गवाह को बुलाने , पुनः जाँच करने की अदालत की शक्ति: BNSS, 2023 की धारा 348 और पुराने Crpc, 1973 की धारा 311
Himanshu Mishra
29 Jan 2025 11:15 AM

किसी भी अपराध जांच (Inquiry) या न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Proceedings) के दौरान, साक्ष्य (Evidence) और गवाहों (Witnesses) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। अदालत (Court) का यह अधिकार कि वह किसी भी समय किसी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सके, या पहले से जाँच किए गए गवाह को फिर से बुला कर पूछताछ कर सके, न्याय (Justice) सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 348 (Section 348) अदालत को यह शक्ति देती है कि वह किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सके, किसी उपस्थित व्यक्ति से पूछताछ कर सके, या पहले से दिए गए बयान की पुनः जाँच (Re-examine) कर सके। इसी तरह, पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 - CrPC) की धारा 311 (Section 311) भी अदालत को यही अधिकार देती थी।
इस लेख में हम धारा 348 का विस्तार से अध्ययन करेंगे, इसकी तुलना CrPC की धारा 311 से करेंगे और समझेंगे कि यह न्यायिक प्रक्रिया में क्यों महत्वपूर्ण है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 348 (Section 348 of BNSS, 2023)
धारा 348 अदालत को यह शक्ति देती है कि वह किसी भी चरण (Stage) में, चाहे वह जांच हो, ट्रायल (Trial) हो, या अन्य कोई न्यायिक प्रक्रिया, निम्नलिखित कार्य कर सके:
• किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुलाना – यदि अदालत को लगता है कि किसी व्यक्ति की गवाही (Testimony) महत्वपूर्ण हो सकती है, तो वह उसे बुला सकती है।
• उपस्थित व्यक्ति से पूछताछ करना – यदि कोई व्यक्ति पहले से अदालत में मौजूद है, लेकिन उसे गवाह के रूप में नहीं बुलाया गया था, तो भी अदालत उसकी जाँच कर सकती है।
• पहले से गवाह बने व्यक्ति को पुनः बुलाना और पुनः जाँच करना – यदि अदालत को लगता है कि किसी गवाह के बयान की दोबारा पुष्टि (Verification) की जरूरत है, तो वह उसे फिर से बुलाकर पूछताछ कर सकती है।
• अनिवार्य रूप से गवाह को बुलाने का दायित्व – यदि अदालत को लगता है कि किसी व्यक्ति की गवाही न्यायिक निर्णय (Judicial Decision) के लिए आवश्यक है, तो वह उसे बुलाने या पुनः जाँच करने के लिए बाध्य (Obligated) होगी।
धारा 348 (BNSS, 2023) बनाम धारा 311 (CrPC, 1973)
1. भाषा और संरचना (Language and Structure)
धारा 348 और धारा 311 की भाषा लगभग समान है। दोनों ही अदालत को यह शक्ति देते हैं कि वह किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सके, उसे पुनः बुलाकर जाँच कर सके और आवश्यकतानुसार उसकी पुनः जाँच (Re-examine) कर सके।
2. न्यायिक निरंतरता (Judicial Continuity)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में इस प्रावधान को जस का तस रखा गया है, जिससे यह साबित होता है कि यह कानून पहले से न्यायिक प्रक्रिया में एक आवश्यक तत्व था और इसे बदला नहीं गया।
3. न्यायालयों द्वारा व्याख्या (Judicial Interpretation)
चूंकि धारा 348, CrPC की धारा 311 का ही प्रतिरूप (Replica) है, इसलिए पहले दिए गए न्यायिक निर्णय (Judicial Decisions) इस धारा पर भी लागू होते हैं।
a) ज़हीरा हबीबुल्लाह शेख बनाम गुजरात राज्य (2004)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी गवाह की गवाही न्याय के लिए आवश्यक है, तो अदालत को उसे बुलाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
b) नताशा सिंह बनाम सीबीआई (2013)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 311 (अब धारा 348) का उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए, लेकिन जब भी यह न्याय हित में हो, इसे उदारता से लागू किया जाना चाहिए।
