जानिए हमारा कानून
POCSO Act की धारा 4 पर अदालतों के फैसलें
इस एक्ट की धारा 4 प्रवेशन लैंगिक हमले से संबंधित है। अदालतों ने समय समय पर ऐसे निर्णय दिए हैं जो इस धारा से संबंधित हैं। यदि सम्बद्ध विषय के बारे में अभियोजन का साक्ष्य लेने अभियुक्त की परीक्षा करने और अभियोजन और प्रतिरक्षा को सुनने के पश्चात् न्यायाधीश का यह विचार है कि इस बात का साक्ष्य नहीं है कि अनियुक्त ने अपराध किया है तो न्यायाधीश दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।राजस्थान राज्य बनाम नूरे खान एआईआर 2000 एससी 1812 के मामले में दोषमुक्ति के आदेश की वैधानिकता कोर्ट को महिलाओं पर लैंगिक हमले...
POCSO Act में पीड़ित बालक की उम्र के आधार पर सज़ा का निर्धारण
इस एक्ट में सज़ा पीड़ित बालक की उम्र देखकर तय की जाती है। राज नाथ बनाम उप्र राज्य 2003 के प्रकरण में चिकित्सा अधिकारी का कथन संदेह से परे यह साबित करता है कि लड़की, जो एक वर्ष से कम आयु की थी, के साथ अपीलार्थी के द्वारा बलात्संग कारित किया गया था। अभियोजन मामले को नामंजूर करने के लिए पूर्ण रूप में कोई कारण नहीं है और विद्वान अवर कोर्ट अपीलार्थी को दोषसिद्ध करते हुए अभियोजन मामले पर विश्वास व्यक्त करने में पूर्ण रूप में न्यायसंगत था।टी के गोपाल बनाम कर्नाटक राज्य,1999 के मामले में, पीड़िता डेढ़ वर्ष...
POCSO Act में किसी भी अपराध के लिए प्रदान किया गया दण्ड सुसंगत होना चाहिए
अपराध और दण्ड के बीच का अनुपात ऐसा लक्ष्य है जिसका सिद्धांत सम्मान किया गया था और भ्रामक विचारधाराओं के बावजूद दण्डादेश के निर्धारण में यह सशक्त प्रभाव रखता है। समान कठोरता के साथ सभी गम्भीर अपराधों को दण्डित करने का व्यवहार अब सभ्य समाज में अज्ञात है. परन्तु आनुपातिकता के सिद्धांत से ऐसा मूलभूत विचलन विधि से केवल हाल के समयों में ही समाप्त हुआ है।अपर्याप्त दण्डादेश अधिरोपित करने के लिए असम्यक् सहानुभूति विधि की प्रभावकारिता में जन विश्वास को क्षीण करने के लिए न्यायिक प्रणाली को और अधिक हानि...
POCSO Act की धारा 4 के प्रावधान
इस अधिनियम की धारा 4 में प्रवेशन लैंगिक हमले के लिए दण्ड की व्यवस्था की गयी है। धारा के अनुसार-[(1)] जो कोई प्रवेशन लैंगिक हमला कारित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।(2) जो कोई सोलह वर्ष से कम आयु के किसी बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए...
POCSO Act लैंगिक हमला के मामले में बलात्संग के आपराधिक लक्षण
इस अपराध के आपराधिक लक्षण को निर्धारित करने में निम्नलिखित प्रारूपिक स्थितियों, जहाँ पर बलात्संग अधिकांशत होता है, को सुभेदित करना महत्वपूर्ण होता हैबलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति पार्टी, विवाह के स्वागत, आदि में रहते समय बलात्संग कारित करने के आशय से उस मदमत्त स्थिति का लाभ लेता है,बलात्संग करित करने वाला व्यक्ति पीड़िता से सार्वजनिक स्थान (रेस्तरां में या बीच आदि पर) मिलता है, और धोखा के माध्यम से उसे एकान्त स्थान पर ले जाता है, जहाँ पर बलात्संग कारित किया जाता है।बलात्संग कारित करने वाला...
