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घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में किसी भी महिला को घर में रहने का अधिकार
इस एक्ट की धारा 17 एक महिला को साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार देती है, जिसके अनुसार- साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार (1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, घरेलू नातेदारी में प्रत्येक महिला को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार होगा चाहे वह उसमें कोई अधिकार, हक या फायदाप्रद हित रखती हो या नहीं।(2) विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसरण में के सिवाय, कोई व्यथित व्यक्ति, प्रत्यर्थी द्वारा किसी साझी गृहस्थी या उसके किसी भाग से बेदखल या अपवर्जित नहीं...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में व्यथित महिला द्वारा मजिस्ट्रेट को आवेदन करने का तरीका
धारा 12 के अधीन अनुतोष के लिए आवेदन की पोषणीयता यह सत्य है कि अधिनियम, भूतलक्षी नहीं है। तथापि याची अधिनियम के अधीन भविष्यलक्षी अनुतोष की वांछा कर रहा न कि भूतलक्षी परिणामतः यह नहीं कहा जा सकता है कि अधिनियम की धारा 12 के अधीन प्रत्यर्थी द्वारा दाखिल आवेदन पोषणीय नहीं है।अभिव्यक्ति "जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं" प्रदर्शित करती है कि पक्षकारगण अर्थात् व्यथित व्यक्ति एवं प्रत्यर्थी के बीच विद्यमान नातेदारी, अधिनियम की धारा 12 के अधीन अनुतोष चाहने के लिए आवेदन...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) का घरेलू नातेदारी पर लागू होना
घरेलू नातेदारी से संबधित एक मामले में आन्ध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि- इस प्रकार, मुख्य प्रावधान की अन्तर्वस्तुओं की दृष्टि में प्रत्यर्थिनों के रूप में अपवर्जित घरेलू नातेदारी में स्वयं उसी महिला सदस्य को पुनः धारा के परन्तुक के अधीन सम्मिलित किये जाने का प्रश्न उद्भूत नहीं हो सकता है। इसलिए इसे इससे समझा जाना है कि परन्तुक केवल उन पुरुष सदस्यों, जो घरेलू नातेदारी में से भी भिन्न हों, को सम्मिलित करने का आशय रखता है परन्तुक में विनिर्दिष्ट रूप से महिला को अपवर्जित करने का अनाशयित लोप होना...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) की आधारभूत धारा
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के शब्द जिसके अन्तर्गत अधिनियम के अधीन आदेश या अनुतोष पाने के लिए प्रक्रिया दी गई है, प्रदर्शित करती है कि ऐसी कार्यवाही के लिए समय सीमा निश्चित नहीं है एवं यह प्रदर्शित करना अपेक्षित होता है कि अधिनियम के अधीन आवेदक व्यक्ति व्यक्ति है। अधिनियम की धारा 12 मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दाखिल करने हेतु प्रावधान करती है एवं इसकी उपधारा (1) प्रावधानित करती है कि कोई व्यक्ति व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या व्यक्ति व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में घरेलू हिंसा का मतलब
इस अधिनियम की धारा 3 "घरेलू हिंसा" की विस्तृत परिभाषा अन्तर्विष्ट करती है एवं बड़ी मात्रा में कार्य एवं लोप को शामिल करती है जो व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग की या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलाई की अपहानि या क्षति या खतरा करता है। इसमें शारीरिक दुरुपयोग, लैंगिक दुरुपयोग, मौखिक एवं भावनात्मक दुरुपयोग साथ ही साथ आर्थिक दुरुपयोग सम्मिलित है। इस प्रकार घरेलू हिंसा पद के अर्थों के अधीन विभिन्नप्रकार के कार्य एवं लोप शामिल हैं।अधिनियम की धारा 12 के अधीन अनुतोष अधिनियम के लागू होने...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में गृहस्थी और सांझी गृहस्थी का मतलब
इस एक्ट में गृहस्थी का निश्चित अर्थ होता है एवं इस प्रकार इसे "घर" शब्द के साथ पारस्परिक परिवर्तनीय रीति से साधारण शाब्दिक अर्थों में अर्थावित नहीं किया जा सकता इसलिए प्रश्नगत संविधि में सीधे "गृहस्थी" शब्द को प्रयुक्त करने में विधायन को निवारित नहीं किया जा सकता शब्द घर के कई अर्थ होते हैं जिसमें से एक है। "लोगों के रहने के लिए मकान जो सामान्यतया एक परिवार के लिए होता है" जैसा कि आक्सफोर्ड एडवांस डिक्शनरी न्यू 7वां संस्करण में परिभाषित है अमेरिकन हेरिटेज डिक्शनरी "घर" को "एक या अधिक व्यक्तियों...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में व्यथित व्यक्ति किसे कहा गया?
