संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 39: पट्टाकर्ता के अंतिरिती के अधिकार (धारा-109)

Shadab Salim

27 Aug 2021 4:30 AM GMT

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 39: पट्टाकर्ता के अंतिरिती के अधिकार (धारा-109)

    संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत पट्टाकर्ता के अन्तरिती के अधिकार भी स्पष्ट किए गए। कभी-कभी ऐसी परिस्थिति होती है कि किसी संपत्ति का पट्टाकर्ता संपत्ति में विधामान अपने अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित कर देता है। ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति को पट्टा संपत्ति के अधिकार अंतरित किए गए हैं उस व्यक्ति को पट्टाकर्ता का अन्तरिती कहा जाता है तथा इस धारा के अंतर्गत इसी प्रकार के अन्तरिती के अधिकारों का वर्णन किया गया है।

    इस आलेख के अंतर्गत इस धारा 109 पर सारगर्भित टिप्पणी की जा रही है। यह धारा इससे संबंधित न्याय निर्णय के साथ प्रस्तुत की जा रही है। इससे पूर्व के आलेख में पट्टेदार के अधिकारों के संबंध में चर्चा की गई थी जो की धारा 108 से संबंधित है।

    धारा 109:-

    पट्टे के माध्यम से एक व्यक्ति अपनी अचल सम्पत्ति एक निर्धारित अवधि के लिए या एक ऐसी अवधि के लिए जिसका निर्धारण हो सकेगा, पट्टेदार को केवल उपभोग का अधिकार अन्तरित करता है। उपभोग का अधिकार तभी प्रभावी होगा जब साथ में सम्पत्ति का कब्जा भी उसे प्राप्त हो।

    अतः पट्टे में सम्पत्ति का कब्जा एवं उपभोग का अधिकार दोनों ही साथ-साथ अन्तरित होते हैं। पट्टा सम्पत्ति में के अन्य हित (वे हित जो पट्टेदार को अन्तरित नहीं किए गए हैं) वे सदैव पट्टाकर्ता के पास बने रहते हैं जिन्हें यदि वह (पट्टाकर्ता) चाहे तो किसी भी अन्य व्यक्ति के पक्ष में अन्तरित कर सकेगा। ऐसी स्थिति में पट्टाकर्ता में अन्तरिती के क्या अधिकार होंगे। इस सम्बन्ध में धारा 109 प्रावधान प्रस्तुत करता है।

    धारा 109 तीन खण्डों में बंटी हुई है:-

    प्रथम खण्ड उपबन्धित करता है कि यदि पट्टाकर्ता पट्टे पर दी हुई सम्पत्ति को या उसके किसी भाग को या उसमें के अपने हित के किसी भाग को अन्तरित कर देता है तो अन्तरिती तत्प्रतिकूल संविदा के अभाव में उस अन्तरित सम्पत्ति या भाग के बारे में पट्टाकर्ता के वे सब अधिकार तब तक रखेगा जब तक वह उसका स्वामी रहता है और यदि पट्टेदार ऐसा निर्वाचन को तो वह तब तक पट्टाकर्ता के सभी दायित्वों के भी अध्यधीन रहेगा, जब तक वह उसका स्वामी रहता है। पर पट्टाकर्ता का पट्टे द्वारा अधिरोपित दायित्वों में से किसी के अध्यधीन रहना केवल ऐसे अन्तरण के कारण ही प्रविरत न हो जाएगा, जब तक कि पट्टेदार अन्तरिती को अपने प्रति दायी व्यक्ति मानने का निर्वाचन न कर लें।

    धारा 109 में वर्णित विधि तत्प्रतिकूल किसी संविदा के अध्यधीन है। अर्थात् यदि संविदा के पक्षकारों ने आपस में करार द्वारा ऐसी संविदा की है जो इसे प्रावधान के अनुरूप नहीं है तो ऐसी स्थिति में पक्षकारों के बीच का सम्बन्ध उनके बीच हुई संविदा से विनियमित होगा न कि धारा 109 में उल्लिखित विधि से।

    अर्थात् यदि पट्टाकर्ता सम्पूर्ण पट्टाकर्ता सम्पत्ति का विक्रय कर देता है तो पट्टाकर्ता का अन्तरिती पट्टाकर्ता के समस्त अधिकारों को भी प्राप्त करेगा जिसमें पट्टे के पर्यवसान का भी अधिकार सम्मिलित होगा। पर यदि संविदा के पक्षकार अर्थात् पट्टाकर्ता अन्तरण एवं अन्तरिती यदि चाहे, तो यह भी करार कर सकते हैं कि पट्टा सम्पत्ति में के सम्पूर्ण हित के अन्तरण के पश्चात् भी पट्टा को समाप्त कराने एवं उत्तर भोग अधिकार को प्रत्यावर्तित कराने का अधिकार पट्टाकर्ता में ही निहित रहेगा।

    ऐसा करार धारा 109 के अन्तर्गत अवैध होने के बावजूद भी वैध रहेगा, क्योंकि धारा 109 ही पक्षकारों को तत्प्रतिकूल संविदा करने की अनुमति भी प्रदान करती है। दूसरे शब्दों में धारा 109 में उल्लिखित प्रावधान तभी प्रभावी होगा जब अन्तरण एवं अन्तरिती के बीच कोई तत्प्रतिकूल संविदा न हो।

