समाज में विभाजन और देश की एकता को खतरे में डालना : BNS, 2023 की धारा 196 और 197

Himanshu Mishra

16 Sept 2024 6:16 PM IST

  • समाज में विभाजन और देश की एकता को खतरे में डालना : BNS, 2023 की धारा 196 और 197

    भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो कि भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की जगह लेकर आई है, ने कई ऐसे प्रावधान जोड़े हैं जो देश में सौहार्द और सुरक्षा के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए हैं। इसमें धारा 196 और 197 विशेष रूप से उन अपराधों को कवर करती हैं, जो समाज में विभाजन और देश की एकता को खतरे में डालते हैं। ये प्रावधान 1 जुलाई 2024 से लागू हो चुके हैं। इस लेख में हम इन धाराओं के विस्तृत प्रावधानों को सरल हिंदी में समझेंगे और उनके उदाहरण भी देंगे।

    धारा 196: असामंजस्य (Disharmony) और घृणा फैलाना

    (1) अपराध के आधार: धारा 196(1) के तहत, कोई व्यक्ति अगर बोलकर, लिखकर, संकेतों, दृश्य प्रतिनिधित्व, electronic communication (इलेक्ट्रॉनिक संचार) या किसी भी अन्य तरीके से धर्म, जाति, भाषा, नस्ल या समुदाय के आधार पर असामंजस्य (Disharmony), दुश्मनी, घृणा या वैर (Hatred) को बढ़ावा देता है या बढ़ाने का प्रयास करता है, तो उसे अपराधी माना जाएगा।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से एक भाषण देता है जिसमें वह किसी धार्मिक या जातीय समूह को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाता है, और इसका उद्देश्य अन्य समूहों के साथ वैरभाव उत्पन्न करना है, तो उसे इस धारा के तहत दंडित किया जा सकता है। इसी तरह, अगर कोई सोशल मीडिया पर किसी भाषा या क्षेत्रीय समुदाय के खिलाफ नफरत भरे संदेश फैलाता है, तो वह भी धारा 196(1)(a) के अंतर्गत अपराधी होगा।

    (2) सौहार्द के खिलाफ कार्य: धारा 196(1)(b) के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो विभिन्न समूहों के बीच सौहार्द (Harmony) को बाधित करता है या सार्वजनिक शांति (Public Tranquillity) को भंग करता है या करने की संभावना होती है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत दंडित किया जाएगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति एक विरोध प्रदर्शन आयोजित करता है जिसका उद्देश्य दो समुदायों के बीच हिंसा को भड़काना है, और यह उस क्षेत्र में अशांति फैलाने का कारण बनता है, तो उस पर धारा 196(1)(b) लागू होगी।

    (3) हिंसक गतिविधियों का आयोजन: धारा 196(1)(c) के तहत, अगर कोई व्यक्ति ऐसा अभ्यास (Exercise), आंदोलन (Movement), या ड्रिल (Drill) आयोजित करता है या उसमें भाग लेता है जिसका उद्देश्य प्रतिभागियों को आपराधिक बल (Criminal Force) या हिंसा का उपयोग सिखाना या ट्रेनिंग देना होता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा।

    उदाहरण के लिए, अगर कोई समूह एक मिलिट्री-प्रकार की ड्रिल आयोजित करता है जिसमें एक विशेष धार्मिक समूह पर हमले की ट्रेनिंग दी जाती है, और इससे उस समूह में डर या असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है, तो आयोजक और प्रतिभागी दोनों ही इस धारा के अंतर्गत दंडित किए जाएंगे।

    अपराध की सजा: धारा 196(1) के अंतर्गत किसी भी प्रकार के अपराध के लिए सजा तीन साल तक की कैद, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं, यह अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है।

    धार्मिक स्थलों पर अपराध: अगर यह अपराध किसी धार्मिक स्थल या धार्मिक आयोजन के दौरान किया जाता है, तो सजा अधिक सख्त हो जाती है। धारा 196(2) के तहत, अपराधी को पांच साल तक की कैद और जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि धार्मिक स्थलों की पवित्रता सुरक्षित रहे।

