संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 35: संविदा के अभाव में पट्टों की कालावधि (धारा 106)

Shadab Salim

23 Aug 2021 4:30 AM GMT

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 35: संविदा के अभाव में पट्टों की कालावधि (धारा 106)

    संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 से संबंधित इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत दिए गए पट्टे के विषय पर धारा 125 से संबंधित पट्टे की परिभाषा प्रस्तुत की गई थी। पट्टा भी संपत्ति के अन्तरण का एक माध्यम है जिसमें संपत्ति का टाइटल तो उसके स्वामी के पास पर रहता है परंतु संपत्ति पर उपभोग का अधिकार अंतरिती उपलब्ध हो जाता।

    इस आलेख के अंतर्गत पट्टा से संबंधित धारा 106 को प्रस्तुत किया जा रहा है जिसके अंतर्गत पट्टे की कालावधि का उल्लेख किया गया है। इससे संबंधित न्याय निर्णय भी इसी आलेख में समाविष्ट किए गए है।

    धारा 106-

    इस धारा से अधिनियम का उद्देश्य है पट्टाग्रहीता के हित को सुरक्षित रखना जो, इसमें उल्लिखित नियम के सिवाय पूर्णतया, असुरक्षित रहेगा। यथेच्छ पट्टाधारी की तरह वह किसी भी क्षण पट्टाकर्ता के विकल्प पर इस कारण कि पट्टाग्रहीता द्वारा मुक्त कर देने पर उस सम्पत्ति का वह बेहतर उपयोग कर सकेगा, सम्पत्ति से बेदखल कर दिया जाएगा।

    यदि पट्टाग्रहीता यकायक सम्पत्ति को मुक्त कर देता है जो पट्टाकर्ता के लिए तुरन्त सम्पत्ति का विनियोजन करना दुष्कर होगा तथा सम्पत्ति कुछ समय के लिए बेकार हो जाएगी छोड़ देने के लिए सूचना, जैसा कि इस धारा में प्रस्तावित है, पट्टाकर्ता तथा पट्टाग्रहीता दोनों को ही सक्षम बनाती है कि वे अपने लिए कोई योजना तैयार कर लें।

    पर नोटिस की वहाँ आवश्यकता नहीं होगी जहाँ पक्षकार स्वयं कोई तत्प्रतिकूल संविदा किए हुए हो या कोई प्रथा प्रचलित हो जो नोटिस की आवश्यकता को समाप्त करती हो।

    इस प्रावधान का संशोधन इसलिए आवश्यक हो गया था कि पट्टा के समापन की अवधि की गणना में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती थीं। उच्चतम न्यायालय ने माँगी लाल बनाम सुगन चन्द के वाद में भी इस बात को दोहराया था कि नोटिस की अवधि की गणना में उस दिन की गणना नहीं को जाएगी जिस दिन नोटिस दी जाती है।

    भारत के विधि आयोग ने भी अपनी 181वीं रिपोर्ट में धारा 106 के सम्बन्ध में कतिपय सुझाव प्रस्तुत किया था। इन्हीं सुझावों के आलोक में धारा 106 को संशोधित कर यह सुस्पष्ट कर दिया गया है कि पट्टा के समापन हेतु नोटिस की अवधि की गणना नोटिस प्राप्त होने की तिथि से की जाएगी (धारा 106 (2) ) यह संशोधन लम्बित वादों या कार्यवाहियों तथा दी गयी नोटिस के सम्बन्ध में भी लागू होगा जो प्रस्तावित संशोधन के अस्तित्व में आने से पूर्व जारी हुए हों।

    विश्लेषण - पर्यवसान या समापन के दृष्टिकोण से पट्टों को इस धारा के अन्तर्गत दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है।

    (1) मासानुमासी पट्टे।

    (2) वर्षानुवर्षी पट्टे।

    स्थावर सम्पत्ति का कृषि के प्रयोजनों अथवा निर्माण के प्रयोजनों के लिए किया गया पट्टा वर्षानुवर्षी पट्टा माना जाएगा जबकि अन्य प्रयोजनों के लिए स्थावर सम्पत्ति का पट्टा मासानुमासी पट्टा समझा जाएगा।

    धारा 106 यह प्रावधान उपबन्धित करता है कि कृषि या विनिर्माण के प्रयोजनों के लिए स्थावर सम्पत्ति का पट्टा वर्षानुवर्षी पट्टा समझा जाएगा तथा ऐसा पट्टा, पट्टाकर्ता पर पट्टेदार द्वारा छः मास को ऐसी सूचना द्वारा पर्यवसेय है अथवा समाप्त हो सकेगा।

    यदि स्थावर सम्पत्ति का पट्टा उपरोक्त से पृथक् किसी अन्य प्रयोजन के लिए है तो यह पट्टा मासानुमासी पट्टा समझा जाएगा जो पट्टाकर्ता या पट्टेदार द्वारा पन्द्रह दिन की सूचना द्वारा पर्यवसेय है या समाप्त हो सकेगा।

    यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि वर्तमान धारा कृषि प्रयोजन हेतु पट्टा का सन्दर्भ ले रही है जबकि धारा 117 सुस्पष्ट करती है कि यह अध्याय कृषि प्रयोजनों हेतु तब तक प्रवर्तित नहीं होगा जब तक कि राज्य सरकार इस निमित्त अधिसूचना जारी न करें। यह भी महत्वपूर्ण है कि राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना तुरन्त के प्रभाव से लागू नहीं होती है।

    ऐसी अधिसूचना प्रकाशन को तिथि से छः मास की अवधि के पश्चात् ही लागू हो सकेगी। साधारणतया कृषि प्रयोजन के पट्टे भूविधियों के अन्तर्गत किए जाते हैं तथा भूविधियों का अधिनियमन राज्य विधान मण्डल द्वारा किया जाता है। अतः यह प्रावधान स्पष्टत: कृषि प्रयोजन हेतु किए गये पट्टों पर प्रभावी नहीं होगा। सम्भवतः इसे अति सावधानीवश इस धारा में वर्णित किया गया है।

    (1) एक मासानुमासी पट्टा पर्यवसेय होगा पट्टाकर्ता या पट्टेदार की-

    (i) लिखित नोटिस द्वारा।

    (ii) नोटिस अवधि नोटिस प्राप्ति की तिथि से पन्द्रह दिन की हो।

    (iii) नोटिस उपधारा।

    (4) में वर्णित रोति से दो गयी हो।

    (2) एक वर्षानुवर्षी पट्टा पर्यवसेय होगा पट्टाकर्ता पर पट्टेदार की -

    (i) लिखित नोटिस द्वारा।

    (ii) नोटिस की अवधि नोटिस प्राप्ति की तिथि से छः मास की हो।

    (iii) नोटिस उपधारा

    (4) में वर्णित रीति से दी गयी हो।

    नोट- संशोधन सं० 3 सन् 2003 के प्रभावी होने से पूर्व इस धारा में यह अपेक्षा की गयी थी कि नोटिस अवधि समाप्त होने महीने के समापन के साथ अथवा वर्ष के समापन के साथ इस शर्त को सम्भवतः इसलिए समाप्त कर दिया गया है जिससे पट्टे का पर्यवसान अधिक सहज ढंग से हो सके।

    यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि महीना या वर्ष का अन्त किस प्रणाली से निर्धारित होगा, सुनिश्चित नहीं होगा पक्षकार इंग्लिश कैलेण्डर, या विक्रमी संवत् या शक संवत या फसली वर्ष को आधार बना सकते हैं।

    इससे समय के निर्धारण में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसी प्रकार महीना जनवरी, फरवरी न होकर चैत्र, वैशाख इत्यादि हो सकेगा। समरूपता लाने के लिए उक्त शर्त को समाप्त किया गया है।

    टेनेन्सी चाहे मासिक हो या अन्यथा, केवल सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 के प्रावधानों द्वारा ही विनियमित होती है। मासिक किरायेदार या पट्टेदार भी सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत निष्कापन के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करने हेतु प्राधिकृत हैं।

    यदि पट्टे की अवधि के समापन के पश्चात् पट्टाग्रहीता पट्टाकर्ता को पट्टा सम्पत्ति का कब्जा प्रदान नहीं करता है तो वह सम्पत्ति का कब्जा एवं मध्यवर्ती लाभ के लिए न्यायालय से डिक्री प्राप्त कर सकेगा।

    जहाँ करार के फलस्वरूप पट्टाकर्ता एवं पट्टादार के बीच मासिक टेनेन्सी का सृजन हुआ हो एवं उसमें टेनेन्सी की अवधि भी अभिलिखित हो तो ऐसी टेनेन्सी को समाप्त करते हेतु वाद संस्थित करने से पूर्व पट्टादार को इस आशय का नोटिस दिया जाना आवश्यक नहीं है। ऐसे मामलों में पट्टे का पर्यवसान स्वयमेव निर्धारित समय के बीत जाने से हो हो जाता है।

    यदि पट्टादार को नोटिस रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेजी जाए और वह डाक लेने से इन्कार कर दिया' इस टिप्पणी के साथ वापस आ जाए तो इस कारण पट्टाकर्तापट्टादार के निष्कासन हेतु बाद संस्थित करने के अपने अधिकार से वंचित नहीं होगा। वाद संस्थित करने का अधिकार तब भी समाप्त नहीं होगा जब कि पट्टाकर्ता ने पट्टे की अवधि के समापन के पश्चात् की अवधि का किराया पट्टादार से प्राप्त किया हो।

    पर्यवसान हेतु नोटिस–पट्टा के पर्यवसान हेतु नोटिस को आवश्यकता तब होगी जब पक्षकारों के बीच कोई तत्प्रतिकूल संविदा या स्थानीय विधि या प्रथा न हो। यदि ऐसा है तो पर्यवसान हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। उदाहरणार्थ यदि पट्टा विलेख में यह उल्लिखित है कि पट्टा के पर्यवसान हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं हो तो इसके पर्यवसान हेतु नोटिस नहीं दी जाएगी।