    नूतन कुमार बनाम द्वितीय अतिरिक्त जिला जजों के वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अभिप्रेक्षित किया है कि :-

    यह सत्य है कि सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के प्रावधानों से शासित एक अन्तरण से भिन्न एक संविदा पर संविदा अधिनियम की धारा 23 लागू होती है, पर एक संविदात्मक पट्टेदारी संविदा के सिद्धान्तों पर आधारित होती है अतः संविदा अधिनियम के सुसम्बद्ध प्रावधान भी पट्टे से सम्बद्ध सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के सुसंगत प्रावधानों के अतिरिक्त पट्टे को विनियमित करेंगे। इसके अतिरिक्त सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 6 (ज) के कारण भी संविदा अधिनियम की धारा 23 पट्टे की वैधता को विनियमित करती रहेगी।"

    पट्टाकर्ता का अन्तरिती पट्टाकर्ता के समस्त अधिकारों, जिनका इस धारा में उल्लेख का अधिकारी हैं अत: वह मासिक किरायेदार को जिसे मूल पट्टाकर्ता ने रखा था को भी बेदखल कर सकेगा। ऐसे मामलों में पट्टेदार द्वारा अभिधार की आवश्यकता नहीं होती है।

    विभाजन या बंटवारा संयुक्त सम्पत्ति का बंटवारा या विभाजन सम्पत्ति का अन्तरण होगा तथा यह कृत्य धारा 109 के उपबन्धों से विनियमित होगा या नहीं एक जटिल स्थिति उत्पन्न करता है। जहाँ तक बंटवारा का सम्बन्ध इसी अधिनियम की धारा 5 के अन्तर्गत उसे सम्पत्ति का अन्तरण नहीं माना जाता है।

    ऐसा मत उच्चतम न्यायालय ने बॉ० एन० सरोन बनाम अजीत कुमार पोपलाई के वाद में व्यक्त किया था। इसी निर्णय का अनुसरण करते हुए केरल उच्च न्यायालय ने भी यह मत व्यक्त किया है कि विभाजन, सम्पत्ति का अन्तरण नहीं है क्योंकि उसमें केवल संयुक्त अधिकारों को सहभागीदारों के बीच पृथक्-पृथक किया जाता है।

    किसी भी भागीदार के पक्ष में सर्वप्रथम कोई अधिकार उक्त सम्पत्ति में सृजित नहीं किया जाता है तथा अधिकारों को पृथक कर प्रत्येक भागीदार को उस पर एकान्तिक अधिकार एवं सम्पत्ति के एक विशिष्ट माँग पर कब्जा प्रदान कर दिया जाता है।

    इस मत को उच्चतम न्यायालय ने एक अन्य वाद मोहन सिंह बनाम देवी चरणों के बाद में भी अभिव्यक्त किया है। किन्तु एस० के० सत्तर बनाम गुडप्पा अमवादास के वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित मत के आधार पर यह कहा जा सकेगा कि यह बिन्दु अन्तिम रूप से अभी तक निशाँत नहीं हुआ है।

    उच्चतम न्यायालय ने इस सन्दर्भ में अपना मत व्यक्त करते हुए यह सुस्पष्ट किया कि 'अन्तरण' को उच्चतम न्यायालय ने पृथक्-पृथक् सांविधिक प्रावधानों के सन्दर्भ में पृथक्-पृथक् रूप में विरचित किया है।

    उच्चतम न्यायालय का अभिप्रेक्षण इस प्रकार है:-

    "इस प्रश्न पर हमारा अपना सन्देह है। यदि एक संयुक्त परिवार की सम्पत्ति का विभाजन पक्षकारों के कृत्य से होता, तो यह जैसा कि पहले देखा गया अधिनियम की धारा 5 के अर्थ के अन्तर्गत अन्तरण नहीं माना जाएगा। किन्तु यदि विभाजन के लिए वाद दायर किया जाता है तथा विभाजन की प्रक्रिया न्यायालय की डिक्री के माध्यम से पूर्ण की जाती है, तो यह अन्तरण के तुल्य होगा, यथा धारा 2 (घ) जो स्पष्टतः विधि के प्रवर्तन द्वारा या डिक्री के अधीन न्यायालय के आदेश के अन्तर्गत किए गये अन्तरण को वर्जित करता है। धारा 5 जो एक प्रकार से अन्तरण को परिभाषित करती है इस प्रकार धारा 2 (घ) द्वारा आच्छादित है। यह एक विचित्र स्थिति है तथा इस विचित्र स्थिति का एक दिन समाधान होना आवश्यक है विशेषकर, विभिन्न सांविधिक प्रावधानों के सन्दर्भ में अन्तरण को जिस प्रकार इस न्यायालय द्वारा निर्वाचन किया गया।"

