राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 32 से 36: भू अभिलेख निरीक्षण प्रणाली और संबंधित अधिकारियों की भूमिका

Himanshu Mishra

1 May 2025 8:58 PM IST

  • राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 32 से 36: भू अभिलेख निरीक्षण प्रणाली और संबंधित अधिकारियों की भूमिका

    राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) में ग्रामीण प्रशासन और भूमि अभिलेखों के रख-रखाव से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।

    इनमें से धारा 32 से लेकर 36 तक की धाराएँ विशेष रूप से पटवारियों, गिरदावर कानूनगो, रिकॉर्ड निरीक्षक तथा सदर कानूनगो जैसे अधिकारियों के कार्यक्षेत्र, नियुक्ति, योग्यता, निरीक्षण व्यवस्था और आम नागरिकों की सूचनाएं देने की जिम्मेदारी को स्पष्ट करती हैं। यह लेख इन धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या करता है जिससे आमजन, किसान तथा राजस्व अधिकारियों को इसकी समुचित समझ मिल सके।

    धारा 32 : भू अभिलेख निरीक्षण सर्किलों का गठन और परिवर्तन

    धारा 32 के अनुसार, राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने के बाद, भूमि अभिलेख निदेशक (Director of Land Records) प्रत्येक जिले के पटवारी सर्किलों को भूमि अभिलेख निरीक्षण सर्किलों में व्यवस्थित कर सकते हैं। इसका उद्देश्य है कि निरीक्षण की प्रक्रिया अधिक संगठित हो और प्रत्येक पटवारी के कार्यों पर एक नियत अधिकारी द्वारा निगरानी रखी जा सके।

    उदाहरण: मान लीजिए, किसी जिले में 50 गाँव हैं और वहाँ पाँच पटवारी सर्किल बने हुए हैं। भूमि अभिलेख निदेशक इन पाँच पटवारी सर्किलों को एक भू अभिलेख निरीक्षण सर्किल में शामिल कर सकते हैं और उसकी निगरानी के लिए एक निरीक्षक नियुक्त कर सकते हैं। इससे समस्त पटवारी कार्य एक नियंत्रक अधिकारी की देखरेख में होगा।

    धारा 33 : गिरदावर कानूनगो अथवा भू अभिलेख निरीक्षकों की नियुक्ति

    इस धारा के तहत प्रावधान है कि राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन, प्रत्येक भू अभिलेख निरीक्षण सर्किल में एक गिरदावर कानूनगो या भू अभिलेख निरीक्षक (Land Records Inspector) की नियुक्ति जिलाधिकारी (Collector) द्वारा की जाएगी। इस नियुक्ति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वार्षिक अभिलेखों का निरीक्षण, रख-रखाव और सुधार ठीक प्रकार से हो।

    प्रसंग: यदि किसी भू अभिलेख निरीक्षण सर्किल में तीन पटवारियों द्वारा भूमि रजिस्टर तैयार किए जा रहे हैं, तो गिरदावर कानूनगो इन सभी की रिकॉर्ड प्रविष्टियों की निगरानी करता है और समय-समय पर त्रुटियों को ठीक कराता है।

    धारा 34 : सदर कानूनगो की नियुक्ति

    धारा 34 के अनुसार, भू अभिलेख निदेशक (Director of Land Records) राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन, प्रत्येक जिले में एक या एक से अधिक सदर कानूनगो (Sadar Qanungo) नियुक्त करेगा। इनका कार्य गिरदावर कानूनगो और पटवारियों के कार्यों की निगरानी करना होता है। इसके अलावा, वे अन्य कार्य भी करते हैं, जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

    उदाहरण: यदि किसी जिले में कुल 15 भू अभिलेख निरीक्षण सर्किल हैं, तो उस जिले में 2 सदर कानूनगो नियुक्त किए जा सकते हैं, जिनमें से प्रत्येक 7 या 8 सर्किलों के निरीक्षण कार्य की देखरेख करेगा।

    धारा 35 : पटवारियों और कानूनगों की योग्यता और सेवा शर्तें

    इस धारा में यह प्रावधान किया गया है कि पटवारी, गिरदावर कानूनगो, भू अभिलेख निरीक्षक और सदर कानूनगो की योग्यता, सेवा शर्तें तथा कर्तव्यों को राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार नियंत्रित किया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित होता है कि इन पदों पर योग्य और प्रशिक्षित व्यक्ति ही नियुक्त हों और वे अनुशासन में रहकर कार्य करें।

    स्पष्टीकरण: राज्य सरकार नियम बना सकती है कि पटवारी बनने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता क्या हो, कौन-से प्रशिक्षण आवश्यक हैं, तथा नौकरी में पदोन्नति की प्रक्रिया क्या होगी।

    धारा 36 : अभिलेख तैयार करने के लिए आवश्यक जानकारी देना प्रत्येक व्यक्ति की कानूनी जिम्मेदारी

    धारा 36 का उद्देश्य भूमि अभिलेखों की शुद्धता और पूर्णता को सुनिश्चित करना है। इसके अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के अधिकार, हित या देयताएँ किसी कानूनी प्रावधान या नियम के अंतर्गत किसी सरकारी अभिलेख में दर्ज की जानी हैं, तो वह व्यक्ति संबंधित अधिकारी — जैसे पटवारी, गिरदावर कानूनगो, भू अभिलेख निरीक्षक या सदर कानूनगो — द्वारा माँगी गई जानकारी देना कानूनन बाध्य है।

    उदाहरण: यदि किसी गाँव में एक खेत दो भाइयों में बँटा गया है और पटवारी रिकॉर्ड अपडेट करने के लिए जानकारी माँगता है, तो दोनों भाइयों को वह जानकारी देना अनिवार्य होगा। यदि वे जानकारी नहीं देते, तो रिकॉर्ड अधूरा रह जाएगा और भविष्य में विवाद उत्पन्न हो सकता है।

    राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 32 से 36 तक के प्रावधान यह दर्शाते हैं कि भूमि अभिलेखों का निरीक्षण, अद्यतन और निगरानी एक संरचित प्रणाली के तहत होता है। यह प्रणाली विभिन्न स्तर के अधिकारियों — जैसे पटवारी, गिरदावर कानूनगो, निरीक्षक, और सदर कानूनगो के बीच कार्य विभाजन और जिम्मेदारी सुनिश्चित करती है। साथ ही, आम नागरिकों को भी भूमि रिकॉर्ड के अद्यतन में सहयोग करने की कानूनी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

    इन व्यवस्थाओं का उद्देश्य ग्रामीण भूमि व्यवस्था को पारदर्शी, उत्तरदायी और विवाद रहित बनाना है। यदि इन प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन हो, तो भूमि से जुड़ी कई समस्याओं को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।

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