    यदि कोई स्थानीय विधि या प्रथा प्रचलित है जिसके अनुसार पट्टा के समापन हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी तो नोटिस नहीं देनी होगी। यदि पट्टा किसी निश्चित अवधि के लिए है तो भी नोटिस को दरकार नहीं होगी क्योंकि अवधि की समाप्ति पट्टा की समाप्ति के तुल्य है। यदि पट्टा का समापन किसी भावी घटना पर आधारित है तो घटना का घटित होना पट्टा समाप्त करने के लिए पर्याप्त हैं।

    नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी यदि पट्टादार अतिधारण कर रहा तो या पट्टा शाश्वत पट्टा हो या जब्तीकरण द्वारा इसका पर्यवसान हो गया हो अथवा पट्टेदार पट्टाकर्ता के स्वामित्व को नकार रहा हो।" "जीवन काल के लिए पट्टा' में नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। 'यथेच्छ इच्छा' पट्टा में नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी मात्र कब्जा की माँग पट्टेदारी समाप्त करने के लिए पर्याप्त होगी।

    इस धारा में प्रयुक्त पद "तत्प्रतिकूल संविदा" से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि पट्टे के पक्षकार पट्टा हेतु प्रदत्त प्रकट प्रावधानों के विपरीत कोई संविदा करने के लिए स्वतंत्र है; एवं इसके द्वारा यह विधायिका की मंशा को ही निष्प्रभावी बना दें। यह प्रावधान एक वैध संविदा की प्रकल्पना करता है। अतः एक पट्टाधारी जो अरजिस्ट्रीकृत करार एवं किराया पर सृजित की गयी है।

    और आपस में सहमत शर्तों के आधार पर की गयी है ऐसे संव्यवहार को मासिक पट्टादारी के रूप में स्वीकृत किया जायेगा। पट्टादारी में यह करार किं लगातार तीन महीने तक किराये का भुगतान न किये जाने पर ही पट्टादारी समाप्त की जा सकेगी अवैध मानी जाएगी, क्योंकि यह स्पष्टतः विधि के प्रकट प्रावधानों के प्रतिकूल है।

    साधारणतया पट्टा सम्पत्ति को खाली करने की नोटिस व्यक्तिगत तौर पर दी जाती है। किन्तु यदि एक से अधिक पट्टे एक साथ सृजित किए जाते हैं तो उन सभी को समाप्त करने हेतु एक ही नोटिस जारी की जा सकेगी। परन्तु इस नोटिस में उन पट्टों को सम्मिलित नहीं किया जा सकेगा जो पृथक् रूप में सृजित किए गये थे। यदि ऐसी नोटिस दी जाती है तो नोटिस अवैध होगी।

    तत्प्रतिकूल विधि - यदि पट्टा के सम्बन्ध में कोई तत्प्रतिकूल विधि अस्तित्ववान है तथा वह पट्टा के पर्यवसान हेतु नोटिस की आवश्यकता को समाप्त करती है, तो ऐसी स्थिति में पट्टा का पर्यवसान करने हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी।

    यदि साधारण विधि के अन्तर्गत देनेन्सी को समाप्त करने के उपरान्त टेनेन्ट को अपनी सम्पत्ति से बेदखल करने का अधिकार किसी अस्थायी विधि द्वारा बाधित कर दिया जाता है तो नोटिस देने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी तथा यह अधिकार तब पुनर्जीवित हो जाएगा जब उसका प्रभावी होना समाप्त हो जाए। कतिपय विधान नोटिस की आवश्यकता को ही समाप्त कर देते हैं।

    उदारहण स्वरूप दिल्ली रेंट कन्ट्रोल एक्ट इस धारा के प्रावधान को अधिक्रान्त करते हुए यह व्यवस्था करता है कि लैण्डलार्ड उक्त अधिनियम के अन्तर्गत पट्टेदार के निष्पादन हेतु वाद संस्थित कर सकेगा।

    टेनेसी का पर्यवसान करने हेतु टेनेन्सी को समाप्त करने हेतु नोटिस दिए बिना तत्प्रतिकूल प्रथा यदि किसी स्थान पर कोई प्रथा है जो धारा 106 से मेल नहीं खाती है तो ऐसे पट्टा के पर्यवसान हेतु नोटिस देना समीचीन होगा।

    यदि किसी स्थानीय प्रथा के अनुसार पट्टा के समापन हेतु पन्द्रह दिन की नोटिस के सापेक्ष 30 दिन की नोटिस की अपेक्षा करता है, तो पन्द्रह दिन की ऐसी नोटिस आवश्यक होगी जैसा कि उस धारा में अपेक्षित है, पट्टा को समाप्त करने के लिए आवश्यक होगी। यदि किसी मामले में कोई प्रथा प्रतिकूल है, तो इस धारा के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

    टेनेन्सी की कालावधि तथा इसके पर्यवसान की रीति के निर्धारण से सम्बन्धित उपधारणा इस धारा के अन्तर्गत उन मामलों पर लागू नहीं होगी जहाँ कोई तत्प्रतिकूल प्रथा हो। अतः यदि इस आशय की कोई प्रथा है तो पट्टे का समापन तदनुसार होगा न कि इस धारा के अन्तर्गत।