    धारा 197: भारत की संप्रभुता (Sovereignty) और अखंडता के खिलाफ कार्य

    (1) अपराध के आधार: धारा 197(1) का मुख्य उद्देश्य भारत की संप्रभुता और अखंडता (Integrity) की रक्षा करना है। यदि कोई व्यक्ति, बोलकर, लिखकर, संकेतों द्वारा या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा यह कहता है कि किसी विशेष वर्ग (जैसे धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के आधार पर) के लोग भारत के संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा (Allegiance) नहीं रख सकते, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा।

    उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से कहता है कि किसी क्षेत्र विशेष के लोग भारत के संविधान के प्रति वफादार नहीं हो सकते, तो वह धारा 197(1)(a) के अंतर्गत अपराध करेगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि कोई भी किसी भी नागरिक वर्ग की देश के प्रति निष्ठा पर सवाल न उठा सके।

    (2) नागरिक अधिकारों से वंचित करना: धारा 197(1)(b) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति यह प्रचार करता है कि किसी वर्ग विशेष को उनके धर्म, जाति या भाषा के आधार पर भारत के नागरिक के अधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए, तो वह अपराधी होगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कहता है कि किसी विशेष समुदाय को वोट देने का अधिकार नहीं होना चाहिए, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करेगा।

    (3) असामंजस्य उत्पन्न करना: धारा 197(1)(c) उन लोगों को कवर करती है जो किसी विशेष वर्ग के लोगों के बीच वैमनस्य या नफरत उत्पन्न करने के उद्देश्य से अपील या सलाह देते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर किसी व्यवसाय का बहिष्कार करने की अपील करता है क्योंकि वह किसी विशेष समुदाय द्वारा चलाया जाता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।

    (4) गलत जानकारी फैलाना: यदि कोई व्यक्ति गलत या भ्रामक जानकारी फैलाता है जो भारत की संप्रभुता, एकता या सुरक्षा को खतरे में डालती है, तो वह धारा 197(1)(d) के तहत अपराधी होगा। उदाहरण के लिए, अगर कोई झूठी खबर फैलाता है कि किसी भाषा समूह के लोग देश की एकता के खिलाफ साजिश रच रहे हैं, तो उसे इस प्रावधान के तहत दंडित किया जाएगा।

    अपराध की सजा: धारा 197(1) के तहत अपराध करने पर तीन साल तक की कैद, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। यह प्रावधान भारत की एकता और अखंडता को कमजोर करने वाले कार्यों के खिलाफ कड़ा कदम उठाता है।

    धार्मिक स्थलों पर अपराध: अगर यह अपराध किसी धार्मिक स्थल या धार्मिक अनुष्ठान के दौरान किया जाता है, तो सजा और कड़ी हो जाती है। धारा 197(2) के तहत अपराधी को पांच साल तक की कैद और जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक अवसरों का दुरुपयोग करके कोई व्यक्ति समाज में विभाजन न फैला सके।

    भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 196 और 197 यह सुनिश्चित करती हैं कि भारत की विविधता और एकता की रक्षा हो और समाज में शांति बनी रहे। चाहे वह विभिन्न समूहों के बीच वैरभाव फैलाने के लिए हो, या गलत जानकारी फैलाने के लिए, या देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने के लिए, इन धाराओं के तहत सख्त सजा का प्रावधान है। आधुनिक युग में, जहां इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से अपराध बढ़ रहे हैं, ये प्रावधान ऑनलाइन गतिविधियों पर भी लागू होते हैं, जिससे यह प्रासंगिक और आवश्यक बन जाते हैं।

    इन प्रावधानों का उद्देश्य देश के सामाजिक और राष्ट्रीय ढांचे को मजबूत करना है, ताकि भारत की एकता और अखंडता को कोई खतरा न हो।

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