धारा 41, राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम 1961 के तहत मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद में न्यायालय शुल्क की गणना
Himanshu Mishra
26 April 2025 11:18 AM

राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) किराया संबंधी मुकदमों में Court Fee (न्यायालय शुल्क) की गणना का स्पष्ट आधार प्रदान करता है। ऐसे मुकदमे, जो मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच होते हैं, आमतौर पर किराए, कब्जे या पट्टे (Lease) के विवाद से जुड़े होते हैं। धारा 41 (Section 41) विशेष रूप से ऐसे ही विवादों में लागू होती है और यह बताती है कि Court Fee किस आधार पर ली जाएगी।
इस लेख में हम धारा 41 के अंतर्गत आने वाले मुकदमों की प्रकृति, उनमें Court Fee की गणना कैसे की जाती है, और इसका उद्देश्य क्या है – यह सब सरल हिंदी में समझेंगे। साथ ही, हम अन्य संबंधित धाराओं जैसे धारा 20, 21 और 24 का भी संक्षेप में उल्लेख करेंगे, ताकि पूरे कानूनी ढांचे को समझा जा सके।
धारा 41(1): मकान मालिक और किरायेदार के बीच निम्न प्रकार के मुकदमे (Suits between Landlord and Tenant)
धारा 41(1) उन मुकदमों की सूची प्रदान करती है जो सीधे तौर पर मकान मालिक और किरायेदार के बीच होते हैं। इन सभी मामलों में Court Fee उस किराए की राशि पर आधारित होगी जो संबंधित संपत्ति (Property) के लिए उस तारीख से ठीक एक साल पहले तक देय थी, जब वाद दाखिल किया गया हो।
इन मुकदमों में निम्नलिखित प्रकार के वाद शामिल हैं:
(1) किरायेदार द्वारा मकान मालिक से पट्टे की प्रति (Counterpart of Lease) प्राप्त करने का वाद।
(2) मकान मालिक द्वारा किराए की वृद्धि (Enhancement of Rent) के लिए दायर वाद।
(3) मकान मालिक द्वारा पट्टा (Lease) किरायेदार को देने के लिए दायर वाद।
(4) वह वाद जहाँ मकान मालिक ने किरायेदार को अवैध रूप से बेदखल (Illegal Eviction) कर दिया हो और किरायेदार पुनः कब्जा (Possession) चाहता है।
(5) ऐसा वाद जिसमें किराएदारी का अधिकार सिद्ध या खंडित (Establish or Disprove Right to Occupy) किया जाता है।
इन सभी प्रकार के वादों में Court Fee उस सालाना किराए पर ली जाएगी जो मुकदमा दाखिल करने की तारीख से ठीक पहले साल में देय था।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए कि रमेश ₹10,000 प्रतिमाह किराया देता था और उसके मकान मालिक ने उसे गलत तरीके से निकाल दिया। रमेश अब कब्जा पाने के लिए मुकदमा करता है। तो Court Fee ₹10,000 x 12 = ₹1,20,000 के आधार पर तय की जाएगी।
इसी तरह, अगर मकान मालिक, दिनेश, किराए को ₹8,000 से बढ़ाकर ₹12,000 करना चाहता है, तो वह जो मुकदमा दायर करेगा, उसमें Court Fee ₹8,000 x 12 = ₹96,000 के आधार पर लगेगी।
धारा 41(2): किराएदार से कब्जा प्राप्त करने का वाद (Recovery of Possession from Tenant)
धारा 41(2) उन मामलों को कवर करती है जहाँ मकान मालिक, किराएदार के खिलाफ संपत्ति का कब्जा वापस पाने का मुकदमा करता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किराएदार की वैध किरायेदारी समाप्त हो चुकी है लेकिन वह फिर भी संपत्ति खाली नहीं करता, यानी वह Tenant Holding Over बन जाता है।
ऐसे मुकदमों में Court Fee दो चीज़ों पर आधारित होती है:
(1) अगर पट्टे में कोई एकमुश्त राशि (Premium) ली गई थी, तो वह भी शामिल होगी।
(2) और उस सालाना किराए की राशि जो मुकदमा दायर करने से एक साल पहले देय थी।
