संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 37: पट्टाकर्ता के दायित्व

Shadab Salim

25 Aug 2021 1:03 PM GMT

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 37: पट्टाकर्ता के दायित्व

    संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत धारा 108 पट्टाकर्ता के दायित्व का उल्लेख किया गया है, पट्टाकर्ता का दायित्व ही पट्टेदार के अधिकार भी है। इस आलेख के अंतर्गत उन सभी दायित्वों का उल्लेख सारगर्भित किए जा रहा हैं।

    धारा 108 पट्टाकर्ता तथा पट्टेदार के अधिकारों एवं दायित्वों के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है, परन्तु ये अधिकरण एवं दायित्व आत्यन्तिक नहीं हैं। ये संविदा या स्थानीय प्रथा के अध्यधीन होते हैं, किन्तु किसी स्थानीय विधि के अध्यधीन नहीं होते हैं।

    पट्टाकर्ता तथा पट्टेदार स्वयं इसमें वर्णित अधिकारों एवं कर्तव्यों से भिन्न अधिकारों एवं कर्तव्यों पर सहमत हो सकते हैं। यह धारा केवल तब प्रवर्तित होती है जब कोई तत्प्रतिकूल संविदा न हो।

    पट्टाकर्ता के दायित्व-

    पट्टाकर्ता के निम्नलिखित दायित्व है जो इस प्रकार हैं-

    1)- सम्पत्ति में के किसी अप्रत्यक्ष सारवान दोष प्रकट करने का कर्तव्य-

    यह दायित्व विक्रय के मामले में प्रचलित दायित्व के समान है। पट्टाकर्ता पट्टा दी जाने वाली सम्पत्ति में के उन सभी दोषों को पट्टेदार को प्रकट करने के लिए बाध्य है जो प्रस्तावित उपभोग के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण हो, जो पट्टाकर्ता को ज्ञात हो, जो पट्टेदार को ज्ञात न हो जो मामूली सावधानी बरतने से मालूम नहीं किया जा सके।

    दूसरे शब्दों में पट्टाकर्ता का उक्त कर्तव्य गुप्त दोषों को प्रकट करने तक सीमित है। यदि पट्टाकर्ता प्रकटीकरण के अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में विफल रहता है तो उसका कृत्य संविदा अधिनियम की धारा 17 के अन्तर्गत कपट का कृत्य होगा तथा सामान्य संविदाओं की भाँति पट्टे की संविदा भी शून्यकरणीय होगी।

    सारवान दोष, जो पट्टे की संविदा को प्रभावित कर सकेगा ऐसी प्रकृति का होना चाहिए जिसे, यदि पट्टाग्रहीता जानता, तो वह इस संव्यवहार का भागीदार नहीं बनता। उदाहरणार्थ सम्पत्ति पर अधिरोपित दायित्व जिसके अन्तर्गत सम्पत्ति को अनिवार्यतः अधिगृहीत किया जाना था. इस प्रयोजन हेतु सारवान् दोष की प्रकृति का माना जाएगा। यह एक ऐसा दोष है जिसे पट्टादार साधारण सावधानी से नहीं खोज सकेगा।

    ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह उपखण्ड पट्टाकर्ता से यह अपेक्षा नहीं करता है कि वह तुच्छ प्रकृति के दोषों को प्रकट करे जैसा पट्टा सम्पत्ति का भौतिक रूप से उपयोग हेतु अच्छी स्थिति में न होगा खिड़की के शीशे का टूटा होना या दरवाजे के पल्लों का ठीक से बन्द न होना पदावलि "साधारण सावधानी" एक अनिश्चित प्रकृति की अभिव्यक्ति है।

    पट्टाकर्ता को टाइटिल में किसी प्रकार का दोष, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत सारवान दोष, नहीं है। लैण्डलार्ड का यह कर्तव्य है कि वह अपने टेनेन्ट को सम्पत्ति के सभी निहित दोषों को प्रकट करें।

    यदि किसी छप्परयुक्त बंगला में आग लगने से टेनेण्ट का फर्नीचर जल जाता है तथा आग, चिमनी में विद्यमान किसी दोष के कारण लगती है एवं ऐसे दोष के विषय में लैण्डलाई ने टेनेण्ट को अवगत नहीं कराया था तो टेनेण्ट को हुई हानि के लिए लॅण्डलाई उत्तरदायी होगा।

    लैण्डलाई का यह दायित्व है कि वह टूटा प्रदान करते समय सम्पत्ति में विद्यमान दोषों को पट्टेदार को प्रकट करे, यद्यपि यह बताना आवश्यक नहीं है कि संदत सम्पत्ति कालान्तर में विनष्ट होकर उसकी उपयोगिता को कम कर सकेगी।

    तारक नाथ बनाम भुटोरिया ब्रदर्स के वाद में एक कम्पनी ने एक परिसर किराये पर लिया जिसमें कम्पनी का डायरेक्टर निवास कर रहा था। डायरेक्टर का अभिकथन था कि कम्पनी ने अपने पट्टे का समर्पण कर दिया था तथा उसने अपनी व्यक्तिगत हैसियत में उक्त परिसर का नवीन पट्टा अपने पक्ष में करा लिया था। प्रश्न यह था कि क्या कंपनी द्वारा पट्टे का वैध पर्यवसान हुआ है।

    इस प्रश्न का उत्तर इस आधार पर प्राप्त किया जा सकेगा कि टेनेन्ट कम्पनी किस प्रकार का साक्ष्य प्रस्तुत करती है। पट्टे का पर्यवसान हुआ, इसको अवधारणा नहीं की जा सकेगी। इस तथ्य का अभिकथन करने वाले पक्षकार को साक्ष्य प्रस्तुत कर पट्टे के पर्यवसान की स्थिति को साबित करना होगा। यदि इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है तभी और केवल तभी नवीन पट्टेदारों के प्रश्न पर विचार हो सकेगा।

    दोषों को प्रकट करने का पट्टाकर्ता संपत्ति में सारवान दोषों जो सम्पत्ति को आशयित उपभोग से सम्बन्धित हो, को प्रकट करने तक सीमित है। ये शब्द केवल सम्पत्ति की प्रकृति एवं स्थिति से सम्बन्धित हैं। इस प्रावधान में यह बाध्यता नहीं है कि पट्टाकर्ता दस्तावेज प्रस्तुत करे अथवा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दे।

