धारा 432 BNSS 2023 : अपीलीय न्यायालय द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य लेना या उसे लेने का निर्देश देना
Himanshu Mishra
24 April 2025 5:46 PM IST

अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय अंतिम माने जाते हैं, लेकिन हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था में अपील का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जिससे किसी भी व्यक्ति को न्याय पाने का दूसरा मौका मिलता है। जब कोई मामला अपीलीय अदालत में पहुँचता है, तब वहाँ सिर्फ रिकॉर्ड देख कर ही निर्णय नहीं लिया जाता, बल्कि यदि आवश्यक हो, तो अदालत खुद से या अन्य किसी सक्षम अदालत को यह आदेश दे सकती है कि अतिरिक्त साक्ष्य (Additional Evidence) लिया जाए। यही प्रावधान धारा 432 में किया गया है।
अपीलीय न्यायालय द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य लेने की शक्ति (Power of Appellate Court to Take Additional Evidence)
धारा 432(1) में कहा गया है कि यदि किसी अपील की सुनवाई करते समय अपीलीय न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि निर्णय के लिए कुछ अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक हैं, तो वह अपने आदेश में इसका कारण लिखते हुए स्वयं से वह साक्ष्य ले सकता है या फिर किसी मजिस्ट्रेट (Magistrate) को निर्देश दे सकता है कि वह साक्ष्य ले।
यदि अपीलीय न्यायालय कोई उच्च न्यायालय (High Court) है, तो वह सत्र न्यायालय (Court of Session) या मजिस्ट्रेट को भी यह कार्य सौंप सकता है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि केवल पहले से रिकॉर्ड में उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर निर्णय न लिया जाए, बल्कि यदि कोई जरूरी जानकारी रह गई है, तो वह ली जा सके ताकि न्यायपूर्ण निर्णय हो।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए, एक व्यक्ति को किसी गंभीर अपराध में दोषी ठहराया गया है और उसने अपील की है। अपील सुनते समय न्यायालय को लगता है कि एक गवाह, जिसे ट्रायल कोर्ट में नहीं बुलाया गया था, उसकी गवाही निर्णय में सहायता कर सकती है। ऐसे में अपीलीय अदालत उसे बुलाकर गवाही ले सकती है, या किसी मजिस्ट्रेट को निर्देश दे सकती है कि वह उसकी गवाही रिकॉर्ड करें।
अतिरिक्त साक्ष्य को प्रमाणित करना (Certification of Additional Evidence)
धारा 432(2) में कहा गया है कि जब सत्र न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य लिया जाता है, तो वह इस साक्ष्य को प्रमाणित कर अपीलीय न्यायालय को भेजेगा। इसके बाद अपीलीय न्यायालय उस साक्ष्य के आधार पर अपील का निस्तारण करेगा।
इसका उद्देश्य यह है कि अपीलीय न्यायालय के पास सभी आवश्यक दस्तावेज और साक्ष्य उपलब्ध हों ताकि वह एक निष्पक्ष और पूर्ण निर्णय दे सके।
अभियुक्त की उपस्थिति का अधिकार (Right of Accused to Be Present)
धारा 432(3) में एक महत्वपूर्ण अधिकार का प्रावधान किया गया है। जब अतिरिक्त साक्ष्य लिया जा रहा हो, उस समय अभियुक्त (Accused) या उसका वकील (Advocate) वहाँ उपस्थित रह सकता है। यह अधिकार इसलिए दिया गया है ताकि अभियुक्त को सुनवाई का पूर्ण अवसर मिल सके और वह साक्ष्य का खंडन (Cross-Examine) भी कर सके।
धारा 432 में दिए गए प्रावधानों पर अन्य धाराओं का प्रभाव (Effect of Other Provisions)
धारा 432(4) में स्पष्ट किया गया है कि इस धारा के तहत जब साक्ष्य लिया जाएगा, तो वह उसी प्रकार लिया जाएगा जैसे कि अध्याय XXV (Chapter XXV) में जांच (Inquiry) के संबंध में प्रावधान किए गए हैं।
Chapter XXV की प्रक्रिया संपूर्ण सुनवाई की एक प्रणाली है जिसमें साक्ष्य प्रस्तुत करने, गवाहों से पूछताछ करने, रिकॉर्ड तैयार करने आदि की प्रक्रिया विस्तृत रूप से दी गई है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अतिरिक्त साक्ष्य लेने की प्रक्रिया भी निष्पक्ष, पारदर्शी और विधिसम्मत हो।
धारा 432 और धारा 426 व 427 के संबंध (Relation with Section 426 and 427)
धारा 426 में अपील की सुनवाई की प्रक्रिया बताई गई है कि किसे नोटिस भेजा जाएगा, किसे सुनवाई का अधिकार होगा, और रिकॉर्ड कब मंगवाया जाएगा। धारा 427 में यह बताया गया है कि अपीलीय अदालत के पास क्या-क्या अधिकार हैं — जैसे दोषमुक्ति को पलटना, पुनः सुनवाई का आदेश देना, सजा को कम करना आदि। लेकिन कई बार इन निर्णयों तक पहुँचने के लिए अदालत को कुछ ऐसे साक्ष्य चाहिए होते हैं जो पहले रिकॉर्ड में नहीं थे। ऐसे में धारा 432 का उपयोग किया जाता है।
व्यवहारिक दृष्टिकोण से महत्त्व (Practical Significance)
अक्सर ट्रायल कोर्ट में गवाहों को सही से पेश नहीं किया जाता, या पुलिस की लापरवाही के कारण कुछ साक्ष्य अधूरे रह जाते हैं। ऐसे में जब मामला अपील में जाता है, तो न्यायालय के पास यह अधिकार होना आवश्यक है कि वह स्वयं साक्ष्य प्राप्त कर सके या किसी अन्य अदालत से ले सके।
धारा 432 ऐसे मामलों में न्याय को पुनर्स्थापित करने का माध्यम बनती है। यदि यह धारा न होती, तो कई निर्दोष व्यक्ति केवल इसलिए दोषी करार दिए जाते क्योंकि रिकॉर्ड अधूरा था।
उदाहरण से स्पष्टता (Another Illustration)
मान लीजिए, एक चोरी के मामले में ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को दोषी ठहराया लेकिन CCTV फुटेज ट्रायल में पेश नहीं किया गया। अपील में अभियुक्त ने यह दलील दी कि CCTV फुटेज में वह नहीं है। अपीलीय अदालत को यदि लगता है कि वह साक्ष्य जरूरी है, तो वह इस फुटेज को मंगवाकर या किसी मजिस्ट्रेट से प्राप्त करवा कर, निर्णय ले सकती है।
धारा 432, भारतीय न्याय प्रणाली में एक बेहद आवश्यक और व्यावहारिक प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि अपील केवल तकनीकी आधार पर ही न निपटाई जाए, बल्कि सभी आवश्यक साक्ष्य के आधार पर निष्पक्ष रूप से निर्णय लिया जाए। यह न्याय को जीवंत और पूर्ण बनाता है।
इस धारा का प्रयोग उन मामलों में किया जाता है जहाँ न्याय की आवश्यकता है और जहाँ न्यायालय को लगता है कि उसके सामने प्रस्तुत रिकॉर्ड पर्याप्त नहीं है। ऐसे मामलों में धारा 432 एक प्रभावशाली औज़ार (Effective Tool) के रूप में सामने आती है।