धारा 183, BNSS 2023 : मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध की जांच के दौरान कबूलनामा (Confession) और बयान दर्ज करने के प्रावधान

Himanshu Mishra

11 Sep 2024 12:09 PM GMT

  • धारा 183, BNSS 2023 : मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध की जांच के दौरान कबूलनामा (Confession) और बयान दर्ज करने के प्रावधान

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita 2023), जो कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) का स्थान ले चुकी है, 1 जुलाई 2024 से लागू हो गई है। इस संहिता की धारा 183 में मैजिस्ट्रेट (Magistrate) द्वारा अपराध की जांच के दौरान कबूलनामा (Confession) और बयान दर्ज करने के प्रावधान शामिल हैं। ये प्रावधान पहले दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 में थे, लेकिन अब इन प्रावधानों में कुछ सुधार और स्पष्टता लाई गई है। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।

    मैजिस्ट्रेट द्वारा बयान दर्ज करने का अधिकार (Right of Magistrate to Record Statements) - धारा 183(1)

    धारा 183(1) के अनुसार, किसी भी जिले में जहाँ अपराध की सूचना दर्ज हुई है, वहां का कोई भी मैजिस्ट्रेट (Magistrate) व्यक्ति द्वारा दिए गए कबूलनामे (Confession) या बयान को दर्ज कर सकता है। चाहे उस मैजिस्ट्रेट (Magistrate) का उस मामले पर अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) हो या न हो, वह इस बयान को जांच के दौरान या किसी भी समय, परंतु सुनवाई या जांच शुरू होने से पहले दर्ज कर सकता है।

    एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि कबूलनामा (Confession) या बयान इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) तरीके से ऑडियो-वीडियो (Audio-Video) रिकॉर्डिंग द्वारा भी दर्ज किया जा सकता है, बशर्ते कि यह बयान आरोपी के वकील की उपस्थिति में हो। यह प्रावधान पारदर्शिता बनाए रखने और आरोपी के अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया है। इसके साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई पुलिस अधिकारी, जिसे मैजिस्ट्रेट के अधिकार दिए गए हों, कबूलनामा दर्ज नहीं कर सकता।

    कबूलनामे से पहले व्यक्ति को समझाना (Explanation Before Recording Confession) - धारा 183(2)

    कबूलनामा (Confession) दर्ज करने से पहले, मैजिस्ट्रेट (Magistrate) को व्यक्ति को समझाना होगा कि वह कबूलनामा देने के लिए बाध्य नहीं है। उसे यह भी बताया जाएगा कि अगर वह कबूलनामा करता है, तो इसे उसके खिलाफ सबूत (Evidence) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। मैजिस्ट्रेट (Magistrate) केवल तभी कबूलनामा दर्ज करेगा, जब वह सुनिश्चित हो जाए कि वह कबूलनामा स्वेच्छा से (Voluntarily) किया जा रहा है।

    कबूलनामा करने से इनकार (Refusal to Confess) - धारा 183(3)

    अगर कोई व्यक्ति कबूलनामा दर्ज होने से पहले यह कहता है कि वह कबूलनामा नहीं करना चाहता, तो मैजिस्ट्रेट (Magistrate) उसे पुलिस हिरासत (Police Custody) में भेजने की अनुमति नहीं दे सकता। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति को जबरन कबूलनामा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सके।

    कबूलनामा दर्ज करने की विधि (Manner of Recording Confession) - धारा 183(4)

    कबूलनामा (Confession) धारा 316 में दिए गए तरीकों के अनुसार दर्ज किया जाएगा, जिसमें आरोपी व्यक्ति की परीक्षा (Examination) की जाती है। कबूलनामा दर्ज होने के बाद, इसे करने वाले व्यक्ति को इस पर हस्ताक्षर (Signature) करना होगा। मैजिस्ट्रेट (Magistrate) को दस्तावेज के अंत में यह भी लिखना होगा कि उन्होंने व्यक्ति को यह समझा दिया था कि वह कबूलनामा देने के लिए बाध्य नहीं है और अगर उसने कबूलनामा किया, तो इसे उसके खिलाफ सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। मैजिस्ट्रेट (Magistrate) को यह भी लिखना होगा कि यह कबूलनामा स्वेच्छा से किया गया था और यह सही तरीके से दर्ज हुआ है।

    अन्य बयानों का दर्ज होना (Recording of Other Statements) - धारा 183(5)

