो, लेकिन एक विश्वसनीय कॉपी मौजूद हो।
4. विशेषज्ञ साक्षी और प्रोफेशनल पुस्तकों का संदर्भ: विशेषज्ञ (Expert) जैसे डॉक्टर या इंजीनियर, अपनी याददाश्त ताजा करने के लिए अपनी फील्ड से संबंधित प्रोफेशनल किताबों का संदर्भ ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक मेडिकल एक्सपर्ट किसी जटिल सर्जरी के बारे में गवाही दे रहा है, तो वह कुछ मेडिकल पुस्तकों का उपयोग करके प्रक्रिया को समझा सकता है।
धारा 162 का उदाहरण:
कल्पना कीजिए कि एक पुलिस अधिकारी छह महीने पहले की किसी घटना की जांच के बारे में गवाही दे रहा है। उस जांच के दौरान, अधिकारी ने अपनी नोटबुक में विस्तृत नोट्स लिखे थे। अदालत में, यदि अधिकारी सभी विवरणों को याद करने में असमर्थ है, तो वह उन नोट्स का उपयोग अपनी याददाश्त ताजा करने के लिए कर सकता है।
यदि अधिकारी पुष्टि करता है कि उसने ये नोट्स उस समय लिखे थे जब घटना उसकी याद में ताजा थी, तो वह उनका उपयोग करके सटीक गवाही दे सकता है। इसी प्रकार, यदि कोई दूसरा अधिकारी ने ये नोट्स बनाए थे और गवाही देने वाले अधिकारी ने उन्हें पढ़कर सही पाया था, तो वह दस्तावेज़ को अपनी याददाश्त ताजा करने के लिए उपयोग कर सकता है।
धारा 163: दस्तावेज़ों में उल्लिखित तथ्यों पर गवाही (Testifying to Facts in Documents)
धारा 163 के अंतर्गत, साक्षी किसी दस्तावेज़ में उल्लिखित तथ्यों के बारे में गवाही दे सकता है, भले ही उसे उन तथ्यों की विशेष याद न हो। लेकिन साक्षी को यह विश्वास होना चाहिए कि दस्तावेज़ में दर्ज किए गए तथ्य सही हैं। यह प्रावधान तब सहायक होता है जब साक्षी घटना के विवरण को भूल गया हो, लेकिन जानता हो कि उसने या किसी और ने रिकॉर्ड सही बनाया था।
धारा 163 के मुख्य प्रावधान:
1. विशेष याद न होने पर भी गवाही: साक्षी दस्तावेज़ में दर्ज तथ्यों के बारे में गवाही दे सकता है, भले ही उसे विशेष रूप से घटना याद न हो, बशर्ते वह इस बात पर विश्वास करे कि दस्तावेज़ में दर्ज तथ्य सही हैं। यह सुनिश्चित करता है कि महत्वपूर्ण जानकारी केवल इसलिए खो न जाए क्योंकि साक्षी घटना को समय के साथ भूल चुका है।
2. रिकॉर्ड की सटीकता पर विश्वास: साक्षी को यह विश्वास होना चाहिए कि उसने जिस दस्तावेज़ का उल्लेख किया है, वह सही तरीके से बनाया गया था। उदाहरण के लिए, एक बहीखाता (Bookkeeper) जो नियमित रूप से व्यावसायिक लेन-देन का रिकॉर्ड रखता है, भले ही किसी विशेष लेन-देन को याद न करे, वह गवाही दे सकता है क्योंकि उसे विश्वास है कि दस्तावेज़ सही थे।
धारा 163 का उदाहरण:
मान लीजिए कि एक कंपनी का अकाउंटेंट दो साल पहले हुए वित्तीय लेन-देन के बारे में गवाही दे रहा है। अकाउंटेंट को अब हर लेन-देन की विशेष जानकारी याद नहीं है, लेकिन उसे यह विश्वास है कि उसने सही तरीके से रिकॉर्ड रखा था क्योंकि कंपनी ने सख्त अकाउंटिंग प्रक्रियाओं का पालन किया था। भले ही अकाउंटेंट को प्रत्येक लेन-देन विशेष रूप से याद न हो, वह कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड का उपयोग कर सही जानकारी प्रदान कर सकता है, बशर्ते उसे विश्वास हो कि रिकॉर्ड सही थे।
धारा 163 की व्याख्या:
मान लीजिए कि एक बहीखाता रखने वाला (Bookkeeper) व्यवसाय की पुस्तकों में लेन-देन दर्ज करता है। वह अब इन लेन-देन को विशेष रूप से याद नहीं कर सकता, लेकिन वह जानता है कि व्यापार के लेन-देन की पुस्तकें सही रखी जाती थीं। बहीखाता रखने वाला गवाही दे सकता है, भले ही उसे खुद वह लेन-देन याद न हो। मुख्य बात यह है कि वह अपने द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड की सटीकता पर विश्वास करता है।
न्यायिक प्रक्रिया में धारा 162 और 163 का महत्व
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 162 और 163 साक्षियों को सटीक गवाही देने में मदद करती हैं, भले ही उन्हें घटना की सभी विशेष बातें याद न हों। ये प्रावधान गवाही में दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड के उपयोग की अनुमति देकर अदालत की प्रक्रिया को सटीक और विश्वसनीय बनाते हैं। ये प्रावधान विशेष रूप से जटिल मामलों में महत्वपूर्ण होते हैं, जहां साक्षी कई घटनाओं या लेन-देन से जुड़े होते हैं और समय के साथ उन्हें भूल सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर, एक बड़े वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में, कंपनी का अकाउंटेंट सैकड़ों लेन-देन के बारे में गवाही दे सकता है। यह उम्मीद करना असंभव है कि अकाउंटेंट को हर लेन-देन का विशेष रूप से स्मरण हो। लेकिन कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड का संदर्भ लेकर वह विश्वसनीय जानकारी दे सकता है।
धारा 162 और 163 साक्षियों को अपनी गवाही के दौरान सटीकता बनाए रखने के लिए दस्तावेज़ों का उपयोग करने की अनुमति देती हैं। ये प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत करने में मदद करते हैं, यहां तक कि जब साक्षी अपनी याददाश्त पर भरोसा नहीं कर सकते। यह कानून रिकॉर्ड रखने के महत्व को भी उजागर करता है और कानूनी कार्यवाही में दस्तावेज़ों की भूमिका को स्पष्ट करता है।