जानिए हमारा कानून
क्रिमिनल केस की सुनवाई के लिए कौन-सी कोर्ट होगी?
क्रिमिनल केस की शुरुआत FIR से होती है। उसके बाद पुलिस जब अपनी फाइनल रिपोर्ट अदालत में पेश कर देती है तब चार्ज फ्रेम होते हैं, चार्ज के बाद यह तय होता है कि किसी क्रिमिनल केस में ट्रायल किस अदालत द्वारा चलाया जाएगा। विचारण किस कोर्ट द्वारा किया जाएगा यह महत्वपूर्ण और बुनियादी प्रश्न है क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर आगे की प्रक्रिया को तय करता है तथा जब इस प्रश्न का उत्तर मिलता है जब यह तय कर लिया जाता है कि विचारण किस कोर्ट द्वारा किया जाएगा।BNSS की धारा 197 जांच और विचारण के मामूली स्थान का वर्णन...
भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 303 के तहत चोरी का अपराध और दंड
भारतीय न्याय संहिता 2023, जो हाल ही में भारतीय दंड संहिता का स्थान ले चुकी है, ने विभिन्न आपराधिक अपराधों के लिए परिभाषाएँ और दंडों में सुधार किए हैं।इसमें चोरी का अपराध, जिसे धारा 303 में विस्तार से बताया गया है, प्रमुख है। इस लेख में हम यह समझेंगे कि कानून में चोरी को कैसे परिभाषित किया गया है, उसके नियम क्या हैं, और इसके तहत दिए गए दंडों की जानकारी प्राप्त करेंगे, जिसमें पुनरावृत्ति (repeat) करने वाले अपराधियों और पहली बार कम मूल्य की चोरी के मामलों के लिए प्रावधान भी शामिल हैं। चोरी की...
सेक्शन 256 से 259, BNSS 2023 के अंतर्गत सेशन कोर्ट में ट्रायल: अभियुक्त का बचाव, केस का सारांश और जवाबी दलीलें, और निर्णय भाग 4
यह लेख भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) के अंतर्गत सेशन कोर्ट (Court of Session) में ट्रायल के चरणों की श्रृंखला का चौथा भाग है। इस श्रृंखला के पिछले भागों में अभियोजन पक्ष की भूमिका, आरोप का निर्धारण, गवाहों की जाँच और बरी करने के निर्णय पर चर्चा की गई थी। इन शुरुआती चरणों की विस्तृत जानकारी के लिए, कृपया Live Law Hindi के पूर्व लेखों का संदर्भ लें।इस लेख में सेक्शन 256 से 259 तक के चरणों को शामिल किया गया है, जिनमें अभियुक्त (Accused) का बचाव...
सरकारी विज्ञापनों में निष्पक्षता और पारदर्शिता : सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
भारत के सुप्रीम कोर्ट के कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2015) निर्णय ने सरकारी विज्ञापनों (advertisements) को नियंत्रित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। इसका उद्देश्य सार्वजनिक धन का दुरुपयोग रोकना और इसे राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग होने से बचाना था।इस ऐतिहासिक (landmark) मामले में न्यायालय ने सरकारी विज्ञापन को जनहित में बनाए रखने और राजनीतिक हितों से दूर रखने पर जोर दिया। यह दिशानिर्देश (guidelines) सार्वजनिक धन के उचित उपयोग को सुनिश्चित करने और सरकारी संचार में पारदर्शिता और तटस्थता...
JJ Act के तहत आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष की उम्र कैसे तय की जानी चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय स्टेट ऑफ एम.पी. बनाम अनुप सिंह (2015) में अभियोजन पक्ष की उम्र (Age of Prosecutrix) को आपराधिक मामलों में सही तरीके से निर्धारण के मुद्दे पर प्रमुखता दी गई है।विशेष रूप से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code - IPC) की धारा 363, 366 और 376 के अंतर्गत मामलों में, अभियोजन पक्ष की उम्र बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह फैसला उम्र के निर्धारण में प्राथमिकता से डॉक्यूमेंट्री (Documentary) साक्ष्य पर निर्भरता की बात करता है, जब तक कि मेडिकल टेस्ट की अनिवार्यता न हो। आपराधिक...
फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट FIR कब दर्ज होती है?
FIR काफी जाना माना शब्द है। जब भी किसी व्यक्ति के साथ कोई क्रिमिनल घटना घटित होती है तब उसके द्वारा सबसे पहले एफआईआर दर्ज करवायी जाती है।FIR शब्द नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 से निकल कर आता है, जिसका पूरा नाम फर्स्ट इनफॉरमेशन रिपोर्ट है। हिंदी में इसे प्राथमिकी भी कहा जाता है।BNSS की धारा 173 के अंतर्गत इसे संज्ञेय मामलों की इत्तिला कहा गया है।बीएनएसएस के अंतर्गत अपराधों को दो प्रकार में बांटा गया है, संज्ञेय और असंज्ञेय। इसके आधार पर ही संज्ञेय अपराधों की रिपोर्ट के लिए दंड प्रक्रिया...
आरोपी के कोर्ट में हाजिर नहीं होने पर जमानतदार की लीगल लाइबिलिटी
किसी भी अपराध में कोर्ट द्वारा आरोपी को जमानत पर छोड़ा जाता है। ऐसी जमानत आरोपी की ओर से अन्य व्यक्ति लेता है। जब आरोपी कोर्ट में हाज़िर नहीं होता है तब एक जमानतदार की लाइबिलिटी होती है कि आरोपी को कोर्ट में प्रस्तुत करे। आमतौर पर जमानत का अर्थ विस्तृत है परंतु आपराधिक विधि में जमानत से तात्पर्य है- 'किसी अपराध में किसी व्यक्ति को न्यायालय में पेश कराने की जिम्मेदारी लेना'इससे सरल शब्दों में जमानत को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। अदालत में अभियुक्त को समय-समय पर पेश कराने एवं जब भी न्यायालय...
धार्मिक पूजा या धार्मिक समारोह में बाधा का अपराध : BNS, 2023 की धारा 300, 301 और 302 का धार्मिक सद्भावना में महत्व
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में धार्मिक सभाओं, पवित्र स्थलों, और व्यक्तिगत धार्मिक भावनाओं की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।इन प्रावधानों का उद्देश्य धार्मिक परंपराओं और स्थलों का सम्मान बनाए रखना है ताकि लोग अपनी आस्था के अनुसार पूजा या धर्म का पालन बिना किसी बाधा के कर सकें। धारा 300, 301 और 302 विशेष रूप से धार्मिक कार्यों में बाधा डालने, पवित्र स्थलों का अपमान करने, और धार्मिक भावनाओं को आहत करने से जुड़े अपराधों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। इस लेख...
अनुच्छेद 12 और रिट क्षेत्राधिकार पर प्रमुख न्यायिक फैसले : रिट क्षेत्राधिकार से जुड़े महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय
1. अनुच्छेद 12 और इसकी परिभाषा का परिचय (Introduction to Article 12 and Its Definition) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12 "राज्य" (State) की परिभाषा देता है, जिसमें भारत सरकार और संसद, हर राज्य की सरकार और विधानमंडल, और भारत सरकार के नियंत्रण में आने वाले सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण शामिल हैं।यह परिभाषा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यह तय करती है कि नागरिक किन संस्थाओं के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए और अनुच्छेद 226 के तहत व्यापक रिट क्षेत्राधिकार के लिए न्यायालय में जा...
BNSS, 2023 के अंतर्गत सेशन कोर्ट में सुनवाई: धारा 252 से 255 के अनुसार आरोप, गवाही और बरी करना भाग 3
इस लेख में सेशन कोर्ट (Court of Session) में सुनवाई की प्रक्रिया के अगले चरणों पर चर्चा की गई है। पिछले दो लेखों में हमने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS) के अंतर्गत कोर्ट में सुनवाई के प्रारंभिक चरणों पर बात की थी।पहले भाग में अभियोजन पक्ष (Public Prosecutor) की भूमिका और मामले की शुरुआत के बारे में बताया गया। दूसरे भाग में, यह समझाया गया कि किस प्रकार जज आरोप तय करते हैं, जो अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है। इन पिछले लेखों का पूरा विवरण...