    अगर धारा 183(1) के तहत कोई बयान कबूलनामा (Confession) नहीं है, तो मैजिस्ट्रेट (Magistrate) इसे ऐसे तरीके से दर्ज करेगा जो केस की परिस्थिति (Circumstances) के हिसाब से उपयुक्त हो। इसके लिए मैजिस्ट्रेट (Magistrate) को व्यक्ति से शपथ (Oath) दिलाने का अधिकार होगा, ताकि बयान सत्यता के आधार पर दिया जाए।

    कुछ विशेष मामलों के लिए प्रावधान (Special Provisions for Certain Cases) - धारा 183(6)

    कुछ गंभीर अपराधों के मामलों में, जैसे भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) के तहत दंडनीय अपराधों में, मैजिस्ट्रेट (Magistrate) को पीड़ित या संबंधित व्यक्ति का बयान पुलिस के द्वारा सूचना मिलने पर तुरंत दर्ज करना होगा।

    इसमें कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं:

    • यदि पीड़ित महिला है, तो यथासंभव महिला मैजिस्ट्रेट (Female Magistrate) द्वारा बयान दर्ज किया जाना चाहिए। अगर महिला मैजिस्ट्रेट उपलब्ध नहीं है, तो पुरुष मैजिस्ट्रेट भी महिला की उपस्थिति में बयान दर्ज कर सकते हैं।

    • अगर अपराध की सजा 10 साल या उससे अधिक, आजीवन कारावास (Life Imprisonment) या मृत्यु दंड (Death Penalty) है, तो मैजिस्ट्रेट (Magistrate) को गवाह का बयान तुरंत दर्ज करना होगा।

    • अगर बयान देने वाला व्यक्ति अस्थायी (Temporary) या स्थायी (Permanent) रूप से मानसिक (Mental) या शारीरिक (Physical) रूप से अक्षम है, तो मैजिस्ट्रेट (Magistrate) को अनुवादक (Interpreter) या विशेष शिक्षक (Special Educator) की मदद से बयान दर्ज करना होगा। इसके अलावा, बयान ऑडियो-वीडियो (Audio-Video) तरीके से, विशेषकर मोबाइल फोन के माध्यम से दर्ज किया जाना चाहिए।

    अक्षम व्यक्तियों के बयान को मुख्य साक्ष्य (Examination-in-Chief) माना जाना (Statements of Disabled Persons as Examination-in-Chief) - धारा 183(6)(b)

    अगर कोई मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति अनुवादक (Interpreter) या विशेष शिक्षक (Special Educator) की मदद से बयान देता है, तो इसे उसके मुख्य साक्ष्य (Examination-in-Chief) के रूप में माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि बयान उसके मुख्य गवाही के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा और बाद में उस पर जिरह (Cross-Examine) की जा सकती है, बिना दोबारा बयान दर्ज किए।

    कबूलनामा और बयान को आगे भेजना (Forwarding of Confessions and Statements) - धारा 183(7)

    मैजिस्ट्रेट (Magistrate) द्वारा दर्ज किए गए कबूलनामे (Confession) या बयान को उस मैजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा, जो मामले की जांच या सुनवाई करेगा। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कबूलनामा या बयान आधिकारिक केस फाइल का हिस्सा बन जाता है और इसे सुनवाई के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है।

    धारा 183 का महत्व और CrPC से तुलना (Importance of Section 183 and Comparison with CrPC)

    धारा 183 BNSS का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कबूलनामा (Confession) और बयान सही तरीके से दर्ज किए जाएं, और आरोपी व पीड़ित दोनों के अधिकारों का उचित ध्यान रखा जाए। यह प्रावधानों में कुछ नए सुधार लाता है, जैसे कि ऑडियो-वीडियो (Audio-Video) रिकॉर्डिंग और अक्षम व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान।

    यह धारा, CrPC की धारा 164 से ली गई है, लेकिन इसमें कमजोर व्यक्तियों, जैसे महिलाओं और अक्षम व्यक्तियों के संरक्षण के लिए कुछ अतिरिक्त प्रावधान जोड़े गए हैं। साथ ही, इसमें स्वैच्छिकता (Voluntariness) पर जोर दिया गया है, ताकि जबरन या दबाव में किए गए कबूलनामे को न्यायिक प्रक्रिया में स्थान न मिल सके।

    धारा 183 को समझकर, लोग यह जान सकते हैं कि कानून कैसे सुनिश्चित करता है कि कबूलनामा और बयान न्यायपूर्ण तरीके से दर्ज किए जाएं, और प्रक्रिया में कोई दुरुपयोग न हो।

    Next Story