इस तरह दोनों राशियों का योग मुकदमे की मूल्यांकन राशि होगी, जिस पर Court Fee तय की जाएगी।
स्पष्टीकरण (Explanation):
धारा 41 के अंत में यह स्पष्ट किया गया है कि “किराया (Rent)” में केवल नियमित मासिक/वार्षिक किराया ही नहीं, बल्कि किसी अवैध रूप से रुके हुए किरायेदार द्वारा दिए जाने वाले नुकसान (Damages for Use and Occupation) भी शामिल होंगे।
इसका अर्थ यह है कि अगर कोई किराएदार कानूनी किरायेदारी समाप्त होने के बाद भी मकान में रुका हुआ है, तो जो राशि वह मकान के उपयोग के लिए दे रहा है या उस पर दावा किया जा रहा है, वह भी Court Fee निर्धारण में “Rent” मानी जाएगी।
अन्य संबंधित धाराओं का संदर्भ (Reference to Related Sections)
धारा 20 इस अधिनियम की मूलधारा है जो यह बताती है कि Court Fee की गणना कैसे की जाएगी। धारा 21 पैसों के मामलों में Court Fee की गणना बताती है, जबकि धारा 24 और 25 अचल संपत्ति (Immovable Property) से संबंधित वादों में मूल्यांकन की पद्धति को स्पष्ट करती हैं। ये सभी धाराएं धारा 41 के दायरे में आने वाले वादों को समझने और लागू करने में सहायक हैं।
विशेष रूप से धारा 24 और 25 में यह बताया गया है कि अचल संपत्ति से संबंधित किसी वाद में यदि कब्जे या अधिकार की घोषणा की मांग की जाती है, तो मूल्यांकन बाज़ार मूल्य या किराए पर आधारित होगा। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि धारा 41 क्यों किराए के एक वर्ष की गणना पर आधारित है – ताकि वाद की आर्थिक महत्ता को ठीक से समझा जा सके।
उद्देश्य और व्यावहारिक महत्त्व (Purpose and Practical Importance)
धारा 41 का उद्देश्य स्पष्ट है – मकान मालिक और किरायेदार के बीच के सामान्य विवादों में Court Fee का एक पारदर्शी और समान तरीका निर्धारित करना। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को सरल और निष्पक्ष बनाता है ताकि वादी और प्रतिवादी दोनों को यह पहले से ज्ञात हो कि मुकदमा दायर करने पर कितना शुल्क देना होगा।
इसके अतिरिक्त, धारा 41 यह भी सुनिश्चित करती है कि वाद की गंभीरता और उस पर लगने वाली न्याय लागत में संतुलन बना रहे। किराया एक परिभाषित और ज्ञात राशि होती है, जिससे Court Fee का निर्धारण व्यावहारिक रूप से संभव हो जाता है।
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 41 मकान मालिक और किरायेदार के बीच के सामान्य विवादों में Court Fee की गणना का सटीक तरीका प्रस्तुत करती है। चाहे वह पट्टे से संबंधित हो, किराया बढ़ाने की मांग हो, अवैध बेदखली हो, या कब्जे का अधिकार साबित करने का मामला हो – हर स्थिति में पिछले एक वर्ष के किराए के आधार पर Court Fee तय होती है।
अगर कब्जा समाप्त होने के बाद भी किराएदार रुका हुआ है, तो किराए के साथ प्रीमियम (Premium) या उपयोग के लिए मांगे गए नुकसान (Damages) भी इसमें शामिल होते हैं। इस तरह से यह धारा न केवल न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाती है, बल्कि इसमें किसी प्रकार का भ्रम भी नहीं रहने देती।
इस प्रावधान के माध्यम से कानून यह सुनिश्चित करता है कि न्याय सभी के लिए सुलभ रहे, और मकान मालिक-किरायेदार जैसे साधारण परंतु संवेदनशील विवादों में आर्थिक बाधा न्यूनतम हो। धारा 41 एक संतुलित और व्यावहारिक कानूनी व्यवस्था प्रस्तुत करती है, जो न केवल न्यायिक दक्षता को बढ़ाती है बल्कि समानता और पारदर्शिता को भी बनाए रखती है।