इस एक्ट में व्यथित व्यक्ति से ऐसी कोई महिला अभिप्रेत है जो प्रत्यर्थी की घरेलू नातेदारी में है या रही है और जिसका अभिकथन है कि वह प्रत्यर्थी द्वारा किसी घरेलू हिंसा की शिकार रही है।"व्यथित व्यक्ति" की परिभाषा के पठन से यह इंगित होता है कि महिला जो प्रत्यर्थी के साथ घरेलू नातेदारी में है या रही है एवं जो प्रत्यर्थी द्वारा घरेलू हिंसा के किसी कृत्य का शिकार है अधिनियम के प्रावधानों के अधीन संरक्षण की वांछा करने के लिए व्यथित व्यक्ति को महिला होना चाहिए और प्रत्यर्थी के साथ वह घरेलू नातेदारी में हो...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में परिवाद, नातेदार और प्रत्यर्थी का मतलब
एक मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने यह तर्क ग्रहण किया है कि अधिनियम की धारा 2 (थ) के परन्तुक में प्रयुक्त "परिवाद" पद, अधिनियम के अधीन किसी परिभाषा के अभाव में दण्ड प्रक्रिया संहिता में पारिभाषित रूप में समझा जाना होगा। न्यायाधीश के अनुसार ऐसा परिवाद किसी दाण्डिक संविधि के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए हो सकता है और चूंकि अधिनियम केवल दो अपराधों अर्थात् अधिनियम की धारा 31 के अधीन प्रत्यर्थी द्वारा संरक्षण आदेश के भंग के लिए तथा अधिनियम की धारा 33 के अधीन जैसा प्रावधानित है अपने कर्तव्य का...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) की Section 1 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 1 शुरूआती धारा है जो अधिनियम के नाम लागू से संबंधित है। यह विवादित नहीं है कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अधीन कोई अभिव्यक्त उपबन्ध नहीं है कि यह भूतलक्षी रूप से लागू होता है जब तक कि विधायिका के आशय को दर्शित करने के लिए संविधि में पर्याप्त शब्द न हों या आवश्यक विवक्षा से भूतलक्षी प्रवर्तन न दिया गया हो, यह केवल भविष्यलक्षी समझा जाता है। भूतलक्षी विधायन कभी उपधारित नहीं किया जाता है और इसलिए विधि केवल इसके प्रवर्तन में आने की तिथि के बाद घटित होने वाले मामलों पर लागू होती है,...
घरेलू हिंसा (DV Act) का उद्देश्य
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के नामित अधिनियमन के लिए उद्देश्यों और कारणों का कथन असंदिग्ध रूप से घोषणा करता है कि 1994 के वियना समझौते के सभी सहभागी राज्यों, बीजिंग घोषणा-पत्र, कार्यवाही के लिए मंच (1995), किसी भी प्रकार की विशेष रूप से परिवार के भीतर घटित होने वाली, हिंसा के विरुद्ध महिलाओं के संरक्षण की स्वीकृति देता है।घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अधिनियमन के लिए उद्देश्यों एवं कारणों का कथन दर्शित करता है कि चूंकि पति या उसके नातेदार द्वारा महिला के...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) महिलाओं पर अत्याचार रोकने का क़ानून
इस एक्ट का पूरा नाम घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 है। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का उद्देश्य महिलाएं, जो परिवार के अन्दर घटित होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार हैं, के लिए संविधान के अधीन प्रत्याभूत अधिकारों के प्रभावी संरक्षण के लिए उपबन्ध करना है। अधिनियम केवल घरेलू सम्बन्ध में पत्नियों तथा महिलाओं को उपचार का अधिकार प्रदान करता है। उपर्युक्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक प्रणाली का उपबन्ध है, अर्थात् यह पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता एवं मजिस्ट्रेट का...
