राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 29 30 और 31 में बताए गए राजस्व अधिकारियों और पटवारियों से जुड़े प्रावधान

Himanshu Mishra

30 April 2025 6:36 PM IST

  • राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 29 30 और 31 में बताए गए राजस्व अधिकारियों और पटवारियों से जुड़े प्रावधान

    धारा 29 – अधिकारियों की अस्थायी अनुपस्थिति में कार्यभार का प्रबंधन

    धारा 29 एक ऐसी स्थिति के बारे में है जब कोई राजस्व अधिकारी अस्थायी रूप से अपने कार्य से अनुपस्थित हो जाता है। यह अनुपस्थिति किसी भी कारण से हो सकती है, जैसे – अवकाश पर जाना, बीमार होना, या अन्य प्रशासनिक कारणों से कुछ समय के लिए कार्य से दूर रहना। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अधिकारी की अनुपस्थिति के दौरान उसके कार्यालय का कार्य बाधित न हो और जनता को कोई असुविधा न हो।

    इस धारा में दो प्रकार की स्थितियाँ बताई गई हैं। पहली स्थिति यह है कि यदि कोई अधिकारी अस्थायी रूप से अनुपस्थित है, तो उस समय उस स्थान पर कार्यरत समान पद का कोई अन्य अधिकारी, या यदि समान पद का अधिकारी उपलब्ध न हो तो उच्च पद का कोई अधिकारी, और यदि उच्च पद का भी कोई अधिकारी वहाँ उपस्थित न हो तो निम्न पद का कोई अधिकारी, बिना अपने सामान्य कार्यों को छोड़े, अनुपस्थित अधिकारी के कार्यालय का कार्यभार संभाल सकता है। वह यह कार्य तब तक करता रहेगा जब तक उस पद पर विधिवत रूप से किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति न हो जाए।

    इस दौरान, वह अधिकारी केवल नियमित या दिनचर्या से जुड़े कार्य (routine duties) ही करेगा। इसका मतलब यह है कि वह विशेष या नीतिगत निर्णय नहीं ले सकता, लेकिन सामान्य प्रक्रियात्मक काम जैसे फाइलें देखना, जनसुनवाई, कार्यालयीन आदेश जारी करना आदि कर सकता है।

    उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि एक तहसीलदार 10 दिनों के अवकाश पर चला जाता है और उसके मुख्यालय पर कोई दूसरा तहसीलदार नहीं है। लेकिन वहाँ एक Assistant Collector कार्यरत है। ऐसी स्थिति में Assistant Collector, तहसीलदार का कार्यभार बिना अपना मूल काम छोड़े संभाल लेगा और नियमित कार्यों को जारी रखेगा।

    इस धारा की दूसरी स्थिति तब लागू होती है जब मुख्यालय पर न तो समान पद का अधिकारी उपलब्ध हो, न ही कोई उच्च पद का अधिकारी और न ही कोई निम्न पद का अधिकारी। ऐसे में कार्यालय का सबसे वरिष्ठ लिपिकीय अधिकारी (Chief Ministerial Official) को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी वाद, प्रकरण या कार्यवाही की सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा सके यानी वह उन्हें स्थगित कर सके (adjournment दे सके)। यह एक सीमित लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण अधिकार होता है क्योंकि इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि अदालत या कार्यालय का कोई कार्य पूरी तरह रुके नहीं।

    इससे यह समझ में आता है कि राज्य शासन ने कार्य की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए एक व्यावहारिक और स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की है ताकि अधिकारी की अस्थायी अनुपस्थिति के कारण आम जनता को कोई परेशानी न हो और प्रशासनिक कार्य बाधित न हों।

    धारा 30 – पटवारी सर्किलों का निर्माण और परिवर्तन

    धारा 30 राज्य में पटवारी व्यवस्था के प्रशासनिक ढांचे से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, भूमि अभिलेख निदेशक (Director of Land Records) को यह अधिकार प्राप्त है कि वह प्रत्येक जिले के गाँवों को विभिन्न पटवारी सर्किलों में विभाजित करें। यह कार्य राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति (previous sanction) से ही किया जा सकता है।

    इस धारा के अंतर्गत दो मुख्य कार्य शामिल हैं – एक तो पटवारी सर्किलों का गठन (formation) और दूसरा उनके सीमाओं या संख्या में बदलाव (alteration)। यह प्रक्रिया समय-समय पर की जा सकती है।

    इसका उद्देश्य यह है कि किसी जिले के गाँवों का प्रबंधन व्यवस्थित और संतुलित ढंग से किया जा सके। यदि किसी सर्किल में गाँवों की संख्या अधिक हो जाती है और पटवारी पर कार्यभार अधिक पड़ने लगता है, तो सर्किल की सीमा को बदला जा सकता है या उसे विभाजित कर दो सर्किल बनाए जा सकते हैं। इसी तरह, यदि किसी क्षेत्र में गाँवों की संख्या कम हो जाती है या कार्य की प्रकृति बदल जाती है, तो सर्किलों को जोड़ा भी जा सकता है।