    धारा 2 (घ) सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम उपबन्धित करती है कि धारा 57 और अध्याय 4 द्वारा यथा उपवन्धित के सिवाय, विधि की क्रिया द्वारा या सक्षम अधिकारितायुक्त न्यायालय की डिक्री या आदेश के द्वारा या उसके निष्पादन में हुआ कोई अन्तरण सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के क्षेत्र विस्तार के अन्तर्गत नहीं आयेगी।

    उपरोक्त के आधार पर यह कहना समीचीन प्रतीत होता है कि विभाजन सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 5 के अन्तर्गत 'अन्तरण' है तथा इस धारा अर्थात् धारा 109 के अन्तर्गत समर्पण एवं हस्तान्तरण का मिश्रण है। इसे अर्थात् विभाजन को धारा 109 के अर्थ के अन्तर्गत 'अन्तरण' माना गया है। अतः एक संयुक्त सम्पत्ति की टेनेन्सी का विभाजन के फलस्वरूप पर्यवसान हो सकेगा।

    इस बात को शंकर शाश्वत बनाम अनुकूल चन्द्र बोस के प्रकरण में स्वीकार किया गया है अर्थात् विभाजन को धारा 109 के प्रयोजन हेतु अन्तरण माना गया है। अन्तरिती सम्पत्ति के एक भाग का अन्तरिती पट्टाकर्ता के समस्त अधिकारों से युक्त होगा जिस प्रकार पट्टाकर्ता के समस्त अधिकारों से युक्त होगा।

    जिस प्रकार पट्टाकर्ता पट्टा सम्पत्ति के एक भाग से पट्टेदार को बेदखल नहीं कर सकता है उसी प्रकार धारा 109 सम्पत्ति के एक भाग के अन्तरिती को भी पट्टेदार को बेदखल करने का अधिकार नहीं देता है। मूल पट्टाकर्ता द्वारा पट्टेदार को उस समय नोटिस देने से जबकि यह अपने समस्त अधिकारों का अन्तरण कर चुका है कोई विधिक प्रभाव सृजित नहीं होगा और न ही किसी प्रकार पट्टेदार पर आबद्धकारी होगा।

    किसी तत्प्रतिकूल संविदा के अभाव में पट्टाकर्ता का अन्तरिती पट्टाकर्ता के सभी अधिकारों से युक्त होता है। यद्यपि एक नवीन अभिधार पर व्यवहार में बल दिया जाता है, परन्तु इसकी आवश्यकता नहीं होती है।

    अन्तरण का समनुदेशितो, पट्टेदार के विरुद्ध पट्टाकर्ता के समस्त अधिकारों का प्रयोग कर सकेगा, जिसमें किराया प्राप्त करने का अधिकार पट्टे का पर्यवसान पट्टेदार को बेदखल करने का अधिकार सम्मिलित होगा।

    अन्तरण का प्रभाव पट्टाकर्ता का अन्तरिती पट्टाकर्ता के सभी अधिकारों से युक्त रहता है जब तक कि कोई तत्प्रतिकूल अभिव्यका प्रसंविदा न हो। ऐसा अन्तरित पट्टेदार को बेदखल करने हेतु वाद संस्थित कर सकेगा भले ही टेनेन्ट ने उसे किराये का भुगतान न किया हो उसके लिए यह साबित करना आवश्यक नहीं है कि किराये या भाटक का भुगतान वस्तुतः उसे किया गया था यह साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि उसके पक्ष में अभिधार हुआ है यदि वह यह साबित करने में समर्थ है कि वह पट्टाकर्ता का अन्तरिती है।

    एक पट्टेदार समनुदेशिती को एक युक्तियुक्त अवधि तक किराये का भुगतान करने के उपरान्त समनुदेशिती के स्वत्व या हित को चुनौती नहीं दे सकेंगा यदि एक व्यक्ति ने अपनी सम्पत्ति को पट्टे पर दिया था तथा बाद में उसी सम्पत्ति को भोग बन्धक के रूप में अन्तरित कर देता है तो भोग बन्धकी, बन्धकदार पट्टाकर्ता के उन समस्त अधिकारों से युक्त होगा जो बन्धककर्ता पट्टाकर्ता को पट्टेदार के विरुद्ध प्राप्त थे। भोग बन्धकी, पट्टेदार से किराया तथा अन्य लाभ प्राप्त करने का अधिकारी होगा।

    धारा 109 में वर्णित मामलों में पट्टाकर्ता का अन्तरिती धारा 111(छ) के अन्तर्गत वर्णित जब्ती खण्ड का लाभ ले सकेगा। धारा 107 में प्रयुक्त शब्दों "पट्टाकर्ता के ये सब अधिकार.. उस सम्पत्ति " के अन्तर्गत प्रसंविदा के अधीन पट्टाकर्ता के सभी अधिकार सम्मिलित हैं जो सम्पत्ति को प्रभावित करते हैं, अर्थात् भूमि और कोई अधिकार अन्तरित नहीं होते हैं।