क्या उच्च शिक्षा संस्थान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत न्यायिक पुनर्विचार के दायरे में आते हैं?
Dr. Janet Jeyapaul बनाम SRM University और अन्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम संवैधानिक सवाल पर विचार किया कि क्या University Grants Commission (UGC) Act के अंतर्गत "deemed university" का दर्जा प्राप्त SRM University पर High Court का writ अधिकार (jurisdiction) लागू हो सकता है।इस मामले का मुख्य सवाल यह था कि क्या SRM University, जो एक deemed university है, Article 226 के तहत न्यायालय के writ के अधीन हो सकती है। इस फैसले का महत्व इस बात में है कि किस स्थिति में सार्वजनिक कार्य (public...
क्या मौजूदा कानूनी ढांचा एसिड हमले के पीड़ितों के मुआवजे और पुनर्वास के लिए पर्याप्त है?
परिवर्तन केंद्र बनाम भारत संघ (2015) के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड हमले के पीड़ितों के मुआवजे और पुनर्वास की गंभीर समस्या पर चर्चा की।इस मामले ने भारत में कानूनी और प्रशासनिक ढांचे की कमियों को उजागर किया, जो एसिड हमले के पीड़ितों को पर्याप्त चिकित्सा उपचार (Medical Treatment), दीर्घकालिक देखभाल और वित्तीय सहायता प्रदान करने में असमर्थ है। अदालत ने लक्ष्मी बनाम भारत संघ (2013) जैसे पिछले महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देते हुए एसिड हमले के पीड़ितों के अधिकारों और राज्य की...
धार्मिक स्थलों की रक्षा और अपमानजनक कृत्यों पर रोक: भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत धारा 298 और 299
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान लेती है और इसमें अपराधों के लिए नए प्रावधान लाए गए हैं।इसमें धार्मिक अपराधों (Religious Offenses) पर भी ध्यान दिया गया है, जिसमें धारा 298 और धारा 299 के अंतर्गत धार्मिक स्थानों, पवित्र वस्तुओं और धार्मिक भावनाओं (Religious Sentiments) की रक्षा के प्रावधान हैं। ये प्रावधान धार्मिक सद्भावना बनाए रखने के लिए बनाए गए हैं ताकि किसी भी समूह की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले कृत्यों पर रोक...
सेशन न्यायालय में मुकदमे की प्रारंभिक प्रक्रिया : सेक्शन - 251 BNSS, 2023 के अंतर्गत आरोप तय करना
हमारी श्रृंखला के Part 1 में, हमने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के तहत सेशन न्यायालय (Court of Session) में मुकदमे की प्रक्रिया के आरंभिक प्रावधानों को कवर किया था। इसमें सेक्शन 248, 249, और 250 शामिल थे, जो Public Prosecutor की भूमिका, अभियोजन पक्ष (Prosecution) के द्वारा केस शुरू करने की प्रक्रिया, और आरोपी (Accused) के लिए डिस्चार्ज (Discharge) का अधिकार प्रदान करते हैं यदि साक्ष्य (Evidence) अपर्याप्त हों। " target="_blank"इन सेक्शनों की...
क्या RBI को सार्वजनिक विश्वास का दावा करते हुए जानकारी देने से मना करने का अधिकार है?
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री (2015) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005, RTI Act) के दायरे और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India, RBI) की गोपनीयता (Confidentiality) की जिम्मेदारियों पर विचार किया।इस मामले में अदालत ने यह जांचा कि क्या आरबीआई और अन्य बैंकों को आर्थिक हित, वाणिज्यिक (Commercial) गोपनीयता और सार्वजनिक विश्वास (Public Confidence) का दावा करते हुए जानकारी देने से मना करने का अधिकार है। इस निर्णय में...
जानिए किसी भी क्रिमिनल केस में चार्ज का क्या मतलब है?