    पट्टेदार, पट्टाकर्ता से यह अनुरोध नहीं कर सकेगा कि वह अपने स्वत्व के सम्बन्ध में संध्यवहार को पूर्ण होने से पूर्व सन्तोषजनक साक्ष्य प्रस्तुत करे परन्तु पट्टेदार को यह अधिकार होगा कि वह संव्यवहार को पूर्ण करने से इन्कार कर दे पूरा आशय का साक्ष्य प्रस्तुत करें कि पट्टाकर्ता का स्वत्व (टाइटिल) दोषपूर्ण है।

    2)- कब्जा का परिदान (धारा 108 (ख))

    पट्टाकर्ता पट्टेदार की प्रार्थना पर उसे सम्पत्ति पर कब्जा देने के लिए आबद्ध है। यह प्रावधान इसी अधिनियम की धारा 55 (1) (च) में उपवन्धित दायित्व के समानान्तर है। धारा 108 (ख) का महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि पट्टाकर्ता तब सम्पत्ति का कब्जा देने के लिए आबद्ध होगा जब कब्जा की माँग पट्टेदार द्वारा की गयी हो।

    सम्पत्ति का कब्जा न मिलने के कारण पट्टेदार किराया अदा करने के दायित्वाधीन नहीं होगा। यदि पट्टाकर्ता किराया हेतु वाद संस्थित करता है तो पट्टेदार कब्जा न मिलने की स्थिति को अपने बचाव हेतु एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर सकेगा।

    यदि पट्टेदार को पट्टा सम्पत्ति के केवल एक अंश का कब्जा प्राप्त होता है तो वह केवल उसी अंश के लिए किराया देने के दायित्वाधीन होगा यदि पट्टाकर्ता सम्पूर्ण पट्टा सम्पत्ति का कब्जा संदत करने में विफल रहता है तो पट्टेदार को यह अधिकार होगा कि सम्पूर्ण पट्टा संविदा को इन्कार कर दे, किन्तु यदि वह ऐसा न कर, सम्पत्ति के उस अंश को, जिसका कब्जा उसे प्राप्त हुआ है, धारण किए रहता है तो यह उक्त अंश के लिए आनुपातिक किराया अदा करने के दायित्वाधीन होगा।

    यदि पट्टे के सृजन के समय सम्पत्ति किसी तीसरे व्यक्ति के पास थी तथा यह तथ्य पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार दोनों को ज्ञात था, तो पट्टाकर्ता का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसी स्थिति उत्पन्न करे जिससे सम्पत्ति का कब्जा तीसरे व्यक्ति के पास से पट्टेदार को मिल जाए, किन्तु यदि पट्टेदार को सम्पत्ति के विषय में पूर्ण ज्ञान था तथा सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने में किसी प्रकार की बाधा या अड़चन नहीं थी, तो पट्टाकर्ता, पट्टेदार को सम्पत्ति का कब्जा दिलाने के दायित्वाधीन नहीं है जब तक कि पट्टेदार इस आशय का अनुरोध पट्टाकर्ता से न करे।

    यदि पट्टेदार न तो स्वयं सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करता है और न ही यह पट्टाकर्ता से अनुरोध करता है कि वह उसे सम्पत्ति का कब्जा प्रदान करे या दिलाये तो यह किराया हेतु संस्थित वाद का विरोध इस आधार पर नहीं कर सकेगा कि उसे सम्पत्ति का कब्जा नहीं प्राप्त हुआ है।

    यदि सम्पत्ति एक तीसरे व्यक्ति के कब्जे में है उदाहरणार्थ पूर्विक पट्टेदार के कब्जे में, तो पाश्चिक बन्धकदार को यह अधिकार होगा कि वह पट्टाकर्ता तथा पूर्वक पट्टेदार, दोनों के ही विरुद्ध बाद संस्थित करे। वस्तुतः वैध कार्यवाही यही है कि दोनों ही के विरुद्ध वाद संस्थित किया जाए।

    यदि पट्टेदार इस बात से इन्कार करता है कि उसे पट्टा सम्पत्ति का कब्जा कभी प्राप्त हुआ था, जिसकी शिनाख्त कभी विवादास्पद नहीं थी, तो पट्टाकर्ता तब तक किराया की मांग नहीं कर सकेगा जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि पट्टेदार को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान किया गया था और यह कब्जा पट्टा की संविदा के अध्यधीन दिया गया था।

    परन्तु यदि पट्टेदार ने किराया का भुगतान कर दिया है, तो यह साबित करने का भार उस पर ही होगा कि उसने उस सम्पत्ति के लिए भी किराया अदा कर दिया है जिसका कब्जा उसे नहीं प्राप्त हुआ था पर जिसका कब्जा उसे मिलना चाहिए।

    यदि पट्टेदार को सम्पत्ति का कब्जा नहीं प्राप्त हुआ है तो यह पट्टाकर्ता के विरुद्ध अचल सम्पत्ति के प्रलाभ हेतु जो उसने अवैध ढंग से प्राप्त किया हो या संविदा भंग हेतु क्षतिपूर्ति के लिए वाद संस्थित कर सकेगा।

    3)- शान्तिपूर्ण उपभोग के लिए प्रसंविदा (धारा 108) (ग) )

    पट्टाकर्ता का यह परम कर्तव्य है कि वह पट्टा सम्पत्ति के शांतिपूर्ण उपभोग हेतु पट्टेदार के पक्ष में एक प्रसंविदा करे। यह प्रसंविदा पट्टा संविदा का एक अभिन्न अंग होती है तथा इसे पट्टा संविदा में सम्मिलित माना जाता है। इसके विपरीत विक्रय के मामले में धारा 55 के अन्तर्गत यह संविदा का अंग नहीं होती है। यह मात्र एक सांविधिक दायित्व होता है।

    वर्तमान प्रावधान सपठित धारा 18 एवं 25, विशिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 यह सुस्पष्ट करती है कि पट्टाकर्ता का सम्पत्ति में हित, पट्टे के मामले में उतना ही सारवान है जितना कि विक्रम के मामले में परन्तु जब पट्टेदार, पट्टाकर्ता के विरुद्ध किराये या प्रीमियम की वसूली के लिए याद संस्थित करता है तो पट्टाकर्ता की त्रुटिपूर्ण या दोषपूर्ण हित को साबित करने का दायित्व पट्टेदार पर होता है।