    यदि स्थानीय प्रथा 30 दिन की नोटिस की अपेक्षा करती है किसी भवन से सम्बन्धित पट्टा के समापन हेतु तो 15 दिन को नोटिस, जैसा कि इस धारा में वर्णित है प्रभावी नहीं होगी इसी प्रकार यदि स्थानीय प्रधा नोटिस देने हेतु एक कालावधि निर्धारित करती है एवं इस हेतु प्रक्रिया का भी उल्लेख करती है तो नोटिस इस धारा में वर्णित रीति से देना आवश्यक नहीं होगा। इस प्रक्रिया का अनुसरण करना आवश्यक होगा जो प्रथा के अनुरूप है।

    नोटिस का स्वरूप तथा उसका अर्थान्वयन-

    उपरोक्त वर्णित तीन स्थितियों तथा प्रतिकूल संविदा, तत्प्रतिकूल स्थानीय विधि एवं तत्प्रतिकूल प्रथा को छोड़ कर शेष समस्त परिस्थितियों में पट्टा के पर्यवसान हेतु नोटिस देना आवश्यक है।

    इस धारा को उपधारा (4) नोटिस दिए जाने के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करती है, जिसके अनुसार,

    (1) नोटिस लिखित हो,

    (2) नोटिस देने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित हो,

    (3) नोटिस अपेक्षित व्यक्ति पर तामील हो -

    (क) डाक द्वारा या

    (ख) व्यक्तिगत रूप में परिदत्त हो, या

    (ग) सम्पत्ति के सहज भाग पर चस्पा की गयी हो।

    यदि नोटिस व्यक्तिगत रूप में देने का आशय है तो यह आवश्यक नहीं है कि नोटिस सम्बन्धित व्यक्ति को ही तामील हो उपधारा (4) के अनुसार यदि नोटिस परिवार के किसी सदस्य या उसके सेवकों में से किसी एक को उसके अर्थात् आशयित व्यक्ति के निवास पर परिदत्त किया जाना नोटिस की तामील हेतु यह पर्याप्त होगा।

    जब सम्पत्ति को पट्टा के बंधन से मुक्त करने हेतु नोटिस की तामील की जाती है दूसरे पक्षकार पर तो बहुधा यह प्रश्न उठता है कि क्या दूसरे पक्षकार को बाध्य करने के लिए नोटिस पर्याप्त थी। इस प्रश्न का उत्तर प्रिवी कौंसिल ने हरिहर बनर्जी बनाम राम शि राय के वाद में दिया है।

    न्यायालय ने सुस्पष्ट किया है कि पर्याप्तता का परीक्षण यह नहीं है कि नोटिस का अभिप्राय उस धृति जिसको वह उद्धृत करती है, के तथ्यों एवं परिस्थितियों से अनभिज्ञ एक अजनबी के लिए क्या होगा, अपितु यह है कि एक टेनेन्ट के लिए जो मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों से भिज्ञ है, के लिए क्या होगा? इसके अतिरिक्त यह भी महत्वपूर्ण है कि नोटिस का अर्थान्वयन नोटिस में त्रुटि निकालने के उद्देश्य से नहीं किया जाएगा, अपितु उसे प्रभावी बनाने के उद्देश्य से किया जाएगा अन्यथा नोटिस देने का प्रयोजन विफल हो जाएगा।

    ऐसे प्रकरणों में सूत्र "अमान्य से मान्य करना अच्छा है' (Ut res magis valeat quam pereat) प्रभावी होगा छोड़ने की सूचना या नोटिस को विरचना सदैव उदारतापूर्वक की जानी चाहिए, परन्तु इससे यह अभिप्रेत नहीं है कि दूसरे पक्षकार के हितों को क्षति पहुँचायी जाए मात्र परिसर के विवरण के त्रुटिपूर्ण उल्लेख के कारण नोटिस को विफल भी नहीं किया जाना चाहिए या पट्टेदार का नाम गलत होने के कारण' या लैण्डलार्ड का नाम गलत होने के कारण या नोटिस में उल्लिखित तिथि का त्रुटिपूर्ण उल्लेख होने के कारण परन्तु यह आवश्यक है कि नोटिस युक्तियुक्तत: सुस्पष्ट हो, विद्यमान पट्टे का पर्यवसान उससे परिलक्षित होता हो तथा वह काल भी जब पट्टे का पर्यवसान आशयित है। इसे शर्त रहित होना चाहिए।

    यदि पट्टा के पर्यवसान हेतु नोटिस में 15 दिन का समय दिया गया है तथा यह भी उल्लिखित हैं कि नोटिस का समय (कार्तिस मास) के समापन पूर्ण होगा तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि नोटिस इस धारा की सभी औपचारिकताओं को पूर्ण करती है।