    दूसरे शब्दों में केवल भूमि के साथ चलने वाली प्रसंविदाएँ ही अन्तरित होती हैं और कोई अन्य अधिकार अन्तरित नहीं होता है। मूल पद के विरुद्ध प्राप्त पूर्णतया वैयक्तिक अधिकार ऐसा अधिकार नहीं है जिसे पट्टाकर्ता अन्तरक समनुदाशती को अन्तरित कर सके क्योंकि पट्टाकर्ता का यह अधिकार यहाँ सम्पत्ति से सम्बद्ध नहीं होता है। पट्टाकर्ता को पट्टेदार द्वारा किया गया कोई अग्रिम भुगतान जो पट्टे के पर्यवसान पर प्रतिदाय (वापस लिया जाने वाला) है पट्टाकर्ता के समनुदेशिती से वसूला नहीं जाए।

    पट्टाकर्ता से सम्पत्ति में अधिकार प्राप्त करने वाला अन्तरिती पट्टाकर्ता के समस्त दायियों से भी आबद्ध होता है। अतः पट्टे के नवीकरण हेतु प्रसंविदा समनुदेशितों के विरुद्ध प्रवर्तनीय होगी। धारा 109 में प्रयुक्त पदावलि यदि पट्टेदार ऐसा निर्वाचन करे तो पट्टाकर्ता सब दायित्वों के अध्यधीन तब तक रहेगा से यह अभिप्रेत है भूमि के साथ चलने वाली सभी प्रसंविदाओं का भार जैसे शान्तिपूर्ण उपभोग की प्रसंविदा।

    यदि ऐसी प्रसंविदा के उल्लंघन पर वह यह निर्वाचन करता है कि अन्तरिती दायी है, तो उसका निर्वाचन अन्तिम होगा। यदि मूल पट्टे का पर्यवसान न्यायालय की डिक्री के फलस्वरूप होता है तो उपपट्टेदार, पट्टाकर्ता का साधे-सीधे पट्टेदार नहीं बनेगा पर यदि पट्टेदार यह वचन देता है कि वह भू-स्वामी के अन्तरिती को किराया का भुगतान करेगा तथा अन्तरण की सूचना के बाद भी वह सम्पत्ति को निरन्तर धारण किए रहता है तो ऐसा कृत्य अभिधार के तुल्य माना जाएगा एवं संव्यवहार वैध होगा।

    गोपाल कृष्ण बनाम लक्ष्मी नारायणी के वाद में पट्टाजनित सम्पत्ति में एक आवासीय कक्ष, में खानागार एवं शौचालय सम्मिलित था पट्टाकर्ता ने स्रानागार एवं शौचालय को छोड़कर उक्त सम्पत्ति को बेच दिया। इस प्रकार मूल पट्टेदारी का दो हिस्सों में बंटवारा हो गया। क्रेता आवासीय कक्ष का स्वामी बन गया, जबकि पट्टाकर्ता विक्रेता स्नानागार एवं शौचालय का स्वामी बना रहा।

    इन तथ्यों के आधार पर यह अभिनित हुआ है कि पट्टेदार स्नानागार एवं शौचालय के उपभोग को पुनः स्थापित करने का दावा प्रस्तुत कर सकेंगे। मूल स्वामी के विरुद्ध जो विभाजन के उपरान्त भी इन दोनों का स्वामी बना हुआ है धारा 109 के प्रवर्तन के फलस्वरूप पट्टाधृति सम्पत्ति का अन्तरिती उस सम्पत्ति से जो उसे अन्तरित की गयी है, पट्टेदार को बेदखल कर सकेगा। पक्षकारों के बीच का सम्बन्ध विधि के फलस्वरूप होता है न कि पट्टेदार को सम्मति पर आधारित है।

    पट्टेदारी की एकता एवं अखण्डता के विखण्डन के विरुद्ध अपवाद-

    पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार के विरुद्ध पट्टेदारों का विखण्डन नहीं हो सकता है। यहाँ तक कि न्यायालय या रेन्ट फन्ट्रोलिंग अथारिटी भी अपनी डिक्री या अन्यथा द्वारा पट्टेदारी का विखण्डन कर सकेंगे जब तक कि पट्टेदारों के विखण्डन हेतु संविधि में विशिष्ट प्रावधान न हों।

    अतः पट्टाकर्ता एकपक्षीय निर्णय लेकर पट्टेदारी का विखण्डन कर पट्टे पर दी गयी सम्पत्ति के सम्बन्ध में निष्कासन का दावा प्रस्तुत कर सके। परन्तु जब सम्पत्ति का विभाजन किया जाता है तो इसके फलस्वरूप धारा 109 के अन्तर्गत विखण्डन होता है तथा एक सह-स्वामी पट्टेदार को उस सम्पत्ति से बेदखल कर सकेगा जो उसे आवंटित हुई है।

    विखण्डन के फलस्वरूप यह भी अभिनिर्णत हुआ है कि यदि पट्टाधृति में केवल एक हित ही अन्तरित किया जाता है, तो एक सह-पट्टाकर्ता अकेले ही पट्टे का पर्यवसान नहीं कर सकेगा या बिना सह-पट्टाकर्ता को साथ लिए जब तक कि वह विभाजन को प्रभावी नहीं करा लेता।