    यदि पट्टाकर्ता पट्टाजनित सम्पत्ति पर कोई स्वत्व नहीं रखता है तथा एक अनजाना व्यक्ति एक पटेदार को कब्जा लेने से रोकता है तो ऐसी स्थिति में पट्टेदार पट्टाकर्ता से प्रीमियम की रकम को वापस पाने का अधिकारी होगा।

    यह प्रसंविदा कि पट्टेदार को सम्पत्ति के शान्तिपूर्ण उपभोग का अधिकार प्राप्त होगा प्रत्येक पट्टे की संविदा में अन्तर्विष्ट होता है, किन्तु वह प्रत्यक्षतः इससे सम्बन्धित नहीं है। इसका अभिप्राय यह है कि पट्टेदार को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान किया जाएगा तथा वह क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत होगा।

    यदि उसके उपभोग में सारवान व्यवधान उत्पन्न किया जाता है तो या तो स्वयं पट्टाकर्ता के किसी कृत्य से या उसके अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति के किसी फूल्य से। व्यवधान से मुक्ति हेतु वह प्रसंविदा होती है।

    उदाहरण के लिए, यदि पट्टा प्रदान करते समय पट्टाकर्ता ने यह अधिकार सुरक्षित रखे हुए है कि यह खनिजों की खुदाई करेगा और वह खुदाई इस प्रकार करता है कि जमीन धंस जाती है या जहाँ शिकार करने के लिए भूमि पट्टे पर दी गयी थी, पट्टाकर्ता जमीन पर एक भवन का इस प्रकार निर्माण करता है कि शिकार के लिए भूमि कम पड़ जाती है अथवा यह पट्टेदार को विवश करना चाहता है जिससे यह पट्टा सम्पत्ति छोड़ दे, और इस निमित्त यह मकान के दरवाजे एवं खिड़कियाँ निकाल लेता है अथवा पट्टेदार को लगातार धमकियों देता है या रास्ते में इस प्रकार अवरोध उत्पन्न करता है कि पट्टेदार का आना-जाना कठिन हो जाता है।

    ऐसे कृत्य पट्टा सम्पत्ति के उपभोग में सारवान व्यवधान उत्पन्न करते हुए माने जाएंगे। परन्तु यदि ऐसे कृत्य एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किए जा रहे हैं जो अपने स्वतंत्र अधिकार एवं सार्वभौम हित के अन्तर्गत कर रहा है तो इसे व्यवधान नहीं माना जाएगा।

    धारा 108 (ग) के अन्तर्गत पट्टेदार को यह विकल्प प्राप्त है कि वह चाहे तो पट्टे को समाप्त कर सके या उसे बनाये रखे। यदि वह चाहे तो उसे शून्य घोषित करा सकेगा और यदि वह ऐसा निर्णय लेता है तो उसे सम्पत्ति का कब्जा पट्टाकर्ता को वापस करना होगा जैसा कि धारा 108 (घ) में अपेक्षित है।

    प्रस्तुत प्रावधान सार्वभौम उपयोग का है चाहे वह प्रावधान किसी क्षेत्र या इलाके में प्रवर्तित हो या नहीं। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि इस प्रावधान में उल्लिखित शान्तिपूर्ण उपभोग की प्रसंविदा, पट्टाकर्ता या उसके अधीन माँग करने वाले व्यक्ति द्वारा पट्टेदार के कब्जे में व्यवधान उत्पन्न करने तक विस्तारित है।

    इसी प्रकार पट्टाकर्ता का भूस्वामी भी व्यवधान उत्पन्न करता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत प्रभावित होगा, परन्तु यदि कोई अजनबी व्यवधान उत्पन्न करता है तो यह व्यवधान इस धारा के अन्तर्गत प्रभावित नहीं होगा।

    यदि एक तीसरा पक्षकार पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार दोनों को अपदस्थ कर देता है निष्पादन विक्रय में सार्वभौम स्वत्व प्राप्त कर तथा पट्टेदार नये स्वामी का अपने आपको अभिधारी किराया का भुगतान कर मान लेता है तो ऐसी स्थिति में पट्टाकर्ता का स्वत्व (टाइटिल) समाप्त हो जाएगा तथा के प्रवर्तन से पट्टे का समर्पण हो जाएगा। परिणामस्वरूप, पट्टेदार की बेदखली के पश्चात् पट्टाकर्ता, पट्टेदार से किराया की मांग नहीं कर सकेगा।

    गजाधर बनाम राममाऊ के मामले में मूल पट्टाकतां ने उपपट्टेदार को इस आधार पर थिएटर चलाने से मना कर दिया क्योंकि उसने पट्टे के पर्यवसान हेतु पट्टेदार को नोटिस दे दिया है तथा उप पट्टेदार थिएटर स्वामी से, अतिरिक्त रकम का भुगतान कर नवीन पट्टा प्राप्त कर ले।

    इन तथ्यों पर यह अभिनिर्णीत हुआ कि शान्तिपूर्ण उपभोग को प्रसंविदा का उल्लंघन हुआ है, फलतः उपपट्टेदार, मूल पट्टादार के विरुद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त करने हेतु वाद संस्थित कर सकेगा।

    इस प्रखण्ड में प्रयुक्त निर्विघ्न" या "व्यवधान रहित" शब्द किसी भी रूप में अहिंत नहीं है। अतः इसे अअर्हित रूप में शान्तिपूर्ण उपभोग के अधिकार के तुल्य माना जाएगा।

    इस प्रावधान के अन्तर्गत पट्टाकर्ता, पट्टेदार को अपने अधीन माँग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कारित व्यवधान से संरक्षण प्रदान करने के दायित्वाधीन है। परन्तु यह प्रश्न उठता है कि किस सीमा तक पट्टाकर्ता संरक्षण प्रदान करने के दायित्वाधीन है। इस प्रश्न का उत्तर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नवरंग बनाम ए० जे० मेक के बाद में दिया है।