c) मोहनलाल शामजी सोनी बनाम भारत सरकार (1991)
इस केस में अदालत ने कहा कि गवाह को पुनः बुलाने का अधिकार केवल अभियोजन (Prosecution) या बचाव पक्ष (Defense) का ही नहीं है, बल्कि यह अदालत का भी कर्तव्य है जब भी यह न्याय के लिए आवश्यक हो।
धारा 348 का अनुप्रयोग (Application of Section 348)
1. गवाह को बुलाने की शक्ति (Power to Summon Witnesses)
इस धारा के तहत, यदि कोई महत्वपूर्ण गवाह किसी कारण से न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ है, तो अदालत उसे बुला सकती है।
2. उपस्थित व्यक्ति से पूछताछ (Examining a Present Person)
अक्सर ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति अदालत में उपस्थित तो होता है, लेकिन उसे गवाह के रूप में नहीं बुलाया गया होता। यदि अदालत को लगता है कि उसकी गवाही महत्वपूर्ण हो सकती है, तो उसे पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है।
3. पुनः बुलाने और पुनः जाँच करने की शक्ति (Power to Recall and Re-examine Witnesses)
अगर अदालत को लगता है कि कोई गवाह पहले कुछ जरूरी बातें बताने से चूक गया था, या यदि नए सबूत आए हैं जो उसकी गवाही को प्रभावित कर सकते हैं, तो उसे फिर से बुलाया जा सकता है।
4. अनिवार्य समन (Mandatory Summoning When Necessary)
यदि अदालत को लगे कि गवाह को बुलाना या उसकी पुनः जाँच करना न्याय के लिए अनिवार्य है, तो उसे ऐसा करना ही होगा।
उदाहरण (Illustrations)
उदाहरण 1: गवाह जो शुरू में नहीं बुलाया गया था
एक हत्या के मुकदमे (Murder Trial) में, अभियोजन (Prosecution) और बचाव पक्ष (Defense) अपने-अपने गवाह प्रस्तुत करते हैं। लेकिन मुकदमे के दौरान, एक स्वतंत्र गवाह सामने आता है, जिसने घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखा था। यदि अदालत को उसकी गवाही महत्वपूर्ण लगती है, तो उसे धारा 348 के तहत बुलाया जा सकता है।
उदाहरण 2: गवाही में त्रुटि (Mistaken Statement)
एक चोरी के मामले में, एक गवाह ने पहले कहा कि उसने आरोपी को घटना स्थल पर देखा था। लेकिन बाद में नए सबूत सामने आते हैं, जिससे पता चलता है कि गवाह गलती कर सकता है। अदालत उसे पुनः बुलाकर पुनः जाँच कर सकती है।
उदाहरण 3: अदालत में उपस्थित व्यक्ति से पूछताछ
एक धोखाधड़ी (Fraud) के मुकदमे के दौरान, एक ऑडिटर (Auditor) अदालत में उपस्थित होता है और वित्तीय दस्तावेजों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। अदालत उसे गवाह के रूप में पूछताछ कर सकती है, भले ही उसे पहले बुलाया न गया हो।
कानूनी सुरक्षा उपाय और सीमाएँ (Legal Safeguards and Limitations)
1. शक्ति का दुरुपयोग न हो – अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस धारा का उपयोग अनुचित रूप से न किया जाए।
2. नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) का पालन हो – यदि कोई नया गवाह बुलाया जाता है या गवाही दोबारा ली जाती है, तो दोनों पक्षों को उसे जाँचने और सवाल करने का अवसर मिलना चाहिए।
3. सटीक समय पर उपयोग – इस शक्ति का प्रयोग उचित समय पर किया जाना चाहिए, अन्यथा यह मुकदमे को अनावश्यक रूप से लंबा कर सकता है।
धारा 348 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायालय को यह शक्ति देता है कि वह सत्य तक पहुँचने के लिए गवाहों को बुला सके, उनकी पुनः जाँच कर सके और यह सुनिश्चित कर सके कि न्याय पूर्ण रूप से हो। यह धारा पुराने CrPC की धारा 311 के समान ही है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की निरंतरता बनी रहती है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी महत्वपूर्ण साक्ष्य छूटे नहीं और अदालत न्यायिक निर्णय लेने में किसी भी तरह की त्रुटि न करे।