    नोटिस देने का आशय केवल पट्टे का पर्यवसान होना चाहिए, कोई अन्य आशय नहीं।

    उदाहरणार्थं यदि नोटिस का भय दिखाकर किराया बढ़ाना है या पट्टेदार द्वारा सम्पत्ति के उपभोग को विनियमित करना है अथवा पट्टाजनित सम्पत्ति का एक अंश प्राप्त करना है, तो ऐसी नोटिस, पट्टा के पर्यवसान हेतु वैध नहीं होगी। यह भी आवश्यक है कि नोटिस में, अधिनियम में, उल्लिखित कालावधि का सुस्पष्ट उल्लेख हो।

    यदि पट्टा के पर्यवसान हेतु नोटिस डाक द्वारा भेजी गयी है और वह नोटिस इस टिप्पणी के साथ लेने से इन्कार किया या मौके पर नहीं पाया गया या वापस कर देने का अनुरोध किया वापस लौट आती है तो यह स्थिति यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है कि उसे नोटिस प्राप्त हो चुकी है जब तक कि इस उपधारणा को समाप्त करने हेतु साक्ष्य न हो।

    इस उपधारा में वर्णित प्रावधान को प्रभावी बनाने हेतु इस बात पर ध्यान देना समीचीन होगा कि किसी तत्प्रतिकूल संविदा स्थानीय विधि अथवा प्रथा के अध्यधीन है। यदि कोई तत्प्रतिकूल संविदा है या कोई तत्प्रतिकूल स्थानीय विधि है या कोई तत्प्रतिकूल प्रथा है तो उपधारा (1) में वर्णित प्रावधान लागू नहीं होगा।

    तत्प्रतिकूल संविदा का अभिव्यक्त होना आवश्यक नहीं है। यह विवक्षित भी हो सकेगा; पर संविदा वैध होनी चाहिए। यदि ऐसी संविदा अवैध है तो पट्टा की अवधि को विनियमित करने के लिए इस उपधारा के उपबन्ध प्रवर्तित होंगे। उदाहरण के लिए मुम्बई शहर में आवासीय पट्टों के समापन हेतु 15 दिन के बजाय 1 महीने की नोटिस देना आवश्यक होता है।

    अतः यह उपधारा वहाँ प्रभावी नहीं होती है। दक्षिण मालाबार क्षेत्र में यह प्रथा है कि अदिमापवन को स्थायी पट्टा माना जाए यदि इसका सृजन की गयी सेवा को प्रतिफल के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। अतः जब तक सम्पत्ति पट्टेदार एवं उसके परिवार के कब्जे में हैं, पट्टेदार को सम्पत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकेगा।

    इसी प्रकार बंगाल में चकरन या घाटवाल भूमि के पट्टों को इस उपधारा के अन्तर्गत समाप्त नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि उनका विनियमन स्थानीय प्रथा के अनुसार होता है। इसी प्रकार यदि पट्टा प्रदान करते समय पक्षकारों के बीच यह सहमति बनी थी कि पट्टा, पट्टाकर्ता को माँग पर समाप्त हो जाएगा तो लिखित नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी।

    पट्टा के समापन हेतु पट्टाकर्ता द्वारा सम्यक् रूप में माँग का प्रस्तुत करना पर्याप्त होगा उ० प्र० में मासानुमासी पट्टा के समापन हेतु 15 दिन के बजाय 1 महीने की नोटिस की आवश्यकता होगी।

    विनिर्माण के प्रयोजन हेतु पट्टा-

    कब 6 महीने की नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी : धारा 106 के प्रथम खण्ड को धारा 107 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के साथ पढ़ना उपयुक्त होगा। धारा 107 उपबन्धित करती है कि स्थावर सम्पत्ति का वर्षानुवर्ती, या एक वर्ष से अधिक की अवधि का या वार्षिक किराया आरक्षित करने वाला पट्टा केवल रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा किया जा सकेगा।

    स्थावर सम्पत्ति के अन्य सब पट्टे या तो रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा या कब्जे के परिदान सहित मौखिक करार द्वारा किए जा सकेंगे। यदि पट्टाग्रहीता एक अरजिस्ट्रीकृत पट्टा के अन्तर्गत सम्पत्ति धारण कर रहा है तथा पट्टाकर्ता मकान मालिक किराया स्वीकार कर पट्टादार की स्थिति को मान्यता देता है तो धारा 106 के अन्तर्गत पट्टा की उपधारणा की जाएगी तथा बेदखली के पूर्व ऐसे पट्टेदार को नोटिस देना आवश्यक होगा।

    यद्यपि एक अरजिस्ट्रीकृत पट्टा, एक स्थायी पट्टे के रूप में शून्य होगा, इसे मासिक पट्टा के रूप में मान्यता दी जा सकेगी एवं 15 दिन की नोटिस द्वारा समाप्त हो सकेगी। ऐसी स्थिति में 15 दिन की सूचना पर्याप्त होगी भले ही पट्टा विनिर्माण के प्रयोजन हेतु हो। श्री जानकी देवी बनाम राम स्वरूप जैन के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिप्रेक्षित किया है कि :-

