कोर्ट की कार्यवाही को स्थगित या Adjournment की शक्ति : धारा 346 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Himanshu Mishra

27 Jan 2025 6:16 PM IST

  • कोर्ट की कार्यवाही को स्थगित या Adjournment की शक्ति : धारा 346 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 346 अदालतों को यह अधिकार देती है कि वे आवश्यकता पड़ने पर न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) को स्थगित या टाल सकें।

    यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को कुशल और न्यायपूर्ण बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह कानून समय पर न्याय सुनिश्चित करने और न्याय प्रक्रिया में लचीलापन प्रदान करने के बीच संतुलन स्थापित करता है।

    प्रतिदिन चलने वाली कार्यवाही का नियम (Day-to-Day Proceedings)

    धारा 346(1) यह स्पष्ट करती है कि सभी जाँच और सुनवाई (Inquiry and Trial) प्रतिदिन जारी रहनी चाहिए। इसका उद्देश्य यह है कि अनावश्यक देरी से बचा जा सके और समय पर न्याय प्रदान किया जा सके। जब गवाह अदालत में उपस्थित हों, तो उनकी गवाही बिना किसी बाधा के पूरी होनी चाहिए।

    नियम का अपवाद (Exception)

    हालांकि, अदालत के पास यह अधिकार है कि वह कार्यवाही को अगले दिन से आगे स्थगित कर सकती है, यदि इसके लिए लिखित में ठोस कारण दर्ज किए जाएँ। यह प्रक्रिया में पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित करता है।

    विशेष अपराधों के लिए समय सीमा (Timeline for Special Offenses)

    धारा 346 के अनुसार, यदि मामला भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 64, 65, 66, 67, 68, 70, और 71 के तहत आता है, तो जाँच या सुनवाई को आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल होने के दो महीने के भीतर समाप्त करना अनिवार्य है। यह प्रावधान गंभीर अपराधों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करता है।

    उदाहरण (Illustration)

    यदि भ्रष्टाचार (Corruption) के अपराध के लिए आरोप पत्र 1 जनवरी को दाखिल होता है, तो धारा 346 के तहत सुनवाई 1 मार्च तक समाप्त होनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि ऐसे मामलों में न्याय शीघ्र हो।

    कार्यवाही स्थगित (Postpone) या टालने (Adjourn) की शक्ति

    धारा 346(2) अदालतों को यह अधिकार देती है कि वे जाँच या सुनवाई शुरू होने के बाद किसी भी समय, उचित कारणों से, कार्यवाही को स्थगित या टाल सकें। यह लचीलापन उन परिस्थितियों में न्याय सुनिश्चित करने के लिए दिया गया है, जहाँ प्रक्रिया जारी रखना तत्काल संभव नहीं हो।

    लिखित कारणों की आवश्यकता (Recording Reasons)

    अदालत को कार्यवाही स्थगित करने या टालने के हर निर्णय के लिए लिखित में कारण दर्ज करना अनिवार्य है। यह न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायपूर्ण बनाता है।

    अस्थायी अवधि के लिए स्थगन (Reasonable Period)

    अदालत आवश्यकता अनुसार कार्यवाही को टालने के लिए समय तय कर सकती है। साथ ही, आरोपी को पुलिस हिरासत (Custody) में रखने के लिए वारंट जारी कर सकती है।

    हिरासत की सीमा (Limit on Custody)

    अदालत किसी आरोपी को अधिकतम 15 दिनों के लिए हिरासत में रख सकती है। यह प्रावधान आरोपी के संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) की रक्षा करता है और अनावश्यक हिरासत को रोकता है।

    उदाहरण (Illustration)

    एक मामले में जहाँ आरोपी को पुलिस हिरासत में रखा गया है, अदालत कार्यवाही को स्थगित करते समय 15 दिनों के लिए वारंट जारी करती है। यदि यह अवधि पूरी हो जाती है, तो अदालत को फिर से हिरासत के लिए आधार निर्धारित करना होगा।