Interpretation of Law किसे कहते हैं?
अदालतों द्वारा संविधियों की भाषा, शब्दों एवं अभिव्यक्तियों के अर्थ- निर्धारण की प्रक्रिया को ही निर्वाचन अथवा व्याख्या कहा जाता है। निर्वाचन के माध्यम से न्यायालयों द्वारा संविधि में प्रयुक्त भाषा या शब्दों का अर्थान्वयन या अर्थ-निर्धारण किया जाता है। Interpretation (व्याख्या) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कोर्ट संविधि में प्रयुक्त शब्दों का विधायिका के आशय के अनुरूप अर्थ लगाते हैं। इस प्रकार निर्वचन द्वारा संविधि में प्रयुक्त शब्दों को अर्थ प्रदान किया जाता है या उनका अर्थ निर्धारित किया...
किसी भी फैसले में केस लॉ का महत्व
किसी बड़ी अदालत का दिया कोई निर्णय उसकी अधीनस्थ अदालत पर लागू होता है, अधीनस्थ अदालत अपनी उच्च अदालत के दिए निर्णय से परे नहीं हो सकती है। इसलिए कानून में पूर्व निर्णय अति महत्वपूर्ण हो जाते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में इन्हें रुलिंग अथवा केस लॉ कहा जाता है। बहस के दौरान अधिवक्ताओं द्वारा अपने-अपने पक्ष समर्थन में ऐसे निर्णय न्यायालय के समक्ष पेश किये जाते हैं जो न्यायनिर्णयन में अदालतों का मार्गदर्शन करते हैं।जहाँ तक पूर्व-निर्णयों की प्रयोज्यता का प्रश्न है, हर निर्णय को उस मामले के...
लोक अदालत किसे कहते है?
अदालतों में चलने वाले मुक़दमों को राजीनामा से ख़त्म करवाने के लिए लोक अदालत की व्यवस्था शुरू हुई है। यह निर्विवाद है कि आज विचारण में अत्यधिक एवं अनावश्यक विलम्ब होता है। लोगों को वर्षों तक न्याय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कई बार तो स्थिति यह बन जाती है कि पक्षकार मर जाता है लेकिन कार्यवाही जीवित रहती है।इस स्थिति से निपटने के लिए हालांकि समय-समय पर प्रयास किये जाते रहे हैं। फास्ट ट्रेक कोर्ट भी स्थापित किये गये तो दूसरी तरफ लोक अदालत व्यवस्था पर भी विचार रखे गए। भारत में किसी समय पंचायतों से...
ARREST WARRANT जारी किये जाने के कारण
गिरफ्तारी का वारंट सदैव किसी अदालत या फिर सेमी ज्यूडिशियल कोर्ट जैसे कलेक्टर, एसडीएम इत्यादि द्वारा जारी किया जाता है। इन लोगों के अलावा किसी भी व्यक्ति के पास गिरफ्तारी वारंट जारी करने की शक्ति नहीं है।गिरफ्तारी वारंट जारी करने की शक्ति अदालत के पास होती है। यह शक्ति अदालत को इसलिए दी गई है क्योंकि अदालत जिस व्यक्ति को किसी मुकदमे में बुलाना चाहती है उसे पुलिस के मार्फ़त बुला सकें। जैसे किसी प्रकरण में यदि अदालत को किसी व्यक्ति के बयान लेने है तब भी वह उस संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तारी का वारंट...