    "अतः भले ही पट्टा विनिर्माण के प्रयोजन के लिए था. चूँकि पट्टा वर्षानुवर्षी नहीं था, 6 महीने की सूचना को आवश्यकता नहीं थी। विनिर्माण के लिए पट्टा जो वर्षानुवर्षी नहीं है, के पर्यवसान हेतु 6 महीने की नोटिस की आवश्यकता नहीं होती। ऐसा पट्टा धारा 106 के द्वितीय पैरा के अन्तर्गत आयेगा, इसके पर्यवसान हेतु 15 दिन की नोटिस की आवश्यकता होगी।

    धारा 106 तथा रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम- अनेक राज्यों ने अपने राज्य के लिए मकान मालिक को एवं किरायेदारों के सम्बन्धों को विनियमित करने हेतु रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम बनाये हैं। इन विधानों में ऐसे प्रावधानों का सृजन किया गया है जो इस धारा में वर्णित प्रावधान के प्रतिकूल है।

    ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना अवश्यम्भावी है कि रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम में वर्णित प्रावधानों को अवैध घोषित किया जाए या उन्हें धारा 106 का विरोधाभाषी होने के बावजूद भी प्रभावी बनाया जाए।

    न्यायालयों द्वारा निर्णीत वादों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालयों ने रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों को स्पेशल अधिनियम के रूप में मान्यता देकर उन्हें प्रभावी बनाया है। ये अधिनियम पट्टा की अवधि के समापन के पश्चात् भी किरायेदारों को संरक्षण प्रदान करते हैं तथा किरायेदारों को केवल रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों में वर्णित प्रावधानों का अनुसरण करते हुए ही बेदखल किया जा सकेगा।

    अतः सभी प्रयोजनों हेतु धारा 106 पर रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी बनाया गया है। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या धारा 106 अनुपयोगी हो गयी है। इस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय ने माँगी लाल बनाम सुगन चन्द के वाद में विचार किया है और यह अभिनिर्णीतकिया है कि रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के प्रावधानों को स्पेशल प्रावधान मानते हुए उन्हें धारा 106 के अतिरिक्त माना जाए, न कि धारा 106 के विरोधाभाष में।

    परन्तु धनपाल चेट्टियार बनाम यशोदा पो अम्मल के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा है कि जिन मामलों में किरायेदार का कब्जा रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम द्वारा संरक्षित है वहाँ पट्टा से किराये की बेदखली हेतु धारा 106 के अन्तर्गत नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। बेदखली केवल रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के अन्तर्गत ही हो सकेगी।

    इस मत का समर्थन उच्चतम न्यायालय ने कृष्ण देव बनाम राम कृष्ण राक के वाद में किया है। उपरोक्त निर्णयों के आलोक में यह कहा जा सकेगा कि रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों के अस्तित्व में आ जाने से धारा 106 में वर्णित प्रावधान का महत्व कम हो गया है। पर यह अनुपयोगी नहीं हुआ है।

    ऐसे सभी बिन्दुओं जिनके सम्बन्ध में रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों में व्यवस्था की गयी है उनका विनियमन रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम के अन्तर्गत होगा। परन्तु जिन बिन्दुओं पर रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम मौन हैं उनका विनियमन सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 के प्रावधानों द्वारा होगा।

    पट्टाग्रहीता के निष्कासन हेतु यह आवश्यक नहीं है कि वह किराया का भुगतान करने में विफल रहा हो। यदि वह किराया का भुगतान उपयुक्त स्थान एवं समय पर यथाशीघ्र करता है तो भी उसके निष्कासन की प्रक्रिया धारा 106 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 के अन्तर्गत वैध नोटिस देकर प्रारम्भ की जा सकेगी।

    केवल किराया नियंत्रण अधिनियम यह उपबन्ध प्रस्तुत करता है कि यदि किरायेदार किराया का भुगतान करने में विफल रहता है तो इस आधार पर उसे सम्पत्ति से निष्कासित किया जा सकेगा।

    सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के प्रयोजनार्थ इस तथ्य को अभिस्वीकृति कि किराया का भुगतान नहीं हुआ है को भी किराया भुगतान न होने के कारण पट्टाग्रहीता को सम्पत्ति से निष्कासित करने हेतु, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत पर्याप्त आधार नहीं माना जाएगा। ऐसे तथ्य को अभिस्वीकृति का वही प्रभाव होगा जो कि पट्टाकर्ता एवं पट्टाग्रहीता के सम्बन्धों के अस्तित्व का होता है।

    छोड़ने की नोटिस, किसके द्वारा एवं किसे–

    छोड़ने की नोटिस पट्टेदार या पट्टाकर्ता द्वारा दी जा सकेगी। नोटिस पट्टाकर्ता या पट्टाग्रहीता के अतिरिक्त उनके उत्तराधिकारी, अन्तरिती, निष्पादक तथा प्रशासक द्वारा भी दी जा सकेगी। इस निमित्त प्राधिकृत अभिकर्ता भी नोटिस देने के लिए सक्षम है।

