राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 25: राजस्व न्यायालयों और अधिकारियों की शक्तियाँ और कर्तव्य

Himanshu Mishra

28 April 2025 11:18 PM IST

  • राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 25: राजस्व न्यायालयों और अधिकारियों की शक्तियाँ और कर्तव्य

    राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत, विभिन्न राजस्व अधिकारियों और न्यायालयों को विशिष्ट शक्तियाँ और कर्तव्य सौंपे गए हैं। धारा 25 विशेष रूप से यह निर्धारित करती है कि कौन-सा अधिकारी अपने क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य करेगा, उसकी सीमाएँ क्या होंगी और उसके अधिकार कितने व्यापक होंगे। इस लेख में हम धारा 25 के प्रत्येक उपखंड को विस्तार से सरल भाषा में समझेंगे, ताकि कोई भी व्यक्ति इसे आसानी से समझ सके।

    धारा 25(1) – संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, उपखण्ड अधिकारी और तहसीलदार के अधिकार और कर्तव्य

    धारा 25(1) के अनुसार, एक संभागीय आयुक्त (Commissioner), एक कलेक्टर (Collector), एक उपखण्ड अधिकारी (Sub-Divisional Officer) और एक तहसीलदार (Tehsildar) अपने-अपने संभाग, जिला, उपखण्ड और तहसील क्षेत्र में राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 या राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 या उस समय लागू किसी अन्य कानून के तहत जो भी शक्तियाँ और कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं, उन्हें निभाएंगे।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी किसान की जमीन पर अतिक्रमण हो गया है, और किसान तहसीलदार के पास शिकायत लेकर जाता है, तो तहसीलदार को उस मामले में उचित कार्यवाही करने और किसान को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी होगी। इसी तरह, यदि किसी भूमि विवाद की अपील उपखण्ड अधिकारी के पास जाती है, तो उसे अपने अधिकारों का प्रयोग कर उस विवाद का निपटारा करना होगा।

    धारा 25(2) – सेटलमेंट कमिश्नर की शक्तियाँ और कर्तव्य

    धारा 25(2) में सेटलमेंट कमिश्नर (Settlement Commissioner) का उल्लेख किया गया है। सेटलमेंट कमिश्नर पूरे राज्य में भूमि बंदोबस्त (settlement) से जुड़ी सभी गतिविधियों का प्रभारी होगा। उसके पास यह अधिकार होगा कि वह भूमि का मापन, सीमा निर्धारण, बंदोबस्त संबंधी विवादों का निपटारा जैसे कार्य करे। ये कार्य या तो इस अधिनियम के तहत या किसी अन्य लागू कानून के तहत सौंपे गए हो सकते हैं।

    कल्पना कीजिए कि राज्य सरकार ने एक जिले में नया बंदोबस्त कार्यक्रम शुरू किया है, जहाँ जमीनों का पुनर्मापन हो रहा है। इस पूरे कार्य की देखरेख और उससे जुड़े सभी कानूनी विवादों का समाधान सेटलमेंट कमिश्नर द्वारा किया जाएगा।

    धारा 25(3) – भूमि अभिलेख निदेशक की भूमिका

    धारा 25(3) के अनुसार, भूमि अभिलेख निदेशक (Director of Land Records) राज्य भर में सर्वेक्षण और भूमि अभिलेखों के निर्माण, संशोधन और रखरखाव के कार्य का प्रमुख अधिकारी होगा। उसे भूमि रिकार्डों की शुद्धता बनाए रखने, नक़्शों और अभिलेखों को अद्यतन करने का अधिकार और कर्तव्य दिया गया है।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी गाँव का नक्शा पुराना हो गया है और उसमें सुधार की आवश्यकता है, तो भूमि अभिलेख निदेशक यह सुनिश्चित करेगा कि नया सर्वेक्षण किया जाए और अद्यतन नक्शे बनाए जाएं।

    धारा 25(4) – भूमि अभिलेख अधिकारी या अध्याय VII के तहत नियुक्त अधिकारी

    धारा 25(4) के अनुसार, भूमि अभिलेख अधिकारी (Land Records Officer) या अध्याय VII के अंतर्गत नियुक्त कोई अधिकारी अपने नियुक्त क्षेत्र में वह सभी कार्य करेगा जो उसे इस अधिनियम या किसी अन्य लागू कानून के तहत सौंपे गए हैं। यह क्षेत्र विशेष रूप से सीमित हो सकता है जैसे कोई एक तहसील या ब्लॉक।

