धारा 433 BNSS, 2023 – जब अपीलीय पीठ के न्यायाधीशों की राय समान रूप से विभाजित हो

Himanshu Mishra

25 April 2025 1:00 PM

  • धारा 433 BNSS, 2023 – जब अपीलीय पीठ के न्यायाधीशों की राय समान रूप से विभाजित हो

    किसी भी आपराधिक न्याय व्यवस्था (Criminal Justice System) में अपील का अधिकार (Right to Appeal) न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) का एक आवश्यक अंग होता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में अध्याय XXX (Chapter XXX) के अंतर्गत अपील से संबंधित विस्तृत प्रक्रियाएं दी गई हैं।

    इन्हीं प्रावधानों में एक महत्वपूर्ण स्थिति तब आती है जब हाईकोर्ट (High Court) में अपील की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों की राय एक समान नहीं होती—यानी वे विभाजित मत (Equally Divided Opinion) में रहते हैं। ऐसी स्थिति से कैसे निपटा जाएगा, इसका स्पष्ट दिशा-निर्देश धारा 433 में दिया गया है।

    धारा 433 का मुख्य उद्देश्य (Objective of Section 433)

    धारा 433 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब अपील की सुनवाई दो या दो से अधिक न्यायाधीशों की एक पीठ (Bench) द्वारा की जाती है और वे किसी निर्णय पर सहमत नहीं होते, तो ऐसी स्थिति में निर्णय देने के लिए एक वैकल्पिक और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई जाए।

    प्रावधान का विश्लेषण (Provision Explained)

    अगर किसी आपराधिक अपील की सुनवाई हाईकोर्ट में एक पीठ (Bench) द्वारा की जा रही है और उस पीठ के न्यायाधीश किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते यानी उनकी राय विभाजित होती है, तो उस अपील को उन दोनों न्यायाधीशों की राय के साथ किसी तीसरे न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

    यह तीसरा न्यायाधीश जो भी निर्णय देगा, वही अंतिम माना जाएगा और उसी के अनुसार अपील का निपटारा किया जाएगा।

    यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस तीसरे न्यायाधीश को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह आवश्यकतानुसार सुनवाई (Hearing) कर सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि उसे अनिवार्य रूप से पूरी सुनवाई फिर से करनी होगी, बल्कि वह तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक भागों की ही सुनवाई कर सकता है।

    वैकल्पिक प्रक्रिया – बड़ी पीठ द्वारा पुनः सुनवाई (Re-hearing by Larger Bench)

    धारा 433 में यह भी उपबंध है कि अगर पीठ के किसी एक न्यायाधीश, या जब अपील किसी तीसरे न्यायाधीश को सौंपी जाती है, और वह न्यायाधीश ऐसा आवश्यक समझे, तो वह अपील को पुनः एक बड़ी पीठ (Larger Bench) के समक्ष भेज सकता है। ऐसी स्थिति में अपील की पुनः सुनवाई (Re-hearing) की जाएगी और बड़ी पीठ द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

    पूर्ववर्ती प्रावधानों से संबंध (Relation with Previous Sections)

    धारा 433 को समझने के लिए धारा 419 (Section 419) और धारा 427 (Section 427) का संदर्भ लेना उपयोगी होगा।

    धारा 419 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि जब राज्य सरकार या शिकायतकर्ता किसी दोषमुक्ति (Acquittal) के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील करता है, तो वह अपील केवल कानूनी प्रश्नों पर आधारित होती है। ऐसे मामलों में अक्सर न्यायाधीशों की राय अलग हो सकती है, विशेष रूप से तब जब साक्ष्य अस्पष्ट हो।

    वहीं, धारा 427 यह बताती है कि अपीलीय न्यायालय को क्या-क्या अधिकार प्राप्त हैं, जैसे दोषमुक्ति को पलटना, पुनः विचारण (Retrial) का आदेश देना, या सजा में परिवर्तन करना। जब ऐसी शक्तियों का प्रयोग विभाजित मतों के आधार पर बाधित होता है, तो धारा 433 की प्रक्रिया लागू होती है।

    उदाहरण (Illustration)

    मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को निचली अदालत ने हत्या के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। राज्य सरकार ने धारा 419 के तहत इस निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट में दो न्यायाधीशों की पीठ ने मामले की सुनवाई की।

    इनमें से एक न्यायाधीश का मानना है कि अभियुक्त को दोषी ठहराना चाहिए था, जबकि दूसरा न्यायाधीश यह मानता है कि अभियुक्त को सही रूप में दोषमुक्त किया गया है। इस स्थिति में निर्णय नहीं हो पाता क्योंकि मत विभाजित है। अब यह मामला धारा 433 के अनुसार तीसरे न्यायाधीश को भेजा जाएगा, जो अपनी राय देगा और उसी के अनुसार निर्णय दिया जाएगा।

    अगर इनमें से कोई न्यायाधीश यह कहता है कि मामला इतना जटिल है कि दो या तीन न्यायाधीशों की राय पर्याप्त नहीं है, तो वह यह मांग कर सकता है कि यह मामला पाँच या उससे अधिक न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के समक्ष रखा जाए। तब पूरे मामले की पुनः सुनवाई की जाएगी।

    न्यायिक विवेक और पारदर्शिता (Judicial Discretion and Fairness)

    धारा 433 न्यायालय को यह विवेक प्रदान करती है कि यदि न्यायाधीशों की राय भिन्न हो, तो वह या तो तीसरे न्यायाधीश की सहायता ले या बड़े पीठ से पुनः सुनवाई कराए। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता (Transparency) और निष्पक्षता (Fairness) को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

    धारा 433 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो अपीलों के निष्पक्ष और संतुलित निपटारे की दिशा में एक आवश्यक गारंटी प्रदान करता है।

    यह न केवल न्यायपालिका की निष्पक्षता को बनाए रखता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि अपील की सुनवाई केवल एकमत पर आधारित हो, न कि जबरन किसी एक निर्णय पर पहुँचा जाए। इससे न केवल दोषमुक्ति या दोषसिद्धि से संबंधित विवादों का निपटारा सुगमता से हो पाता है, बल्कि यह न्याय की प्रक्रिया में जनता का विश्वास भी बनाए रखता है।

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