Transfer Of Property के तहत किसी प्रॉपर्टी को खरीदे जाने के पहले पर्चेसर के राइट्स और ड्यूटी

Shadab Salim

28 Jan 2025 3:44 AM

  • Transfer Of Property के तहत किसी प्रॉपर्टी को खरीदे जाने के पहले पर्चेसर के राइट्स और ड्यूटी

    इस एक्ट में किसी प्रॉपर्टी को खरीदने वाले व्यक्ति के पास प्रॉपर्टी खरीदने के पहले भी कुछ ड्यूटी और राइट्स हैं।

    पर्चेसर की ड्यूटी

    सम्पत्ति के मूल्य में सारवान वृद्धि करने वाले तथ्यों को प्रकट करने का दायित्व [ धारा ( 55 ) 5 (क) ] -

    जिस प्रकार विक्रेता पर इस धारा के अन्तर्गत यह दायित्व है कि वह अन्तर्निहित दोषों को स्पष्ट करे उसी प्रकार इस खण्ड के अन्तर्गत क्रेता पर यह दायित्व है कि वह उन तथ्यों को, जो सम्पत्ति के मूल्य में सारवान वृद्धि करने वाले हैं, विक्रेता को सुस्पष्ट करे, किन्तु क्रेता का दायित्व केवल उन तथ्यों के प्रकटीकरण तक सीमित हैं जिन का ज्ञान उसे तो है किन्तु विक्रेता को नहीं है और जिनसे सम्पत्ति के मूल्य में सारवान वृद्धि हो सकती है।

    कोक्स बनाम बोसवेल के वाद में लार्ड सेलबर्न ने प्रेक्षित किया था,

    "प्रत्येक क्रेता से यह अपेक्षित है कि वह जो कुछ भी कहता है या करता है उसमें सद्भावना का अनुपालन करे जिससे संविदा का क्रियान्वयन हो सके और कपट से बचा जा सके कपट, सत्य तथ्य को दबाकर या मिथ्या सुझाव द्वारा अस्तित्व में आ सकता है। साधारणतया क्रेता, विक्रेता को उन तथ्यों को प्रकट करने के पूर्विक दायित्व के अधीन नहीं होता है जो, उसके स्वयं के हितों के लिए संव्यवहार करते समय उसके आचरण एवं निर्णय को प्रभावित करते हों। क्रेता की चुप्पी मात्र से कपट की अवधारणा की जाएगी, यदि वह उन तथ्यों के बगैर कोई अन्य सूचना देता है जो निश्चयत पर स्वभावतः और संभाव्यतः मिथ्याकारी है।"

    किन्तु इस नियम के अपवाद भी हैं। साधारणतया यह विक्रेता का दायित्व है कि वह अपने स्वामित्व के विषय में जाने, किन्तु ऐसी भी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें विक्रेता को ज्ञान न हो और क्रेता को हो। ऐसी स्थिति में क्रेता का यह दायित्व होगा कि वह अपने ज्ञान का अनुचित लाभ न ले। अतः ऐसी स्थिति में क्रेता अपने ज्ञान को विक्रेता को प्रकट करने के दायित्वाधीन होता है अन्यथा इस तथ्य की सूचना मिलते ही विक्रेता कपट के आधार पर संव्यवहार को रद्द करा सकेगा। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई स्त्री अपनी सम्पत्ति बाजार मूल्य से अत्यधिक कम मूल्य पर बेचती है. क्योंकि वह इस भ्रम में है कि वह उस सम्पत्ति में अच्छा हित अन्तरित नहीं कर सकती है जबकि क्रेता को यह ज्ञान है कि वह अच्छा हित अन्तरित कर सकती है तो ऐसी स्थिति में यह माना जाएगा कि क्रेता ने तथ्यों को दबाया था। इस आधार पर संव्यवहार रद्द किया जा सकेगा।

    मूल्य का भुगतान [ धारा 55 (5) (ख)] -

    यह खण्ड क्रेता से यह अपेक्षा करता है कि क्रेता मूल्य का भुगतान करे भुगतान उस समय होना चाहिए जब बैनामा लिखा जा रहा हो। ये दोनों ही कार्यवाहियों साथ-साथ पूर्ण होनी चाहिए। विक्रेता तब तक विक्रय विलेख लिखने को बाध्य नहीं है, जब तक कि क्रेता सम्पत्ति का पूरा मूल्य अदा न कर दे या इस आशय का कोई करार न कर लें। यदि मूल्य का वास्तविक भुगतान नहीं किया जा रहा हो तो भुगतान की निविदा पर्याप्त होगी।