    यदि पट्टाग्रहीता का हित उसके अनेक उत्तराधिकारियो में टेनेन्ट इन कामन या ज्वाइंट टेनेन्ट के रूप में वितरित हो चुका है, तो छोड़ने हेतु नोटिस उन सभी को दी जाएगी या उनमें से केवल कुछ को। यदि नोटिस उनमें से केवल कुछ को दो गयी है तो भी नोटिस पट्टेदारी को समाप्त करने के लिए पर्याप्त होगी।

    यदि पट्टेदार एक कारोबार संचालित कर रहे हैं एक कम्पनी के रूप में, यद्यपि उन्होंने पट्टे का निष्पादन अपनी व्यक्तिगत हैसियत में किया था, तो भी नोटिस कम्पनी पर तामील की जा सकेगी। पट्टेदार के निष्कासन हेतु वाद, फर्म के नाम में भी संस्थित किया जा सकेगा। यदि पट्टेदार ज्वाइंट टेनेन्ट हैं तो नोटिस उनमें से किसी एक को, या उनमें से किसी एक के द्वारा दी जा सकेगी।

    इस मत को उच्चतम न्यायालय ने भी उचित ठहराया है रहमत उल्ला बनाम चन्द्र कान्त के वाद में एक लैण्डलार्ड की मृत्यु हुई। उसका हित पाँच प्रति उत्तरदाताओं तथा चार अन्य को प्राप्त हुआ। यह अभिनित हुआ कि उनमें से केवल कुछ भी पट्ठेदार के निष्कासन हेतु वाद संस्थित कर सकेंगे। इसी प्रकार पट्टाकर्ता के मुख्तार अटॉर्नी को नोटिस प्राप्तत होगी।

    एच० सी० पाण्डेय बनाम जी० सी० पाल के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिव्यक्त किया कि :-

    "ज्वाइन्ट टेनेन्सी के मामले में छोड़ने के लिए नोटिस ज्वाइंट टेनेन्ट्स से किसी एक पर नोटिस की तामील हो सकेगी पर नोटिस सभी को सम्बोधित होनी चाहिए जिससे बेदखली हेतु वाद दाखिल करने पर उन सभी को वाद का पक्षकार बनाया जा सके। यदि नोटिस सभी सह पट्टेदारों को सम्बोधित नहीं है, तो ऐसे सह पट्टेदार जिन पर नोटिस तामील नहीं हुई है उस नोटिस से बाध्य नहीं होगा।"

    धारा 106 के अन्तर्गत नोटिस पट्टाकर्ता के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा भी साबित की जा सकेगी यदि पावर ऑफ अटानी होल्डर यह सुस्पष्ट कर देता है कि उसके अधिवक्ता ने उसके समक्ष, नोटिस पर हस्ताक्षर किया था।

    सूचना, कब आवश्यक नहीं है- यदि पट्टादार इस शर्त के साथ पट्टा ग्रहण करता है कि जब कभी भी पट्टाकर्ता अपेक्षा करेगा कि वह पट्टाजनित सम्पत्ति उसे वापस लौटा दें, तो ऐसा पट्टा इच्छा जनित पट्टा होगा एवं ऐसे पट्टे के समापन हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी।

    एक अतिचारी को बेदखल करने के लिए नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी अतः यदि कोई सेवादाता, सेवा देने में विफल रहता है तो वह अतिचारों की स्थिति में होगा और उसके निष्कासन हेतु नोटिस देने की आवश्यकता नहीं होगी।

    एक पट्टादार, जो पट्टा की अवधि के समापन के पश्चात् सम्पत्ति को, पट्टकर्ता की अनुमति के बगैर धारण करता है, वह मर्पणजात पट्टाग्रहीता है और ऐसे पट्टे के समापन हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी।

    इसी प्रकार पट्टेदार यदि अपनी पट्टेदारों के दौरान कोई करार करता है वह पट्टेदारी के समापन के पश्चात् एक निश्चित अवधि में सम्पत्ति खाली कर देगा, तो ऐसी पट्टेदारों के समापन हेतु नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी निर्धारित अवधि का पट्टा अवधि के समापन पर समाप्त हो जाता है। अतः इसके समापन के लिए नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। यदि पट्टेदार ने एक निश्चित तिथि को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान करने के लिए वचन दिया था, उसे किसी औपचारिक नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी।

    एक उपपट्टाग्रहीता बेदखली से पूर्व नोटिस पाने के लिए हकदार नहीं है यदि मूल पट्टेदार ने पट्टा का समर्पण कर दिया है।

    यदि सृजित पट्टा पट्टा करार के पंजीकृत होने के आलोक में, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 106 के अर्थ के अन्तर्गत वैध नहीं है तो केवल यह कहा जा सकेगा कि पट्टाकर्ता अथवा प्रतिभूत ऋणदाता या बैंक द्वारा पट्टेदार को अग्रिम सूचना जारी किए बिना भी पट्टा प्रतिसंहरणीय होगा। ऐसी परिस्थिति में प्रतिभूत ऋणदाता/बैंक पट्टाकर्ता की स्थिति में होता है।

