भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 436: संदर्भ और पुनरीक्षण Reference and Revision की पूरी जानकारी
Himanshu Mishra
28 April 2025 11:24 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने भारत के आपराधिक प्रक्रिया (Criminal Procedure) तंत्र में कई नए प्रावधान (Provisions) जोड़े हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्रावधान है धारा 436, जो अध्याय XXXII : संदर्भ और पुनरीक्षण (Chapter XXXII : Reference and Revision) का हिस्सा है।
यह धारा उन स्थितियों से जुड़ी है जब किसी निचली अदालत (Lower Court) को किसी कानून (Law) की वैधता (Validity) पर संदेह होता है और फैसला लेने से पहले उसे हाईकोर्ट (High Court) की राय चाहिए होती है। आइए इसे सरल भाषा में विस्तार से समझते हैं।
धारा 436 का उद्देश्य (Purpose of Section 436)
कभी-कभी जब कोई आपराधिक मामला (Criminal Case) किसी अदालत में चलता है, तो अदालत को लगता है कि जिस कानून (Act), अध्यादेश (Ordinance) या विनियम (Regulation) के तहत कार्यवाही हो रही है, वह वैध नहीं है या अब लागू (Operative) नहीं है।
लेकिन ऐसी स्थिति में निचली अदालत खुद से उस कानून को अमान्य (Invalid) घोषित नहीं कर सकती, जब तक कि हाईकोर्ट (High Court) या सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने उसे अमान्य न ठहरा दिया हो।
इसीलिए धारा 436 एक प्रक्रिया (Procedure) देती है कि अदालत को इस विषय को हाईकोर्ट को संदर्भित (Refer) करना चाहिए और वहाँ से निर्णय लेना चाहिए।
इससे न्याय व्यवस्था (Justice System) में स्पष्टता (Clarity) बनी रहती है और निचली अदालतें अपनी सीमाओं (Limits) का उल्लंघन नहीं करतीं।
कब किया जा सकता है संदर्भ? (When Can a Reference Be Made?)
धारा 436(1) के अनुसार, यदि कोई अदालत यह पाती है:
1. उसके सामने चल रहे मामले में किसी कानून (Act), अध्यादेश (Ordinance), विनियम (Regulation) या उनके किसी प्रावधान (Provision) की वैधता (Validity) पर सवाल है, और
2. उस सवाल का निपटारा (Disposal) करना केस के अंतिम निर्णय के लिए आवश्यक है, और
3. अदालत की राय में वह कानून (Act), अध्यादेश (Ordinance) या विनियम (Regulation) अमान्य (Invalid) या अनुपयोगी (Inoperative) है, और
4. अभी तक उस कानून को संबंधित हाईकोर्ट (High Court) या सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अमान्य घोषित नहीं किया है,
तो ऐसी स्थिति में अदालत को अपने विचार और कारणों को लिखते हुए, उस विषय को हाईकोर्ट को संदर्भित (Refer) करना पड़ेगा।
यहाँ अदालत को एक "मामले का विवरण" (Statement of Case) तैयार करना होता है, जिसमें वह स्पष्ट रूप से अपनी राय और उसके आधार (Reasons) को समझाए।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि एक मजिस्ट्रेट अदालत (Magistrate Court) में एक व्यक्ति पर एक पुराने कानून के तहत मामला चल रहा है। सुनवाई के दौरान, मजिस्ट्रेट को लगता है कि यह कानून संविधान (Constitution) के खिलाफ है और अमान्य है। लेकिन अब तक न तो हाईकोर्ट (High Court) और न ही सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने इसे अमान्य घोषित किया है।
ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट सीधे कानून को अमान्य नहीं कह सकता। उसे अपनी पूरी राय और कारण लिखकर हाईकोर्ट को मामला संदर्भित (Refer) करना होगा, जैसा कि धारा 436(1) में बताया गया है।
"विनियम" (Regulation) का अर्थ (Meaning of "Regulation")
धारा 436 में एक व्याख्या (Explanation) दी गई है, जो "विनियम" (Regulation) शब्द का मतलब स्पष्ट करती है।
यह बताती है कि "विनियम" का अर्थ वह विनियम है जिसे सामान्य धाराएं अधिनियम, 1897 (General Clauses Act, 1897) या किसी राज्य के सामान्य धाराएं अधिनियम (General Clauses Act of a State) में परिभाषित किया गया है।
भारत में कई बार कुछ क्षेत्रों (जैसे केंद्रशासित प्रदेश या आदिवासी क्षेत्र) के लिए खास कानून "विनियम" (Regulation) के रूप में बनाए जाते हैं। इसीलिए, यदि किसी "विनियम" (Regulation) की वैधता पर भी सवाल उठता है, तो भी धारा 436 लागू होगी।
सत्र न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति (Discretion of the Court of Session to Make a Reference)