    न्यायालय के मतानुसार पट्टाकर्ता को ऐसे किसी भी व्यक्ति द्वारा कारित सभी व्यवधानों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकेगा चाहे यह व्यवधान या विघ्न कितना ही साशय या उपेक्षापूर्ण क्यों न हो। पट्टाकर्ता के दायित्व की कतिपय सीमा निर्धारित होनी चाहिए।

    ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस प्रखण्ड को सशर्त रूप में उपबन्धित किया गया है। परन्तु इससे यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि किराये का वास्तविक पूर्विक भुगतान, पट्टेदार के शान्तिपूर्ण कब्जा एवं उपभोग के अधिकार की पूर्विक शर्त है। इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि पट्टेदार किराया की किसी किस्त का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसे सम्पत्ति से बेदखल कर दिया जाएगा यह सम्पत्ति का कब्जा धारण किए रहेगा तथा सम्पत्ति का उपभोग करता रहेगा।

    पट्टाकर्ता द्वारा बेदखली यदि पट्टेदार को दी गयी सम्पत्ति एक अतिचारी के वास्तविक कब्जे में है तथा पट्टाकर्ता एक तीसरे पक्षकार के साथ समझौता कर सम्पत्ति उसे सौंप देता है तथा तीसरा पक्षकार उस अतिचारी को सम्पत्ति से बेदखल कर उसका कब्जा प्राप्त कर लेता है तो अतिचारों का बहिष्कृत या बेदखल होना पट्टेदार के बेदखल होने के तुल्य है।

    यदि पट्टाकर्ता ने अपने कार्य से पट्टेदार को बेदखल कर दिया है या पट्टेदार पट्टाकर्ता के किसी कार्य के फलस्वरूप सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त नहीं कर सका या उसके किसी अंश का कब्जा नहीं प्राप्त कर सका तो वह किराया का भुगतान करने से इन्कार कर सकेगा।

    पट्टे की निरन्तरता के दौरान पट्टाफर्ता भू-स्वामी कब्जा प्राप्त करने हेतु वाद संस्थित नहीं कर सकेगा भले ही पट्टा सम्पत्ति पर अतिचारी विद्यमान हो। अतिचारी द्वारा प्रतिकूल कब्जा भू-स्वामी के विरुद्ध पट्टे की निरन्तरता के दौरान प्रभावी नहीं होगा। एक टेनेन्ट संदत्त प्रीमियम को वापस लेने का अधिकारी केवल इस आधार पर नहीं होगा कि अतिचारी द्वारा व्यवधान उत्पन्न किया गया है।

    अनुवृद्धियाँ- यदि पट्टे के चालू रहने के दौरान सम्पत्ति में कोई अनुवृद्धि होती है तो ऐसी वृद्धि पट्टे में समाविष्ट समझी जायेगी। अतः यदि पट्टे की निरन्तरता के दौरान पट्टाकर्ता को आसन्न भूमि पर पट्टेदार अतिक्रमण कर लेता है तो इस प्रकार अतिक्रमित भूमि पट्टाजनित कृषि का अंश बन जाएगी तथा पट्टे को निरन्तरता के दौरान पट्टेदार को उक्त अनुवृद्धि से बेदखल नहीं किया जा सकेगा, परन्तु पट्टेदार ऐसी अनुवृद्धि पर अपनी सम्पत्ति के रूप में दावा प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। यदि पट्टेदार ने अनुवृद्धि पर प्रतिकूल कब्जा के रूप में स्वत्व प्राप्त किया है तो उसका यह कब्ज़ा अपने भू-स्वामी पट्टाकर्ता के लिए है न कि स्वयं के लिए।

    चूंकि अनुवृद्धि मूल भूभूति का अंश होती है अतः भू-स्वामी अनुवृद्धि से संयुक्त भूमि को पृथक भूभूति के रूप में मान्यता नहीं दे सकेगा तथा पट्टेदार द्वारा उक्त अनुवृद्धि के उपभोग एवं धारणा हेतु क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत नहीं कर सकेगा, परन्तु वह अतिरिक्त किराया पाने के लिए प्राधिकृत होगा जिसका निर्धारण अनुद्धि का मूल्यांकन करने के पश्चात् किया जाएगा।

    इस खण्ड में वर्णित नियम उन मामलों में लागू नहीं होता है जिनमें पट्टेदार अपने पट्टाकर्ता की भूमि पर अतिक्रमण करता है। ऐसे मामलों में पट्टाकर्ता भू-स्वामी का यह विकल्प होता है कि वह चाहे तो पट्टेदार को अतिचारी समझे अतः उसे बेदखल करने हेतु कार्यवाही करे या उक्त अनुवृद्धि के सम्बन्ध में उसे टैनेन्ट समझे यदि एक बार पट्टाकर्ता उसे पट्टेदार के रूप में मान्यता दे देता है उक्त अतिक्रमित भूमि के सम्बंध में तो वाद में उसे अतिचारी के रूप में मान्यता नहीं दे सकेगा।

    मरम्मत कराने का अधिकार ( धारा 108 (च)) -

    यदि पट्टाकर्ता सूचना के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अन्दर सम्पत्ति की मरम्मत करने में उपेक्षा करे जिसे करने के लिए वह आबद्ध है, तो पट्टेदार उसे स्वयं करा सकेगा तथा ऐसी मरम्मत का व्यय भाटक में से ब्याज सहित काट सकेगा या पट्टाकर्ता से अन्यथा वसूल कर सकेगा। उपबन्ध (च) पट्टाकर्ता को केवल सूचना देने की बात करता है।

    पट्टेदार, पट्टाकर्ता को यह आदेश नहीं दे सकेगा कि वह सम्पत्ति की मरम्मत कराये पट्टाजनित सम्पत्ति की मरम्मत हेतु पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार के बीच प्रत्यक्ष संविदा होनी आवश्यक है, अन्यथा पट्टाकर्ता, पट्टाधृत सम्पत्ति की मरम्मत कराने के लिए बाध्य नहीं है यदि पट्टा सम्पत्ति में कोई खराबी आयो है तो उस खराबी की सूचना पट्टेदार द्वारा पट्टाकर्ता को दी जानी आवश्यक है और इस सूचना के उपरान्त यदि पट्टाकर्ता मरम्मत कराने में उपेक्षा करता है तो मरम्मत का कार्य स्वयं पट्टेदार करा सकेगा।

