क्या विवाह पूरी तरह टूट जाने पर अदालत इसे मानसिक पीड़ा मानकर विवाह को समाप्त कर सकती है?
Himanshu Mishra
2 May 2025 6:23 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने राकेश रमन बनाम कविता (2023) के अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि पति-पत्नी के बीच रिश्ता पूरी तरह से टूट चुका है, वे लंबे समय से अलग रह रहे हैं, और उनके बीच कोई भावनात्मक या सामाजिक जुड़ाव नहीं बचा है, तो यह स्थिति 'क्रूरता' (Cruelty) के रूप में मानी जा सकती है।
भले ही Hindu Marriage Act, 1955 में “Irretrievable Breakdown of Marriage” को तलाक का स्वतंत्र आधार नहीं माना गया है, लेकिन कोर्ट ने माना कि ऐसी स्थिति में विवाह को जबरन जीवित रखना दोनों पक्षों पर अत्याचार (Cruelty) होगा।
इस फैसले ने यह समझ बढ़ाई कि क्रूरता केवल शारीरिक या अपमानजनक व्यवहार नहीं होता, बल्कि एक ऐसा टूटा हुआ रिश्ता भी हो सकता है जिसमें कोई भावनात्मक शांति, प्रेम या आपसी सम्मान न बचा हो।
कानूनी आधार: हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) (Section 13(1)(ia) of Hindu Marriage Act)
इस धारा के अनुसार, यदि एक पक्ष ने दूसरे पक्ष के साथ क्रूरता (Cruelty) का व्यवहार किया हो, तो विवाह को समाप्त (Divorce) किया जा सकता है। हालांकि कानून में 'क्रूरता' (Cruelty) की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर इसके व्यापक अर्थ बताए हैं। अब यह केवल मारपीट या गाली-गलौज तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि मानसिक पीड़ा, अपमान, या ऐसा व्यवहार जो पति-पत्नी को एक साथ रहने के लिए असहनीय बना दे, उसे भी क्रूरता माना जाता है।
पहले के फैसलों में मानसिक क्रूरता की व्याख्या (Mental Cruelty in Earlier Judgments)
इस फैसले में कोर्ट ने कई पुराने महत्वपूर्ण मामलों का उल्लेख किया। समर घोष बनाम जया घोष के मामले में कोर्ट ने मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) के कई उदाहरण बताए। जैसे यदि लंबे समय तक अलगाव (Separation) बना रहे और कोई सुलह की संभावना न हो, तो यह मानसिक क्रूरता मानी जा सकती है।
नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली के फैसले में कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई पक्ष बार-बार झूठे या दुर्भावनापूर्ण आपराधिक मामले दर्ज कराता है, और वे बाद में खारिज हो जाते हैं या अभियुक्त बरी हो जाता है, तो यह भी क्रूरता (Cruelty) मानी जा सकती है।
इसी प्रकार के. श्रीनिवास राव बनाम डी.ए. दीपा में कोर्ट ने माना था कि अनावश्यक और लगातार कानूनी लड़ाइयों में उलझाना भी मानसिक क्रूरता हो सकती है।
विवाह का सिर्फ कागज़ों पर अस्तित्व होना भी क्रूरता है (Marriage Existing Only on Paper Can Be Cruelty)
इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि जब पति-पत्नी पिछले 25 वर्षों से अलग रह रहे हैं, उनके बीच कोई संपर्क नहीं है, और सभी सुलह के प्रयास विफल हो चुके हैं, तो यह मान लेना चाहिए कि यह विवाह सिर्फ कागज़ पर है और वास्तव में खत्म हो चुका है। ऐसी स्थिति में विवाह को बनाए रखना, दोनों पक्षों के लिए मानसिक कष्ट (Mental Agony) और पीड़ा (Suffering) का कारण बनता है।
