माफी की शर्तों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 धारा 345
Himanshu Mishra
25 Jan 2025 6:55 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 या BNSS) में माफी देने और उसकी शर्तों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के लिए विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं।
धारा 345 उन व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रक्रियाओं को निर्धारित करती है, जिन्होंने धारा 343 या धारा 344 के तहत माफी स्वीकार की है, लेकिन बाद में उसकी शर्तों का पालन नहीं किया। यह प्रावधान न्याय सुनिश्चित करने और माफी प्रणाली (Pardon System) की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए बनाया गया है।
संदर्भ और पृष्ठभूमि (Context and Background)
धारा 345 को समझने के लिए धारा 343 और धारा 344 की पृष्ठभूमि को जानना जरूरी है।
• धारा 343: जांच या पूछताछ के दौरान माफी देने से संबंधित है।
• धारा 344: मुकदमे की प्रक्रिया में माफी देने की अनुमति देता है।
यदि कोई व्यक्ति इन धाराओं के तहत माफी स्वीकार करने के बाद झूठा बयान देता है या महत्वपूर्ण जानकारी छुपाता है, तो धारा 345 यह तय करती है कि उस व्यक्ति के खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए।
माफी की शर्तों का उल्लंघन करने पर अभियोजन (Prosecution for Breach of Pardon Conditions)
सार्वजनिक अभियोजक (Public Prosecutor) की भूमिका
धारा 345 का पहला चरण सार्वजनिक अभियोजक की राय पर निर्भर करता है। यदि अभियोजक को लगता है कि माफी पाने वाले व्यक्ति ने माफी की शर्तों का उल्लंघन किया है—जैसे कि जानबूझकर जानकारी छुपाना या झूठा बयान देना—तो वह प्रमाण पत्र (Certificate) जारी करता है। इस प्रमाण पत्र के आधार पर उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया जाता है।
कई अपराधों के लिए मुकदमा (Trial for Multiple Offenses)
माफी की शर्तों का उल्लंघन करने पर व्यक्ति के खिलाफ निम्नलिखित अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है:
1. वह मूल अपराध जिसके लिए माफी दी गई थी।
2. उसी मामले से जुड़े अन्य अपराध।
3. झूठा बयान देने का अपराध (Offense of Giving False Evidence)।
प्रक्रियात्मक सुरक्षा (Procedural Safeguards)
अलग-अलग सुनवाई की आवश्यकता (Separate Trial Requirement)
धारा 345 में यह स्पष्ट है कि माफी शर्तों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति की सुनवाई अन्य अभियुक्तों से अलग होगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मामला केवल उस व्यक्ति के आचरण (Conduct) पर केंद्रित रहे।
उच्च न्यायालय की स्वीकृति (Sanction from the High Court)
झूठा बयान देने के अपराध के लिए मुकदमा चलाने से पहले उच्च न्यायालय से स्वीकृति लेनी जरूरी है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि अभियोजन प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
कुछ प्रावधानों का अपवाद (Exemption from Certain Provisions)
धारा 345 में यह भी कहा गया है कि इस संदर्भ में झूठा बयान देने के अपराध पर धारा 215 और धारा 379 लागू नहीं होंगी।
बयान का साक्ष्य के रूप में उपयोग (Use of Statement as Evidence)
धारा 345(2) के अनुसार, माफी प्रक्रिया के दौरान धारा 183 या धारा 343(4) के तहत दर्ज बयान (Statement) को मुकदमे के दौरान साक्ष्य (Evidence) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
उदाहरण (Illustration)
मान लें कि एक व्यक्ति वित्तीय धोखाधड़ी (Financial Fraud) के मामले में माफी स्वीकार करता है और सच्चाई उजागर करने का वादा करता है। लेकिन मुकदमे के दौरान पता चलता है कि उसने जानबूझकर एक मुख्य साजिशकर्ता (Conspirator) का नाम छुपा लिया। उस व्यक्ति का पहले दर्ज बयान यह दिखाने के लिए उपयोग किया जा सकता है कि उसने माफी की शर्तों का पालन नहीं किया।
माफी की शर्तों का पालन करने का अधिकार (Right to Plead Compliance)
धारा 345(3) अभियुक्त (Accused) को यह अधिकार देती है कि वह यह दावा कर सके कि उसने माफी की शर्तों का पालन किया है। यदि वह ऐसा दावा करता है, तो अभियोजन पक्ष (Prosecution) पर यह साबित करने का दायित्व होगा कि उसने शर्तों का उल्लंघन किया है।
न्यायालय का कर्तव्य (Court's Duty)
मुकदमे के दौरान न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि अभियुक्त से यह पूछा जाए कि क्या उसने माफी की शर्तों का पालन किया है।
• सेशन न्यायालय में: यह पूछताछ आरोप पढ़ने से पहले की जाएगी।
• मजिस्ट्रेट की अदालत में: यह पूछताछ अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज करने से पहले की जाएगी।
यदि अभियुक्त माफी की शर्तों का पालन करने का दावा करता है, तो न्यायालय इस दावे को दर्ज करेगा और फिर मुकदमे की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा।
निर्णय और परिणाम (Judgment and Outcome)
मुकदमे के अंत में न्यायालय को यह तय करना होगा कि अभियुक्त ने माफी की शर्तों का पालन किया या नहीं:
• यदि अभियुक्त ने पालन किया: न्यायालय को उसे बरी (Acquit) करना होगा।
• यदि शर्तों का उल्लंघन किया: न्यायालय उसे संबंधित अपराधों के लिए दोषी ठहरा सकता है।
धारा 345 का महत्व (Significance of Section 345)
धारा 345 माफी प्रणाली की विश्वसनीयता बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सुनिश्चित करती है कि माफी एक शर्तयुक्त अधिकार (Conditional Privilege) है, न कि बिना शर्त अधिकार।
इस प्रावधान से यह सुनिश्चित होता है कि व्यक्ति जो माफी स्वीकार करते हैं, वे न्याय प्रक्रिया में सच्चाई और ईमानदारी से सहयोग करें।
व्यवहारिक उदाहरण (Practical Illustration)
परिस्थिति (Scenario)
एक संगठित अपराध (Organized Crime) के मामले में एक व्यक्ति माफी स्वीकार करता है और साजिशकर्ताओं (Conspirators) के खिलाफ गवाही देने का वादा करता है। लेकिन मुकदमे के दौरान यह पता चलता है कि उसने अपराध के मुख्य वित्तीय स्रोत (Financial Source) की जानकारी छुपा ली।
सार्वजनिक अभियोजक माफी की शर्तों के उल्लंघन का प्रमाण पत्र जारी करता है और व्यक्ति के खिलाफ धारा 345 के तहत मुकदमा शुरू किया जाता है। न्यायालय उस व्यक्ति के पहले दर्ज बयान का उपयोग करता है और उसे दोषी ठहराता है।
धारा 345 माफी प्रणाली को संतुलित और प्रभावी बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। यह सुनिश्चित करती है कि माफी स्वीकार करने वाले व्यक्ति सत्य और ईमानदारी से सहयोग करें। साथ ही, यह उन व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा प्रदान करती है जो माफी की शर्तों का उल्लंघन करते हैं।
इस प्रकार, धारा 345 न्याय प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायपूर्ण बनाए रखने में मदद करती है।