Surrogacy (Regulation) Act, 2021: सरोगेसी कानून के उद्देश्य, प्रमुख प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट में हालिया चुनौती

Himanshu Mishra

29 April 2025 10:41 AM

  • Surrogacy (Regulation) Act, 2021: सरोगेसी कानून के उद्देश्य, प्रमुख प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट में हालिया चुनौती

    भारत में सरोगेसी (Surrogacy) एक संवेदनशील सामाजिक और कानूनी विषय रहा है। सरोगेसी वह प्रक्रिया है जिसमें एक महिला किसी अन्य दंपत्ति (Couple) के लिए गर्भधारण (Pregnancy) करती है और बच्चे के जन्म के बाद उसे उस दंपत्ति को सौंप देती है। पहले भारत में सरोगेसी को लेकर कोई विशेष कानून नहीं था जिससे surrogate mothers का शोषण (Exploitation) होता था और सरोगेसी का बाज़ारीकरण (Commercialization) हो गया था।

    सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 को इसी स्थिति को सुधारने के लिए बनाया गया। यह अधिनियम 25 जनवरी 2021 से लागू हुआ और इसका उद्देश्य केवल परोपकारी सरोगेसी (Altruistic Surrogacy) की अनुमति देना और व्यावसायिक सरोगेसी (Commercial Surrogacy) पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना है।

    यह हाल ही में चर्चा में क्यों है? (Why is it in the News Recently?)

    हाल ही में सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक महत्वपूर्ण संवैधानिक चुनौती के कारण सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट में एक 45 वर्षीय तलाकशुदा व्यक्ति ने एक रिट याचिका दायर कर अधिनियम की धारा 2(1)(s) की वैधता को चुनौती दी है।

    इस धारा के अनुसार केवल विधवा या तलाकशुदा महिलाएं (35 से 45 वर्ष की उम्र के बीच) ही सरोगेसी की प्रक्रिया का लाभ ले सकती हैं, जबकि तलाकशुदा या अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर रखा गया है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

    सुप्रीम कोर्ट अब यह तय करेगा कि क्या इस प्रकार से पुरुषों को सरोगेसी से वंचित करना संविधान सम्मत है या नहीं। यह फैसला न केवल अधिनियम की वैधता बल्कि भारत में प्रजनन अधिकारों की सीमाओं को भी नई दिशा देगा।

    महत्वपूर्ण परिभाषाएं और दायरा (Key Definitions and Scope)

    इस अधिनियम की धारा 2 में कई आवश्यक परिभाषाएं दी गई हैं। "परोपकारी सरोगेसी" (Altruistic Surrogacy) का अर्थ है कि सरोगेट माँ को केवल चिकित्सकीय खर्च और बीमा (Insurance) के अलावा कोई अन्य भुगतान (Payment) नहीं किया जाएगा। वहीं "व्यावसायिक सरोगेसी" (Commercial Surrogacy) का मतलब है किसी भी तरह का आर्थिक लेन-देन, जो इस अधिनियम के तहत पूरी तरह निषिद्ध (Prohibited) है।

    "इच्छुक दंपत्ति" (Intending Couple) केवल ऐसे भारतीय विवाहित स्त्री और पुरुष हो सकते हैं जो महिला के लिए 23 से 50 वर्ष और पुरुष के लिए 26 से 55 वर्ष की आयु सीमा में हों। इसके अलावा "इच्छुक महिला" (Intending Woman) केवल विधवा या तलाकशुदा भारतीय महिला हो सकती है जिसकी आयु 35 से 45 वर्ष के बीच हो।

    इस अधिनियम में तलाकशुदा या अकेले पुरुषों को सरोगेसी का विकल्प नहीं दिया गया है, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के रूप में लंबित है।

    सरोगेसी क्लीनिक का पंजीकरण और नियंत्रण (Regulation of Surrogacy Clinics)

    धारा 3 के अंतर्गत कोई भी सरोगेसी क्लीनिक तब तक कोई प्रक्रिया नहीं कर सकता जब तक वह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत (Registered) न हो। यह अधिनियम किसी भी विज्ञापन (Advertisement), प्रचार या सरोगेसी को बढ़ावा देने वाली किसी भी गतिविधि को प्रतिबंधित करता है, विशेषकर व्यावसायिक सरोगेसी से संबंधित।

    कोई भी डॉक्टर, क्लीनिक, या संस्था सरोगेसी प्रक्रिया केवल उसी स्थिति में कर सकती है जब वह कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो और केवल परोपकारी आधार पर सरोगेसी की अनुमति हो।

    सरोगेसी प्रक्रिया के नियम (Regulation of Surrogacy Procedures)

    धारा 4 में सरोगेसी प्रक्रिया को लेकर स्पष्ट शर्तें रखी गई हैं। सबसे पहले, इच्छुक दंपत्ति को मेडिकल इंडिकेशन (Medical Indication) के आधार पर जिला मेडिकल बोर्ड (District Medical Board) से प्रमाण पत्र (Certificate of Essentiality) लेना होगा, जिसमें यह बताया जाएगा कि उन्हें सरोगेसी की चिकित्सकीय आवश्यकता है।

    साथ ही, प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (Magistrate of First Class) की अदालत से एक आदेश (Court Order) प्राप्त करना आवश्यक है जिसमें जन्म के बाद बच्चे की अभिरक्षा (Custody) और माता-पिता का निर्धारण किया गया हो।

    सरोगेट माँ (Surrogate Mother) बनने के लिए आवश्यक शर्तें हैं – वह महिला विवाहित होनी चाहिए, उसकी आयु 25 से 35 वर्ष के बीच हो, उसका स्वयं का कम से कम एक जीवित बच्चा हो और वह मेडिकल एवं मानसिक रूप से फिट हो। वह अपने जीवन में केवल एक बार ही सरोगेट माँ बन सकती है और अपने अंडाणु (Gametes) का उपयोग नहीं कर सकती।

