जानिए हमारा कानून
गरीब लोगों को कैसे मिलती है मुफ्त कानूनी सहायता
आज महंगाई के साथ कानूनी सेवाएं भी अत्यंत महंगी हो चली है। किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन काल में कई दफा अदालत का काम पड़ता है। कई लोगों पर आपराधिक प्रकरण बना दिए जाते हैं और कई लोग अपने सिविल प्रकरण लेकर अदालत के समक्ष उपस्थित होते हैं। भारत की कानूनी प्रक्रिया अत्यंत विशद है। ऐसे में कोई भी आम व्यक्ति इस प्रक्रिया को समझ नहीं सकता है। कानूनी बारीकियों को केवल एक अधिवक्ता ही समझ सकता है। फिर किसी व्यक्ति पर यदि कोई आपराधिक प्रकरण बनाया गया है तब ऐसे अपराधिक प्रकरण में सरकार की ओर से सरकारी वकील पर...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 भाग 9: संहिता की धारा 17,18, एवं 19
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 17,18 एवं 19 भी न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में उल्लेख करती है। इन तीनों धाराओं में न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में उल्लेख किया गया है। इस आलेख में इन तीनों धाराओं पर सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 17जैसा कि पहले कहा गया है कि धारा 16 ऐसे मामले से संबंधित है जहां संपत्ति एक न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में स्थित है। लेकिन क्या होगा यदि संपत्ति जो कि वाद की विषय वस्तु है, एक से अधिक न्यायालयों के क्षेत्रीय...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 8: संहिता की धारा 15 एवं 16
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 15 एवं 16 संक्षिप्त धाराएं हैं। इन धाराओं में मुकदमा संस्थित किए जाने के संबंध में प्रावधान दिए गए हैं। इस आलेख के अंतर्गत इन दोनों ही धाराओं पर सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 15संहिता की धारा 15 से 20 भारत में मुकदमा चलाने के स्थान या वाद की संस्था के लिए मंच से संबंधित है। दूसरे शब्दों में, वे सूट की संस्था के लिए मंच को विनियमित करते हैं। स्थान का अर्थ भारत में स्थान है और इन अनुभागों में संदर्भित न्यायालयों का अर्थ...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 भाग 7: संहिता में विदेशी निर्णय का अर्थ और प्रभाव
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 13 विदेशी निर्णय के संबंध में उल्लेख करती है। यह धारा विदेशी निर्णय के अर्थ के साथ उसके निष्कर्ष पर भी प्रभाव डालती है। इस आलेख के अंतर्गत विदेशी निर्णय पर टीका प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे संहिता के अंतर्गत विदेशी निर्णय को स्पष्ट किया जा सके।धारा 13 विदेशी निर्णय की निष्कर्ष से संबंधित है, अर्थात धारा 13 में प्रावधान है कि एक विदेशी निर्णय खंड में निर्दिष्ट छह मामलों को छोड़कर न्यायिक निर्णय के रूप में कार्य कर सकता है। विदेशी...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 भाग 6: संहिता में रेस ज्युडिकेटा का सिद्धांत
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 11 रेस ज्युडिकेटा (प्राङ् न्याय) से संबंधित है। यह एक अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत है जिसे विश्व के लोकतांत्रिक देशों के सिविल और आपराधिक कानूनों में शामिल किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत इस सिद्धांत पर प्रकाश डाला जा रहा है, साथ ही कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत किये जा रहे हैं।रेस ज्युडिकेटा को संहिता की धारा 11 में परिभाषित किया गया है। धारा 11 के अनुसार-"कोई न्यायालय किसी ऐसे वाद अथवा वाद-बिन्दु का विचारण नहीं करेगा जिसके वाद-पद में वह विषय,...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 5: मुकदमों पर रोक
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 10 मुकदमे पर रोक की व्यवस्था करती है। इस धारा का जन्म रेस ज्युडिकेटा से हुआ है। हालांकि यह पूरी तरह रेस ज्युडिकेटा नहीं है लेकिन यह धारा मुकदमों पर रोक ज़रूर लगाती है। ऐसे मुकदमे जो किसी अन्य न्यायालय में लंबित है उन्हें किसी और न्यायालय में नहीं लगाया जा सकता।स्टे ऑफ सूट : रेस सब-ज्यूडिससिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 10 उन मुकदमों पर रोक लगाने के संबंध में एक नियम बनाती है जहां चीजें विचाराधीन हैं या किसी न्यायालय द्वारा निर्णय के...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 भाग 4: न्यायालय का क्षेत्राधिकार और सिविल प्रकृति के मामले
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 9 न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में उल्लेख करती है। जैसे दंड प्रक्रिया संहिता के प्रारंभ में ही न्यायालय के संबंध में उल्लेख मिलता है, इस ही प्रकार सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रारंभ में ही न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में प्रावधान है। सबसे पहले यह निर्धारित होना चाहिए कि कौनसा मुकदमा किस न्यायालय के समक्ष जाएगा और उस न्यायालय को उस मुकदमे पर सुनवाई करने का अधिकार प्राप्त है या नहीं। इस आलेख के अंतर्गत न्यायालय के...
