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BNSS 2023 की धारा 444 और 445: पुनरीक्षण के दौरान पक्षकारों की सुनवाई और आदेशों का प्रमाणन
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय 32 में पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं। इस अध्याय की धारा 444 और धारा 445 दो ऐसे महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जो पुनरीक्षण की प्रक्रिया में पक्षकारों की सुनवाई और हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय के निर्णयों के अमल से संबंधित हैं। ये धाराएं प्रक्रिया की पारदर्शिता, न्यायिक व्यवस्था की कार्यकुशलता और न्याय के निष्पादन की दिशा में अत्यंत उपयोगी भूमिका निभाती हैं।इस लेख में हम धारा 444 और 445 को क्रमशः विस्तारपूर्वक और सरल हिंदी में...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 40-ए से 44 : लम्बरदारों की सेवा समाप्ति और ग्राम सेवकों की नियुक्ति
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 में ग्राम स्तर पर प्रशासनिक व्यवस्था और राजस्व संग्रहण के सुचारु संचालन के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। इस अधिनियम की धारा 40-ए से लेकर धारा 44 तक विशेष रूप से लम्बरदार व्यवस्था को समाप्त कर ग्राम सेवकों की नई व्यवस्था को लागू करने की दिशा में बनाई गई हैं। इन धाराओं में स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि ग्राम सेवकों की नियुक्ति कैसे होगी, उनकी सूची कैसे बनाई जाएगी, खाली पदों को कैसे भरा जाएगा और उन्हें कितना पारिश्रमिक दिया जाएगा। यह लेख इन सभी धाराओं को सरल भाषा...
क्या विवाह पूरी तरह टूट जाने पर अदालत इसे मानसिक पीड़ा मानकर विवाह को समाप्त कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने राकेश रमन बनाम कविता (2023) के अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि पति-पत्नी के बीच रिश्ता पूरी तरह से टूट चुका है, वे लंबे समय से अलग रह रहे हैं, और उनके बीच कोई भावनात्मक या सामाजिक जुड़ाव नहीं बचा है, तो यह स्थिति 'क्रूरता' (Cruelty) के रूप में मानी जा सकती है।भले ही Hindu Marriage Act, 1955 में “Irretrievable Breakdown of Marriage” को तलाक का स्वतंत्र आधार नहीं माना गया है, लेकिन कोर्ट ने माना कि ऐसी स्थिति में विवाह को जबरन जीवित रखना दोनों पक्षों पर अत्याचार (Cruelty)...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 32 से 36 : भू अभिलेख निरीक्षण प्रणाली और संबंधित अधिकारियों की भूमिका
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) में ग्रामीण प्रशासन और भूमि अभिलेखों के रख-रखाव से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।इनमें से धारा 32 से लेकर 36 तक की धाराएँ विशेष रूप से पटवारियों, गिरदावर कानूनगो, रिकॉर्ड निरीक्षक तथा सदर कानूनगो जैसे अधिकारियों के कार्यक्षेत्र, नियुक्ति, योग्यता, निरीक्षण व्यवस्था और आम नागरिकों की सूचनाएं देने की जिम्मेदारी को स्पष्ट करती हैं। यह लेख इन धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या करता है जिससे आमजन, किसान तथा राजस्व...
राजस्थान कोर्ट फीस मूल्यांकन अधिनियम 1961 की धारा 50 और 51 के अनुसार वसीयत और उत्तराधिकार पत्र के लिए आवेदन
धारा 50 – वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) के लिए आवेदनयह धारा बताती है कि जब कोई व्यक्ति किसी मृतक (Deceased) की संपत्ति के लिए वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) प्राप्त करना चाहता है, तो उसे एक आवेदन (Application) करना होता है। इस आवेदन के साथ मृतक की पूरी संपत्ति का मूल्यांकन (Valuation) दो प्रतियों (Duplicates) में देना जरूरी होता है। यह मूल्यांकन अधिनियम की अनुसूची III के भाग I में दिए गए फॉर्मेट के अनुसार होना चाहिए। इस आवेदन को...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 443 : हाईकोर्ट की पुनर्विचार याचिकाओं को स्थानांतरित करने या वापस लेने की शक्ति
परिचयभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 एक नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता है, जो देश की न्यायिक व्यवस्था को अधिक आधुनिक, सरल और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से लागू की गई है। इस संहिता में पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित विस्तृत प्रावधान अध्याय 32 (धारा 438 से लेकर धारा 447 तक) में किए गए हैं। इस लेख में हम धारा 443 को विस्तारपूर्वक सरल हिंदी में समझने का प्रयास करेंगे, जो हाईकोर्ट को पुनरीक्षण मामलों को स्थानांतरित करने अथवा अपने पास वापस लेने की विशेष शक्ति प्रदान करती है। धारा 443 का उद्देश्य और...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 32 से 36: भू अभिलेख निरीक्षण प्रणाली और संबंधित अधिकारियों की भूमिका
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) में ग्रामीण प्रशासन और भूमि अभिलेखों के रख-रखाव से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।इनमें से धारा 32 से लेकर 36 तक की धाराएँ विशेष रूप से पटवारियों, गिरदावर कानूनगो, रिकॉर्ड निरीक्षक तथा सदर कानूनगो जैसे अधिकारियों के कार्यक्षेत्र, नियुक्ति, योग्यता, निरीक्षण व्यवस्था और आम नागरिकों की सूचनाएं देने की जिम्मेदारी को स्पष्ट करती हैं। यह लेख इन धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या करता है जिससे आमजन, किसान तथा राजस्व...