    यह खण्ड, उपधारा 55 (1) (घ) का स्वाभाविक निष्कर्ष जो यह प्रतिपादित करता है कि यदि क्रेता ने उचित मूल्य से अधिक का भुगतान किया है तो यह विक्रेता से अधिक मूल्य वापस पाने का हकदार होगा।

    विक्रय के पश्चात् क्रेता के दायित्व

    सम्पत्ति के नुकसान को सहना [ धारा 55 ( 5 ) (ग) ] -

    स्वामित्व क्रेता में साधारणतया विक्रय-विलेख के निष्पादन के साथ ही अन्तरित हो जाता है। उसे विक्रेता के समस्त अधिकार एवं शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। अतः उसे सम्पत्ति के सम्बन्ध में होने वाले समस्त नुकसानों को वहन करना पड़ेगा। सम्पत्ति को होने वाले नुकसान आकस्मिक विनाश के कारण हो सकते हैं अथवा हास के कारण नुकसान को सहन करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति क्रेता के कब्जे में हो। इतना ही पर्याप्त है कि स्वामित्व क्रेता में निहित हो गया हो।

    लोक प्रभारों का भुगतान [ धारा 55 (5) (घ) ] -

    विक्रय विलेख के निष्पादन की तिथि से क्रेता समस्त लोक प्रभारों का भुगतान करने के दायित्वाधीन हो जाता है। वह मूलधन के साथ ही साथ ब्याज अदा करने के भी दायित्वाधीन रहता है, किन्तु वह ब्याज की अवशिष्ट राशि का भुगतान करने के दायित्वाधीन नहीं है।

    यदि एक व्यक्ति किसी कम्पनी, जो कि विघटन के अध्यधीन है, की सम्पति क्रय करता है तो उसे उस सम्पत्ति पर सभी भारों एवं विल्लंगमों से मुक्त स्पष्ट स्वत्व प्राप्त होगा भले ही सांविधिक प्राधिकारी द्वारा कुर्की का आदेश दिया गया हो। जब क्रेता "जैसे है जहाँ है" के आधार पर सम्पत्ति क्रय करता है तो उसकी स्थिति उसी के अनुरूप होती है।

    विशेष अधिकारी (वाणिज्य) नेस्को एवं अन्य बनाम मेसर्स रघुनाथ पेपर मिल्स प्रा० लि० एवं अन्य के वाद में मेसर्स कोणार्क पेपर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज लि० जो कि कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत एक निगमित कम्पनी थी के "जैसे है, जहाँ है" के आधार पर विक्रय हेतु शासकीय समापक ने एक विज्ञापन प्रकाशित कराया। इस विज्ञापन के आधार पर मेसर्स रघुनाथ पेपर्स मिल्स प्रा० लि० ने भी निविदा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित किया, उन्हें सबसे अधिक बोली लगाने वाला पाया गया।

    फलस्वरूप वह कम्पनी मेसर्स रघुनाथ को बेच दी गयी एवं उसका कब्जा भी शासकीय समापक द्वारा सौंप दिया गया। तत्समय मेसर्स कोणार्क पेपर्स को विद्युत की आपूर्ति नहीं हो रही थी अतः मेसर्स रघुनाथ ने विद्युत आपूर्ति हेतु जनरल मैनेजर (वाणिज्यिक) के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया जिसे जनरल मैनेजर ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी।

    विद्युत आपूर्ति हेतु आवश्यक औपचारिकताएं पूर्ण होने के उपरान्त मेसर्स रघुनाथ को कार्य सम्पादित होने का प्रमाण पत्र भी प्राप्त हो गया। इसके बाद मेसर्स रघुनाथ ने नेस्को प्रबन्धन के साथ करार कर प्रतिभूति हेतु आवश्यक धनराशि जमा कर दिया। किन्तु विद्युत विभाग ने विद्युत आपूर्ति प्रारम्भ नहीं की अपितु लगभग रु० 79,02,262/- विद्युत मूल्य बकाया होने की बात की और कहा कि जब तक यह रकम जमा नहीं होगी विद्युत आपूर्ति प्रारम्भ नहीं होगी।

    इन परिस्थितियों में विवाद कोर्ट पहुंचा। उड़ीसा हाईकोर्ट ने अभिनिर्णीत किया कि जब कोई व्यक्ति किसी कम्पनी को शासकीय समापन के आदेश के अन्तर्गत क्रय करता है तो उसे सम्पत्ति में स्पष्ट स्वत्व सभी भारों एवं विल्लंगमों से मुक्त मिलता है भले ही एक संविधिक प्राधिकारी द्वारा कुर्की का आदेश हो।

