भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 443 : हाईकोर्ट की पुनर्विचार याचिकाओं को स्थानांतरित करने या वापस लेने की शक्ति

Himanshu Mishra

2 May 2025 6:15 PM IST

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 443 : हाईकोर्ट की पुनर्विचार याचिकाओं को स्थानांतरित करने या वापस लेने की शक्ति

    परिचय

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 एक नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता है, जो देश की न्यायिक व्यवस्था को अधिक आधुनिक, सरल और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से लागू की गई है। इस संहिता में पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित विस्तृत प्रावधान अध्याय 32 (धारा 438 से लेकर धारा 447 तक) में किए गए हैं। इस लेख में हम धारा 443 को विस्तारपूर्वक सरल हिंदी में समझने का प्रयास करेंगे, जो हाईकोर्ट को पुनरीक्षण मामलों को स्थानांतरित करने अथवा अपने पास वापस लेने की विशेष शक्ति प्रदान करती है।

    धारा 443 का उद्देश्य और पृष्ठभूमि

    यह धारा विशेष परिस्थितियों में हाईकोर्ट को यह अधिकार देती है कि यदि एक ही आपराधिक मामले में कुछ अभियुक्तों ने पुनरीक्षण की याचिका हाईकोर्ट में लगाई हो और अन्य अभियुक्तों ने सत्र न्यायाधीश के समक्ष, तो ऐसी स्थिति में यह निर्णय लेने का अधिकार केवल हाईकोर्ट को होगा कि इन सभी पुनरीक्षण याचिकाओं का अंतिम निपटारा कौन-सा न्यायालय करेगा।

    यह प्रावधान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि एक ही अपराध में दोषसिद्ध व्यक्तियों के पुनरीक्षण को दो अलग-अलग न्यायालयों द्वारा सुनना न्याय की एकरूपता और सुविधा के खिलाफ हो सकता है। अतः यह धारा एकरूपता, न्यायिक दक्षता और पक्षकारों की सुविधा सुनिश्चित करती है।

    धारा 443 की उपधारा (1) का विश्लेषण

    जब एक ही आपराधिक मुकदमे में एक या अधिक दोषसिद्ध व्यक्तियों ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की हो और उन्हीं में से अन्य व्यक्तियों ने सत्र न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की हो, तब यह हाईकोर्ट का दायित्व है कि वह यह तय करे कि इन सभी याचिकाओं का निपटारा कौन-सा न्यायालय करेगा।

    निर्णय लेते समय हाईकोर्ट को निम्नलिखित बातों पर विचार करना होता है:

    • पक्षकारों की सामान्य सुविधा

    • मामलों में उठाए गए प्रश्नों का महत्व

    यदि हाईकोर्ट को लगता है कि सभी पुनरीक्षण याचिकाओं का निर्णय स्वयं उसे करना चाहिए, तो वह सत्र न्यायाधीश के पास लंबित सभी याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित करने का आदेश देगा। यदि उसे लगता है कि ऐसा करना आवश्यक नहीं है, तो वह अपने समक्ष लंबित याचिकाओं को सत्र न्यायाधीश को स्थानांतरित कर देगा।

    उदाहरण के रूप में समझें

    मान लीजिए कि एक हत्या के मामले में पाँच लोगों को दोषी ठहराया गया। उनमें से तीन ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की और दो ने सत्र न्यायाधीश के समक्ष। अब दोनों स्तरों पर एक ही मामले से संबंधित पुनरीक्षण लंबित हैं। ऐसी स्थिति में धारा 443 लागू होगी और हाईकोर्ट यह तय करेगा कि इन सभी याचिकाओं का निपटारा किस न्यायालय द्वारा होना चाहिए।

    यदि हाईकोर्ट यह समझता है कि न्याय के हित में उसे ही इन सभी याचिकाओं का निपटारा करना चाहिए, तो वह आदेश देगा कि सत्र न्यायालय में लंबित पुनरीक्षण याचिकाएं हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दी जाएं। और यदि वह मानता है कि यह आवश्यक नहीं है, तो वह अपने पास लंबित याचिकाओं को सत्र न्यायाधीश को भेज देगा।