क्या NDPS Act के तहत ट्रायल में देरी होने पर जमानत दी जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने मो. मुस्लिम बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) के फैसले में यह अहम सवाल उठाया कि क्या एनडीपीएस कानून (NDPS Act) के तहत किसी आरोपी को जमानत (Bail) दी जा सकती है जब ट्रायल में अत्यधिक देरी हो रही हो?इस फैसले में यह साफ किया गया कि यदि ट्रायल लंबा खिंचता है और आरोपी को बिना दोषी ठहराए सालों तक जेल में रखा जाता है, तो यह अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत मिलने वाले जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार (Right to Life and Liberty) का उल्लंघन हो सकता है। एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 का मतलब (Meaning of...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 441 और 442 के अंतर्गत एडिशनल सेशन जज तथा हाईकोर्ट की पुनर्विचार शक्ति
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) देश में आपराधिक प्रक्रिया का नया आधार है, जो पुरानी प्रक्रिया संहिता की जगह लेकर 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है।इस संहिता का अध्याय बत्तीस (Chapter XXXII) पुनरीक्षण (Revision) और संदर्भ (Reference) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है। इस लेख में हम धारा 441 और 442 के माध्यम से यह समझने का प्रयास करेंगे कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) और हाईकोर्ट (High Court) को किन-किन परिस्थितियों में...
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 48 और 49: उन Suits का मूल्य निर्धारण जिनके लिए कोई विशेष प्रावधान मौजूद नहीं है
धारा 48 का उद्देश्य उन वादों (Suits) की वैल्यू तय करना है जिनके लिए इस अधिनियम (Act) या किसी अन्य कानून (Law) में स्पष्ट रूप से कोई वैल्यू निर्धारण का तरीका नहीं दिया गया है।उपधारा (1) कहती है कि यदि किसी वाद (Suit) की वैल्यू तय करने के लिए अदालत की अधिकारिता (Jurisdiction) के उद्देश्य से कोई विशेष प्रावधान मौजूद नहीं है, तो उस वाद की वैल्यू वही मानी जाएगी जो कोर्ट फीस (Court Fees) निकालने के लिए मानी जाती है। यानी, जिस रकम के आधार पर कोर्ट फीस ली जाती है, वही रकम अदालत की अधिकारिता तय करने के...
क्या केवल प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना यूएपीए के तहत अपराध माना जा सकता है?
परिचय: कोर्ट के सामने उठे मौलिक संवैधानिक सवाल (Fundamental Constitutional Issues)सुप्रीम कोर्ट ने अरूप भुइयां बनाम असम राज्य (2023) के निर्णय में एक बेहद अहम सवाल पर विचार किया — क्या केवल किसी प्रतिबंधित संगठन (Banned Organization) का सदस्य (Member) होने मात्र से कोई व्यक्ति अपराधी माना जा सकता है? यह मामला Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 (UAPA) की धारा 10(अ)(i) (Section 10(a)(i)) की वैधता और व्याख्या (Interpretation) से जुड़ा था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 29 30 और 31 में बताए गए राजस्व अधिकारियों और पटवारियों से जुड़े प्रावधान
धारा 29 – अधिकारियों की अस्थायी अनुपस्थिति में कार्यभार का प्रबंधनधारा 29 एक ऐसी स्थिति के बारे में है जब कोई राजस्व अधिकारी अस्थायी रूप से अपने कार्य से अनुपस्थित हो जाता है। यह अनुपस्थिति किसी भी कारण से हो सकती है, जैसे – अवकाश पर जाना, बीमार होना, या अन्य प्रशासनिक कारणों से कुछ समय के लिए कार्य से दूर रहना। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अधिकारी की अनुपस्थिति के दौरान उसके कार्यालय का कार्य बाधित न हो और जनता को कोई असुविधा न हो। इस धारा में दो प्रकार की स्थितियाँ बताई गई हैं।...