    धारा 109 उस साधारण सिद्धान्त का एक अपवाद प्रस्तुत करती है जिसके अनुसार एक पट्टाकर्ता के एकपक्षीय कृत्य से पट्टेदारी का विखण्डन नहीं हो सकेगा। यह उपबन्ध सांविधिक अभिधार का सृजन करता है तो संविदात्मक अभिधार को प्रतिस्थापित करता है तथा उसी प्रभाव से युक्त होता है जिस प्रभाव से संविदात्मक अभिधारयुक्त होता है तथा अन्तरिती स्वयमेव उन सभी अधिकारों से युक्त हो जाता है जिनसे पट्टाकर्ता युक्त था तथा अन्तरिती एवं पट्टेदार के बीच नया सम्बन्ध स्थापित होता है।

    यह पट्टेदार की सम्मति पर निर्भर नहीं होता है अतः अभिधार को आवश्यकता नहीं होती है। अन्तरिती धारा 111 में उल्लिखित परिस्थितियों में से किसी में भी अपने पक्ष में अन्तरित सम्पत्ति से सम्बन्धित पट्टे का पर्यवसान कर सकेगा।

    धारा 109 प्रत्यावर्तन के एक भाग के समनुदेशिती को समर्थ बनाती है जिससे वह भूस्वामी के समस्त अधिकारों का उस भाग के सम्बन्ध में प्रयोग कर सके जिस भाग के सम्बन्ध में अधिकार अन्तरित किए गये हैं, उन प्रसंविदाओं के अध्यधीन जो भूमि के साथ-साथ चलने वाली है। इस प्रयोजन हेतु पट्टेदार की सम्मति की आवश्यकता नहीं होगी। इसके लिए सम्मतीय अभिधार को आवश्यकता नहीं होगी। अभिधार विधि द्वारा प्रभावी होता है।

    पट्टाकर्ता के हित का अन्तरण क्या केवल पट्टेदार द्वारा अभिधार के उपरान्त ही प्रभावी होगा:-

    अभिधार संविदा के फलस्वरूप अस्तित्व में आता है। धारा 109 सुस्पष्ट करती है कि पट्टाकर्ता का अधिकार जब अन्तरिती के पक्ष में अन्तरित होता है तो अन्तरिती, विद्यमान पट्टेदारों के सम्बन्ध में पट्टाकर्ता के समस्त अधिकार एवं दायित्व प्राप्त करता है।

    विद्यमान पट्टेदारों को जारी रखने के लिए पट्टेदार द्वारा अन्तरिती के पक्ष में अभिधार की आवश्यकता नहीं होती है। अन्तरिती पट्टाकर्ता का स्थान अन्तरण के फलस्वरूप ही ग्रहण लेता है तथा उन सभी अधिकारों से युक्त हो जाता है जिनसे पट्टाकर्ता युक्त था। संव्यवहार को वैधता प्रदान करने हेतु पट्टेदार द्वारा अभिधार व्यक्त करना आवश्यक नहीं होता है।"

    जहाँ पट्टेदार के पास यह विश्वास करने के लिए कारण नहीं है कि पट्टाकर्ता ने अपना हित अन्य व्यक्ति को अन्तरित कर दिया है तथा वह पट्टाकर्ता को किराया का भुगतान करना जारी रखता।

    "तथा पट्टाकर्ता ऐसे भुगतान को स्वीकार भी करता रहता है एवं पट्टाकर्ता पट्टेदार को अन्तरण के पय में कुछ भी नहीं बताता है, ऐसी स्थिति में पट्टेदार किराये के अवशेष का भुगतान करने के लिए दायित्वाधीन नहीं होगा। इसी प्रकार अन्तरिती अन्तरण के दिनांक से पहले देय किराये के लिए दावा नहीं प्रस्तुत कर सकेगा। जहाँ पट्टाकर्ता के कथित सम्पत्ति के सह स्वामी के पक्ष में पट्टा सम्पत्ति में अपने समस्त अधिकारों, स्वत्वों तथा हितों का उन्मोचन समनुदेशन या अन्तरण किया था. अन्तरिती (सहस्वामी) अन्तरण की तिथि से पूर्व देय किरायों के अवशेष के लिए अधिकारी नहीं होगा।"

    यदि पट्टाकर्ता के अधिकार, हित एवं स्वत्व विधि के प्रवर्तन से अन्तरित हुआ हो, तो धारा 109 की स्थिति:-

    इस सन्दर्भ में मद्रास उच्च न्यायालय ने इंग्लिश विधि का अनुकरण करते हुए यह अभिनित किया था कि यदि अन्तरक द्वारा अन्तरिती को नोटिस दी गयी थी तो उस नोटिस का लाभ भूस्वामी के उत्तराधिकारी अथवा सूचना देने वाले पट्टेदार को प्राप्त होगा। परन्तु कालान्तर में मैसूर उच्च न्यायालय ने तत्प्रतिकूल मत अभिव्यक्त किया था। इस मत को उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी सहमति दी थी।

    पर उच्चतम न्यायालय ने पुनः उस प्रश्न पर बसन्तकुमार बनाम बोर्ड आफ ट्रस्टोज आफ दि पोर्ट ट्रस्ट आफ बाम्बे में विचार किया तथा पुराने सभी निर्णयों पर विवेचना करने के उपरान्त न्यायालय ने गुरुमुरु थप्पा के वाद में अभिव्यक्त किए गये मत को अस्वीकार दिया तथा एन० पी० के० रमन मेनन के वाद में अभिव्यक्त विचार से अपनी सहमति जताई।