    उपधारा (2) का विश्लेषण

    जब कोई पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट को स्थानांतरित की जाती है, तब हाईकोर्ट उस याचिका के साथ वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा कि वह याचिका सीधे उसी के समक्ष दायर की गई हो।

    इसका तात्पर्य है कि याचिका स्थानांतरित होने के बाद उसकी स्थिति में कोई कमी नहीं आती, न ही उस पर विचार करने की प्रक्रिया में कोई तकनीकी अड़चन उत्पन्न होती है। हाईकोर्ट पुनरीक्षण याचिका पर उसी अधिकार से विचार करेगा जैसे कि वह उस याचिका की मूल अदालत हो।

    उपधारा (3) का विश्लेषण

    जब हाईकोर्ट कोई पुनरीक्षण याचिका सत्र न्यायाधीश को स्थानांतरित करता है, तो सत्र न्यायाधीश भी उस याचिका को ऐसे ही देखेगा जैसे वह उसी के समक्ष विधिवत दायर की गई हो।

    इसका उद्देश्य यह है कि याचिकाकर्ता को दोबारा याचिका दायर करने की आवश्यकता न हो। उसके मूल अधिकारों की रक्षा की जाती है और प्रक्रिया को व्यर्थ जटिलता से बचाया जाता है।

    उपधारा (4) का विश्लेषण

    यह उपधारा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दोहराव और प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकती है। यदि हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को सत्र न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया है और सत्र न्यायाधीश ने उस याचिका का अंतिम निपटारा कर दिया है, तो याचिकाकर्ता दोबारा हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल नहीं कर सकता। न ही वह किसी अन्य न्यायालय के पास जा सकता है।

    इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पुनरीक्षण प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो और एक ही याचिका को बार-बार अलग-अलग मंचों पर सुनवाई के लिए प्रस्तुत न किया जाए।

    एक व्यावहारिक उदाहरण

    मान लीजिए कि बलात्कार के एक मामले में छह अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया। दो अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की और शेष चार ने सत्र न्यायाधीश के समक्ष। हाईकोर्ट यह निर्णय लेता है कि यह मामला गंभीर संवैधानिक और कानूनी प्रश्न उठाता है, अतः सभी याचिकाओं पर स्वयं विचार करेगा। इसके बाद वह शेष चार अभियुक्तों की याचिकाएं भी अपने पास स्थानांतरित कर लेता है। बाद में, सभी छह याचिकाओं पर सुनवाई करके एक समान और न्यायपूर्ण निर्णय पारित करता है। इससे न्यायिक एकरूपता और तर्कसंगतता सुनिश्चित होती है।

    धारा 443 का अन्य संबंधित धाराओं से संबंध

    धारा 443 का गहरा संबंध धारा 440 और धारा 442 से है। धारा 440 में सत्र न्यायाधीश को पुनरीक्षण में सीमित अधिकार दिए गए हैं, जबकि धारा 442 में हाईकोर्ट की विस्तृत पुनरीक्षण शक्तियों का वर्णन है। धारा 443 इन दोनों स्तरों के पुनरीक्षण अधिकारों के बीच सामंजस्य स्थापित करती है और यह सुनिश्चित करती है कि यदि एक ही मामले में दो स्तरों पर पुनरीक्षण याचिकाएं दाखिल हों तो उचित मंच पर इनका समेकित निपटारा हो।

    धारा 443 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण संतुलन स्थापित करती है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक ही आपराधिक मामले में दोषसिद्ध व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग न्यायालयों में दायर पुनरीक्षण याचिकाओं में विरोधाभास न हो, न्यायिक संसाधनों का दुरुपयोग न हो और न्याय की प्रक्रिया बाधित न हो। यह प्रावधान न्यायिक एकरूपता और निष्पक्षता की रक्षा करता है और याचिकाकर्ताओं की सुविधा को प्राथमिकता देता है।

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