POCSO Act की धारा 3 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 3 में लैंगिक हमला का प्रावधान किया गया है जिसके अनुसार-लैंगिक हमला कोई व्यक्ति प्रवेशन लैंगिक हमला करता है यदि वह(क) अपना लिंग, किसी भी सीमा तक किसी बालक की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है, या(ख) किसी वस्तु या शरीर के किसी ऐसे भाग को, जो लिंग नहीं है, किसी सीमा तक बालक की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में घुसेड़ता है या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है, या(ग) बालक के शरीर के किसी...
POCSO Act में देखरेख में रखा जाने वाला बालक कौन है?
देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाला बालक से ऐसा बालक अभिप्रेत है-(i) जिसके बारे में यह पाया जाता है कि उसका कोई घर या निश्चित निवास स्थान नहीं है और जिसके पास जीवन निर्वाह के कोई दृश्यमान साधन नहीं हैं; या(ii) जिसके बारे में यह पाया जाता है कि उसने तत्समय प्रवृत्त श्रम विधियों का उल्लंघन किया है या पथ पर भीख मांगते या वहाँ रहते पाया जाता है; या(iii) जो किसी व्यक्ति के साथ रहता है (चाहे वह बालक का संरक्षक हो या नहीं) और ऐसे व्यक्ति ने,(क) बालक को क्षति पहुँचाई है, उसका शोषण किया है, उसके साथ...
POCSO Act में बालक किसे कहा गया है?
इस एक्ट में बालक का सामान्य अर्थ ऐसा कोई व्यक्ति है, जो अट्ठारह वर्ष से कम आयु का हो और इसमें कोई दत्तकग्रहीत, सौतेला अथवा धात्रेय बालक शामिल है।"बालक" का तात्पर्य ऐसा युवा मानव है, जो अभी वयस्क न हुआ हो, जबकि बालक के अधिकारों पर अभिसमय "बालक" को निम्न प्रकार से परिभाषित करती थी :"प्रत्येक मानव, जो अट्ठारह वर्ष से कम आयु का हो, जब तक बालक के द्वारा प्रयोज्यनीय विधि के अधीन वयस्कता पहले ही प्राप्त न कर ली गयी हो ।" 192 देशों के द्वारा अनुसमर्थित दिनांक 20.11.1989 को आयोजित बालक के अधिकारों पर...
POCSO Act क्यों बनाया गया?
बालकों को लैंगिक अपराधों से बचाने के उद्देश्य से पोक्सो एक्ट बनाया गया जिसमें ऐसे कढ़े प्रावधान किए गए हैं जिससे बालकों के साथ घटित होने वाले यह अपराधों में कमी लाई जा सके। इस अधिनियम में कढ़े प्रावधान किए जाने का कारण बालकों के साथ दिन प्रतिदिन होने वाले लैंगिक अपराध ही हैं।संविधान का अनुच्छेद 15 अन्य बातों के साथ ही साथ राज्य को बालकों के लिए विशेष उपबन्ध करने के लिए शक्तियां प्रदान करता है। पुनः अनुच्छेद 39 अन्य बातों के साथ ही साथ यह प्रावधान करता है कि राज्य अपनी नीति का विशिष्ट रूप में इस...
POCSO Act बच्चों के साथ होने वाले लैंगिक अपराधों की रोकथाम का क़ानून
वर्तमान परिदृश्य लैगिक अपराधों में बढ़ती हुई प्रवृत्ति का स्पष्ट कारण यह है कि लैंगिकता, जो जैव-शारीरिकीय घटना है, मानव जीवन के लिए उतना आवश्यक है, जितना भोजन अथवा पानी आवश्यक होता है। वास्तव में, जीवन और मैथुन अपृथक्करणीय होते है। इसके अलावा लैगिक आवेग सभी व्यक्तियों, चाहे वे पुरुष हो या स्त्री हो, धनी हो, या गरीब हो, शिक्षित हो, या अशिक्षित हो, उच्च स्तर का व्यक्ति हो, या निम्न स्तर का व्यक्ति हो, को समान रूप में प्रभावित करते हैं लेकिन व्यक्तियों के बीच कामवासना की भावना उनके वैयक्तिक लक्षण...