    बसन्त कुमार के वाद में बम्बई पोर्ट ट्रस्ट ने पट्टे के पर्यवसान हेतु नोटिस दिया क्योंकि पट्टाकर्ता का हित विधि के प्रवर्तन द्वारा बम्बई पोर्ट ट्रस्ट में निहित हो गया था। नोटिस की निरन्तरता के दौरान उत्तराधिकारी ने अपने से पूर्व हित धारक द्वारा दी गयी नोटिस के आधार पर पट्टेदार को बेदखल करने के लिए वाद संस्थित किया।

    उच्चतम न्यायालय ने एन० पी० के० रमन कुमार के वाद में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा अभिव्यक्त किए गए मत से सहमति जताते हुए निर्णय सुनाया तथा त्रिम्बक एवं हितकारिणी वादों में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णयों को गुरुमुरु थप्पा के निर्णय से भी भिन्न बताया।

    उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निःसन्देह यह सत्य है कि सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 109 स्वयं इस मामले के तथ्यों पर प्रभावी नहीं होती है। यह धारा एक जीवित व्यक्ति के पक्ष में पट्टाकर्ता के हित का अन्तरण परिकल्पित करती है, परन्तु जब अचल सम्पत्ति में पट्टाकर्ता का हित, अधिकार एवं स्वत्व विधि के प्रवर्तन द्वारा अन्तरित हो जाता है तो धारा 109 की आत्मा बलात् प्रवर्तित होगी तथा उत्तराधिकारी अपने पूर्ववर्ती हित धारक के हितों को पाने के लिए प्राधिकृत होगा। बसन्त कुमार की पट्टेदारी इस आधार पर बेदखली हेतु वाद संस्थित कर सकेगा।

    पारिवारिक समझौते द्वारा हित धारक की स्थिति क्या वह बेदखली हेतु वाद संस्थित कर सकेगा:-

    यदि एक व्यक्ति से अपनी सम्पत्ति पट्टे पर किसी व्यक्ति को अन्तरित करता है तथा अन्तरण के उपरान्त उसकी मृत्यु हो जाती है एवं मृत्यु के समय उसके पाँच भाई एवं पाँच बहनें वारिस के रूप में विद्यमान थे जिन्होंने सम्पत्ति में हित प्राप्त किया। पर्याप्त विचार-विमर्श के उपरान्त सम्पति एक व्यक्ति को दे दी गयी।

    बहनों ने अपना-अपना अंश भी भाइयों के पक्ष में छोड़ दिया था। पाँच भाइयों में से एक तत्समय विदेश में था तथा उसने इस पारिवारिक समझौते पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं किया। 'स' इस प्रकार प्राप्त सम्पूर्ण सम्पति 'ब' को बेच दिया तथा 'ब' ने '' पट्टेदारों को बेदखल करने के लिए वाद संस्थित किया। पटेदारों ने 'ब' की अधिकारिता को चुनोती दी।

    यह अभिनित हुआ कि बहनों ने अपने अधिकारों का परित्याग कर सम्पत्ति का मौखिक दान भाइयों के पक्ष में कर दिया था तथा भाइयों ने आपस में पारिवारिक समझौता कर सम्पत्ति अन्तरक को दे दिया था। न्यायालय ने यह भी अभिव्यक्त किया कि यह आवश्यक नहीं है कि समझौते के समय सभी भाई विद्यमान हों। विदेश में रहने वाला भाई अपने भाइयों को प्राधिकृत कर सकता है कि वे विवाद को सुलझा लें और उन्होंने आपस में विवाद सुलझाते हुए सम्पत्ति विक्रय को संदत कर दिया तथा उसने सम्पत्ति वादी को बेच दिया।

    इस स्थिति में क्रेता को सम्पत्ति में वैध हित प्राप्त होगा। विक्रेता का सम्पत्ति के विद्यमान अधिकार, हित एवं स्वत्व तथा विक्रेता के भाइयों के भी अधिकार, हित एवं स्वत्व विधि के प्रवर्तन से समाप्त हो गए। चूँकि प्रत्यर्थी, पट्टेदार को हैसियत से सम्पत्ति में विद्यमान है अतः वह वादी के हित के अध्यधीन है, चूँकि वाद पट्टेदार को बेदखली हेतु संस्थित था, अतः बेदखली हेतु पारित डिक्री विधि सम्मत थी।

    पट्टेदार का भाटक किराया का भुगतान करने का दायित्व - धारा 109 का परन्तुक उपबन्धित करता है कि अन्तरिती अन्तरण से पहले के भाटक किराया के शोध्य बकार्यों का हकदार नहीं है और यदि पट्टेदार यह विश्वास करने का कारण न रखते हुए कि ऐसा अन्तरण किया गया है, पट्टाकर्ता को भाटक/ किराया दे देता है तो पट्टेदार अन्तरिती की ऐसा भाटक/ किराया पुनः देने का दायी नहीं होगा।

