BSA 2023 की धारा 161 : धारा 26 और 27 के अंतर्गत आने वाले बयानों का उपयोग किस प्रकार कानूनी प्रक्रिया में किया जा सकता है

Himanshu Mishra

11 Sep 2024 12:01 PM GMT

  • BSA 2023 की धारा 161 : धारा 26 और 27 के अंतर्गत आने वाले बयानों का उपयोग किस प्रकार कानूनी प्रक्रिया में किया जा सकता है

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bhartiya Sakshya Adhiniyam) ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) को प्रतिस्थापित (Replaced) किया है और यह 1 जुलाई 2024 से प्रभावी (Effective) हो गया है। इस कानून की एक महत्वपूर्ण धारा 161 है, जो बताती है कि धारा 26 और 27 के अंतर्गत आने वाले बयानों (Statements) का उपयोग किस प्रकार कानूनी प्रक्रिया (Legal Proceedings) में किया जा सकता है।

    धारा 161 को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह स्पष्ट करती है कि गवाही (Testimony) देने के लिए उपस्थित न हो सकने वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए बयानों को किस प्रकार न्यायिक निर्णय (Judicial Decision) में लिया जा सकता है। धारा 161 को पूरी तरह समझने के लिए, हमें धारा 26 और 27 को भी समझना होगा, क्योंकि ये धाराएं उन नियमों को आधार प्रदान करती हैं, जिनसे ऐसे व्यक्तियों के बयानों से संबंधित साक्ष्य (Evidence) को स्वीकार किया जाता है।

    धारा 161, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 यह सुनिश्चित करती है कि जो व्यक्ति अदालत में गवाही देने के लिए उपस्थित नहीं हो सकते, उनके बयानों को उसी तरह से जांचा जाएगा जैसे वे अदालत में उपस्थित होते। धारा 26 और 27 के संदर्भ में, धारा 161 यह सुनिश्चित करती है कि बयानों को केवल स्वीकार नहीं किया जाएगा, बल्कि उन पर गंभीरता से विचार किया जाएगा और अन्य साक्ष्यों के साथ उनकी पुष्टि (Verification) या खंडन किया जा सके। इस प्रकार, धारा 161 न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता (Fairness) और पारदर्शिता (Transparency) को बढ़ावा देती है।

    धारा 161: गवाह के रूप में उपस्थित न हो सकने वाले व्यक्तियों के बयानों का सिद्ध होना

    धारा 161, भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार, जब धारा 26 या 27 के तहत कोई बयान (Statement) अदालत (Court) में पेश किया जाता है, तो सभी प्रासंगिक (Relevant) तथ्यों को सिद्ध किया जा सकता है। इसमें उस बयान का खंडन (Contradict) करने या उसे समर्थन (Corroborate) देने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करना भी शामिल है।

    इसके अतिरिक्त, अदालत को यह अधिकार भी है कि वह उस व्यक्ति की विश्वसनीयता (Credibility) को भी परखे जिसने बयान दिया है, चाहे वह व्यक्ति अदालत में उपस्थित हो या नहीं।

    सरल शब्दों में, अगर किसी व्यक्ति ने कोई बयान दिया है लेकिन वह गवाही देने के लिए अदालत में उपस्थित नहीं हो सकता, तो अदालत उस बयान की जांच करने के लिए अन्य तथ्यों का उपयोग कर सकती है। इसके साथ ही, अदालत उस व्यक्ति की विश्वसनीयता की भी जांच कर सकती है जिसने बयान दिया था, यह जानने के लिए कि क्या वह भरोसेमंद (Trustworthy) है या नहीं।

    धारा 161 का मुख्य बिंदु यह है कि बयान की जांच या समर्थन उसी प्रक्रिया के अनुसार की जाएगी, जैसे कि बयान देने वाला व्यक्ति अदालत में उपस्थित होता और उस पर प्रतिपरीक्षा (Cross-Examination) होती। भले ही व्यक्ति गवाह के रूप में उपस्थित न हो सके, फिर भी उसके बयान को उसी कठोर प्रक्रिया (Rigorous Process) से गुजारा जाएगा।

    धारा 26: गवाह न बुलाए जा सकने वाले व्यक्तियों के बयान (Statements by Persons Who Cannot Be Called as Witnesses)

    धारा 26, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 उन परिस्थितियों से संबंधित है जब किसी मृत व्यक्ति, लापता व्यक्ति, या जो व्यक्ति गवाही देने में असमर्थ (Incapable) हो, उनके द्वारा दिए गए बयान प्रासंगिक (Relevant) माने जाते हैं। यह धारा उन विशेष मामलों का विवरण देती है जहां ऐसे बयानों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है।

    इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

    1. मृत्यु का कारण (Cause of Death): यदि किसी व्यक्ति ने अपनी मृत्यु के कारण या मृत्यु से संबंधित परिस्थितियों के बारे में कोई बयान दिया है, तो वह बयान उस व्यक्ति की मृत्यु से संबंधित कानूनी प्रक्रिया में प्रासंगिक होता है। यह तब भी प्रासंगिक होता है जब बयान देने वाला व्यक्ति मृत्यु की आशंका में नहीं था।

    2. व्यवसाय की सामान्य प्रक्रिया में बयान (Ordinary Course of Business): व्यवसाय (Business) के दौरान किए गए बयान, जैसे कि बही-खाते (Books) में प्रविष्टियां (Entries), या धन या संपत्ति की रसीदें (Receipts) आदि, प्रासंगिक माने जाते हैं।

