महिलाओं का पीछा करना, उनके चित्र उतारना, उन्हें अश्लील तस्वीरें भेजना गंभीर अपराध, जानिए क्या हैं प्रावधान
Shadab Salim
18 July 2020 4:45 AM GMT
अक्सर हम समाज में महिलाओं के प्रति अपराधों को देखते हैं तथा स्कूल कॉलेज से लेकर कार्यस्थल तक महिलाओं से संबंधित ऐसे अपराध जिन्हें बहुत छोटा मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है, वह घटित होते रहते हैं। कानून की जानकारी के अभाव में महिलाएं भी ऐसे अपराधों को नजरअंदाज करती रहती हैं तथा अपराधियों को महिलाओं द्वारा इस तरह नजरअंदाज किए जाने पर अपराध को पुनः कारित करने के लिए उत्प्रेरणा मिलती है।
इस तरह के अपराधों पर महिलाओं को सतर्क रहना चाहिए तथा इस प्रकार के अपराधियों के विरुद्ध खुलकर दांडिक कार्यवाही हेतु रिपोर्ट दर्ज करवायी जानी चाहिए। समाज में यदि इस तरह के अपराधियों को दंड दिए जाने लगे तो महिलाओं के विरुद्ध होने वाले विभिन्न विभत्स अपराध को रोका जा सकता है तथा बलात्कार जैसी घटनाएं जो आज समाज के लिए नासूर बन गयी हैं, उन्हें भी कम किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत महिलाओं का पीछा करना, उन्हें सेक्स अपील मानना और उनसे सेक्स डिमांड करना, उनके सामने निर्वस्त्र होना, उन्हें अश्लील वस्तुएं जैसे अश्लील चित्र और पोर्न फ़िल्म भेजना तथा अश्लील पुस्तक पढ़ने के लिए देना या अश्लील कहानियां प्रेषित करना ऐसे समस्त कृत्य संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं तथा पुलिस इन अपराधों के अंतर्गत सीआरपीसी की धारा 154 के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करती है, राज्य इन अपराधों में अपनी ओर से अभियोजन चलाता है।
इस लेख में महिलाओं के विरुद्ध किए जाने वाले ऐसे अपराध जिन्हें लघु अपराध मान कर उपेक्षा कर दी जाती है, उन अपराधों का उल्लेख किया जा रहा है।
ये अपराध लघु प्रतीत होते हैं, परंतु भारतीय दंड संहिता इस प्रकार के अपराधों को लघु नहीं मानती, तथा इस प्रकार के अपराधों में 7 वर्ष तक का कारावास और एक लंबा विचारण हो सकता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 354
भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के अंतर्गत जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से यह संभाव्य जानते हुए की एतदद्वारा व उसकी लज्जा भंग करेगा, उस स्त्री पर हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो 5 वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडित होगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 354 लज्जा भंग करने के आशय से स्त्री पर आपराधिक बल का प्रयोग करना यह हमला करने से संबंधित है जो कि एक दंडनीय अपराध है। इस अपराध में कम से कम 1 वर्ष का कारावास है जो अधिकतम 5 वर्ष तक का हो सकता है।
प्रमोद सिंह बनाम स्टेट ऑफ जम्मू कश्मीर का एक मामला है, इसमें अभियुक्त पर रीता कुमारी नामक एक 9 वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार करने का आरोप था, लेकिन चिकित्सा एवं अन्य साक्ष्य से यह पाया गया कि इस बालिका का कौमार्य भंग नहीं हुआ था और न ही उसके शरीर और यौन अंगों पर क्षति अथवा चोट के कोई निशान नहीं थे। इसे बलात्कार नहीं मानकर स्त्री की लज्जा भंग का मामला माना गया।
क्योंकि यह एक पुराना मामला है तथा इस मामले में किसी बालिका के कौमार्य का परीक्षण किया गया था। बाद के मुकदमों में बलात्कार जैसे संगीन अपराध के संबंध में कौमार्य के परीक्षण को मानव अधिकारों के विरुद्ध माना गया।
श्रीमती रूपम देवल बजाज बनाम केपीएस गिल का मामला 1996 उच्चतम न्यायालय 309।