    स्थगन पर सीमाएँ (Restrictions on Adjournments)

    धारा 346 कार्यवाही स्थगित करने पर कुछ सीमाएँ लगाती है, ताकि न्यायिक प्रक्रिया कुशल और निष्पक्ष बनी रहे।

    गवाहों की उपस्थिति में स्थगन (Adjournments with Witnesses in Attendance)

    यदि गवाह अदालत में उपस्थित हैं, तो उनकी गवाही को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अदालत बिना विशेष कारण दर्ज किए कार्यवाही को स्थगित नहीं कर सकती। यह सुनिश्चित करता है कि गवाहों को अनावश्यक परेशानी न हो और उनका समय बर्बाद न हो।

    उदाहरण (Illustration)

    एक धोखाधड़ी (Fraud) के मामले में प्रमुख गवाह दूर से यात्रा कर अदालत में उपस्थित होते हैं। यदि अदालत उनकी गवाही लिए बिना कार्यवाही स्थगित कर देती है, तो यह न्याय प्रक्रिया में देरी करेगा। धारा 346 ऐसी स्थितियों को रोकती है।

    दंड निर्धारण में देरी की मनाही (No Adjournments for Sentencing Delays)

    यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि आरोपी को प्रस्तावित दंड (Proposed Sentence) के खिलाफ कारण बताने के लिए कार्यवाही स्थगित नहीं की जा सकती। यह प्रावधान सुनवाई के बाद शीघ्र दंड सुनिश्चित करता है।

    उदाहरण (Illustration)

    एक आर्थिक अपराध (Economic Crime) में आरोपी को दोषी ठहराया जाता है। अदालत द्वारा प्रस्तावित दंड में आरोपी केवल देरी के लिए स्थगन नहीं ले सकता।

    न्याय और त्वरित प्रक्रिया का संतुलन (Balance of Justice and Expediency)

    धारा 346 न्यायिक प्रक्रिया में त्वरितता और निष्पक्षता के बीच एक संतुलन बनाती है। जहाँ यह प्रावधान दिन-प्रतिदिन सुनवाई और गंभीर अपराधों के लिए समय सीमा तय करता है, वहीं यह जाँच और सुनवाई में वास्तविक जरूरतों के लिए लचीलापन भी प्रदान करता है।

    न्यायिक जिम्मेदारी (Judicial Accountability)

    कार्यवाही स्थगित करने के लिए कारण दर्ज करने का प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि न्यायाधीश (Judge) अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करें।

    अधिकारों की रक्षा (Protection of Rights)

    हिरासत में सीमाओं और अनावश्यक स्थगन पर रोक लगाने के प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में सभी पक्षों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।

    चुनौतियाँ और व्यावहारिक प्रभाव (Challenges and Practical Implications)

    हालाँकि धारा 346 न्यायिक प्रणाली में देरी को दूर करने का प्रयास करती है, लेकिन व्यावहारिक चुनौतियाँ बनी हुई हैं। अदालतों पर अधिक बोझ, गवाहों की अनुपलब्धता, और प्रक्रिया संबंधी जटिलताएँ अक्सर इन प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू करने में बाधा बनती हैं।

    उदाहरण (Illustration)

    एक बहु-आरोपी भ्रष्टाचार मामले में गवाहों की गवाही, साक्ष्य संग्रह (Evidence Collection), और वकीलों की उपस्थिति में तालमेल बिठाना जाँच को प्रभावित कर सकता है।

    धारा 346 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायिक प्रक्रिया को त्वरित और न्यायपूर्ण बनाने का प्रयास करता है। यह प्रावधान न केवल सुनवाई में देरी को रोकता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं को व्यवस्थित और पारदर्शी बनाने में भी सहायक है।

    यदि इस धारा को कठोरता से लागू किया जाए और न्यायिक प्रणाली में पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जाएँ, तो यह भारतीय न्याय प्रणाली को अधिक कुशल और उत्तरदायी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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