    अतः अन्तरण से पूर्व के भाटकों/किरायों जो शोध्य हो चुके हैं के लिए अन्तरिती अधिकारी नहीं होगा। इसी प्रकार वह ऐसी त्रुटि का लाभ उठाने का अधिकारी नहीं होगा। भले ही अन्तरिती के पक्ष में हुए अन्तरण के फलस्वरूप अन्तरितों में स्वत्व का निहित होना अन्तरण विलेख के निष्पादन एवं पंजीकरण के फलस्वरूप पूर्ण हो चुका हो, फिर भी पट्टेदार अन्तरिती को किराया का भुगतान तब तक करने के लिए बाध्य नहीं है जब तक कि उसे अन्तरण की सूचना न मिल जाए।

    पर यदि अन्तरण की सूचना मिलने के बाद पट्टेदार पट्टाकर्ता ने किराया का भुगतान करता है तो ऐसा भुगतान वैध भुगतान नहीं माना जाएगा। इसी प्रकार यदि अन्तरिती के पक्ष में अन्तरण के पश्चात् पट्टेदार अपनी पट्टाधृति पट्टे की अवधि समाप्त होने के फलस्वरूप पट्टाकर्ता को समर्पित करता हैं तो ऐसा समर्पण वैध नहीं होगा और न ही अन्तरिती पर आबद्धकारी और वह अन्तरिती पट्टे की अवधि के समापन पर अतिधारण के लिए पट्टेदार से किराया की माँग कर सकेगा।

    यदि पट्टेदार को अन्तरण को सूचना मिल जाती है तो यह सूचना से आबद्ध होगा तथा यह महत्वपूर्ण नहीं होगा कि सूचना उसे अन्तरक से अथवा अन्तरिती से प्राप्त हुई है। यदि उसे अन्तरण की प्रत्यक्ष या परोक्ष सूचना को फिर भी उसने किराया का भुगतान अन्तरक को किया तो वह अन्तरिती के प्रति अपने दायित्व से बच नहीं सकेगा।

    यदि किराया अभी शोध्य नहीं हुआ है फिर भी उसका भुगतान कर दिया जाता है तो किराया अदा करने के दायित्व का अनुपालन हुआ नहीं समझा जाएगा।

    यदि पट्टेदार के निष्कासन हेतु संस्थित वाद के लम्बन के दौरान, वादी भूस्वामी वाद को विषयवस्तु की एक रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख द्वारा एक अन्य व्यक्ति के पक्ष में अन्तरित कर देता है, तो ऐसे अन्तरितों को अन्तरक के सभी अधिकार प्राप्त होंगे; परन्तु धारा 109 में उपबन्धित परन्तुक के आलोक में, अन्तरिती स्वयमेव अन्तरण की तिथि से पूर्व शोध्य बकाया को पाने के लिए प्राधिकृत नहीं होगा।

    अगर क्रेता, क्रय की गयी सम्पत्ति का केवल क्रय की गयी तिथि से ही सम्पत्ति का स्वामी बनेगा। यदि पट्टेदार से कोई किराया शोध्य है सम्पति क्रय किए जाने की तिथि से पूर्व की अवधि के लिए तो यह तब तक की अवधि के लिए व कार्य की रकम के लिए प्राधिकृत नहीं होगा जब तक कि यह उसे अन्तरित न कर दे।

    भूस्वामी के हित का क्रेता, किरायेदार से शोध्य किराया की बकाया धनराशि पाने का अधिकारी नहीं है जब तक कि उक्त धनराशि भी न अन्तरित कर दी गयी हो। भूमि के साथ चलने वाली प्रसंविदाएँ जो अन्तरण के समय अन्तरक से अन्तरितों को अन्तरित होती हैं उनमें अन्तरण के पश्चात् शोध्य होने वाले किराया भी सम्मिलित होंगे तथा अन्तरिती सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 8 एवं 109 में उल्लिखित प्रावधानों के आलोक में पाने के लिए प्राधिकृत है तथा पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार का सम्बन्ध अन्तरण के पश्चात् अन्तरिती एवं पट्टेदार जो सांविधिक अभिधार के माध्यम से मूल पट्टाकर्ता का पट्टेदार था के बीच स्थापित हो जाता है।

    संविदात्मक अभिधार को आवश्यकता नहीं होती है। यदि मूल पट्टाकर्ता एवं अन्तरक, अन्तरण की सूचना पट्टेदार को देता है तो पट्टेदार किराया का भुगतान अन्तरिती को करेगा पर यदि अन्तरण की सूचना पट्टेदार को नहीं दी गयी है तो मूल पट्टाकर्ता द्वारा पर पट्टेदार को इस तथ्य का ज्ञान हो जाता है चाहे अन्तरिती द्वारा दी गयी सूचना के आधार पर या अन्यथा तो भी पट्टेदार अन्तरिती को ही किराये का भुगतान करने के लिए आबद्ध होगा। यद्यपि, यदि वह चाहे तो अन्तरिती से अन्तरण का प्रमाण मांग सकेगा।