    पट्टाग्रहीता अनाधिकृत कब्जाधारक नहीं होता है और न ही वह अतिचारी होता है। प्रतिभूत ऋणदाता बैंक सम्पत्ति का केवल सांकेतिक कब्जा प्राप्त कर सकता है पट्टाग्रहीता अथवा किराएदार से प्रतिभूत ऋणदाता/बैंक अथवा क्रेता जो इसके अध्यधीन सम्पत्ति प्राप्त करता है उसे सद्भाव युक्त पट्टाग्रहीता अथवा किरायेदार से उपयुक्त विधिक प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए हो कथित सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त कर सकेंगा।

    नोटिस की अवधि- वर्षानुवर्षी पट्टा 6 महीने को नोटिस से पर्यवसेय है। एक ऐसा पट्टा जिसमें वार्षिक किराया आरक्षित है अर्थात् वार्षिक पट्टेदारी पट्टादार बेदखली से पूर्व 7 मास की नोटिस पाने का हकदार है।

    यदि टेनेन्सी मासानुमासी है तो टेनेन्ट पन्द्रह दिन की नोटिस पाने का हकदार है। परन्तु यदि ऐसी पट्टेदारी के पर्यवसान हेतु 6 मास की नोटिस दी गयी है और यह भी उल्लिखित है कि नोटिस का पर्यवसान वर्ष के अन्त के साथ होगा, दो ऐसी नोटिस अवैध नहीं होगी।

    वस्तुतः यह नोटिस अपेक्षा से अधिक समय, पट्टे के पर्यवसान हेतु, देकर पट्टेदार को विवश करती है कि वह पट्टाजनित सम्पत्ति खाली कर दे। यह नोटिस वैध होगी। पर यदि पट्टेदारो वार्षिक या वर्षानुवर्षी प्रकृति को है तो 6 मास से कम की अवधि को नोटिस अवैध होगी और ऐसो नोटिस के आधार पर पट्टेदार को बेदखल नहीं किया जा सकेगा साधारणतया एक अवैध या अपर्याप्त नोटिस पट्टे का पर्यवसान करने में प्रभावी नहीं होगी।

    त्रुटिपूर्ण नोटिस का प्रभाव इस प्रश्न पर सम्यक् विचारण उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता क्रेडिट कार्पोरेशन बनाम हॅपी होम्स प्रा० लि० के वाद में किया था। न्यायालय ने सम्यक् विवेचना को पश्चात् यह मत व्यक्त किया कि यदि नोटिस धारा 106 में वर्णित कालावधि से कम अवधि को है अथवा नोटिस का पर्यवसान 6 मास अथवा पन्द्रह दिन के समापन के साथ नहीं हो रहा है तो ऐसी नोटिस का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा यदि पट्टेदार ने नोटिस स्वीकार कर लिया है।

    यदि नोटिस प्राप्त करने वाले व्यक्ति ने नोटिस को स्वीकार कर उसके अनुरूप आचरण किया तो नोटिस देने वाला व्यक्ति विबन्धन के सिद्धान्त से बाध्य होगा तो ऐसी नोटिस की वैधता को नकार नहीं सकेगा।

    बंगाल इलेक्ट्रिक लैम्प वर्क्स लि० बनाम एस० सी० सिंह के वाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त मत का अनुसरण करते हुए यह कहा कि खाली करने की नोटिस की विरचना परिस्थिति के सन्दर्भ में की जानी चाहिए। न्यायालय ने यह भी अभिनित किया कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि नोटिस को व्याख्या भू-स्वामी के विरुद्ध तथा पट्टेदार के पक्ष में न की जाए।

    यदि खाली करने को नोटिस पोस्ट या डाक द्वारा भेजी गयी है तो नोटिस की तामोल सम्यक् रूप से अभिस्वीकृति इत्यादि द्वारा साबित होनी चाहिए। यदि नोटिस की तामील को नकारा जाता है। तथा ऐसा नकारा जाना सत्य नहीं पाया जाता है तो ऐसे कथन को नकारते हुए पट्टेदार को सम्पत्ति रिक्त करने के लिए आदेशित किया जा सकेगा।

    यदि खाली करने को नोटिस साधारण पोस्ट के द्वारा भेजी गयी तथा पावती ने उसे लेने से अपने आप को विरत रखा, तत्पश्चात् नोटिस स्पीड पोस्ट से भेजी गयी जो "नाट क्लेम्ड" नोट के साथ वापस आ गयी। ऐसी स्थिति में यह माना जाएगा कि पट्टाग्रहीता को खाली करने को नोटिस की सूचना थी।

    पट्टा के पर्यवसान हेतु दी गयी नोटिस त्रुटिपूर्ण है अथवा अवैध है या नहीं, इस प्रश्न का निर्धारण एक जटिल कार्य है। हरिहर बनर्जी बनाम रामशशि राय के वाद में प्रिवी कौंसिल ने अनेको निर्णयों पर विचार करने के उपरान्त निम्नलिखित मत प्रतिपादित किया है।

    प्रिवी कौंसिल के अनुसार-

    "खाली �

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