भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 441 और 442 के अंतर्गत एडिशनल सेशन जज तथा हाईकोर्ट की पुनर्विचार शक्ति

Himanshu Mishra

1 May 2025 3:21 PM

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 441 और 442  के अंतर्गत एडिशनल सेशन जज तथा हाईकोर्ट की पुनर्विचार शक्ति

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) देश में आपराधिक प्रक्रिया का नया आधार है, जो पुरानी प्रक्रिया संहिता की जगह लेकर 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है।

    इस संहिता का अध्याय बत्तीस (Chapter XXXII) पुनरीक्षण (Revision) और संदर्भ (Reference) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है। इस लेख में हम धारा 441 और 442 के माध्यम से यह समझने का प्रयास करेंगे कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) और हाईकोर्ट (High Court) को किन-किन परिस्थितियों में पुनरीक्षण की शक्ति दी गई है और वह उसे कैसे प्रयोग में ला सकते हैं।

    धारा 441 – अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की शक्ति

    धारा 441 यह स्पष्ट करती है कि कोई भी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, जब कोई मामला उसे स्थानांतरित किया गया हो – चाहे सामान्य आदेश के तहत हो या विशेष आदेश के तहत – तब वह उस मामले में वही सभी शक्तियां प्रयोग कर सकता है जो एक सत्र न्यायाधीश को अध्याय बत्तीस (Chapter XXXII) के अंतर्गत प्राप्त होती हैं।

    यह प्रावधान न्यायिक प्रशासन में सुगमता और प्रभावशीलता को बनाए रखने हेतु महत्वपूर्ण है। इसका उद्देश्य यह है कि सत्र न्यायाधीश को कार्यभार अधिक होने की स्थिति में कुछ मामलों को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को सौंपा जा सके ताकि न्याय वितरण प्रक्रिया बाधित न हो।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी जिले में हत्या के कई मामले एक साथ लंबित हैं और उन सबकी सुनवाई का कार्य एक ही सत्र न्यायाधीश के पास है, तो सत्र न्यायाधीश एक या अधिक मामलों को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को स्थानांतरित कर सकता है। तब अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को भी वही अधिकार प्राप्त होंगे जो मूल रूप से सत्र न्यायाधीश को होते हैं – जैसे कि धारा 438 के अंतर्गत रिकॉर्ड मंगाना या धारा 439 के तहत पुन: जांच का आदेश देना।

    धारा 442 – हाईकोर्ट की पुनरीक्षण शक्तियां

    धारा 442 भारतीय न्याय प्रणाली की उस मूल अवधारणा को आगे बढ़ाती है कि हाईकोर्ट के पास यह अधिकार हो कि वह अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों की जांच कर सके और उसमें आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप कर सके। यह धारा बताती है कि हाईकोर्ट किन परिस्थितियों में और कैसे पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

    (1) हाईकोर्ट की विवेकाधीन शक्ति

    यदि किसी कार्यवाही की सूचना हाईकोर्ट को मिलती है या वह स्वयं उस कार्यवाही का रिकॉर्ड मंगाता है, तो वह अपने विवेक से निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है:

    • धारा 427, 430, 431 और 432 में अपील न्यायालय को दिए गए अधिकारों का प्रयोग

    • धारा 344 में सत्र न्यायालय को दिए गए अधिकारों का प्रयोग

    • यदि पुनरीक्षण सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों की राय विभाजित है, तो मामला धारा 433 के अनुसार निपटाया जाएगा।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी मजिस्ट्रेट द्वारा किसी आरोपी को दोषी मानते हुए तीन वर्ष की सजा सुनाई गई हो, और यह मामला हाईकोर्ट के संज्ञान में आता है, तो हाईकोर्ट उस निर्णय की वैधता, न्यायसंगतता और कानूनी दृष्टिकोण से समीक्षा कर सकता है। यदि उसे कोई त्रुटि दिखे तो वह अपने अधिकार का प्रयोग करके उस निर्णय को सुधार सकता है या समाप्त कर सकता है।