चेक बाउंस होने पर कार्यवाही शुरू होने के पहले चेक राशि का बीस प्रतिशत फरियादी को दिया जाना
लोग किसी दूसरे व्यक्ति को नगद रुपए न देकर चेक के माध्यम से खाते में रुपए देने का आश्वासन देते हैं। जैसे कि किसी सामान को खरीदने पर उसके भुगतान को चेक के माध्यम से करना, किसी सेवा को लेने पर उसके भुगतान को चेक के माध्यम से करना या फिर किसी व्यक्ति से रुपए उधार लेने पर उसे चुकता करते समय चेक के जरिए रुपए देना।ऐसे लेनदेन के बाद अनेक मामलों में धोखाधड़ी भी देखने को मिलती है। जहां लोग चेक दे देते हैं लेकिन उनके खाते में चेक जितनी रकम उपलब्ध नहीं होती है या फिर वह गलत साइन कर देते हैं या फिर कोई ऐसा...
पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किये जाने पर फरियादी के अधिकार
क़ानून में किसी भी अपराध में एक पक्ष अभियुक्त का होता है और एक शिकायतकर्ता का होता है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की गई, एफआईआर दर्ज करने के बाद अन्वेषण किया गया। अन्वेषण के बाद कोर्ट में चालान प्रस्तुत नहीं किया गया और पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट देते हुए क्लोजर रिपोर्ट या फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी।इस स्थिति में शिकायतकर्ता व्यथित हो जाता है। क्योंकि शिकायतकर्ता अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास जाता है। उसके साथ घटने वाले किसी अपराध की जानकारी उसके द्वारा पुलिस को...
लड़की का अपने पिता से भरण-पोषण लेने का अधिकार
एक बालिग़ बेटी भी अपने पिता से मेंटेनेंस मांग सकती है यह अधिकार उसे क़ानून ने दिया है। भरण पोषण एक ऐसे व्यक्ति को देना होता है जिस व्यक्ति पर दूसरे लोग आश्रित होते हैं। BNSS में एक पुरुष पर यह जिम्मेदारी डाली गई है कि वे अपने बच्चों, पत्नी तथा आश्रित माता-पिता का भरण पोषण करेगा।भरण पोषण से संबंधित कानून घरेलू हिंसा अधिनियम में भी मिलते हैं, जहां महिलाओं को भरण-पोषण दिलवाने की व्यवस्था की गई है। इसी के साथ हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत भी भरण-पोषण के प्रावधान मिलते हैं। जहां पर एक पत्नी अपने पति...
Gift Deed पर क़ानून
किसी भी प्रॉपर्टी का ट्रांसफर गिफ्ट डीड से भी किया जा सकता है। छोटी छोटी चीजों का दान साधारण तरीके से हो जाता है लेकिन बड़ी संपत्तियों का दान कानून द्वारा निर्धारित की गई प्रक्रिया के जरिए ही होता है। संपत्ति अंतरण अधिनियम किसी भी संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित करता है, जहां मुख्य रूप से अचल संपत्तियों का उल्लेख है।इस अधिनियम के अंतर्गत दान को भी परिभाषित किया गया है। किसी भी संपत्ति को हस्तांतरण करने की प्रक्रिया होती है और प्रकार होते हैं। जैसे विक्रय,दान, हक त्याग,...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में मजिस्ट्रेट के दिए गए संरक्षण आदेश का भंग किया जाना
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 31 संरक्षण आदेश, अन्तिम अथवा अन्तरिम के भंग को उक्त अधिनियम के अधीन अपराध बनाता है। उसमें विहित परिसीमा अवधि की समाप्ति के पश्चात् संज्ञान लेने के लिए रोक विहित करते हुए बीएनएसएस को प्रयोज्यनीयता का विवाद घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 31 के अधीन यथा अभिव्यक्त ऐसे अपराध का केवल संज्ञान लेने के समय ही उद्भूत होगा। प्रत्यर्थीगण के अभिकथित अभित्यजन की तारीख पर कोई संरक्षण आदेश नहीं था और इसके कारण उक्त घटना को उक्त अधिनियम की धारा 31 के अधीन यथा अभिव्यक्त उसे अपराध में...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) के तहत दिए गए फैसलों का Execution