किसी भी क्रिमिनल केस में ट्रायल की शुरुआत चार्ज से ही होती है। चार्ज किसी ट्रायल की बुनियाद होता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अध्याय 18 में चार्ज के लिए चेप्टर दिया गया है जिसमें धारा 234 से लेकर 247 तक चार्ज संबंधित सभी प्रावधान डाल दिए गए हैं।चार्ज अभियोजन की प्रथम कड़ी होती है तथा चार्ज के बाद ही अभियोजन की अगली कार्यवाही की जाती है। चार्ज के अभाव में अभियोजन प्रारंभ नहीं हो सकता है, चार्ज अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का ऐसा लिखित कथन होता है जिसमें चार्ज के आधार के साथ साथ...
फाइनल पुलिस रिपोर्ट का मतलब
किसी भी क्रिमिनल केस में पुलिस द्वारा जो चालान अभियुक्त के विरुद्ध अदालत में पेश किया जाता है उसे ही फाइनल पुलिस रिपोर्ट कहा जाता है।पुलिस अपने अन्वेषण में अलग-अलग स्तर पर रिपोर्ट प्रेषित करती है। पुलिस अन्वेषण के चरणों में तीन प्रकार की रिपोर्ट भेजती है, धारा 176 के अधीन पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मामले की प्रारंभिक रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को प्रेषित करता है।दूसरी रिपोर्ट उसे कहा जाता है जो इस संहिता की धारा 188 में यह अपेक्षित है कि अधीनस्थ पुलिस अधिकारी द्वारा अपराध के मामले की रिपोर्ट संबंधित...
जानिए कब और कौन करता है गिरफ्तारी?
किसी भी मुजरिम की गिरफ्तारी से ही कोई भी क्रिमिनल केस में कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा सकता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35(1) (2) के अंतर्गत यह बताया गया है की गिरफ्तारी किस समय की जा सकती है। इस धारा के अंतर्गत किसी पुलिस अधिकारी को बगैर वारंट के गिरफ्तार करने संबंधी अधिकार दिए गए है। इस धारा के अंतर्गत पुलिस अधिकारी बिना किसी प्राधिकृत मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकता है।इस धारा के अंतर्गत कुछ कारण दिए गए हैं कुछ शर्ते रखी गई हैं जिन कारणों के विद्यमान होने...
जानिए वारंट क्या होते हैं?
वारंट अदालत का पॉवर है जो किसी भी व्यक्ति को अदालत में हाज़िर किये जाने हेतु इस्तेमाल किया जाता है। वारंट कोर्ट को प्राप्त ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को गिरफ्तार कर कोर्ट के समक्ष लाए जाने का प्रावधान करती है। सर्वप्रथम तो कोर्ट जिस व्यक्ति को हाजिर करवाना चाहती है उस व्यक्ति को समन जारी किया जाता है। समन के माध्यम से कोर्ट में हाजिर करवाने का प्रयास किया जाता है लेकिन यदि व्यक्ति समन से बच रहा है और समन तामील होने के बाद भी कोर्ट के समक्ष हाजिर नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में कोर्ट को गिरफ्तार करके...
धारा 295, 296 और 297 भारतीय न्याय संहिता, 2023: अश्लीलता और अनधिकृत लॉटरी के प्रावधान
भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने भारतीय दंड संहिता को बदलते हुए नए कानूनी प्रावधान पेश किए हैं, जिसमें अश्लीलता और अवैध (Unauthorized) लॉटरी से जुड़े अपराधों के लिए दंड शामिल हैं। धारा 295, 296 और 297 में इन विशेष कार्यों को गैरकानूनी (Illegal) घोषित किया गया है।हर धारा में अपराध की परिभाषा (Definition), प्रतिबंधित (Prohibited) कार्यों का विवरण और उन पर लगाए जाने वाले दंड का वर्णन (Description) है। यहां इन धाराओं को सरल शब्दों में समझाने के लिए उदाहरण (Example) भी दिए गए हैं, ताकि हर पहलू आसानी से...