    यदि पट्टाकर्ता किराये के बकाये के भुगतान हेतु वाद संस्थित करता है पट्टेदार के विरुद्ध जिसे पट्टे के अनुसरण में सम्पत्ति कब्जा पा गया था तो ऐसी स्थिति में यह अभिकधित करने एवं साबित करने का भार पट्टेदार पर होता है पट्टे की निरन्तरता के दौरान तथा उस कालावधि, जिसके लिए पट्टे की माँग की गयी है, उसने (पट्टेदार ने) पट्टा सम्पत्ति पट्टाकर्ता थी।

    यदि यह तथ्य साबित नहीं हो पाता है तो पट्टेदार किराया का भुगतान करने के दायित्वाधीन होगा किराया का भुगतान पट्टेदार अथवा उसकी एवज में कोई भी अन्य व्यक्ति कर सकेगा। एक अन्तरण विलेख द्वारा सम्पत्ति में के अधिकार स्वत्व एवं हित एक सहस्रनामों के पक्ष में अन्तरित कर दिया गया, पर रेन्ट का समनुदेशन कहीं भी नहीं किया गया।

    अतः धारा 109 के परन्तुक के आलोक में अन्तरित समनुदेशन से पूर्व रेन्ट पाने के लिए प्राधिकृत नहीं है। किराया की रकम मात्र एक ऋण के तुल्य है। समनुदेशन से पूर्व शोध्य किराया, किराया का बकाया नहीं माना जाएगा। यह मात्र एक अनुयोग्य दावा है।

    श्री हमिंग दैलोवा बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया एवं अन्य के वाद में एक सम्पत्ति 'अ' के पक्ष में पट्टे के रूप में अन्तरित की गयी। अ ने उक्त सम्पत्ति को पुन: पट्टे द्वारा 'ब' के पक्ष में अन्तरित किया। अ ने कालान्तर में उक्त सम्पत्ति को 'स' के पक्ष में बेच दिया। इस संव्यवहार के फलस्वरूप 'स' ने 'अ' का स्थान ग्रहण कर लिया किन्तु यह स्वयं 'ब' के पक्ष में सृजित पट्टे का प्रतिसंहरण नहीं करा सकेगा विशेष कर तब जबकि पट्टे की शर्तों के अन्तर्गत पट्टा को समाप्त कराने का अधिकार 'ब' को दे दिया गया हो।

    अतः जब तक कि 'ब' पट्टे का प्रतिसंहरण नहीं कराता है, 'स' सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत नहीं होगा। 'ब' से एक मुश्त किराया प्राप्त करने के कारण, 'ब' के पक्ष में 'अ' द्वारा सृजित पट्टा शाश्वत पट्टा में परिवर्तित हो गया था। इन परिस्थितियों में सम्पत्ति क्रय करने के बावजूद भी 'स''अ' को संदत किराए का बँटवारा नहीं करा सकेगा अथवा 'ब' से किराया हेतु प्रतिकर की माँग नहीं कर सकेगा।

    परन्तुक का पैरा 3 – यदि यह पाया जाता है कि पट्टाकर्ता, उसका अन्तरिती एवं पट्टेदार, अन्तरिती को देय किराया के विषय में सहमत हो गये हैं तो पट्टाकर्ता अथवा अन्तरिती, बिना दूसरे को पक्षकार बनाये देय किराया के सम्बन्ध में वाद संस्थित कर सकेगा पट्टाकर्ता, अन्तरिती और पट्टेदार यह अवधारित कर सकेंगे कि पट्टेदार आरक्षित प्रीमियम या भाटक का कौन से अनुपात में इस प्रकार अन्तरित भाग के लिए देय है और उनमें सहमत होने की दशा में ऐसी अवधारणा ऐसे किसी भी न्यायालय द्वारा किया जा सकेगा जो पट्टे पर दी गयी सम्पत्ति के कब्जे के लिए वाद को ग्रहण करने की अधिकारिता रखता हो।

    पट्टाधृति सम्पत्ति के एक भाग से निष्कासन कब पोषणीय है:-

    पट्टाधृति सम्पत्ति के एक अंश के क्रेता को यह अधिकार होगा कि वह उस अंश से, जिसे उसने क्रय किया है पट्टेदार को निष्कासित कर दे। ऐसा करने से पट्टेदारी का विखण्डन नहीं होगा, पर एक सहभागीदार ऐसा नहीं कर सकेगा और न ही वह अपने हिस्से के किराए हेतु वाद संस्थित कर सकेगा।

    पट्टेदारों का विखण्डन सम्पदा और न ही किराये के सम्बन्ध में हो सकेगा और न ही किसी अन्य दायित्व के सम्बन्ध में एक सह स्वामी के एकपक्षीय कृत्य से, पर स्थिति तब भिन्न होगी जब सभी सह भागीदारों में वास्तविक विभाजन होता है तथा एक या अधिक सहभागीदार पट्टाधृति को अपने अपने अंश के रूप में प्राप्त करते हैं। पट्टाधृति के विभाजन की दशा में पट्टेदार कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं होता है सिवाय इसके कि कथित विभाजन वास्तविक नहीं है, केवल मिथ्या है।

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