धारा 354 के अंतर्गत चलने वाला यह प्रकरण सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रकरण है। इस प्रकरण में स्त्री की लज्जा भंग के संबंध में श्रीमती रूपल देवल बजाज पंजाब कैडर की एक आईएएस अधिकारी है।
घटना के समय वह पंजाब के फाइनेंस डिपार्टमेंट में विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थीं। दिनांक 18 जुलाई 1988 को वह एसएल कपूर के यहां एक दावत में गयीं। उस दावत में पंजाब सरकार के कई वरिष्ठ महत्वपूर्ण अधिकारी भी थे। दावत में पंजाब के पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल भी आमंत्रित थे। देवल का कहना था कि रात्रि के करीब 10:00 बजे होंगे, केपीएस गिल ने उन्हें पास आकर बैठने को कहा फिर उठने को कहा। जब वह उठीं तो गिल उनके कूल्हे पर हाथ मारा।
देवल को यह बहुत बुरा लगा। उन्होंने गिल के विरुद्ध 29 जुलाई 1988 को भारतीय दंड सहिंता की धारा 341, 342, 352, 354 एवं 509 के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई। इस मामले में जब गिल के विरुद्ध कोई प्रभावी कार्यवाही होने की संभावना नहीं लगी तो देवल ने उच्चतम न्यायालय में दस्तक दी।
उच्चतम न्यायालय ने मामले के तत्वों को दृष्टिगत रखते हुए गिल के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए एवं 509 के अंतर्गत प्रथम दृष्टया मामला बनना पाया तथा मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेकर विचारण करने का निर्देश दिया।
इस मामले में केपीएस गिल को 3 माह का कारावास हुआ था तथा 17 वर्ष का लंबा विचारण झेलना पड़ा।
धारा 354 पर एसपी मलिक बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा का एक महत्वपूर्ण मामला है। इस मामले में निर्धारित किया गया कि किसी महिला के पेट पर हाथ रख देने मात्र को धारा 354 के अंतर्गत स्त्री की लज्जा भंग नहीं माना जा सकता। लज्जा भंग करने का आशय होना भी आवश्यक है।
बाद के एक मुकदमे में पांडुरंग सीताराम भागवत बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र एआईआर 2005 उच्चतम न्यायालय 643 के मामले में किसी स्त्री को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लेना तथा उसकी छाती दबाने को उच्चतम न्यायालय ने स्त्री की लज्जा भंग माना है।
न्यायालय ने कहा है कि स्त्री की लज्जा भंग का मामला अक्सर मिथ्या नहीं होता क्योंकि सामान्य तौर पर कोई भी महिला अपने चरित्र को दांव पर नहीं लगाना चाहती। कोई भी महिला पुलिस थाने तक तब ही जाती है जब उसके साथ कोई प्रतिष्ठा और गरिमा से संबंधित कोई बड़ी घटना घट जाती है।
आईपीसी की धारा 354 के अंतर्गत स्त्री की लज्जा भंग के अपराध के गठन के लिए अभियुक्त को यह जानकारी होना मात्र पर्याप्त है कि उसके कृत्य से स्त्री की लज्जा भंग होना संभव है। आशय होना सदैव आवश्यक नहीं है और न यह ही इसका एकमात्र मापदंड है।
कोई भी ऐसा कृत्य जिससे यह संभव है कि स्त्री की लज्जा भंग होगी वहां धारा 354 के अंतर्गत अपराध का गठन कर देता है। किसी महिला को खींचना और उसके साथ लैंगिक संभोग करने के आशय से कपड़े उतार देना स्त्री की लज्जा भंग का अपराध है। अमन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 2004 उच्चतम न्यायालय 1497।
किसी महिला की छाती से उसका दुपट्टा या साड़ी हटा देना भी लज्जा भंग का मामला माना जाएगा। राजू पांडुरंग महाले बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र एआईआर 2004 (1677)
धारा 354 ए-
भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए के अंतर्गत किसी महिला को शारीरिक संपर्क और कुछ ऐसी क्रियाओं के माध्यम से जिस में लैंगिक संबंध बनाने संबंधी प्रस्ताव रखा जा रहा है, करता है, जिसे सेक्स के लिए डिमांड माना जाएगा। या किसी महिला को लैंगिक स्वीकृति अर्थात सेक्स करने के लिए कोई मांग अनुरोध करता है।
या किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य दिखाता है या फिर अश्लील तस्वीरें भेजता है, पोर्न भेजता है ऐसी परिस्थिति में वह व्यक्ति कठोर कारावास से जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से दोनों से दंडित किया जाएगा।
आज सूचना प्रौद्योगिकी का समय है। ऐसे समय में व्हाट्सएप मैसेंजर जैसे इत्यादि सॉफ्टवेयर के माध्यम से महिलाओं को अश्लील तस्वीरें तथा अश्लील मैसेज भेज दिए जाते हैं जो कि उन्हें सेक्स करने की डिमांड जैसे होते हैं। यह एक संज्ञेय अपराध है जिसके अंतर्गत 3 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना दिए जाने का प्रावधान है।
महिला के कपड़े उतारने के आशय से आपराधिक बल का प्रयोग करना
(धारा 354 बी)
यदि कोई पुरुष किसी महिला को सार्वजनिक स्थान में निर्वस्त्र होने के लिए बाध्य करने के आशय से उस पर हमला करेगा या उसके प्रति आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या ऐसा दुष्प्रेरण करेगा, दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि कम से कम 3 वर्ष तक की होगी तथा अधिक से अधिक 7 वर्ष तक की हो सकती है और इसके साथ जुर्माना भी होगा से दंडनीय किया जाएगा।
कभी-कभी विवादों में महिलाओं के कपड़े फाड़ दिए जाते हैं और बीच बाजार में उन्हें निर्वस्त्र कर दिया जाता है। डायन कुल्टा बोल कर उनका जुलूस तक निकाल दिया जाता है। यह एक संज्ञेय अपराध है।
इस प्रकार के अपराध में पुलिस बगैर वारंट के गिरफ्तार करती है तथा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत कंप्यूटरीकृत एफआईआर दर्ज की जाती है।
महिलाओं को एकटक घूरना और उनके चित्र उतारना
(धारा 354 सी)
जब कोई भी महिला अपने किसी प्राइवेट काम में लगी हुई है, जैसे कोई स्त्री कपड़े बदल रही है या नहा रही है या फिर कोई भी इस प्रकार का काम जिसे वह प्राइवेट करती है। इस तरह के काम करते हुए यदि कोई पुरुष उस स्त्री को एकटक देखेगा तथा उसकी तस्वीरें खींचेगा और उन तस्वीरों को प्रसारित कर देगा, इस प्रकार के पुरुष को पहली बार दोष सिद्ध पर कम से कम 1 वर्ष का कारावास और अधिक से अधिक 3 वर्ष तक का कारावास हो सकता है।
दूसरी बार इसी प्रकार के अपराध में दोषसिद्धि होने पर कम से कम 3 वर्ष का कारावास और अधिक से अधिक 7 वर्ष का कारावास दिया जा सकता है।
स्त्री का पीछा करना तथा बार-बार उससे संपर्क करने का प्रयास करना
(धारा 354 डी)
भारतीय दंड संहिता की धारा 354डी महिलाओं का पीछा करने वाले अपराधियों के संबंध में दंड का प्रावधान करती है।
आज समाज में देखने को मिलता है कि युवतियों के पीछे लफंगे लग जाते हैं तथा उनका स्कूल कॉलेज तक जाना दूभर कर देते हैं। स्कूल कॉलेज की बस घर तक का पीछा करते हैं और यही नहीं आज इंटरनेट के युग में यह आपराधिक कुकर्मी मानसिकता के लोग ईमेल या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक संसूचना का प्रयोग करते हुए बार-बार किसी स्त्री को मानीटर करते हैं और बार बार संपर्क साधने का प्रयास करते हैं।
यह एक दंडनीय अपराध है जो संज्ञेय और गैर जमानती है। इस प्रकार के अपराध में पहली बार दोष सिद्ध होने पर अधिकतम 3 वर्ष का कारावास और दूसरी बार दोषसिद्ध पर अधिकतम 5 वर्ष तक के कारावास और जुर्माना दोनों का प्रावधान रखा गया है।
धारा 354 के अंतर्गत स्त्री की लज्जा भंग करना और (354डी) के अंतर्गत स्त्री के कपड़े फाड़ देना सबसे गंभीर अपराध है जिसमें अधिकतम 7 वर्ष तक का कारावास हो सकता है और साथ में जुर्माना भी।