    "मरम्मत" शब्द को अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। इसे इसके सामान्य अर्थ में हो स्वीकार किया जाना चाहिए। शब्द कोश के अनुसार, 'मरम्मत' से अभिप्रेत है कि किसी क्षतिग्रस्त वस्तु को उसके मूल स्वरूप में लाना, उसे इस स्थिति में लाना जिससे वह उप प्रयोजन हेतु उपयुक्त हो सके जिसके लिए उसका अस्तित्व है; कार्यकारी बनाना छिद्रों, दीवारों में पड़ी दरारों को भरना इत्यादि।

    इस अधिनियम के प्रयोजन हेतु 'मरम्मत' से अभिप्रेत है पट्टाजनित सम्पत्ति को उस प्रयोजन हेतु युक्तियुक्त बनाना जिसके लिए वह आशयित है। उदाहरण के लिए यदि भवन के छत से बारिश में पानी टपकता है तो यह आवासीय प्रयोजनों के लिए उपयुक्त नहीं है। इसी प्रकार दरवाजे निजता की सुरक्षा करने में असमर्थ हैं; या मकान में पानी नहीं उपलब्ध हो पा रहा है तो वह भवन आवासोय प्रयोजन हेतु उपयुक्त नहीं है।

    किन्तु पट्टेदार द्वारा मरम्मत के नाम में वस्तु या सम्पत्ति में आमूल परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए पट्टेदार इस उपबन्ध में प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करते हुए खपरैल को छत को सीमेण्ट कांक्रीट की छत में परिवर्तित करने के लिए प्राधिकृत नहीं है। वह मरम्मत के नाम में टूटो खपरैल को नई खपरैल से प्रतिस्थापित करने हेतु हो प्राधिकृत है।

    इसी प्रकार यदि पट्टेदार को म्यूनिसिपिलटी ने यह आदेश दिया है कि वह परिसर में विद्यमान कुएँ को ढक दे तो उसे यह अधिकार नहीं होगा कि वह मिट्टी एवं कंकड़ से कुएँ को भर दे। यदि वह ऐसा करता है तो इसमें हुआ व्यय वह पट्टाकर्ता से नहीं प्राप्त कर सकेगा।

    पट्टाकर्ता द्वारा मरम्मत न कराने का प्रभाव- यदि पट्टाकर्ता, पट्टेदार जाने पर युक्तियुक्त समय के अन्दर सम्पत्ति को मरम्मत कराने में उपेक्षा करता है, जिसे कराने के सूचना दिए लिए वह आबद्ध है तो पट्टेदार स्वयं वह मरम्मत करा सकेगा और ऐसी मरम्मत में हुआ व्यय, ब्याज सहित पट्टाकतों को देय किराया में से काट सकेगा या अन्यथा उससे वसूल कर सकेगा।

    पट्टेदार पट्टा को समाप्त कराने के लिए प्राधिकृत नहीं है। मरम्मत न कराने के आधार पर पट्टे का समापन वहाँ भी नहीं हो सकेगा जहाँ पर पट्टाकतों ने मरम्मत कराने की वचनबद्धता दो है। परन्तु पट्टेदार के अनुरोध पर अपने वचन का पालन करने में विफल रहता है।

    पट्टेदार का केवल यह अधिकार है कि वह मरम्मत का कार्य स्वयं कराकर, मरम्मत में हुए व्यय को या तो देय किराया में से काट ले पट्टाकर्ता से अन्यथा प्राप्त करे पट्टेदार को यह साबित करना होगा कि मरम्मत का जो कार्य कराया गया था वह सम्पत्ति के युक्तियुक्त उपयोग के लिए आवश्यक था; वह सुख का साधन नहीं था।

    टेनेन्ट किराये में से केवल उन्हों व्ययों को काटने के लिए प्राधिकृत होगा जो ऐसी मरम्मतों पर हुए हैं जिन्हें पूर्ण कराने के दायित्वाधीन पट्टाकर्ता था।

    पट्टेदार का अधिकार केवल यह है कि पट्टाकर्ता द्वारा उपेक्षा की दशा में वह मरम्मत कार्य स्वयं कराये तथा व्यय की गयी रकम व्याज समेत किराये में से काट ले अथवा पट्टाकर्ता से व्यक्तिगत तौर पर प्राप्त करे। वह पट्टा संविदा समाप्त करने या किराया का भुगतान न करने पा किराया कम करने के अधिकार से युक्त नहीं है।

    पट्टेदार द्वारा पट्टाकर्ता के एवज में संदाय (धारा 108 (छ)-

    यह उपबंधित करता है कि यदि पट्टाकर्ता ऐसा संदाय करने में उपेक्षा करे जिसे करने के लिए वह आबद्ध है जो यदि उस द्वारा न किया जाता तो पट्टेदार से या उस सम्पत्ति से वसूला जाता, तो पट्टेदार ऐसा स्वयं कर सकेगा और उस रकम को उस भाटक या किराया में से ब्याज सहित काट सकेगा या पट्ट से अन्यथा वसूल कर सकेगा अर्थात् यदि पट्टाकर्ता के दायित्वों का निर्वहन पट्टेदार करता है तो उसे वह रकम पाने का पूर्ण अधिकार है जो उसने पट्टाकर्ता के एवज में अदा किया था।

    यदि पट्टेदार, पट्टाकर्ता द्वारा देय भूराजस्व का भुगतान करता है तो वह पट्टाकर्ता से उक्त रकम वसूत कर सकेगा। इसी प्रकार यदि किरायेदार ने जल कर एवं सम्पत्ति कर का भुगतान किया हैं तो वह किराये की रकम में से उक्त राशि काटकर किराया का भुगतान करेगा।

    यदि एक सम्पत्ति का एक व्यक्ति के पास बन्धक किया जाता है तत्पश्चात् उसी सम्पत्ति का पट्टा एक अन्य व्यक्ति को कर दिया जाता है जबकि बन्धक रकम का भुगतान नहीं हुआ था एक बन्धककर्ता पट्टाकर्ता ने बन्धक को रकम का भुगतान करने के लिए स्वयं को दायों बनाया था।

