जानिए हमारा कानून
क्या पंचायती चुनाव में उम्मीदवारों के लिए शैक्षणिक योग्यता और व्यक्तिगत आवश्यकताएं होनी चाहिए?
राजबाला व अन्य बनाम हरियाणा राज्य के महत्वपूर्ण फैसले में हरियाणा पंचायती राज अधिनियम, 1994 में किए गए संशोधन, विशेषकर शैक्षणिक योग्यता (Educational Qualifications) और कुछ व्यक्तिगत आवश्यकताओं (Personal Requirements) को चुनाव में खड़े होने के लिए जरूरी बनाने की संवैधानिकता पर सवाल उठाया गया था।याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि ये संशोधन भारतीय संविधान (Constitution of India) के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लंघन करते हैं, खासकर कमजोर वर्ग के लोगों को चुनाव में...
भारत में चुनाव और संविधान पर प्रमुख फैसले : मतदान और चुनाव लड़ने का अधिकार
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की व्याख्या करके चुनावी प्रक्रिया और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है। राजबाला मामले में चर्चा किए गए महत्वपूर्ण फैसले चुनावी अधिकारों और विधायी शक्तियों पर मूल्यवान दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। इस लेख में उन प्रमुख फैसलों पर चर्चा की गई है, जिन्होंने चुनावों और संवैधानिक कानून को प्रभावित किया है।1. मतदान और चुनाव लड़ने का अधिकार (Right to Vote and Contest Elections) अनुच्छेद 326 के तहत मतदान का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है, लेकिन...
सेशन कोर्ट में मुकदमे की प्रारंभिक प्रक्रिया : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत सेक्शन 248 – 250
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदलते हुए एक नई कानूनी प्रक्रिया स्थापित की है। इसके Chapter XIX में सेशन न्यायालय (Court of Session) में मुकदमों की प्रक्रिया को समझाया गया है।इसमें अभियोजन (Prosecution) की भूमिका, आरोपों (Charges) की जानकारी, और आरोपी (Accused) को डिस्चार्ज (Discharge) करने की संभावना पर विशेष जोर दिया गया है। इस लेख में हम BNSS के सेक्शन 248, 249 और 250 को सरल भाषा में समझाएंगे,...
BNSS, 2023 की धारा 247 के तहत आरोपों की वापसी और बरी होने की प्रक्रिया : आरोप प्रबंधन का पूरा ढांचा
धारा 247 का परिचय और इसका महत्व (Importance of Section 247)BNSS (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita), 2023 की धारा 247 चार्ज (Charge) से संबंधित अध्याय का अंतिम प्रावधान है। यह धारा उन स्थितियों पर लागू होती है, जहाँ किसी व्यक्ति पर एक से अधिक आरोप (Charges) लगाए गए हों और इनमें से एक या अधिक आरोपों पर दोष सिद्ध (Conviction) हो गया हो।इस प्रावधान के तहत, शिकायतकर्ता (Complainant) या अभियोजन (Prosecution) अधिकारी, न्यायालय (Court) की सहमति से शेष आरोपों को वापस ले सकते हैं या न्यायालय अपने विवेक...
मृत्युदंड पर भारत की न्यायिक व्याख्या: नियम, प्रावधान और ऐतिहासिक फैसले
भारत में मृत्युदंड कुछ विशेष अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत निर्धारित किया गया है। इनमें धारा 302 (हत्या), धारा 376A (दुष्कर्म जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु या स्थायी कोमा), और धारा 364A (फिरौती के लिए अपहरण आदि) प्रमुख हैं। धारा 364A को 1993 के आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम के तहत जोड़ा गया, ताकि उन अपराधों को कवर किया जा सके जहां फिरौती के लिए अपहरण किया जाता है और पीड़ित को जान से मारने या गंभीर नुकसान की धमकी दी जाती है। यह धारा विशेष रूप से बढ़ते अपहरण के मामलों को ध्यान में...
क्या धारा 364A IPC मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है? सुप्रीम कोर्ट द्वारा फिरौती के लिए अपहरण पर मृत्युदंड का विश्लेषण
विक्रम सिंह @ विक्की बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code - IPC) की धारा 364A की संवैधानिकता पर विचार किया, जो फिरौती के लिए अपहरण या अगवा करने पर मृत्युदंड (Death Penalty) या आजीवन कारावास (Life Imprisonment) का प्रावधान करती है।इस मामले में, यह देखा गया कि क्या धारा 364A के तहत मृत्युदंड का प्रावधान संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से जीवन के अधिकार (Right to Life) के उल्लंघन का कारण बनता है। धारा 364A IPC का पृष्ठभूमि...
अश्लील सामग्री की परिभाषा और उससे जुड़े विक्रय, वितरण, और सार्वजनिक प्रदर्शन का अपराध : धारा 294, भारतीय न्याय संहिता 2023
भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) जैसे पुराने कानूनों को बदलते हुए नए कानूनी ढाँचे पेश किए हैं। इस संहिता की एक महत्वपूर्ण धारा, धारा 294, अश्लीलता (Obscenity) और इससे जुड़े अपराधों पर चर्चा करती है।यह धारा यह स्पष्ट करती है कि अश्लील सामग्री क्या होती है, ऐसे सामग्री के साथ जुड़े हुए अवैध कार्य कौन से हैं और कुछ विशेष मामलों में अपवाद (Exceptions) भी देती है। यहाँ धारा 294 के प्रावधानों का सरल हिंदी में विस्तार से विवरण दिया गया है ताकि इसे बेहतर ढंग से समझा जा...