बेयर एक्ट, कॉमेंट्री बुक और टेक्स्ट बुक क्या होती है
कानून की पढ़ाई करते समय बेयर एक्ट, कमेंट्री बुक और टेक्स्ट बुक जैसे शब्द सुनने को मिलते हैं। कानून की फील्ड में आए नए नए छात्रों के लिए यह शब्द परेशानी का कारण भी बनते हैं। क्योंकि उनका पहली बार इन शब्दों से सामना होता है। कानून की पढ़ाई करने के पहले सभी बेसिक बातों को समझना चाहिए। इससे आगे की मजबूत तैयारी होती है। कानून की कोई भी पढ़ाई बेयर एक्ट, कमेंट्री बुक और टेक्स्ट बुक से की जाती है। यह तीनों ही पुस्तकें कानून की पढ़ाई की आधारशिला है।बेयर एक्टबेयर एक्ट उस किताब को कहा जाता है जिसमे केवल...
वैवाहिक मामलों में यदि कोर्ट एकपक्षीय आदेश कर दें तब उसे कैसे निरस्त करवाएं
सिविल मुकदमों में एकपक्षीय आदेश जैसी चीज देखने को मिलती है। एकपक्षीय आदेश का मतलब होता है ऐसा आदेश जो केवल किसी एक पक्षकार को सुनकर दिया गया है। ऐसा आदेश डिक्री भी हो सकता है और निर्णय भी हो सकता है। अधिकांश वैवाहिक मामले जो पति पत्नी के विवाद से संबंधित होते हैं जैसे तलाक के मुकदमे, भरण पोषण के मुकदमे और संतानों की अभिरक्षा से संबंधित मामले में न्यायालय द्वारा एकपक्षीय कर दिया जाता है।न्यायालय का यह मानना रहता है कि यदि उसने किसी व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित होने हेतु बुलाया है और ऐसे बुलावे...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 3: विशेष शब्दों की परिभाषाएं
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 2 अधिनियम में प्रयुक्त हुए शब्दों की विस्तृत परिभाषा प्रस्तुत करती है। यह शब्द अधिनियम में बार-बार उपयोग किए गए हैं। अगर इन शब्दों को ठीक से समझ लिया जाए तब अधिनियम को समझने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 2 में दिए गए शब्दों पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।डिक्री धारकसंहिता की धारा 2(3) के तहत डिक्री धारक शब्द की परिभाषा को देखते हुए डिक्री धारक का अर्थ उस व्यक्ति से है जिसके पक्ष में डिक्री...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 2: डिक्री शब्द की परिभाषा
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) सिविल मुकदमों में प्रक्रिया को निर्धारित करती है। इस संहिता की धारा 2 परिभाषा खंड को प्रस्तुत करती है। धारा 2 के अधीन अनेक शब्दों की परिभाषाएं प्रस्तुत की गई है लेकिन इस अधिनियम के अधीन डिक्री शब्द बहुत महत्वपूर्ण शब्द है। इसलिए डिक्री पर एक विशेष आलेख धारा 2 से संबंधित प्रस्तुत किया जा रहा है।आम तौर पर जब हम किसी विषय का अध्ययन शुरू करते हैं तो यह परिभाषाओं के साथ शुरू करने की प्रथा है। ऐसा कहा जाता है कि परिभाषा खंड एक प्रकार का वैधानिक...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 भाग 1: सहिंता का परिचय
कानून को जिन विभिन्न विभागों में विभाजित किया जा सकता है उनमें से सबसे आम हैं: (1) दीवानी और फौजदारी और (2) मूल और विशेषण या प्रक्रियात्मक कानून।यह सहिंता हम सिविल से संबंधित हैं। मूल कानून पार्टियों के अधिकारों और देनदारियों से संबंधित है, जबकि विशेषण या प्रक्रियात्मक कानून इन अधिकारों और देनदारियों के प्रवर्तन के लिए अभ्यास, प्रक्रिया और तंत्र से संबंधित है। दूसरे शब्दों में वास्तविक कानून अधिकारों और देनदारियों को परिभाषित करता है जबकि प्रक्रियात्मक कानून उपचार निर्धारित करता है।मूल कानून का...
चेक बाउंस के केस में कैसे मिलती है पीड़ित को शुरुआती मदद? जानिए प्रावधान
आजकल उधार रुपयों की वसूली के मामलों में चेक बाउंस के मुकदमे काफी देखने को मिलते हैं। चेक एक विश्वास की संविदा होती है। यहां पर कोई व्यक्ति चेक देने वाले व्यक्ति पर यह विश्वास करता है कि अगर उसने चेक दिया है तब उस चेक के सिकरने पर बैंक से चेक प्राप्त करने वाले व्यक्ति को रुपए मिल जाएंगे।इस विश्वास की संविदा को अनेक जालसाज लोगों ने जालसाजी का हथियार बना लिया। जहां ऐसे लोग किसी दूसरे व्यक्ति को नगद रुपए न देकर चेक के माध्यम से खाते में रुपए देने का आश्वासन देते हैं। जैसे कि किसी सामान को खरीदने पर...
