सुप्रीम कोर्ट का “होटल प्रिया” केस पर फैसला: व्यवसाय के अधिकार और जेंडर आधारित प्रतिबंधों पर कानूनी विश्लेषण
Himanshu Mishra
11 Sept 2024 5:44 PM IST
होटल प्रिया, ए प्रॉप्रीटर्शिप बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी 2022 को एक अहम फैसला सुनाया। यह मामला महाराष्ट्र सरकार द्वारा मनोरंजन स्थलों (Entertainment Venues) पर लगाए गए जेंडर आधारित प्रतिबंधों से संबंधित था, खासकर जहां कलाकारों की संख्या और उनके जेंडर को सीमित किया गया था। अदालत ने इस मामले में सार्वजनिक नैतिकता (Public Morality), महिलाओं की गरिमा (Dignity of Women), और संविधान के तहत दिए गए अधिकारों का संतुलन बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया, खासकर संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत मिलने वाले अधिकारों पर।
होटल प्रिया मामला यह दर्शाता है कि सार्वजनिक नैतिकता और संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह दोहराया कि राज्य के पास व्यवसायों को सार्वजनिक नैतिकता के हित में नियंत्रित करने का अधिकार है, लेकिन यह नियंत्रण तार्किक, गैर-मनमाना (Non-Arbitrary) और संवैधानिक सिद्धांतों (Constitutional Principles) पर आधारित होना चाहिए।
मामले के तथ्य (Facts of the Case)
अपीलकर्ता (Appellants) मुंबई में ऑर्केस्ट्रा बार (Orchestra Bars) के मालिक या संचालक थे, जहां कलाकार नियमित रूप से लाइव प्रदर्शन करते थे। 2009 में, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम 1951 (Maharashtra Police Act, 1951) और मनोरंजन के नियम, 1960 (Licensing and Performance Rules, 1960) के तहत, पुलिस आयुक्त ने ऑर्केस्ट्रा बारों पर कुछ अतिरिक्त शर्तें लागू कीं। इनमें से एक शर्त थी कि केवल चार पुरुष और चार महिला कलाकारों को ही प्रदर्शन की अनुमति होगी।
इस शर्त को अपीलकर्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि यह शर्त संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत उनके व्यवसाय करने के अधिकार (Right to Business) का उल्लंघन करती है। साथ ही, यह अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के अधिकार (Equality Before Law) का भी उल्लंघन है, क्योंकि यह प्रतिबंध किसी तार्किक आधार पर नहीं था।
प्रमुख संवैधानिक प्रावधान (Key Constitutional Provisions)
1. अनुच्छेद 19(1)(g) - व्यवसाय करने का अधिकार (Right to Business)
अपीलकर्ताओं का तर्क था कि कलाकारों की संख्या और उनके जेंडर को सीमित करना उनके व्यवसाय करने के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ऑर्केस्ट्रा एक कलात्मक प्रदर्शन (Artistic Performance) है, और कलाकारों की संख्या और जेंडर पर प्रतिबंध लगाना उनके पेशे को स्वतंत्र रूप से करने के अधिकार को बाधित करता है।
2. अनुच्छेद 14 - कानून के समक्ष समानता (Equality Before Law)
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि जेंडर के आधार पर लगाए गए इस प्रतिबंध से उनके साथ भेदभाव हो रहा है, जो अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि कलाकारों की संख्या और जेंडर को सीमित करने का कोई तार्किक आधार नहीं था और यह प्रतिबंध मनमाना (Arbitrary) था।
3. अनुच्छेद 19(6) - तार्किक प्रतिबंध (Reasonable Restrictions)
राज्य ने यह प्रतिबंध अनुच्छेद 19(6) के तहत उचित माना, जो सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order), शिष्टाचार (Decency), या नैतिकता (Morality) के हित में व्यवसाय करने पर तार्किक प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है। राज्य ने कहा कि यह प्रतिबंध महिलाओं के शोषण को रोकने और सार्वजनिक नैतिकता बनाए रखने के लिए आवश्यक था।
अपीलकर्ताओं के तर्क (Arguments by the Appellants)
अपीलकर्ताओं का मुख्य तर्क यह था कि कलाकारों की संख्या और विशेष रूप से जेंडर को चार पुरुष और चार महिलाओं तक सीमित करना उनके व्यवसाय पर एक अनुचित प्रतिबंध (Unreasonable Limitation) है। उन्होंने कहा कि ऑर्केस्ट्रा में कलाकारों की संख्या और जेंडर की संरचना (Composition) कलात्मक आवश्यकताओं (Artistic Needs) के आधार पर तय की जाती है। ऐसे कड़े प्रतिबंध से पूरी तरह पुरुषों या महिलाओं के समूहों को प्रदर्शन करने से रोका जाएगा, जो कलाकारों और आयोजकों के अधिकारों का उल्लंघन है।