    सूचित सहमति और अधिकार सुरक्षा (Informed Consent and Rights Protection)

    धारा 6 के अनुसार सरोगेट माँ से प्रक्रिया शुरू करने से पहले उसकी लिखित सहमति (Written Consent) लेना अनिवार्य है, जिसमें उसे प्रक्रिया के सभी दुष्प्रभावों (Side Effects) की जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही, यदि वह चाहे तो भ्रूण प्रत्यारोपण (Embryo Implantation) से पहले सहमति वापस ले सकती है।

    धारा 7 यह सुनिश्चित करती है कि इच्छुक दंपत्ति किसी भी हालत में बच्चे को त्याग नहीं सकते, चाहे वह बच्चा बीमार हो, विकलांग हो या उसका लिंग कोई भी हो। धारा 8 कहती है कि ऐसा बच्चा इच्छुक दंपत्ति का जैविक बच्चा (Biological Child) माना जाएगा और उसे कानून के तहत सभी अधिकार मिलेंगे।

    पंजीकरण और निगरानी तंत्र (Registration and Oversight Mechanisms)

    धारा 11 से 14 तक सरोगेसी क्लीनिकों के पंजीकरण और लाइसेंस को लेकर नियम दिए गए हैं। पंजीकरण तीन वर्षों के लिए वैध होगा और आवश्यक मानकों को पूरा न करने पर निलंबित (Suspended) या रद्द (Cancelled) किया जा सकता है। यदि कोई क्लीनिक या दंपत्ति इससे असंतुष्ट है तो वे सरकार के पास अपील (Appeal) कर सकते हैं।

    धारा 17 के अंतर्गत राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड (National Board) और धारा 26 के अंतर्गत राज्य सरोगेसी बोर्ड (State Board) का गठन किया गया है जो इस कानून के प्रभावी क्रियान्वयन और नीति निर्माण की जिम्मेदारी निभाते हैं।

    धारा 35 से 37 के अंतर्गत “उपयुक्त प्राधिकारी” (Appropriate Authority) नियुक्त की गई है जो पंजीकरण प्रदान करने, निरीक्षण करने और शिकायतों की जांच करने का अधिकार रखती है।

    अपराध और दंड (Offences and Penalties)

    धारा 38 सरोगेसी से संबंधित सभी व्यावसायिक गतिविधियों को अपराध (Offence) घोषित करती है। यदि कोई व्यक्ति व्यावसायिक सरोगेसी करता है, विज्ञापन देता है, बच्चे या सरोगेट माँ का शोषण करता है तो उसे 10 साल की जेल और 10 लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है।

    धारा 39 के अंतर्गत यदि कोई डॉक्टर या क्लीनिक अन्य प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे 5 साल तक की सजा और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। दूसरी बार अपराध करने पर सजा और जुर्माना और अधिक हो सकता है।

    धारा 43 के अनुसार ये सभी अपराध संज्ञेय (Cognizable), गैर-जमानती (Non-bailable) और गैर-समझौता योग्य (Non-compoundable) होंगे।

    अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान (Miscellaneous Provisions)

    धारा 46 के अनुसार सभी रिकॉर्ड्स और दस्तावेज़ 25 वर्षों तक सुरक्षित रखने होंगे। धारा 47 जांच और दस्तावेज़ों की जब्ती का अधिकार देती है।

    धारा 53 एक संक्रमणकालीन अवधि (Transitional Period) प्रदान करती है जिससे अधिनियम के लागू होने से पहले की सरोगेट माँओं के हितों की रक्षा की जा सके।

    संवैधानिक चुनौती और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई (Constitutional Challenge in Supreme Court)

    हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका स्वीकार की है जिसमें एक 45 वर्षीय तलाकशुदा पुरुष ने धारा 2(1)(s) को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के विरुद्ध बताया है।

    इस याचिका में कहा गया है कि यदि विधवा या तलाकशुदा महिला को सरोगेसी की अनुमति है, तो अकेले या तलाकशुदा पुरुषों को यह अधिकार क्यों नहीं दिया जा सकता? यह लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination) है और व्यक्ति की प्रजनन स्वतंत्रता (Reproductive Autonomy) का उल्लंघन है।

    सरकार का तर्क है कि यह सीमा बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए लगाई गई है ताकि किसी भी प्रकार का सामाजिक और नैतिक शोषण न हो।

    यह मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि सुप्रीम कोर्ट धारा 2(1)(s) को असंवैधानिक मानता है, तो यह अधिनियम में बड़े बदलाव की आवश्यकता को जन्म देगा और इससे अविवाहित पुरुषों के लिए भी सरोगेसी का रास्ता खुल सकता है।

    सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 भारत में सरोगेसी की प्रक्रिया को नैतिक, सुरक्षित और विनियमित बनाने की दिशा में एक अहम कदम है। यह कानून सरोगेट माँओं और बच्चों के हितों की रक्षा करता है तथा केवल परोपकारी सरोगेसी को बढ़ावा देता है।

    हालांकि, अधिनियम की कुछ सीमाएं, विशेष रूप से अविवाहित या तलाकशुदा पुरुषों के लिए निषेध, एक संवैधानिक बहस का विषय बन चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल इस अधिनियम की कानूनी वैधता तय करेगा, बल्कि यह यह भी निर्धारित करेगा कि क्या भारत में प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) को लैंगिक और वैवाहिक स्थिति से ऊपर उठकर देखा जा सकता है।

    यह निर्णय भारतीय कानून में समानता और स्वतंत्रता की अवधारणा को और अधिक स्पष्ट करने वाला सिद्ध होगा।

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