अगर पुलिस की आरोपियों से मिलीभगत हो जाए तब क्या करें शिकायतकर्ता
पुलिस को जनता की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी कानून ने दी है। जब भी कोई अपराध होता है तब पुलिस उस अपराध पर एफआईआर दर्ज करती है और कोर्ट में चालान प्रस्तुत करती है। किसी भी अपराध में पक्ष अभियुक्त का होता है और एक शिकायतकर्ता का होता है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की गई, एफआईआर दर्ज करने के बाद अन्वेषण किया गया। अन्वेषण के बाद न्यायालय में चालान प्रस्तुत नहीं किया गया और पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट देते हुए क्लोजर रिपोर्ट या फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी।इस स्थिति में...
कोई बेटी अपने पिता से कब तक भरण पोषण लेने की अधिकारी है
भारत का कानून समानता पर आधारित है। शायद ही कोई ऐसा पहलू रहा हो जहां पर भारत के पार्लियामेंट में कोई कानून बनाकर व्यवस्था खड़ी न की गई हो। भरण पोषण एक ऐसे व्यक्ति को देना होता है जिस व्यक्ति पर दूसरे लोग आश्रित होते हैं। दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 9 में एक पुरुष पर यह जिम्मेदारी डाली गई है कि वे अपने बच्चों, पत्नी तथा आश्रित माता-पिता का भरण पोषण करेगा।भरण पोषण से संबंधित कानून घरेलू हिंसा अधिनियम में भी मिलते हैं, जहां महिलाओं को भरण-पोषण दिलवाने की व्यवस्था की गई है। इसी के साथ हिंदू विवाह...
गिफ्ट डीड क्या होती है? जानिए इससे संबंधित कानून
गिफ्ट जिसे दान कहा जाता है, आम जीवन का एक हिस्सा है। किसी संपत्ति का दान किसी दूसरे व्यक्ति को किया जाता है। दान में कोई भी प्रतिफल नहीं होता है। जैसे हम किसी को उसके जन्मदिन पर कोई वस्तु देते हैं तब उसके बदले में उससे कुछ लिया नहीं जाता है, यही दान कहलाता हैछोटी छोटी चीजों का दान साधारण तरीके से हो जाता है लेकिन बड़ी संपत्तियों का दान कानून द्वारा निर्धारित की गई प्रक्रिया के जरिए ही होता है।संपत्ति अंतरण अधिनियम किसी भी संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित करता है, जहां मुख्य...
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 18: आरोपी द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत दिए आदेश को नहीं मानने पर दंड
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 31 दंड के संबंध में लेख करती है। घरेलू हिंसा अधिनियम सिविल उपचार प्रदान करता है परंतु इस अधिनियम को दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत चलाया जाता है। इस अधिनियम में मजिस्ट्रेट को अलग-अलग तरह के आदेश पारित करने की शक्ति दी गई है। यदि किसी मजिस्ट्रेट द्वारा प्रत्यर्थी जिसमें पीड़ित महिला के घर के कोई भी सदस्य हो सकते हैं, उनके विरुद्ध किसी प्रकार का कोई आदेश पारित किया है और वे उस आदेश...
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 17: घरेलू हिंसा के मामलों में अपील
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 29 अपील के संबंध में उल्लेख करती है। अपील किसी भी व्यक्ति का एक कानूनी अधिकार है। आपराधिक मामलों में अपील से संबंधित व्यवस्था दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत की गई है किंतु घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 एक विशेष अधिनियम है तथा इस अधिनियम में विशेष रुप से अपील का प्रावधान भी दिया गया है। साथ ही अपील की अवधि को भी निर्धारित किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 29 पर न्याय निर्णय सहित...
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 16: घरेलू हिंसा के मामले में प्रक्रिया
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 28 अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के संबंध में प्रक्रिया निर्धारित करती है। किसी भी अधिनियम को या तो मूल विधि कहा जाता है या प्रक्रिया विधि कहा जाता है। जैसे कि भारतीय दंड संहिता एक मूल विधि है जो यह बताती है कि अपराध क्या है एवं दंड प्रक्रिया संहिता एक प्रक्रिया विधि है जो यह बताती है कि किसी अपराध में किसी व्यक्ति को दंडित कैसे किया जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत धारा 28 में इस बात...
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 15: न्यायालय की अधिकारिकता
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 27 अधिनियम के अंतर्गत न्यायालय की अधिकारिता के संबंध में उल्लेख करती है। इस अधिनियम को कुछ इस प्रकार गढ़ा गया है कि पीड़ित महिलाओं को शीघ्र से शीघ्र न्याय उपलब्ध कराया जा सके। इसलिए इस अधिनियम में अधिकारिता प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को दी गई है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 27 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है और उस पर आए वादों में दिए गए निर्णय को भी प्रस्तुत किया जा रहा है।यह अधिनियम में...