    (2) अभियुक्त को सुनवाई का अवसर

    यह उपधारा कहती है कि हाईकोर्ट तब तक कोई ऐसा आदेश नहीं पारित कर सकता जो अभियुक्त या अन्य पक्षकार के विरुद्ध हो, जब तक उन्हें अपनी बात कहने का अवसर न दिया गया हो – चाहे वह स्वयं उपस्थित होकर हो या अपने वकील के माध्यम से।

    इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हो और कोई भी पक्ष बिना सुने दोषी या पीड़ित घोषित न कर दिया जाए।

    (3) दोषमुक्ति को दोष सिद्धि में बदलने की मनाही

    धारा 442 की तीसरी उपधारा यह स्पष्ट करती है कि हाईकोर्ट को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दोषमुक्त (Acquitted) व्यक्ति को पुनरीक्षण में दोषी घोषित कर दे। यानी, यदि कोई व्यक्ति पहले से बरी हो चुका है, तो उस निर्णय को केवल पुनरीक्षण के माध्यम से पलटा नहीं जा सकता।

    यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रावधान है जो अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करता है। यदि कोई पक्ष उस दोषमुक्ति से असंतुष्ट है, तो उसे अपील का रास्ता अपनाना चाहिए, न कि पुनरीक्षण।

    (4) अपील का विकल्प उपलब्ध हो तो पुनरीक्षण नहीं

    यदि किसी निर्णय के विरुद्ध अपील का अधिकार इस संहिता के अंतर्गत उपलब्ध है और वह पक्ष अपील नहीं करता, तो वह पुनरीक्षण की याचिका दायर नहीं कर सकता। यह न्यायिक प्रक्रिया में अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

    (5) अपील की जगह पुनरीक्षण का विकल्प गलतफहमी में लिया गया हो

    अगर कोई व्यक्ति गलती से यह मानकर कि अपील का कोई विकल्प नहीं है, हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर करता है और हाईकोर्ट को यह प्रतीत होता है कि न्याय के हित में उस आवेदन को अपील याचिका मान लेना चाहिए, तो वह ऐसा कर सकता है।

    यह प्रावधान न्याय व्यवस्था में लचीलापन (Flexibility) प्रदान करता है ताकि न्यायिक त्रुटियों के कारण किसी व्यक्ति को न्याय से वंचित न रहना पड़े।

    धारा 441 और 442 का आपसी संबंध

    धारा 441 और 442 दोनों ही न्यायिक पुनरीक्षण से संबंधित हैं। जहाँ धारा 441 केवल सत्र न्यायालय के आंतरिक प्रशासन से संबंधित है – यानी किसे कौन सा मामला सौंपा जा सकता है – वहीं धारा 442 पुनरीक्षण प्रक्रिया की आत्मा कही जा सकती है, क्योंकि यह हाईकोर्ट की भूमिका को स्थापित करती है।

    धारा 441 और 442 यह सुनिश्चित करती हैं कि न्यायिक प्रक्रिया में अगर कोई त्रुटि हो जाए तो उसे हाईकोर्ट या सक्षम न्यायालय समय रहते सुधार सके। ये धाराएं आपराधिक न्याय व्यवस्था में न्यायसंगतता (Fairness), अधिकारों की सुरक्षा और न्याय की अंतिम गारंटी के रूप में कार्य करती हैं।

    यदि कोई अभियुक्त यह महसूस करता है कि उसके साथ न्याय नहीं हुआ, या निचली अदालत द्वारा कोई गंभीर प्रक्रिया त्रुटि हुई है, तो उसे यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि हाईकोर्ट के पास उसकी जांच और सुधार का अधिकार धारा 442 के अंतर्गत मौजूद है। इसी प्रकार, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भी सत्र न्यायालय की तरह मामलों का पुनरीक्षण और जांच कर सकते हैं, बशर्ते मामला उन्हें सौंपा गया हो।

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