    उदाहरण के रूप में मान लीजिए कि जयपुर जिले में "पटवारी सर्किल ए" के अंतर्गत 25 गाँव आते हैं, और हाल ही में इन गाँवों में भू-राजस्व से संबंधित कार्यों की मात्रा बहुत बढ़ गई है। ऐसी स्थिति में भूमि अभिलेख निदेशक, राज्य सरकार की अनुमति से इन 25 गाँवों को दो सर्किलों – "पटवारी सर्किल ए1" और "पटवारी सर्किल ए2" – में बाँट सकते हैं, जिससे दोनों सर्किलों में कार्य का भार संतुलित रहे।

    इस प्रक्रिया से ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्व रिकॉर्ड की सटीकता, अद्यतनता और पारदर्शिता बनाए रखने में सहायता मिलती है। यह जनसुविधा और प्रशासनिक कार्यक्षमता दोनों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है।

    धारा 31 – पटवारियों की नियुक्ति

    धारा 31 राजस्थान के राजस्व प्रशासन की रीढ़ माने जाने वाले "पटवारी" पद की नियुक्ति से संबंधित है। यह धारा स्पष्ट करती है कि प्रत्येक पटवारी सर्किल के लिए एक पटवारी की नियुक्ति की जाएगी और यह नियुक्ति संबंधित कलेक्टर (Collector) द्वारा की जाएगी। यह नियुक्ति अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों के अधीन होगी।

    पटवारी का कार्य बहुत ही विस्तृत और बहुआयामी होता है। यह सिर्फ भूमि अभिलेखों के रखरखाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें वार्षिक अभिलेखों (Annual Registers) को ठीक रखना, उन्हें अद्यतन करना, किसानों की भूमि की जानकारी का संकलन करना, और समय-समय पर उनकी रिपोर्ट तैयार करना शामिल है।

    हालिया संशोधन के अनुसार, पटवारी का एक और महत्वपूर्ण कार्य है – सर्किल में स्थित ज़मीनों से संबंधित किराया (rent), भू-राजस्व (land revenue) और अन्य देयों (other demands) की वसूली करना। अर्थात् पटवारी न केवल अभिलेखों का निरीक्षक होता है बल्कि वह सरकार के लिए राजस्व संकलक (Revenue Collector) की भूमिका भी निभाता है।

    इसके अलावा, राज्य सरकार पटवारी को अन्य आवश्यक कार्य भी सौंप सकती है। उदाहरण के लिए, जनगणना कार्यों में सहायता करना, प्राकृतिक आपदा के बाद फसल हानि का आंकलन करना, या ग्राम पंचायतों को रिकॉर्ड संबंधी सहयोग देना – ऐसे कार्य सरकार द्वारा समय-समय पर सौंपे जा सकते हैं।

    एक उदाहरण से इसे और स्पष्ट किया जा सकता है – मान लीजिए एक गाँव में बाढ़ आ जाती है और किसानों की फसल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। ऐसी स्थिति में पटवारी उस क्षेत्र में जाकर प्रत्येक किसान की भूमि और फसल की स्थिति का निरीक्षण करता है, और नुकसान का विवरण तैयार करता है। यह विवरण आगे राहत पैकेज तैयार करने और सहायता वितरित करने में सरकार के लिए आधार बनता है।

    इस प्रकार, पटवारी का कार्य प्रशासन की अंतिम इकाई तक पहुँचने और वहाँ से वास्तविक जानकारी इकट्ठा कर उसे ऊपर तक पहुँचाने का होता है। यह प्रणाली न केवल राजस्व प्रबंधन बल्कि ग्रामीण शासन व्यवस्था को भी मजबूत करती है।

    समापन टिप्पणी

    धारा 29, 30 और 31 मिलकर राजस्थान के भूमि राजस्व प्रशासन की मजबूत नींव तैयार करती हैं। धारा 29 यह सुनिश्चित करती है कि किसी अधिकारी की अनुपस्थिति में भी कार्य की निरंतरता बनी रहे।

    धारा 30 से स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार गाँवों के प्रशासनिक प्रबंधन को समय-समय पर बदलकर अधिक प्रभावशाली बना सकती है। वहीं धारा 31 इस बात को सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक पटवारी सर्किल में योग्य व्यक्ति की नियुक्ति हो, जो न केवल अभिलेखों का संधारण करे बल्कि भूमि से संबंधित आर्थिक उत्तरदायित्वों को भी निभाए।

    ये तीनों धाराएँ मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि राज्य का राजस्व ढाँचा कुशल, पारदर्शी और जनता के अनुकूल बना रहे। पटवारी स्तर से लेकर कलेक्टर तक की यह व्यवस्था प्रशासनिक उत्तरदायित्व, पारदर्शिता और न्यायिक कुशलता का परिचायक है। ये प्रावधान ग्रामीण भारत की ज़मीनी हकीकत से जुड़े हैं और शासन के विकेंद्रीकरण को सशक्त बनाते हैं।

    Next Story