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धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता क्या है?
सिविल मामलों में सबसे ज्यादा प्रयोग में ली जाने वाली धारा है धारा 151 जिसके अंतर्गत न्यायालय को अन्तर्निहित शक्तियाँ प्रदान की गयी है। इस धारा को प्रत्येक अन्य धारा/आदेश/नियम के जोड़ कर पेश किया जाता है. यह धारा न्यायालय को वह सभी शक्तियां प्रदान करती है जो न्याय की प्राप्ति एवं कानून के दुरुपयोग रोकने के लिए आवश्यक है। न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां बहुत व्यापक हैं और किसी भी तरह से संहिता के प्रावधानों द्वारा नियंत्रित नहीं हैं। वे संहिता द्वारा न्यायालय को विशेष रूप से प्रदत्त शक्तियों के...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 10 : लिखत के पक्षकारों की सक्षमता (धारा 26)
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 26 लिखत के पक्षकारों की सक्षमता के संबंध में उल्लेख करती है। यह इस अधिनियम का अति महत्वपूर्ण भाग है जो लिखत के पक्षकारों की सक्षमता का उल्लेख करता है। कौन व्यक्ति लिखत के लिए सक्षम पक्षकार हो सकता है यह इस अधिनियम हेतु जानना आवश्यक हो जाता है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही प्रावधान पर चर्चा की जा रही है।पक्षकारों की सक्षमता-संविदात्मक क्षमता– धारा 26 किसी व्यक्ति के सामर्थ्य के सम्बन्ध में नियम को स्थापित करती है कि किसी वचन पत्र,...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 11 : अभिकरण (एजेंसी) किस प्रकार निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स लिख सकती है (धारा 27)
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) जो तीन प्रकार के लिखत विनिमय पत्र, वचन पत्र, और चेक का उल्लेख करता है उनमे इस अधिनियम में लिखत के पक्षकारों और उनकी सक्षमता के साथ ही एक अभिकरण द्वारा लिखत लिखे जाने संबंधी प्रावधान भी उपलब्ध है। इस आलेख के अंतर्गत इस प्रकार से अभिकरण द्वारा जारी किए जाने वाले लिखत से संबंधित नियमों पर चर्चा की जा रही है जो कि इस अधिनियम की धारा 27 से संबंधित है।अभिकरण द्वारा निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स-किसी लिखत के लिखने, प्रतिग्रहीत करने या पृष्ठांकित...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 9 : सम्यक अनुक्रम में संदाय क्या होता है (धारा 10)
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) से संबंधित पिछले आलेख में इस अधिनियम की धारा 8, 9 से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा की गई थी। इस आलेख में सम्यक अनुक्रम में संदाय जो कि धारा 10 से संबंधित है पर चर्चा की जा रही है। इस धारा से संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।सम्यक अनुक्रम में संदाय-सम्यक् अनुक्रम संदाय की आवश्यक शर्ते- सम्यक् अनुक्रम संदाय के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए-1. लिखत के प्रकट शब्दों के अनुसार संदाय,2. सद्भावना पूर्वक3. बिना...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 8 : सम्यक अनुक्रम धारक क्या होता है (धारा 9)
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 9 सम्यक अनुक्रम धारक के संबंध में उल्लेख कर रही है। पिछले आलेख के अंतर्गत लिखत के पक्षकारों के संबंध में उल्लेख किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत सम्यक अनुक्रम धारक क्या होता है इससे संबंधित प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।धारक एवं सम्यक् अनुक्रम शब्दों को समान रूप में नहीं लेना चाहिए। इनमें मौलिक अन्तर है। "प्रत्येक सम्यक् अनुक्रम धारक एक धारक होता है, परन्तु प्रत्येक धारक एक सम्यक अनुक्रम धारक नहीं होता है।" अधिनियम की धारा...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 7 : लिखत के पक्षकार कौन होते हैं
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत तीन प्रकार के लिखत पर प्रावधान किए गए हैं। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत उल्लेख किए गए लिखत के पक्षकारों पर चर्चा की जा रही है। किसी भी लिखत के विषय में प्रावधानों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण उसके पक्षकारों का उल्लेख है। इससे अधिनियम में यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यवहार से संबंधित किस व्यक्ति को क्या कहा जाएगा।लिखत के पक्षकार-लिखत के पक्षकार विनिमय पत्र एवं चेक के पक्षकार होते हैं, 'लेखीवाल', 'ऊपरवाल' एवं...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 5 : चेक क्या होता है
परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act, 1881) जिन तीन प्रमुख इंस्ट्रूमेंट्स का उल्लेख करता है उनमे चेक सबसे महत्वपूर्ण इंस्ट्रूमेंट्स है। इस अधिनियम जो नए संशोधन किए गए हैं वह भी चेक के नियमन से ही संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत चेक की परिभाषा और उसका परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है और उससे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।इंग्लिश लॉ के अनुसार परिभाषा - विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 (आंग्ल) की धारा 73 में चेक को कुछ इन शब्दों में परिभाषित किया है:-"एक चेक विनिमय पत्र है जो...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 6 : निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स की परिभाषा
परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत पिछले आलेख में चेक की परिभाषा प्रस्तुत गई थी। सभी अधिनियम में अधिनियम से संबंधित शब्दों की परिभाषा धारा 2 या 3 में प्रस्तुत की जाती है परंतु इस अधिनियम में इस प्रकार शब्दोंं की परिभाषा प्रस्तुत नहीं है। जैसेे कि धारा 13 में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स की परिभाषा प्रस्तुत की गई है। इस आलेख केेे माध्यम से नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट की परिभाषा पर सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।परक्राम्य लिखते [ धारा 13 ]आधुनिक वाणिज्य को दुनिया...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 4 : विनिमय पत्र क्या होता है
परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) जैसा कि तीन प्रकार के लिखत का उल्लेख कर रहा है वचन पत्र, विनिमय पत्र, और चेक। पिछले आलेख में वचन पत्र के संबंध में उल्लेख किया गया था। इस आलेख के अंतर्गत विनिमय पत्र का उल्लेख किया जा रहा है। विनिमय पत्र भी इस अधिनियम का महत्वपूर्ण भाग है तथा उससे संबंधित नियमों को भी इस आलेख में प्रस्तुत किया गया है। विनिमय पत्र की परिभाषा और उसका परिचय इस आलेख में प्रस्तुत किया जा रहा है साथ ही उससे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत है।यह विनिमय...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 5 : चेक क्या होता है
परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act, 1881) जिन तीन प्रमुख इंस्ट्रूमेंट्स का उल्लेख करता है उनमे चेक सबसे महत्वपूर्ण इंस्ट्रूमेंट्स है। इस अधिनियम जो नए संशोधन किए गए हैं वह भी चेक के नियमन से ही संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत चेक की परिभाषा और उसका परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है और उससे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।इंग्लिश लॉ के अनुसार परिभाषा - विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 (आंग्ल) की धारा 73 में चेक को कुछ इन शब्दों में परिभाषित किया है:-"एक चेक विनिमय पत्र है जो...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 3 : वचन पत्र क्या होता है
परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत तीन प्रकार के दस्तावेजों का उल्लेख किया गया है उनमें पहला महत्वपूर्ण दस्तावेज वचन पत्र है। अधिनियम की धारा 4 वचन पत्र के संबंध में उल्लेख करती है। इस आलेख के अंतर्गत वचन पत्र संबंधित से प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है तथा उससेे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहेे हैं।वचन पत्र ऐसा पत्र है जिसने ऋण चुकाने का वचन समाहित है। इसका संबंध ऋण से है। यदि ऋण है तो वहां वचन पत्र भी होने की संभावना रहती है। सामान्य व्यवहारों में...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 2 : बैंककार क्या होता है
परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत बैंककार का महत्व है तथा इस अधिनियम को समझने से पूर्व इससे संबंधित विशेष शब्दों को समझा जाना महत्वपूर्ण होगा। बैंककार इस अधिनियम का महत्वपूर्ण भाग है तथा इसकी परिभाषा इस अधिनियम की धारा 3 में प्रस्तुत की गई। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा पर संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।अधिनियम के अंतर्गत दी गई परिभाषा:-बैंककार–"बैंककार" के अन्तर्गत बैंककार के तौर पर कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति और कोई भी डाक घर बचत बैंक आता है।इस...