    उदाहरण के तौर पर, एक भूमि अभिलेख अधिकारी को किसी गाँव में भूमि अभिलेखों के विवाद के निपटान हेतु नियुक्त किया जा सकता है, जहाँ वह मौके पर जाकर वास्तविक स्थिति का निरीक्षण करेगा और विवाद सुलझाएगा।

    धारा 25(5) – सेटलमेंट अधिकारी या अध्याय VIII के तहत नियुक्त अधिकारी

    धारा 25(5) कहता है कि सेटलमेंट अधिकारी (Settlement Officer) या अध्याय VIII के तहत नियुक्त कोई अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार में बंदोबस्त से जुड़े कार्यों का संचालन करेगा। इसका मुख्य कार्य भी भूमि का सर्वेक्षण, सीमांकन और भूमि स्वामित्व का निर्धारण करना होगा।

    मान लीजिए, किसी इलाके में लंबे समय से जमीन की माप-जोख नहीं हुई है, और किसानों के बीच विवाद हो रहे हैं। ऐसे में सेटलमेंट अधिकारी नई माप-जोख करवा कर सही रिकॉर्ड तैयार करेगा और स्वामित्व तय करेगा।

    धारा 25(6) – अतिरिक्त अधिकारीगण: उनके अधिकार और स्थिति

    धारा 25(6) के तहत, यदि कोई अतिरिक्त संभागीय आयुक्त (Additional Commissioner), अतिरिक्त सेटलमेंट कमिश्नर (Additional Settlement Commissioner), अतिरिक्त या सहायक भूमि अभिलेख निदेशक (Additional or Assistant Director of Land Records), अतिरिक्त कलेक्टर (Additional Collector) या अतिरिक्त तहसीलदार (Additional Tehsildar) नियुक्त किया गया हो, तो वह उस क्षेत्र के मूल अधिकारी के समान शक्तियाँ और कर्तव्य निभाएगा।

    सरल शब्दों में, यदि किसी जिले में कार्यभार अधिक हो गया है और एक अतिरिक्त कलेक्टर की नियुक्ति हुई है, तो वह भी वही अधिकार और कार्य करेगा जो मुख्य कलेक्टर करता है। उसे राज्य सरकार द्वारा निर्देशित विशिष्ट मामलों में कार्य करने के लिए अधिकृत किया जा सकता है। और जिस समय वह कोई कार्यवाही करेगा, उसे उसी जिले का कलेक्टर माना जाएगा।

    धारा 25(7) – सहायक कलेक्टर और नायब तहसीलदार के अधिकार

    धारा 25(7) के अनुसार, एक सहायक कलेक्टर (Assistant Collector) या नायब तहसीलदार (Naib-Tehsildar) अपने जिले या तहसील में उन सभी शक्तियों का प्रयोग करेगा और उन कर्तव्यों का पालन करेगा जो उसे इस अधिनियम या अन्य किसी लागू कानून के तहत दिए गए हैं। साथ ही, राज्य सरकार भी उसे किसी विशेष आदेश के जरिए अतिरिक्त अधिकार दे सकती है।

    उदाहरण के लिए, किसी तहसील में तहसीलदार अनुपस्थित है, तो नायब तहसीलदार को भूमि संबंधी विवादों का निपटारा करने का अधिकार राज्य सरकार द्वारा विशेष आदेश से दिया जा सकता है।

    धारा 25 राजस्थान भूमि राजस्व व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। यह स्पष्ट रूप से बताती है कि विभिन्न स्तरों पर राजस्व अधिकारी कैसे काम करेंगे, उनके अधिकार क्या होंगे और उनकी सीमाएँ क्या होंगी। इससे न केवल राजस्व व्यवस्था में पारदर्शिता आती है, बल्कि जिम्मेदारियों का स्पष्ट विभाजन भी सुनिश्चित होता है।

    इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि नागरिकों को उनके भूमि से जुड़े अधिकारों और विवादों के निपटान में सही न्याय मिल सके। विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि यह धारा राज्य के प्रशासनिक ढांचे को किस तरह सुचारु और प्रभावी बनाती है।

    अगर यह प्रावधान न होता, तो अधिकारियों के कार्यक्षेत्र और कर्तव्यों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती और न्यायिक प्रक्रिया बाधित होती। इसलिए धारा 25 न केवल प्रशासनिक सुविधा का एक महत्वपूर्ण साधन है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का भी एक प्रभावी उपकरण है।

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