धारा 436(2) विशेष रूप से सत्र न्यायालय (Court of Session) से संबंधित है।
यदि उपरोक्त (Sub-section 1) स्थिति नहीं बनती — यानी कानून की वैधता पर कोई सवाल नहीं है — तब भी सत्र न्यायालय अपने विवेक (Discretion) से किसी भी कानूनी प्रश्न (Question of Law) को हाईकोर्ट के निर्णय के लिए संदर्भित (Refer) कर सकता है।
यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य हैं:
• सत्र न्यायालय के लिए संदर्भ करना अनिवार्य (Mandatory) नहीं है, यह उसकी इच्छा (Discretion) पर निर्भर है।
• संदर्भ किसी भी कानूनी प्रश्न (Legal Question) से संबंधित हो सकता है, सिर्फ कानून की वैधता से नहीं।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए एक आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान किसी नए कानून की व्याख्या (Interpretation) को लेकर भ्रम हो जाता है। सत्र न्यायालय को समझ नहीं आता कि उस प्रावधान (Provision) का सही अर्थ क्या है।
ऐसी स्थिति में, बिना किसी वैधता (Validity) के सवाल के भी, सत्र न्यायालय हाईकोर्ट से मार्गदर्शन (Guidance) लेने के लिए उस प्रश्न को संदर्भित (Refer) कर सकता है, जैसा कि धारा 436(2) में अनुमति दी गई है।
संदर्भ भेजने के बाद क्या होगा? (What Happens After Making a Reference?)
धारा 436(3) बताती है कि जब कोई अदालत उपधारा (Sub-section) (1) या (2) के तहत मामला हाईकोर्ट को संदर्भित (Refer) कर देती है, तो उसके बाद अदालत क्या कर सकती है।
अदालत तब तक:
• आरोपी को जेल भेज सकती है (Commit to Jail), या
• आरोपी को जमानत पर रिहा कर सकती है (Release on Bail),
जब तक कि हाईकोर्ट उस संदर्भ (Reference) पर निर्णय नहीं कर देता।
यह शक्ति अदालत को परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने की आजादी देती है। यदि मामला गंभीर है या आरोपी के भागने का खतरा है, तो अदालत उसे जेल भेज सकती है। यदि ऐसा खतरा नहीं है, तो अदालत उसे जमानत पर रिहा कर सकती है।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए किसी आरोपी के खिलाफ जिस कानून के तहत मामला चल रहा है उसकी वैधता पर प्रश्न है और मामला हाईकोर्ट को संदर्भित (Refer) कर दिया गया है।
अगर आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास (Criminal Record) नहीं है और उसके भागने का खतरा नहीं है, तो अदालत उसे जमानत (Bail) पर छोड़ सकती है। लेकिन यदि आरोपी गंभीर अपराध (Serious Crime) में शामिल है, जैसे आतंकवाद (Terrorism), तो अदालत उसे जेल भेज सकती है (Commit to Jail)।
न्याय व्यवस्था में धारा 436 का महत्व (Importance of Section 436 in Justice System)
धारा 436 न्यायिक प्रक्रिया में कई अहम भूमिकाएँ निभाती है:
• यह सुनिश्चित करती है कि निचली अदालतें अपने अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) से बाहर जाकर खुद कानून को अमान्य घोषित न करें।
• यह हाईकोर्ट (High Court) और सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के अधिकार और गरिमा (Authority and Dignity) की रक्षा करती है।
• यह जटिल कानूनी सवालों के लिए एक ठोस प्रक्रिया (Proper Procedure) प्रदान करती है।
• यह आरोपी के अधिकारों (Rights of Accused) की रक्षा करती है, क्योंकि अदालत यह तय कर सकती है कि उसे जमानत पर छोड़ा जाए या जेल भेजा जाए।
इस प्रकार, धारा 436 भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में व्यवस्था और स्पष्टता (Orderliness and Clarity) बनाए रखती है।
धारा 436 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो बताता है कि जब निचली अदालत को किसी कानून की वैधता पर संदेह हो, तो वह कैसे आगे बढ़े।
यह अदालत को यह निर्देश देता है कि वह स्वयं निर्णय न ले, बल्कि हाईकोर्ट को संदर्भ भेजे और उसके निर्णय का इंतजार करे।
साथ ही, सत्र न्यायालय को किसी भी कानूनी प्रश्न (Legal Question) पर भी संदर्भ भेजने का अधिकार देता है।
इस दौरान अदालत आरोपी को जमानत पर छोड़ सकती है या जेल भेज सकती है।
कुल मिलाकर, धारा 436 से भारतीय न्याय व्यवस्था में न्यायसंगतता (Fairness), अनुशासन (Discipline) और वैधानिक प्रक्रिया (Legal Procedure) को मजबूती मिलती है।