इस एक्ट की धारा 31 में इस एक्ट में दिए गए ऑर्डर के एग्जीक्यूशन की व्यवस्था की गई है अगर कोई व्यक्ति मजिस्ट्रेट के आर्डर को नहीं मानता है तब उसे जेल भिजवा कर ऑर्डर का पालन करवाया जाता है। किसी भी कोर्ट के आदेश को नहीं मानने पर पहले भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंडित किया जाता था लेकिन अभी के अधिनियम ऐसे हैं जिनमें यह व्यवस्था उक्त अधिनियम में ही कर दी गई है। इस ही तरह घरेलू हिंसा अधिनियम में भी दंड की व्यवस्था की गई है।इस एक्ट की धारा 31 के अनुसार-प्रत्यर्थी द्वारा संरक्षण आदेश के भंग के लिए...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में अपील की Hearing और Process
एक्ट की धारा 29 यह प्रावधान करती है कि किसी आदेश से, जिसे मजिस्ट्रेट पारित कर सकता है, अपील 'सत्र कोर्ट के समक्ष होगी। यह उल्लेख करना सुसंगत है कि अधिनियम यह नहीं कहता है कि अधिनियम की धारा 29 के अधीन प्रस्तुत की गई अपील को स्वीकार करते समय तथा सुनते समय सत्र कोर्ट को किस प्रक्रिया का पालन करना है।अपीलों को स्वीकृति, सुनवाई तथा निस्तारण से सम्बन्धित संहिता के प्रावधानों को अधिनियम की धारा 29 के अधीन सत्र कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गई अपील को लागू होना चाहिए। धारा 29 के अधीन अपील 'सत्र कोर्ट के...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में अपील से संबंधित प्रावधान
इस एक्ट की धारा 29 अपील से संबंधित है जिसके अनुसार,उस तारीख से, जिसको मजिस्ट्रेट द्वारा किये गये आदेश की, यथास्थिति, व्यथित व्यक्ति या प्रत्यर्थी पर जिस पर भी पश्चात्वर्ती हो, तामील की जाती है, तीस दिनों के भीतर सेशन कोर्ट में कोई अपील हो सकेगी।धारा 29 मजिस्ट्रेट के द्वारा पारित किये गये किसी आदेश, जो व्यथित व्यक्ति अथवा प्रत्यर्थी, जैसे भी स्थिति हो, पर तामील किया गया हो, के विरुद्ध सत्र कोर्ट के समक्ष अपील के लिए प्रावधान करती है।धारा 29 की उपधारा (3) विवाह तथा विवाह विच्छेद से सम्बन्धित किसी...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) धारा 28 के प्रावधान
धारा 28 के अनुसार-(1) इस अधिनियम में अन्यथा उपबन्धित के सिवाय धारा 12, धारा 18, धारा 19, धारा 20, धारा 21, धारा 22 और धारा 23 के अधीन सभी कार्यवाहियाँ और धारा 31 के अधीन अपराध, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबन्धों द्वारा शासित होंगे।(2) उपधारा (1) की कोई बात, धारा 12 के अधीन या धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन के निपटारे के लिए अपनी स्वयं की प्रक्रिया अधिकथित करने से कोर्ट को निवारित नहीं करेगी।धारा 28 (1) विनिर्दिष्ट रूप से यह प्रावधान करती है कि धारा 12 के अधीन सभी...
घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) की धारा 27 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 27 के अनुसार-(1) यथास्थिति, प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट का न्यायालय, जिसकी स्थानीय सीमाओं के भीतर,(क) व्यथित व्यक्ति स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से निवास करता है या कारबार करता है या नियोजित है; या(ख) प्रत्यर्थी निवास करता है या कारबार करता है या नियोजित है; या(ग) हेतुक उद्भूत होता है,इस अधिनियम के अधीन कोई संरक्षण आदेश और अन्य आदेश अनुदत्त करने और इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए सक्षम कोर्ट होगा।(2) इस अधिनियम अधीन किया गया कोई आदेश...




