    जब कोई व्यक्ति "जैसा है जहाँ है" के आधार पर सम्पत्ति क्रय करता है तो वह पूर्व के बकायों के लिए उत्तरदायी नहीं होता है। इस मामले में कहा गया कि मेसर्स रघुनाथ ने अपने नाम में विद्युत का नया कनेक्शन लेने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया था न कि पूर्व संस्थान द्वारा लिए गये विद्युत कनेक्शन को अपने नाम हस्तान्तरित करने हेतु अतः मेसर्स रघुनाथ पूर्व की बकाया रकम का भुगतान करने के दायित्वाधीन नहीं हैं।

    पर्चेसर के राइट्स

    क्रेता के धारणाधिकार [ धारा 55 ( 6 ) (ख) ] -

    जिस प्रकार विक्रेता को धारणाधिकार प्राप्त है ठीक उसी प्रकार क्रेता को भी इस खण्ड के अन्तर्गत धारणाधिकार प्राप्त है। यह अधिकार तब उत्पन्न होता है जबकि क्रेता ने मूल्य का अग्रिम भुगतान इस उम्मीद से कर दिया हो कि विक्रेता उसे सम्पत्ति अन्तरित करेगा बशर्ते कि उसने अवैध रूप से कब्जा लेने से इन्कार कर दिया हो। धारणाधिकार न केवल उस धनराशि पर प्राप्त होता है जिसका भुगतान उसने किया है, अपितु उससे सृष्ट ब्याज पर भी। ब्याज़ की गणना उस तिथि को की जाती है जिस तिथि को कब्जे की अदायगी होती है।

    यदि क्रेता अनुचित ढंग से कब्जे का परिदान लेने से इन्कार कर देता है तो उसका धारणाधिकार समाप्त हो जाएगा, किन्तु इस स्थिति में भी विक्रेता अग्रिम भुगतान को अपने पास रोकने का अधिकारी नहीं होगा है

    यदि किसी सम्पत्ति का विक्रय नीलामी के माध्यम से इस आधार पर किया जाता है कि उसका स्वामी बिजली विभाग को देय रकम का भुगतान करने में विफल रहा है तो नीलामी में सम्पत्ति को क्रय करने वाला व्यक्ति उन प्रभारों का भुगतान करने के दायित्वाधीन होगा क्योंकि नीलामी क्रेता समस्त परिस्थितियों को जानते समझते हुए सम्पत्ति क्रय करता है। वह नीलामी की शर्तों से बाध्य होगा। वह बकाया रकम का भुगतान करने के दायित्वाधीन होगा।

    धारा 55 (6) (ख) उपबन्धित करती है कि सम्पत्ति पर क्रेता का भार प्रवर्तनीय है न केवल विक्रेता के विरुद्ध अपितु उससे व्युत्पन्न अधिकाराधीन दावा करने वाले सभी व्यक्तियों के विरुद्ध भी जब तक क्रेता ने सम्पत्ति का परिदान प्रतिगृहीत करने से अनुचित रूप से इन्कार न कर दिया हो। क्रेता का यह भार सांविधिक भार है तथा यह संविदात्मक भार से पृथक् है। संविदात्मक भार, पक्षकारों के बीच संविदा के फलस्वरूप ही अस्तित्व में आता है।

    अग्रिम भुगतान तथा बयाना (Advance Payment and Earnest Money) -

    अग्रिम भुगतान उस भुगतान को कहते हैं जिसमें प्रतिफल के एक अंश को संव्यवहार की कार्यवाही पूर्ण होने से पूर्व विक्रेता को अदा कर दिया जाता है इस आशय से कि भविष्य में संव्यवहार पूर्ण होगी, परन्तु बयाना वह धनराशि होती है जो मूल्य के भुगतान में उपयोगी तो होती है, किन्तु मूलतः वह संविदा अनुपालन हेतु प्रतिभूति के रूप में दी जाती है।

    कुँवर चिरन्जीत बनाम हर स्वरूप के वाद में लार्ड शा ने अभिप्रेक्षित किया था कि-

    "बयाना वह धनराशि है, जो संव्यवहार के पूर्ण होने की दशा में विक्रय धनराशि का अंश होती है, किन्तु क्रेता की गलती या असफलता के कारण संव्यवहार के विफल होने की दशा में जब्त हो जाती है।"

    उपरोक्त से स्पष्ट है कि अग्रिम भुगतान जब्त नहीं होता है, जबकि बयाना जब्त हो जाता है। कोई भुगतान अग्रिम है या बयाना इस तथ्य का निर्धारण मामले के समस्त तथ्यों को ध्यान में रख कर किया जाता है।

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