क्या Default Bail के लिए 60 या 90 दिन की गणना Remand के दिन से शुरू होती है?

Himanshu Mishra

28 April 2025 5:51 PM

  • क्या Default Bail के लिए 60 या 90 दिन की गणना Remand के दिन से शुरू होती है?

    Enforcement Directorate v. Kapil Wadhawan के निर्णय में, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च 2023 को सुनाया, एक अत्यंत महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया — Default Bail (डिफॉल्ट बेल) के अधिकार के लिए 60 या 90 दिन की अवधि की गणना कब से शुरू होती है?

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिस दिन Magistrate (मजिस्ट्रेट) द्वारा Remand (हिरासत) का आदेश दिया जाता है, उसी दिन को गणना में शामिल करना होगा। इस फैसले ने पहले से चले आ रहे विभिन्न विरोधाभासी निर्णयों (Conflicting Judgments) को समाप्त किया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) के संवैधानिक मूल्य को और मजबूत किया।

    Section 167(2) CrPC का महत्व (Understanding Section 167(2) of the CrPC)

    Section 167(2) CrPC पुलिस को यह प्रावधान देता है कि यदि 24 घंटे में जांच पूरी नहीं होती, तो आरोपी को Magistrate के सामने प्रस्तुत किया जाए। Magistrate अधिकतम 15 दिन तक हिरासत की अनुमति दे सकता है। इसके बाद, यदि जांच पूरी नहीं होती है, तो Judicial Custody (न्यायिक हिरासत) ही दी जा सकती है, Police Custody (पुलिस हिरासत) नहीं।

    Section 167(2) का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसका Proviso (अपवाद) है, जो कहता है कि यदि 60 या 90 दिन के भीतर चार्जशीट (Chargesheet) दाखिल नहीं होती, तो आरोपी को Default Bail का अधिकार मिल जाता है। इस अधिकार को "Indefeasible Right" (अविचल अधिकार) कहा गया है, जो एक बार उत्पन्न हो जाने पर छीना नहीं जा सकता।

    मामले में उठाया गया मुख्य प्रश्न (The Central Issue before the Court)

    मुख्य सवाल यह था कि 60 या 90 दिन की गणना में Remand के दिन (पहला दिन) को शामिल किया जाए या नहीं।

    कुछ मामलों जैसे State of Madhya Pradesh v. Rustam और M. Ravindran v. Intelligence Officer ने Remand के दिन को बाहर रखा था। वहीं Chaganti Satyanarayan v. State of Andhra Pradesh और Gautam Navlakha v. NIA ने Remand के दिन को शामिल किया था।

    इन विरोधों के कारण, इस विषय को स्पष्ट करने के लिए एक बड़ी बेंच ने इस मामले में निर्णय दिया।

    पहले के फैसलों का विश्लेषण (Earlier Judgments Discussed)

    Chaganti Satyanarayan में Court ने कहा था कि Remand के दिन से ही गणना शुरू होनी चाहिए, क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom) की रक्षा के लिए जरूरी है।

    दूसरी ओर, Rustam जैसे फैसलों में General Clauses Act, 1897 का सहारा लेकर Remand के दिन को बाहर रखा गया था।

    Supreme Court ने यह कहा कि Rustam का फैसला Chaganti के फैसले को ध्यान में रखे बिना दिया गया था, इसलिए उसे Per Incuriam (अवधारित विधिक गलती) माना गया और अमान्य करार दिया गया।

    General Clauses Act की भूमिका (Role of the General Clauses Act)

    Court ने यह भी देखा कि क्या General Clauses Act, 1897 के Sections 9 और 10 का उपयोग Section 167(2) CrPC के लिए किया जा सकता है। Court ने कहा कि General Clauses Act केवल उन मामलों में लागू होता है जहाँ Limitation Period (सीमा अवधि) स्पष्ट रूप से तय होती है।

    लेकिन Section 167(2) CrPC कोई Limitation Provision नहीं है बल्कि यह एक संवैधानिक सुरक्षा (Constitutional Protection) है, जो Arbitrary Detention (मनमानी हिरासत) से बचाती है। इसलिए General Clauses Act का इस संदर्भ में उपयोग नहीं किया जा सकता।

    Article 21 और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Significance of Personal Liberty under Article 21)

    Court ने यह दोहराया कि Section 167(2) CrPC में दी गई सुरक्षा Article 21 के तहत दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) का विस्तार है। Court ने Maneka Gandhi v. Union of India, A.K. Gopalan v. State of Madras और Kesavananda Bharati v. State of Kerala जैसे ऐतिहासिक मामलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता को केवल न्यायसंगत, उचित और विधिक प्रक्रिया (Fair, Reasonable and Just Procedure) के माध्यम से ही छीना जा सकता है।

    Court ने दार्शनिक John Locke और अन्य विचारकों के स्वतंत्रता संबंधी सिद्धांतों का भी उल्लेख करते हुए कहा कि जब दो व्याख्याएं संभव हों, तो हमेशा वह व्याख्या अपनाई जानी चाहिए जो स्वतंत्रता को बढ़ावा दे।

    Default Bail का अविचल अधिकार (Doctrine of Indefeasible Right to Default Bail)

    Court ने यह भी दोहराया कि Default Bail का अधिकार एक बार बन जाने पर, उसे बाद में Chargesheet दाखिल करके छीना नहीं जा सकता।

    Court ने Sanjay Dutt v. State through CBI, Rakesh Kumar Paul v. State of Assam और Bikramjit Singh v. State of Punjab जैसे निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें स्पष्ट कहा गया था कि जैसे ही निर्दिष्ट अवधि पूरी होती है, आरोपी को स्वतः Default Bail का अधिकार मिल जाता है।

    प्रैक्टिकल स्थितियों पर विचार (Impact of Delay and Practical Examples)

    प्रशासनिक कठिनाइयों जैसे कि देर रात Remand का आदेश पारित होने की आशंकाओं को Court ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि संविधानिक अधिकार (Constitutional Rights) को प्रशासनिक सुविधाओं (Administrative Convenience) के नाम पर बलिदान नहीं किया जा सकता। चाहे रात के किसी भी समय Remand हुआ हो, उसी दिन से गणना शुरू होगी।

    इस प्रकार, यह निर्णय Arbitrary Detention को रोकता है और जांच एजेंसियों को सावधानीपूर्वक और समय पर कार्यवाही करने के लिए बाध्य करता है।

    Supreme Court ने साफ कर दिया कि Section 167(2) CrPC के तहत 60 या 90 दिन की गणना उसी दिन से शुरू होगी जब Magistrate ने Remand का आदेश दिया। यदि इस अवधि के भीतर Chargesheet दाखिल नहीं होती, तो आरोपी को Default Bail का अविचल अधिकार प्राप्त हो जाएगा।

    यह फैसला न केवल पुराने विवादों का निपटारा करता है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान के मूलभूत मूल्यों को भी और अधिक मजबूत करता है। Court ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि Procedural Laws (प्रक्रियात्मक कानूनों) की व्याख्या हमेशा नागरिक स्वतंत्रता (Civil Liberties) के पक्ष में होनी चाहिए, ताकि Rule of Law को बनाए रखा जा सके और Arbitrary Detention को रोका जा सके।

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