    पूर्विक बन्धकदार, पट्टेदार द्वारा सम्पत्ति के उपभोग में व्यवधान उत्पन्न करने की धमकी देता है उसे सम्पत्ति से बेदखल करने को धमकी देता है। यदि वह बन्धक रकम का भुगतान नहीं करता है तो ऐसी भ्रमको शान्तिपूर्ण उपभोग को प्रसंविदा का उल्लंघन माना जाएगा।

    यदि वेदखली से बचने तथा शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पत्ति के उपभोग करने हेतु पट्टेदार बन्धक रकम का भुगतान कर देता है दो यह इस रकम को पट्टाकर्ता से प्राप्त करने का हकदार होगा।

    इस सम्बन्ध में ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पट्टेदार केवल उस रकम को पट्टाकर्ता से प्राप्त करने का अधिकारी होगा जिसका भुगतान करने के लिए पट्टाकर्ता आबद्ध था। यदि पट्टाकर्ता आबद्ध नहीं था तो पट्टेदार उक्त रकम को वसूल करने का अधिकारी इस उपबन्ध के अन्तर्गत नहीं होगा

    पट्टेदार केवल उस रकम को पट्टाकर्ता से वसूल करने का अधिकारी है जिसका भुगतान करने के लिए पट्टाकर्ता बाध्य था। अतः यदि म्यूनिसिपल कार्पोरेशन द्वारा नियमों के तहत किसी रकम की माँग की गयी थी जिसका भुगतान भूस्वामी पर गृह स्वामी को करना था, किन्तु पट्टेदार ने उस रकम का भुगतान कर दिया तो पट्टेदार उस रकम की वसूली पट्टाकर्ता से कर सकेगा या तो किराये की रकम में से उक्त रकम को काटकर या पट्टाकर्ता से अन्यथा वसूल कर जैसी कि दोनों के बीच सहमति हो।

    परन्तु यदि रकम को माँग पट्टेदार से की गयी है, न कि पट्टाकर्ता से रकम की वसूली नहीं की जा सकेगी क्योंकि इस रकम का भुगतान करने के लिए पट्टाकर्ता आबद्ध नहीं था। करों का समय पर भुगतान न किया जाना उपेक्षा की कोटि में आएगा और यदि ऐसी रकम का भुगतान पट्टेदार करता है तो वह उसकी वसूली ब्याज सहित करने के लिए प्राधिकृत होगा तथा पट्टाकर्ता उक्त रकम को अदा करने से मना नहीं कर सकेगा।

    भूबद्ध वस्तुओं को हटाने का अधिकार (धारा 108 (ज) ) -

    यह उपबन्ध सुस्पष्ट करता है कि पट्टे के खत्म होने के पश्चात् किसी भी समय, परन्तु केवल तब तक जब तक कि पट्टेदार का पट्टे की सम्पत्ति पर कब्जा है, उन सब वस्तुओं को जो उसने भूबद्ध की है, हटा सकेगा, परन्तु यह आवश्यक होगा कि पट्टेदार इस कार्य के बावजूद भी सम्पत्ति को उसी अवस्था में छोड़ें, जिसमें उसने उसे प्राप्त किया था।"

    भू-बद्ध वस्तुओं से अभिप्रेत है-

    (1) भूमि में मूलित जैसे पेड़ और झाड़ियाँ

    (2) भूमि में निविष्ट जैसे भित्तियाँ या निर्माण, अथवा

    (3) ऐसी निविष्ट वस्तु से इसलिए बद्ध कि जिससे वह बद्ध है, उसका स्थायी लाभप्रद उपयोग किया जा सके।

    पट्टेदार पट्टे को सम्पत्ति के पश्चात् परन्तु सम्पत्ति का कब्जा सौंपने से पूर्व ऐसी सभी वस्तुओं को हटाने का अधिकारी है। पट्टेदार को परिसर में प्रवेश करने तथा वस्तुओं को हटाने से इस आधार पर नहीं रोका जा सकेगा कि पट्टे का पर्यवसान हो गया है। यह उपबन्ध भूमि से सम्बन्धित नियम जो कुछ भी भूमि से संबद्ध है वह भूमि का अंश है तथा उन्हीं अधिकारों से प्रभावित होगा जिससे भूमि स्वयं प्रभावित है।

    "भू-बद्ध वस्तुओं के सम्बन्ध में, जैसा कि धारा 108 (ज) में उल्लिखित है, स्थिति को उच्चतम न्यायालय ने रतन लाल जैन बनाम उमा शंकर के वाद में सुस्पष्ट किया है। न्यायालय के अनुसार धारा 108 खण्ड (ज) पट्टेदार को यह अधिकार देता है कि वह पट्टे के दौरान और यहाँ तक कि पट्टे के पर्यवसान के पश्चात् किसी समय जबकि सम्पत्ति का कब्जा उसके पास हो, परन्तु सम्पत्ति पर कब्जा समाप्त होने के पश्चात् नहीं, ऐसी सभी वस्तुओं को हटा ले जो उसने भूमि के साथ भू-बद्ध किया था तथा इसमें सम्मिलित है वह भवन भी जिसे उसने बनवाया था या खड़ा किया था पट्टाजनित भूमि पर, परन्तु यहाँ पट्टेदार का यह तत्प्रतिकूल स्थानीय प्रथा या संविदा के अध्यधीन है।

    108 (ज) सपठित धारा 109 के अन्तर्गत पट्टेदार को केवल यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने द्वारा किए गये निर्माण को हटा ले जिससे कि निर्णीत भूमि का कब्जा पट्टाकर्ता को प्रदत्त किया जा सके। जहाँ तक ऐसे निर्माण के लिए प्रतिकर प्रदान करने का प्रश्न है वह बिल्कुल ही विचारणीय नहीं है, किन्तु यदि कोई तत्प्रतिकूल संविदा है तो धारा 108 (ज) का उपबन्ध प्रवर्तित नहीं होगा।

    एक प्रकरण में पट्टे की शर्तों में यह उपबन्धित था कि पट्टे के पर्यवसान पर परिसर पर खड़ा किया गया निर्माण कार्य पट्टाकतां का होगा जब तक कि पट्टेदार उन्हें पट्टे के पर्यवसान पर हटा नहीं लेता है या पर्यवसान के दो माह के अन्दर हटा नहीं लेता है तथा सभी देशों का भुगतान नहीं कर देता है एवं सभी शर्तों को पूर्ण नहीं कर देता है।