कोर्ट ने इससे पहले आर. श्रीनिवास कुमार बनाम आर. शमिता, मनीष कक्कड़ बनाम निधि कक्कड़ और नेहा त्यागी बनाम लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक त्यागी जैसे मामलों में भी ऐसे ही हालात में तलाक की मंजूरी दी थी, भले ही कानून में “Irretrievable Breakdown” अलग से तलाक का आधार नहीं है।
रिश्ते से उत्पन्न क्रूरता, न कि केवल व्यवहार से (Cruelty Arising From Relationship, Not Just Conduct)
कोर्ट ने माना कि कई बार क्रूरता किसी विशेष घटना से नहीं बल्कि उस पूरे रिश्ते की स्थिति से उत्पन्न होती है। यदि वर्षों से कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं है, बार-बार मुकदमेबाजी हो रही है, और दोनों पक्षों के बीच कोई आपसी सम्मान या विश्वास नहीं बचा है, तो यही संबंध खुद में क्रूरता (Cruelty) बन जाता है।
हेल्सबरी लॉ ऑफ इंग्लैंड का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि क्रूरता का आकलन पूरे वैवाहिक संबंध (Matrimonial Relationship) को देखकर किया जाना चाहिए। यह देखा जाना चाहिए कि एक पक्ष के व्यवहार से दूसरे की मानसिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा।
लॉ कमीशन की रिपोर्ट और सुधार की आवश्यकता (Law Commission Reports and Need for Reform)
कोर्ट ने 71वीं और 217वीं Law Commission Reports का हवाला दिया, जिनमें “Irretrievable Breakdown of Marriage” को कानून में तलाक का स्वतंत्र आधार बनाने की सिफारिश की गई थी। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई विवाह वास्तव में समाप्त हो चुका है और केवल कागज़ों पर जिंदा है, तो उसे कानूनी मान्यता देकर समाप्त करना ज़रूरी है ताकि दोनों पक्षों को मानसिक राहत मिल सके।
हालांकि संसद ने अब तक इस सिफारिश को लागू नहीं किया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने Article 142 के विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए ऐसे विवाह को समाप्त करने का रास्ता दिखाया।
मौजूदा मामले में इस सिद्धांत का उपयोग (Application of This Principle in Present Case)
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पति-पत्नी पिछले 25 सालों से अलग रह रहे हैं, उनका कोई संतान नहीं है, और दोनों के बीच कई मुकदमे चले हैं। यह साबित करता है कि यह विवाह पूरी तरह समाप्त हो चुका है। ऐसी स्थिति में विवाह को जबरन बनाए रखना दोनों के लिए मानसिक उत्पीड़न (Mental Cruelty) होगा।
इसलिए कोर्ट ने माना कि यह "Irretrievable Breakdown" है जो अब “Cruelty” के रूप में भी देखा जा सकता है, और इसी आधार पर विवाह को समाप्त करने का आदेश दिया गया।
निष्कर्ष: विवाह विवादों में व्यवहारिक और मानवीय दृष्टिकोण (Conclusion: A Practical and Humane View of Matrimonial Disputes)
यह फैसला दिखाता है कि कोर्ट अब वैवाहिक मामलों में केवल कानून की कठोर व्याख्या पर नहीं बल्कि मानवीय दृष्टिकोण (Human-Centric Approach) और व्यवहारिक समझ पर भी ज़ोर दे रही है। यदि पति-पत्नी के बीच विवाह का कोई भावनात्मक या सामाजिक आधार नहीं बचा, तो ऐसे रिश्ते को केवल कानून के बल पर जीवित रखना अनुचित है।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विवाह एक भावनात्मक साझेदारी (Emotional Partnership) है, न कि एक ऐसा अनुबंध जिसे किसी भी कीमत पर निभाना पड़े। यह फैसला भविष्य के मामलों के लिए दिशा तय करता है कि अगर लंबे समय तक अलगाव, सुलह की असफलता और लगातार तनाव मौजूद है, तो ऐसा विवाह क्रूरता का रूप ले सकता है और उसे समाप्त किया जाना चाहिए।