दहेज के मामले में अननेचुरल डेथ का कड़ा कानून? जानिए
भारतीय संसद ने भी समय-समय पर दहेज विरोधी कानून बनाती रही है तथा समाज में दहेज समर्थक विचारों का अंत करने का प्रयास किया जाता रहा है। घरेलू हिंसा अधिनियम,दहेज प्रतिषेध अधिनियम इत्यादि अधिनियम को बनाकर भारत की संसद में दहेज जैसे अभिशाप से महिलाओं के संरक्षण के संपूर्ण प्रयास किए है। इस ही प्रकार भारतीय न्याय संहिता की धारा 80 के अंतर्गत दहेज़ मृत्यु से संबंधित भी कड़े कानून बनाये गए हैं।दहेज संबंधी अपराधों में दहेज मृत्यु सबसे जघन्य अपराध है। दहेज मृत्यु दहेज की मांग के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होती...
कितनी तरह के होते हैं गवर्नमेंट एडवोकेट? जानिए
गवर्नमेंट एडवोकेट को आम भाषा में सरकारी वकील भी कहा जाता है। ऐसे गवर्नमेंट एडवोकेट अनेक तरह के होते हैं जो अलग अलग अदालतों में शासन की ओर से कार्य करते हैं।पब्लिक प्रोसिक्यूटरपब्लिक प्रोसिक्यूटर की परिभाषा बीएनएसएस धारा (2)(फ़) के अंतर्गत प्राप्त होती है। यह बीएनएसएस की परिभाषा वाला खंड है। इस खंड में पब्लिक प्रोसिक्यूटर की केवल परिभाषा दी गई है। इस परिभाषा के अलावा पब्लिक प्रोसिक्यूटर की नियुक्ति भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 18 के अंतर्गत की जाती है।पहला-जो धारा 24 के अधीन पब्लिक...
अपराध मामलों में पीड़ितों को मुआवजा देने का सुप्रीम कोर्ट का क्या दृष्टिकोण है?
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल के वर्षों में अपराध मामलों में पीड़ितों (Victims) को मुआवजा (Compensation) देने को न्याय (Justice) पाने के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना है।इस फैसले से यह बात स्पष्ट होती है कि न्यायालय का ध्यान अब केवल अपराधियों (Offenders) को दंडित करने के बजाय पीड़ितों की हालत और उनके पुनर्वास (Rehabilitation) पर भी है। मनोज सिंह बनाम राजस्थान राज्य (Manohar Singh v. State of Rajasthan) में न्यायालय ने पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा देने के लिए अदालतों की ज़िम्मेदारी पर जोर दिया और...
भारत में पीड़ितों के मुआवजे पर महत्त्वपूर्ण फैसले और कानूनी प्रावधान
अपराध मामलों में पीड़ितों को मुआवजा (Compensation) देना अब भारत की न्याय प्रणाली (Justice System) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। पीड़ितों को राहत देने की आवश्यकता को मान्यता देते हुए, भारतीय अदालतें अब अपराधियों (Offenders) को केवल दंडित (Punishment) करने पर ही नहीं, बल्कि पीड़ितों को हुए नुकसान का समाधान करने पर भी जोर दे रही हैं।इस दृष्टिकोण का समर्थन कई महत्त्वपूर्ण मामलों और कानूनी प्रावधानों (Provisions) में देखा जा सकता है, जो पीड़ितों को वित्तीय सहायता (Financial Support) और भावनात्मक...
संयुक्त आरोपों का प्रावधान: BNSS 2023, धारा 246 के तहत एक ही ट्रायल में अभियुक्तों का संयुक्त परीक्षण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita), 2023 की धारा 246 में उन विशेष स्थितियों का वर्णन किया गया है जिनमें कई अभियुक्तों का संयुक्त रूप से एक ही ट्रायल में परीक्षण किया जा सकता है।इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य उन मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाना है, जहाँ कई आरोप जुड़े हुए या समान अपराध से जुड़े हों। इसके तहत दिए गए बिंदुओं को विस्तार से समझाते हुए संबंधित प्रावधानों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। 1. एक ही लेन-देन में किए गए समान अपराध के लिए...
मशीनरी, इमारतों और पशुओं के प्रबंधन पर सुरक्षा नियम : सेक्शन 286-290, भारतीय न्याय संहिता, 2023
भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई ज़िम्मेदारियाँ निर्धारित की हैं, जो खतरनाक परिस्थितियों और वस्तुओं के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती हैं।सेक्शन 286 से 291 तक के प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि लोग खतरनाक पदार्थों (Dangerous Substances), मशीनरी (Machinery), इमारतों और जानवरों को संभालते समय उचित सुरक्षा उपाय अपनाएं, ताकि सार्वजनिक स्थानों पर किसी को हानि न पहुंचे। इस लेख में हम हर सेक्शन को सरल भाषा में उदाहरणों के साथ समझाते हैं ताकि लोग अपनी...