अपीलकर्ताओं ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम (Maharashtra Police Act) और नियम 1960 में जेंडर आधारित किसी भी तरह की सीमा का उल्लेख नहीं था, और यह प्रतिबंध कानून के दायरे से बाहर था।
राज्य का बचाव (State's Defense)
महाराष्ट्र राज्य ने इन प्रतिबंधों का बचाव करते हुए कहा कि यह सार्वजनिक नैतिकता (Public Morality) और महिलाओं की सुरक्षा (Safety of Women) के हित में था। राज्य का तर्क था कि ऑर्केस्ट्रा बार, जिन्हें पहले डांस बार के रूप में जाना जाता था, अक्सर अश्लीलता (Obscenity) और अनैतिक गतिविधियों (Immoral Activities) के स्थान थे। महिलाओं के शोषण (Exploitation) को रोकने के लिए, महिला कलाकारों की संख्या को सीमित करना आवश्यक था।
राज्य ने यह भी कहा कि ये प्रतिबंध अनुच्छेद 19(6) के तहत उचित हैं, क्योंकि ये सार्वजनिक नैतिकता बनाए रखने और महिलाओं की गरिमा की रक्षा के लिए जरूरी थे।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)
सुप्रीम कोर्ट ने यह तय करने की जरूरत महसूस की कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध संविधान के तहत उचित थे या नहीं। अदालत ने निम्नलिखित बिंदुओं पर गौर किया:
1. व्यवसाय करने का अधिकार (Right to Business under Article 19(1)(g))
कोर्ट ने यह दोहराया कि व्यवसाय करने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है, लेकिन इसे अनुच्छेद 19(6) के तहत उचित प्रतिबंधों (Reasonable Restrictions) के अधीन रखा जा सकता है। हालांकि, अदालत ने जोर दिया कि ऐसे प्रतिबंध तार्किक होने चाहिए और मनमाने नहीं होने चाहिए। अदालत ने पाया कि कलाकारों की संख्या और जेंडर को सीमित करने का सार्वजनिक नैतिकता से कोई तार्किक संबंध नहीं है।
2. अनुच्छेद 14 और जेंडर आधारित भेदभाव (Article 14 and Gender-Based Discrimination)
अदालत ने देखा कि कलाकारों की संख्या और जेंडर पर आधारित प्रतिबंध पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण (Discriminatory) था। अदालत ने इसे जेंडर के आधार पर कलाकारों को सीमित करने वाला बताया और इसे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना। अदालत ने यह भी कहा कि जेंडर आधारित प्रतिबंधों को सावधानीपूर्वक जांचने की जरूरत है, और राज्य ने ऐसा करने के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया।
3. सार्वजनिक नैतिकता और महिलाओं की गरिमा (Public Morality and Women's Dignity)
राज्य ने तर्क दिया था कि यह प्रतिबंध महिलाओं की गरिमा की रक्षा के लिए आवश्यक है। अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि महिला कलाकारों की संख्या को सीमित करना शोषण को रोकने का सही तरीका नहीं है। इसके बजाय, राज्य को एक ऐसा ढांचा तैयार करना चाहिए जो महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा को सुनिश्चित करे, बिना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किए।
न्यायालय का निर्णय (Judgment)
सुप्रीम कोर्ट ने जेंडर आधारित प्रतिबंध को असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित करते हुए इसे रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि कलाकारों की कुल संख्या को आठ तक सीमित करना तार्किक है, लेकिन इस बात को तय करना कि कितने पुरुष और कितनी महिलाएं हों, आयोजकों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। यह प्रतिबंध अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19(1)(g) का उल्लंघन है।
अदालत ने राज्य को याद दिलाया कि समग्र प्रतिबंध लगाने के बजाय, उसे ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जो महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करे। राज्य को ऐसे कदम उठाने चाहिए जो अश्लीलता और शोषण को सीधे तौर पर रोकें, बजाय इसके कि वे जेंडर आधारित प्रतिबंधों के रूप में सामने आएं।