किसी भी प्रकरण में पुलिस का निष्पक्ष इन्वेस्टिगेशन
यह समझा जाता है कि पुलिस किसी भी मामले में शिकायतकर्ता की वकील होती है जबकि यह बात ठीक नहीं है। पुलिस को भारतीय कानून में पूरी तरह से निष्पक्ष बनाया गया है। किसी व्यक्ति की शिकायत मात्र से पुलिस उसकी वकील नहीं बन जाती है। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति पुलिस को यह शिकायत करता है कि किसी दूसरे व्यक्ति ने उसका बलात्कार कर लिया है, इस तरह उसने बलात्कार का अपराध कारित किया है। पुलिस को ऐसी शिकायत मिलने पर उसका कर्तव्य यह है कि वह दोनों पक्षों के मामलों को देखें, परिस्थितियों की जांच करें, सबूतों को...
ड्रिंक एंड ड्राइव पर क़ानून
ड्रिंक एंड ड्राइव अपराध है। शराब पीकर गाड़ी चलाना एक बड़ा अपराध है। जब कभी किसी व्यक्ति को शराब पीकर ड्राइविंग करने के आरोप में पकड़ा जाता है तब पुलिस द्वारा ऐसे व्यक्ति की सांसों की जांच की जाती है। यदि इस जांच में पॉजिटिव आता है तब उस व्यक्ति पर मुकदमा बनाया जाता है। पुलिस के पास एक मशीन होती है जो व्यक्ति के मुंह में डाली जाती है और उसकी सांसों को कैप्चर किया जाता है। यदि उस मशीन में पॉजिटिव का संकेत मिलता है तब व्यक्ति मोटर व्हीकल अधिनियम की धारा 188 के अंतर्गत आरोपी बना दिया जाता है।मोटर...
नजूल ज़मीन किसे कहते हैं?
भारत में किसी समय अंग्रेजों का शासन रहा है।अंग्रेजों के रूल्स भारत में चलते थे। शासन व्यवस्था अंग्रेजों के पास ही थी। अंग्रेजों के विरुद्ध कई भारतीयों ने विद्रोह किया है, जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहा गया। ऐसा विद्रोह सभी स्तर पर किया गया है। एक आम आदमी से लेकर एक राजा द्वारा भी विद्रोह किया गया है। अंग्रेजों के शासन के पहले भारत कोई एक देश नहीं था बल्कि अलग-अलग इलाकों पर अलग-अलग राजाओं की हुकूमत रहा करती थी, बहुत सारी रियासतें थी। इन रियासतों में कई रियासत अंग्रेजों का समर्थन करती थी और...
लाइसेंस के बगैर ब्याज पर उधार रुपये देना
अनेक लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बैंक द्वारा लोन नहीं दिया जाता है, क्योंकि बैंक लोन लेने के लिए जिन शर्तों को लगाती है, वे लोग इन शर्त को पूरी नहीं कर पाते हैं, बैंक उन्हें लोन लेने का पात्र नहीं मानती है। बैंक की ऐसी शर्त की पूर्ति नहीं करने के कारण व्यक्ति कर्ज़ लेने के लिए निजी लोगों के पास जाता है।ब्याज़ से संबंधित कोई भी काम करने के लिए मनी लेंडिंग एक्ट के अंतर्गत सरकार द्वारा स्थापित संस्था से लाइसेंस लेना होता है। अलग-अलग प्रदेशों में साहूकार अधिनियम भी होता है। इस साहूकार अधिनियम के अंतर्गत...
Criminal law में नेचुरल जस्टिस का महत्व
कानून पार्लियामेंट द्वारा बनाया जाता है। इसे सामान्य बोध में विधायिका द्वारा कानून निर्माण कहा जाता है। लेकिन कानून केवल वही नहीं होता जो विधायिका द्वारा बना दिया जाए अपितु उसमे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का भी दखल होता है। यह वैश्विक अवधारणा है कि कोई भी कानून इस प्रकार नहीं बनाया जाएगा कि उसमे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का अभाव हो। न्याय प्रशासन में प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का महत्वपूर्ण स्थान है। न्याय की सार्थकता प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों पर ही निर्भर करती है। प्राकृतिक न्याय...



