राजस्थान न्यायालय शुल्क मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 46 और 47: सामान्य अपीलों में शुल्क
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan C ourt Fees and Suits Valuation Act, 1961) न्यायालयों में दायर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के दीवानी वादों (Civil Suits) और अपीलों (Appeals) पर लगने वाले शुल्क (Court Fees) और उनके मूल्यांकन (Valuation) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है।इस अधिनियम की धाराएँ 46 और 47 विशेष रूप से मुआवजा संबंधित आदेशों के विरुद्ध अपीलों और सामान्य अपीलों में शुल्क निर्धारण से संबंधित हैं। इस लेख में हम इन धाराओं का सरल हिंदी में विस्तृत...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 439 और 440: हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट की जांच और पुनर्विचार की शक्तियों
भूमिकाभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) भारत में दंड प्रक्रिया से संबंधित प्रमुख कानून है। इसमें आपराधिक मामलों की सुनवाई, जांच, पुनरीक्षण और अपील से जुड़ी प्रक्रियाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है। संहिता के अध्याय 32 (अध्याय XXXII) में 'संदर्भ और पुनरीक्षण' (Reference and Revision) की प्रक्रिया को समाहित किया गया है। इस अध्याय की प्रारंभिक धाराएं जैसे धारा 436, 437 और 438 यह स्पष्ट करती हैं कि किस प्रकार कोई निचली अदालत हाईकोर्ट को संदर्भ भेज सकती...
SC/ST Act की धारा 3 के प्रावधान
अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री को साशय, यह जानते हुए स्पर्श करेगा कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित है, जबकि स्पर्श करने का ऐसा कार्य, लैंगिक प्रकृति का है और प्राप्तिकर्ता की सहमति के बिना है;अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री के बारे में, यह जानते हुए कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित है, लैंगिक प्रकृति के शब्दों, कार्यों या अंगविक्षेपों का उपयोग करेगा;स्पष्टीकरण- उपखण्ड (1) के प्रयोजनों के लिए "सहमति" पद से कोई सुस्पष्ट...
SC/ST Act अत्याचार निवारण से संबंधित प्रावधान
भारत के पार्लियामेंट ने इस अधिनियम में अत्याचार निवारण से संबंधित प्रावधान इस प्रकार किये हैं-अत्याचार के अपराधों के लिए दंड-1[ (1) कोई भी व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है-(क) अनुसूचति जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के मुख में कोई अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ रखता है या ऐसे सदस्य को ऐसे अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूत करेगा;(ख) अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा दखलकृत परिसरों में या परिसरों के प्रवेश द्वार पर मल-मूत्र, मल,...
SC/ST Act में अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां
संविधान का अनुच्छेद 341, 342 और 366 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को परिभाषा का वर्णन करता है, जो निम्न प्रकार से पठित है-अनुसूचित जातियाँ-(1) राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के सम्बन्ध में और जहाँ तक वह राज्य है, वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात लोक अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भागों में या उनमें के समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य या उस संघ...
SC/ST Act से संबंधित प्रावधान
संविधान में दिए गए आरक्षण के अधिकार अनुसूचित जनजाति के सिविल अधिकार हैं इसी प्रकार दांडिक विधि में अनुसूचित जनजाति तथा अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण के उद्देश्य से 1989 में एक आपराधिक अधिनियम पारित किया गया। अधिनियम का उद्देश समाज में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचारों को रोकना जैसे कि उनका बहिष्कार करना उनसे अस्पृश्यता का स्वभाव रखना अनेक ऐसे कार्य है जो मानव गरिमा को कलंकित कर देते हैं। इन कार्यों को रोकने के उद्देश्य से ही भारत की पार्लियामेंट में अधिनियम को...
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 43, 44 और 45
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) न्यायालयों में दायर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के दीवानी वादों (Civil Suits) पर लगने वाले शुल्क (Court Fees) और उनके मूल्यांकन (Valuation) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है।इस अधिनियम की धाराएँ 43, 44 और 45 विशेष रूप से सार्वजनिक मामलों (Public Matters), इंटरप्लीडर वादों (Interpleader Suits) और अन्य अप्रदत्त वादों (Suits Not Otherwise Provided For) में शुल्क निर्धारण से संबंधित...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 26, 27 और 28 के अंतर्गत अधिकारियों और न्यायालयों के अतिरिक्त और अंतर्निहित
धारा 26 - न्यायालयों और अधिकारियों के अतिरिक्त अधिकार (Additional Powers of Courts and Officers)राजस्थान सरकार (State Government) के पास यह अधिकार है कि वह एक अधिसूचना (Notification) के माध्यम से विभिन्न राजस्व अधिकारियों को उनके मौजूदा अधिकारों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य अधिकार सौंप सकती है। धारा 26 इस प्रक्रिया को विस्तार से बताती है। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं। राज्य सरकार निम्नलिखित प्रकार से अतिरिक्त अधिकार प्रदान कर सकती है : • Naib-Tehsildar को Tehsildar के सारे या कुछ अधिकार दिए जा...