    पट्टे का पर्यवसान किराया का भुगतान न होने के कारण कर दिया गया और पट्टेदार, पट्टाकर्ता को सम्पत्ति का कब्जा देने पर सहमत हो गया। इन तथ्यों पर यह अभिनिर्णीत हुआ कि समस्त भूबद्ध वस्तुएँ पट्टाकर्ता की हैं। धारा 108 (ज) में वर्णित सिद्धान्त का लाभ उपपट्टेदार को भी प्राप्त है।

    एक पट्टेदार को अधिकार है कि वह अपने द्वारा किए गये अप्राधिकृत निर्माण को पट्टे के पर्यवसान पर हटा ले तथा पट्टाकतों को सम्पत्ति उसी स्थिति में लौटा दे जिस स्थिति में पट्टाकर्ता में सम्पत्ति उसे हस्तान्तरित किया था।

    फसल हटाने का अधिकार (धारा 108 (झ)

    यदि एक अनिश्चित कालावधि का पट्टा जैसे वर्षानुवर्षी पट्टे पट्टेदार के व्यतिक्रम के सिवाय किसी अन्य कारण द्वारा पर्यवसित कर दिया जाता है, तब वह या उसका विधिक प्रतिनिधि पट्टेदार द्वारा रोपित या बोई गयो तथा उस भूमि पर उगी हुई कुल फसलों को एकत्रित करने एवं ले जाने के लिए अबाध रूप से आने-जाने का अधिकार होगा।

    इस उपबन्ध के प्रावधान इसी अधिनियम की धारा 51 में वर्णित प्रावधान के अनुरूप जिसका उद्देश्य सद्भावयुक्त अन्तरितों के हितों को संरक्षण देना है। जहाँ सम्पत्ति कब्जा प्राप्त करने हेतु संस्थित बाद में यह आदेश पारित हुआ कि यदि वादी एक निश्चित तिथि से पूर्व एक अभिनिश्चित रकम प्रतिवादी के पास जमा नहीं कर देता है तो सम्पत्ति का कब्जा प्रतिवादी के पास बना रहेगा।

    वादी रकम जमा करने में विफल रहा। ऐसी स्थिति में प्रतिवादी ने उक्त भूमि पर फसल उगा दिया। इसी दौरान वादी ने रकम जमाकर कब्जे की माँग की। यह अभिनिर्णीत हुआ कि प्रतिवादी को इस उपबन्ध का लाभ प्राप्त होगा। यादी यह माँग नहीं कर सकेगा कि प्रतिवादी उसे सम्पत्ति के कब्जा के साथ ही साथ फसलों पर भी अधिकार उसे सौंप दे अथवा फसलों का मूल्य उसे प्रदान करे।

    हित अन्तरित करने का अधिकार ( धारा 108 (अ) – यह उपबन्ध पट्टेदार को महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है। इसके अनुसार पट्टेदार पट्टा सम्पत्ति में अपने पूर्ण हित को या उसके भाग को आत्यन्तिक रूप से अथवा बंधक या उपपट्टे द्वारा अन्तरित कर सकेगा और ऐसे हित को भाग का अन्तरिती उसे पुनः अन्तरित कर सकेगा।

    पट्टेदार का मात्र ऐसे अन्तरण के फलस्वरूप पट्टे से संलग्न दायित्यों में से किसी के अध्यधीन रहना प्रविरत न हो जाएगा। उस उपबन्ध में प्रदत्त अन्तरण का अधिकार निम्न परिस्थितियों में प्रवर्तित नहीं होगा।

    (1) पट्टेदार के पास अनन्तरणीय धारणाधिकार है।

    (2) मालगुजारी न दे पाने वाले काश्तकार का उक्त काश्त में निहित हित

    (3) कोट ऑफ वार्ड्स के प्रबन्धन में स्थित सम्पत्ति के पट्टाग्राही का हित । इस सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण है कि पट्टे के समापन के पश्चात् सम्पत्ति का कब्जा वापस पट्टाकतों को सौंपने का दायित्व पट्टेदार पर होता है। यह दायित्व किसी अन्य व्यक्ति पर नहीं होता है क्योंकि अन्य व्यक्ति पर नहीं होता है क्योंकि अन्य व्यक्ति से पट्टाकतों को संविदा की सनिकटता नहीं होती है।

    अतः संव्यवहार पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार के बीच ही होना चाहिए। परन्तु यदि पट्टाकर्ता इस बात पर सहमत हो जाए। कि वह अन्य व्यक्ति अर्थात् उपपट्टेदार समुनदेशिती को मूल पट्टेदार के रूप में स्वीकार कर लेगा तो मूल पट्टेदार अपने दायित्व से मुक्त हो जाएगा।

    एक साधारण पट्टेदार या समनुदेशिती पट्टाकर्ता के प्रति जवाबदेह नहीं है, परन्तु यदि उपपट्टा या समनुदेश आत्यन्तिक है तो उपपट्टेदार या समनुदेशितो सम्पदा की सन्निकटता के आधार पर दायी होगा।

    सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 10 में वर्णित प्रावधान के अध्यधीन पट्टेदार को सम्पदा के साधारण अनुक्रम में उसे अन्तरित करने की अनुमति प्रदान की गयी है। जब तक कि कोई ऐसी प्रसंविदा न हो जो पट्टेदार के अधिकारों को सीमित करती है, स्थायो पट्टे के प्रकरण में पट्टेदार का अधिकार अन्तरणीय एवं उत्तराधिकार में प्राप्त दोनों ही हैं।

    आत्यन्तिक अन्तरण के फलस्वरूप पट्टेदार पट्टा सम्पत्ति में अपना सम्पूर्ण हित हस्तान्तरित कर देता है एवं इस प्रक्रिया द्वारा पट्टाकर्ता एवं अन्तरितों के बीच सम्पदा को सनिकटता सृजित हो जाती है जिसके फलस्वरूप नवीन अन्तरितो तथा पट्टाकर्ता के बीच संबंध स्थापित हो जाता है एवं अन्तरिती भूमि के साथ चलने वाली प्रसंविदाओं जिसमें किराया या भाटक के भुगतान की प्रसंविदा भी सम्मिलित रहती है, के फलस्वरूप पट्टाकर्ता के प्रति दायी हो जाता है।