क्या अविवाहित मां को पिता की पहचान बताए बिना अपने बच्चे की एकमात्र अभिभावक नियुक्त किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के ABC बनाम स्टेट (एनसीटी ऑफ दिल्ली) 2015 के फैसले में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया कि क्या एक अविवाहित (Unwed) मां अपने बच्चे के पिता की पहचान बताए बिना अभिभावक (Guardian) नियुक्त हो सकती है।यह मामला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि पारंपरिक परिवारिक ढांचा (Family Structure) अक्सर माता-पिता के अधिकारों को प्राथमिकता देता है। कोर्ट के इस फैसले ने एकल माताओं (Single Mothers) और अविवाहित जन्मे बच्चों (Children Born Out of Wedlock) के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत...
जहर, ज्वलनशील या विस्फोटक पदार्थ के प्रबंधन और सार्वजनिक सुरक्षा पर प्रावधान : सेक्शन 286 से 288 भारतीय न्याय संहिता, 2023
भारतीय न्याय संहिता, 2023 में कुछ ऐसे प्रावधान हैं जो खतरनाक पदार्थों (Dangerous Substances) को सुरक्षित रूप से संभालने के नियमों को सुनिश्चित करते हैं, ताकि जनता की सुरक्षा बनी रहे।सेक्शन 286 से 288 में विशेष रूप से ऐसे मामलों पर ध्यान दिया गया है, जहां जहर, ज्वलनशील (Combustible) या विस्फोटक पदार्थ (Explosive Substances) को लापरवाही से संभालना दूसरों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इन प्रावधानों के माध्यम से यह बताया गया है कि लोगों को इन पदार्थों के उपयोग में आवश्यक सावधानियां बरतनी चाहिए। इस...
क्या यौन अपराधों में सजा कम करने के लिए समझौते को मान्यता दी जा सकती है?
यौन अपराधों में समझौते का मूलभूत प्रश्न (Fundamental Issue of Compromise)State of Madhya Pradesh v. Madanlal (2015) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि क्या यौन अपराधों में सजा कम करने के लिए समझौते (Compromise) को मान्यता दी जा सकती है। इस निर्णय में, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यौन अपराध (Sexual Offense), जो किसी महिला की गरिमा (Dignity) और शारीरिक स्वतंत्रता (Bodily Autonomy) का उल्लंघन करता है, में समझौते की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने यह फैसला दिया कि ऐसा...
गंभीर आरोप साबित न होने पर छोटे अपराध में दोषसिद्धि कैसे संभव? : सेक्शन 245 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita - BNSS), 2023 में आपराधिक मामलों में ट्रायल (Trial) से जुड़े प्रावधानों को विस्तार से निर्धारित किया गया है, जिसमें विभिन्न आरोपों को एक साथ मिलाने (Joinder of Charges) के नियम शामिल हैं।ये प्रावधान विशेष रूप से उन स्थितियों के लिए हैं, जहां संबंधित अपराधों का एक ही ट्रायल हो सकता है या आरोपों को साक्ष्यों के आधार पर विभिन्न संभावित अपराधों में बदला जा सकता है। संहिता का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को अधिक सरल बनाना है ताकि अपराधी...
संदेहजनक स्थितियों में आरोपों का संयोजन : सेक्शन 244, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 के अध्याय XVIII में आपराधिक मामलों में आरोप तय करने की प्रक्रिया पर ध्यान दिया गया है।इस अध्याय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा "अपराधों का संयोजन" (Joinder of Charges) है, जिसमें उन स्थितियों का उल्लेख है जहाँ कई आरोपों को एक ही परीक्षण में संयोजित किया जा सकता है, विशेषकर तब जब अपराध या घटनाएं एक दूसरे से संबंधित हों या जब एक अपराध के साक्ष्य के आधार पर कई अपराधों का शक हो। सेक्शन 244 विशेष रूप से इस बात को स्पष्ट करता है कि ऐसे मामलों में कब और कैसे आरोप...
संविधान का अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उचित प्रतिबंधों का संतुलन
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 नागरिकों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में।यह अनुच्छेद संविधान के भाग III में शामिल है और इसमें कई महत्वपूर्ण स्वतंत्रताएं दी गई हैं, जिनमें से अनुच्छेद 19(1)(a) विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। हालांकि, यह स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है; अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों का उल्लेख किया गया है, ताकि समाज में संतुलन बनाए रखा जा सके, राष्ट्रीय...
श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ: डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा
श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मामला भारतीय संवैधानिक कानून (Constitutional Law) में एक ऐतिहासिक फैसला है, खासकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम 2000 की धारा 66A की संवैधानिकता पर सवाल उठाया, जिसमें "आपत्तिजनक" संदेश भेजने पर आपराधिक दंड का प्रावधान था।अपने निर्णय में, न्यायालय ने इस धारा को असंवैधानिक मानते हुए खारिज कर दिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित बताया। यह लेख इस निर्णय का...