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 1 : परक्राम्य लिखत अधिनियम का परिचय
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) भारत में अधिनियमित एक महत्वपूर्ण अधिनियम है जो कुछ लिखत से संबंधित नियमों को प्रस्तुत करता है। निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 काफी पुराना और प्रसिद्ध अधिनियम है। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम के इतिहास तथा इसके वर्तमान स्वरूप के साथ ही इसका परिचय भी प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके बाद के आलेखों में इस अधिनियम से संबंधित विशेष प्रावधानों पर टीका, टिप्पणी प्रस्तुत की जाएगी तथा सारगर्भित महत्वपूर्ण न्याय निर्णयों का भी उल्लेख किया...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 46: किसी दान को कैसे निरस्त किया जा सकता है जानिए क्या कहते हैं प्रावधान (धारा 126)
संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत दान एक महत्वपूर्ण अंतरण का माध्यम है। यह प्रश्न सदा देखने को मिलता है कि दान को निरस्त किए जाने संबंधित क्या प्रावधान है। संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 126 दान को निरस्त किए जाने संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित करती है। इस आलेख के अंतर्गत इस प्रकार दान को निरस्त किए जाने संबंधित धारा 126 पर व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है।धारा 126-दान एक प्रतिफल रहित संव्यवहार है जिसमें सम्पत्ति का स्वामी बिना प्रतिफल के सम्पत्ति का स्वामित्व अन्तरित करता है। साधारणतया दान के...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 45: दान का अंतरण कैसे किया जाता है! इससे संबंधित प्रक्रिया (धारा 123)
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 123 के अंतर्गत दान के माध्यम से संपत्ति के अंतरण से संबंधित प्रक्रिया को प्रस्तुत किया गया है। विदित रहे कि इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत दान के संबंध में उल्लेख किया गया था जहां दान की परिभाषा प्रस्तुत की गई थी। दान भी संपत्ति के अंतरण का एक माध्यम है। धारा 123 दान से होने वाले संपत्ति के अंतरण से संबंधित विस्तृत प्रक्रिया का उल्लेख कर रही है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 123 से संबंधित प्रक्रिया को उल्लेखित किया जा रहा है।धारा 123, दान किस...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 44: दान क्या है दान की परिभाषा (धारा 122)
संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत जिस प्रकार विक्रय, पट्टा, विनिमय संपत्ति का अंतरण के माध्यम है इसी प्रकार संपत्ति के अंतरण का एक माध्यम दान भी होता है। दान के माध्यम से भी किसी संपत्ति का अंतरण किया जा सकता है। दान से संबंधित प्रावधान संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत यथेष्ठ रूप से दिए गए हैं। संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 दान संबंधित प्रावधानों को प्रस्तुत करती है। इस आलेख के अंतर्गत इसी धारा पर व्याख्या प्रस्तुत की जा रही तथा दान की परिभाषा पर प्रकाश डाला जा रहा है।दान- किसी वर्तमान जंगम...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 43: विनिमय क्या होता है? विनिमय की परिभाषा (धारा 118)
संपत्ति अंतरण अधिनियम एक विशाल अधिनियम है। जैसा कि कहा जाता है जिस प्रकार आपराधिक विधानों में भारतीय दंड संहिता का महत्व है उसी प्रकार सिविल विधि में संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 का महत्व है जो अनेकों प्रकार के अधिकारों का उल्लेख कर रहा है। जैसा कि इससे पूर्व के आलेखों में संपत्ति अंतरण के माध्यमों में अनेक माध्यमों पर चर्चा की जा चुकी है जिसमें विक्रय पर चर्चा की गई पट्टे पर चर्चा की गई। इसी प्रकार संपत्ति अंतरण का एक माध्यम विनिमय भी होता है। विनिमय के माध्यम से भी संपत्ति का अंतरण किया जा सकता...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 42: पट्टे के अंतर्गत अतिधारण क्या होता है (धारा 116)
किसी भी पट्टे की एक कालावधि होती है। उस कालावधि के अंतर्गत पट्टा विधमान रहता है। पट्टे का जब पर्यवसान हो जाता है या निरस्त हो जाता है या उसकी कालावधि समाप्त हो जाती है या उसकी शर्तों का पालन हो जाता है तब भी पट्टेदार पट्टा संपत्ति को धारण किए रहता है ऐसी स्थिति को अतिधारण कहा जाता है जिसका उल्लेख संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 116 के अंतर्गत किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही धारा 116 से संबंधित प्रावधानों पर व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है।अतिधारण— " अतिधारण" से आशय है पट्टेदार द्वारा...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 41: समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 111 एक वृहद धारा है। इस धारा के अंतर्गत उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिन पर किसी पट्टे का पर्यवसान होता है। उन आधारों में से एक आधार समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान भी है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 111 के खंड (छ) पर जो समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान के संबंध में उल्लेख कर रहा है, विस्तार पूर्वक व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है।समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान [ धारा 111 (छ) ]यह खण्ड उपबन्धित करता है कि-(i) उस दशा में जबकि पट्टेदार...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 40: पट्टे का पर्यवसान (पट्टा समाप्त होना) (धारा-111)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 111 किसी भी पट्टे के समाप्त होने के आधारों का वर्णन करती है। किसी भी पट्टे का पर्यवसान इन आधारों पर होता है। यह इस अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है इस धारा के अंतर्गत कुल 8 प्रकार के आधार प्रस्तुत किए गए हैं जो किसी पट्टे को समाप्त करने हेतु प्रस्तुत किए गए है। जहां रेंट कंट्रोल अधिनियम लागू होता है वहां इस धारा के प्रावधान लागू नहीं होते परंतु फिर भी इस धारा का अत्यधिक महत्व है तथा न्यायालय पट्टे के पर्यवसान के समय इन आधारों पर भी जांच कर सकता...