    3. व्यक्ति के हित के खिलाफ बयान (Against Self-Interest): यदि किसी व्यक्ति ने कोई ऐसा बयान दिया है जो उसके वित्तीय हित (Pecuniary Interest) के खिलाफ हो, या जो उसे किसी अपराध (Criminal Prosecution) के लिए उत्तरदायी (Liable) बना सकता है, तो वह बयान प्रासंगिक होता है।

    4. सार्वजनिक अधिकार या प्रथा पर बयान (Public Rights or Customs): सार्वजनिक अधिकार (Public Right) या प्रथाओं (Customs) के संबंध में किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए बयान, जो विवाद (Controversy) से पहले दिए गए थे, प्रासंगिक होते हैं।

    5. पारिवारिक संबंध (Family Relations): रक्त (Blood), विवाह (Marriage) या गोद (Adoption) के संबंधों से संबंधित बयान, जो विवाद से पहले दिए गए हों और बयान देने वाले व्यक्ति को इस संबंध में विशेष जानकारी (Special Knowledge) हो, प्रासंगिक होते हैं।

    6. पारिवारिक दस्तावेज (Family Documents): किसी वसीयत (Will), वंशावली (Pedigree) या पारिवारिक चित्र (Family Portrait) में किए गए बयान प्रासंगिक होते हैं, खासकर जब वे विवाद उठने से पहले किए गए हों।

    7. व्यावसायिक दस्तावेज़ (Commercial Documents): किसी वाणिज्यिक (Commercial) दस्तावेज, जैसे कि वसीयत या अनुबंध (Deed) में किए गए बयान प्रासंगिक होते हैं।

    8. सामूहिक भावनाओं (Collective Feelings) का बयान: कई व्यक्तियों द्वारा सामूहिक रूप से की गई भावनात्मक अभिव्यक्तियां (Expressions) भी प्रासंगिक मानी जाती हैं।

    धारा 26 यह आधार प्रदान करती है कि अदालत उन बयानों को कैसे स्वीकार कर सकती है जो सामान्य स्थिति में सुनी-सुनाई बात (Hearsay) मानी जाती हैं। इन बयानों को इसलिए स्वीकार किया जाता है क्योंकि वे विशेष परिस्थितियों में दिए गए हैं।

    धारा 27: न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceedings) में पूर्व में दिए गए बयानों का साक्ष्य

    धारा 27, धारा 26 पर आधारित है और यह उन मामलों से संबंधित है जहां गवाह ने पहले किसी न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) में बयान दिया था लेकिन अब उपलब्ध नहीं है। यदि कोई गवाह पहले किसी न्यायिक प्रक्रिया में गवाही दे चुका है और अब मृत हो गया है, गवाही देने में असमर्थ हो गया है, या प्रतिपक्ष (Adverse Party) द्वारा रोक दिया गया है, तो वह गवाही (Testimony) बाद के न्यायिक कार्यवाही (Subsequent Judicial Proceedings) में भी इस्तेमाल की जा सकती है।

    परंतु इसके लिए कुछ शर्तें होती हैं:

    1. वही पक्ष (Same Parties) या उनके प्रतिनिधि (Representatives): पहली प्रक्रिया में वही पक्षकार (Parties) या उनके प्रतिनिधि (Representatives) होने चाहिए।

    2. प्रतिपरीक्षा (Cross-Examination) का अवसर: पहली प्रक्रिया में प्रतिपक्ष (Adverse Party) को गवाह से प्रतिपरीक्षा (Cross-Examination) करने का अधिकार और अवसर मिला हो।

    3. समान मुद्दे (Same Issues): पहली प्रक्रिया और दूसरी प्रक्रिया में मुख्य प्रश्न (Issues) समान होने चाहिए।

    यह धारा सुनिश्चित करती है कि यदि एक गवाह ने पहले किसी कानूनी प्रक्रिया में गवाही दी है और वह गवाही किसी अन्य मामले में प्रासंगिक (Relevant) है, तो अदालत उसे स्वीकार कर सकती है, भले ही गवाह अब उपलब्ध न हो। यह दोनों पक्षों के अधिकारों (Rights) की रक्षा करती है और न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) को पारदर्शी (Transparent) बनाए रखती है।

    धारा 26 और 27 का धारा 161 से संबंध

    धारा 26 और 27 के प्रावधान धारा 161 के अनुप्रयोग (Application) का आधार प्रदान करते हैं। जब कोई बयान, जिसे देने वाला व्यक्ति अदालत में उपस्थित नहीं हो सकता, प्रस्तुत किया जाता है, तो धारा 161 अदालत को यह अधिकार देती है कि वह अन्य साक्ष्यों (Evidence) के आधार पर उस बयान का खंडन (Contradict) या समर्थन (Corroborate) कर सके। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे बयानों को गंभीरता (Seriousness) से लिया जाए और उनकी सत्यता (Truthfulness) की जांच की जाए।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति ने धारा 26 के तहत अपने मृत्यु के कारण के बारे में कोई बयान दिया है, और वह बयान अदालत में पेश किया जाता है, तो धारा 161 दूसरी पार्टी को इस बयान का खंडन या समर्थन करने के लिए अन्य साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति देती है। इसी तरह, अगर किसी गवाह ने पहले किसी मामले में गवाही दी थी, और वह गवाही अब प्रस्तुत की जा रही है, तो धारा 161 यह सुनिश्चित करती है कि दोनों पक्ष उस गवाही की सत्यता पर सवाल उठा सकें या उसका समर्थन कर सकें।

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