    प्रस्तुत उपबन्ध भले ही पट्टेदार को उपपट्टा सृजित करने हेतु प्राधिकृत करता है। यदि वह पट्टाकर्ता को पूर्वानुमति लिए बिना सम्पत्ति का अन्तरण करता है एवं इस आधार पर यदि पट्टाकर्ता पट्टेदार की बेदखली हेतु प्रक्रिया प्रारम्भ करता है तो वह (पट्टेदार) यह बचाव नहीं ले सकेगा कि उसे धारा 108 (ञ) के अन्तर्गत सम्पत्ति का अन्तरण करने का अधिकार है।

    पट्टे को शेष बची अवधि के लिए आत्यन्तिक रूप में किए गये उपपट्टे द्वारा अन्तरण शेष अवधि हेतु समनुदेशन नहीं होगा, केवल एक उपपट्टा होगा तथा यह समनुदेशन के विरुद्ध प्रसंविदा का उल्लंघन करता हुआ नहीं माना जाएगा

    उपपट्टेदार के अधिकार-

    चूंकि अधिनियम के अन्तर्गत उपपट्टे को अवैध नहीं घोषित किया गया है, अपितु पट्टेदार को अधिकार दिया गया है कि यदि वह चाहे तो उपपट्टा सृजित कर सकता है सम्पूर्ण सम्पत्ति का या उसके एक भाग का अतः उपपट्टेदार को पट्टेदार के अधीन कतिपय अधिकार प्राप्त होंगे।

    साधारणतया पट्टेदार का उपपट्टा सृजित करने का अधिकार उसके तथा पट्टाकर्ता के बीच हुई आपसी सहमति पर निर्भर करती हैं, अतः केवल उन मामलों में जिनमें पट्टा करार में सम्पत्ति का उपपट्टा सृजित करने पर कोई विशिष्ट निषेध हैं और इस निषेध की उपेक्षा कर अप्राधिकृत उपपट्टा सृजित किया जाता है तो ऐसी स्थिति में पट्टाकर्ता पट्टा के जब्तीकरण की कार्यवाही कर सकेगा।

    सम्पत्ति विधि का यह एक मान्य सिद्धान्त है कि कोई भी व्यक्ति अपने से उत्तम हित जो उसे सम्पत्ति में प्राप्त है, अन्तरित नहीं कर सकता है। अतः एक निश्चित कालावधि का अन्तरितो उपपट्टेदार को अपने से अधिक अवधि का पट्टा नहीं कर सकेगा।

    अतः यदि उपपट्टा विलेख में किसी अवधि का उल्लेख नहीं हुआ है तो इससे यह निष्कर्षन नहीं निकाला जाएगा कि उपपट्टा स्थायी प्रकृति का पट्टा है। केवल यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि उपपट्टा मूल पट्टे की अवशिष्ट अवधि के लिए सृजित किया गया है।

    सम्पदा की सन्निकटता-

    जब पट्टेदार का रेन्ट अदा करने का दायित्व सम्पदा को सन्निकटता पर आधारित होता है, तो यह दायित्व उस क्षण समाप्त हो जाता है जब यह हित किसी अन्य व्यक्ति को अन्तरित कर दिया जाता है। परन्तु जहाँ तक मूल पट्टेदार का सम्बन्ध है, उसका दायित्व समनुदेशन के कारण समाप्त नहीं होता है।

    उसका दायित्व केवल तभी समाप्त होता है जब समनुदेशन को पट्टाकर्ता द्वारा प्रत्यक्ष परोक्ष रूप में पट्टेदार के रूप में स्वीकार कर लिया जाए अन्यथा पट्टेदार एवं समनुदेशिती दोनों के विरुद्ध बेदखली हेतु वाद संस्थित किया जा सकेगा।

    एक पट्टे के समनुदेशिती का किराया भुगतान का दायित्व सम्पदा की सन्निकटता के फलस्वरूप उत्पन्न होता है और यह सन्निकटता सम्पत्ति के अन्तरण के फलस्वरूप उत्पन्न होती है न कि कहा प्राप्त करने के कारण समनुदेशिती यदि अपना हित एक अन्य व्यक्ति के पक्ष में अन्तरित करता है, तो उसकी सम्पदा को सन्निकटता समाप्त हो जाएगी परिणामतः समनुदेशन के पश्चात् प्रसंविदा का उल्लंघन होने की दशा में उसका कोई दायित्व नहीं होगा।

    एक पट्टाधृत सम्पत्ति का बन्धको जिसने अन्य बंधकियों के हितों के जब्तीकरण द्वारा प्राप्त कर लिया है वह पट्टाकर्ता को किराया अदा करने के दायित्वाधीन है क्योंकि ऐसे मामले में पट्टेदार तथा बन्धकी दोनों के सम्पूर्ण हित विधि के प्रवर्तन द्वारा एक व्यक्ति अर्थात् बन्धकी में विलीन हो है।

    यदि पट्टेदार पट्टा सम्पत्ति की शर्तों का उल्लंघन कर बन्धक सृजित करता है तथा भू-स्वामी जब्ती (समपहरण) के आधार पर बेदखली हेतु डिक्री प्राप्त कर लेता है, तो बन्धकी, चूँकि वह समनुदेशिती नहीं है, यह नहीं कह सकेगा कि धारा 111 (छ) के अन्तर्गत दी गयी नोटिस वैध नहीं है या पट्टे की शर्तों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

    यदि पट्टेदार से सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने वाला व्यक्ति पूर्णतया अतिचारी है तथा उसके एवं पट्टेदार के बीच किसी भी प्रकार की सन्निकटता नहीं है तो न्यायालय कब्जा हेतु पट्टाकर्ता के पक्ष में डिक्री पारित कर सकेगा पर अन्य मामलों में जिनमें कब्जाधारी, पट्टेदार द्वारा किए गये अन्तरण के फलस्वरूप कब्जाधारी है, तो कब्जा हेतु पट्टाकर्ता के पक्ष में डिक्री पारित नहीं होगी जब तक कि पट्टेदार द्वारा परित्याग न साबित हो जाए।

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